मनोविज्ञान क्या है? Notes in Hindi Class 11 Psychology Chapter-1 Book-1
0Team Eklavyaअगस्त 02, 2025
परिचय
अक्सर शिक्षक यह पूछते हैं कि आपने अन्य विषयों की बजाय मनोविज्ञान क्यों चुना और आप इससे क्या सीखना चाहते हैं। कई छात्र साधारण उत्तर देते हैं जैसे – “दूसरे लोग क्या सोचते हैं, यह जानना है।” लेकिन मनोविज्ञान इससे कहीं ज्यादा गहरा है। यह हमें खुद को और दूसरों को समझने में मदद करता है। हम यह जान सकते हैं कि लोग सपने क्यों देखते हैं, कोई दूसरों की मदद क्यों करता है, या हिंसक क्यों हो जाता है। प्राचीन परंपराओं से ही यह सवाल उठता रहा है कि लोग जैसा व्यवहार करते हैं वैसा क्यों करते हैं और अधिकतर लोग खुश क्यों नहीं रहते। मनोविज्ञान इन सवालों का अध्ययन करके मानव जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करता है। यह समझने की कोशिश करता है कि 9/11 जैसी घटनाएँ क्यों होती हैं, लोग आतंकवादी क्यों बनते हैं, और दूसरी ओर, कैसे कोई व्यक्ति विकलांग होने के बावजूद माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की ताकत जुटाता है। आधुनिक मनोविज्ञान चेतना, ध्यान, आक्रामकता, भावनाओं जैसी जटिल प्रक्रियाओं को भी समझने का प्रयास करता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि यह मनुष्य के भीतर के अनुभवों और मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। संक्षेप में, मनोविज्ञान हमें मानव व्यवहार और मन को समझने का अवसर देता है।
मनोविज्ञान क्या है?
1. किसी विद्याशाखा को परिभाषित करना कठिन क्यों है?
यह निरंतर विकसित होने वाला विषय है, जिसका अध्ययन क्षेत्र इतना व्यापक है कि इसे एक ही परिभाषा में सीमित नहीं किया जा सकता।
2. मनोविज्ञान शब्द का अर्थ और उत्पत्ति
ग्रीक शब्द Psyche (आत्मा) और Logos (विज्ञान या अध्ययन) से बना यह शब्द पहले आत्मा या मन के अध्ययन के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब यह मानव अनुभव और व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन माना जाता है।
3. मनोविज्ञान का क्षेत्र
इसका कार्यक्षेत्र व्यक्ति, द्विजनीय, समूह और संगठन स्तर तक फैला है, जिसमें जैविक और सामाजिक आधार शामिल होते हैं। इसकी अध्ययन विधियाँ विषय के अनुसार भिन्न होती हैं।
4. मनोविज्ञान की आधुनिक परिभाषा
यह मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों और विभिन्न संदर्भों में व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है, जिसमें जैविक और सामाजिक विज्ञान की विधियों का प्रयोग किया जाता है।
5. तीन मुख्य घटक
(i) मानसिक प्रक्रियाएँ (Mental Processes)
जानना, सोचना, स्मरण करना और समस्या हल करना जैसी प्रक्रियाएँ मानसिक गतिविधियों का हिस्सा हैं। ये मस्तिष्क की क्रियाओं से जुड़ी होती हैं, परंतु दोनों समान नहीं हैं। ये नींद में भी सक्रिय रहती हैं, जैसे स्वप्न देखना। उदाहरण: गणित की समस्या हल करते समय सोच।
(ii) अनुभव (Experience)
अनुभव आत्मपरक होता है, जिसे केवल अनुभव करने वाला ही जानता है। यह आंतरिक और बाह्य दशाओं से प्रभावित होता है, जैसे बीमारी में पीड़ा, शोक या खुशी, योगी का ध्यान अनुभव या नशे की अवस्था। एक ही परिस्थिति में अलग-अलग व्यक्तियों का अनुभव भिन्न हो सकता है, जैसे पिकनिक पर भीड़ में सफर।
(iii) व्यवहार (Behaviour)
व्यवहार हमारी क्रियाएँ और प्रतिक्रियाएँ हैं, जो प्रकट (दिखने वाली, जैसे दौड़ना) या अप्रकट (अंदर की, जैसे सोचना) हो सकती हैं। ये सरल या जटिल, क्षणिक या स्थायी हो सकते हैं। व्यवहार उद्दीपक (S) और अनुक्रिया (R) के बीच संबंध है, जैसे बाघ देखकर भागना (बाह्य उद्दीपक) या बाघ की कल्पना कर योजना बनाना (आंतरिक उद्दीपक)।
6. मुख्य बिंदु
मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों और व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है, जिसका उद्देश्य मन को समझना और मानसिक क्षमताओं का बेहतर उपयोग करना है। इसके लिए जैविक और सामाजिक विधियाँ अपनाई जाती हैं।
मनोविज्ञान एक विद्याशाखा के रूप में
मनोविज्ञान व्यवहार, अनुभव और मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। यह समझने की कोशिश करता है कि मन कैसे काम करता है और मानसिक क्रियाएँ व्यवहार में कैसे बदलती हैं। हमारे व्यक्तिगत दृष्टिकोण और पूर्वाग्रह दूसरों के व्यवहारों की हमारी व्याख्या को प्रभावित करते हैं। मनोवैज्ञानिक इसे कम करने के लिए वैज्ञानिक तथा वस्तुनिष्ठ तरीके अपनाते हैं, जबकि कुछ व्यक्तिपरक अनुभवों पर बल देते हैं। भारतीय और पाश्चात्य दोनों परंपराओं में आत्म-परावर्तन (self-reflection) और सचेतन अनुभव मनोवैज्ञानिक समझ के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। मनोविज्ञान, एक पुरानी विद्याशाखा होते हुए भी आधुनिक विज्ञान है, जिसकी प्रथम प्रयोगशाला 1879 में लिपजिग, जर्मनी में स्थापित हुई। इसे सामाजिक विज्ञान माना जाता है, परन्तु अनेक देशों में यह विज्ञान संकाय के अंतर्गत आता है। तंत्रिका विज्ञान तथा कंप्यूटर विज्ञान भी मनोविज्ञान से ज्ञान लेते हैं। इसमें दो धाराएँ प्रमुख हैं— पहली, जैविक व भौतिक विज्ञान की विधियों से कारण-प्रभाव संबंधों को खोजती है; दूसरी, सामाजिक व सांस्कृतिक संदर्भों में व्यक्ति के व्यवहार की व्याख्या पर केंद्रित है। ये दोनों धाराएँ कई बार मिलकर व्यवहार को समझने का प्रयास करती हैं।
मनोविज्ञान एक प्राकृतिक विज्ञान के रूप में
मनोविज्ञान की उत्पत्ति दर्शनशास्त्र से हुई है, परंतु आधुनिक मनोविज्ञान का विकास वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग से संभव हुआ है। वैज्ञानिक विधि वस्तुनिष्ठता पर ज़ोर देती है, जिसमें संप्रत्ययों की परिभाषा एवं मापन के तरीकों पर सहमति आवश्यक होती है। दर्शन में देकार्त और भौतिकी में हुए विकास से प्रभावित होकर, मनोविज्ञान में परिकल्पनात्मक-निगमनात्मक (hypothetico-deductive) मॉडल अपनाया गया। इस मॉडल में सिद्धांतों की सहायता से किसी घटना के बारे में परिकल्पना बनाई जाती है, जिसे जाँच कर सही या गलत सिद्ध किया जाता है। इससे अधिगम, स्मृति, अवधान, प्रत्यक्षण, अभिप्रेरणा तथा संवेग जैसे विषयों पर सिद्धांत विकसित हुए हैं। इसके अलावा, मनोविज्ञान जैविक विज्ञानों से प्रभावित विकासात्मक उपागम (Developmental approach) का भी उपयोग करता है, जिसके द्वारा लगाव (attachment) और आक्रोश (aggression) जैसे व्यवहारों को समझा गया है।
मनोविज्ञान एक सामाजिक विज्ञान के रूप में
मनोविज्ञान को मुख्यतः सामाजिक विज्ञान माना जाता है, क्योंकि यह मानव व्यवहार का अध्ययन उसके सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में करता है। व्यक्ति केवल इन संदर्भों से प्रभावित ही नहीं होता, बल्कि उनका निर्माण भी करता है। उदाहरण के लिए, रंजीता और शबनम एक ही कक्षा में होते हुए भी भिन्न परिवारों और परिस्थितियों में पली-बढ़ी थीं, जिससे उनके व्यवहार, अनुभव और मानसिक प्रक्रियाओं में अंतर आ गया। बाढ़ की एक घटना में दोनों परिवार एक-दूसरे के करीब आए, जिससे दोस्ती और सहायता की भावना पैदा हुई। हालाँकि, ऐसी स्थिति में सभी लोग हमेशा एक समान व्यवहार नहीं करते; कुछ लोग असामाजिक या अवसरवादी भी हो जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि मनोविज्ञान मानव व्यवहार को सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में अध्ययन करता है और व्यक्तियों तथा समुदायों पर इन संदर्भों के प्रभाव पर केंद्रित है।
मन एवं व्यवहार की समझ
मनोविज्ञान को पहले मन का विज्ञान माना गया था, लेकिन लंबे समय तक मन की अवधारणा अस्पष्ट मानी गई और इसे व्यवहार की भाषा में परिभाषित करना कठिन रहा। हाल ही में तंत्रिका वैज्ञानिक स्पेरी और भौतिकविद् पेनरोज़ जैसे शोधकर्ताओं ने मन की अवधारणा को फिर से महत्त्व दिया है। मन और मस्तिष्क एक-दूसरे से जुड़े हैं, परंतु मन का अस्तित्व मस्तिष्क से भिन्न भी है। मस्तिष्क के कुछ भाग क्षतिग्रस्त होने के बाद भी मन के कार्यों के बने रहने के अनेक उदाहरण हैं। पूर्व में मन और शरीर को स्वतंत्र समझा जाता था, पर अब वैज्ञानिक अध्ययनों से स्पष्ट हो गया है कि दोनों के बीच गहरा संबंध है। आधुनिक शोधों से पता चला है कि सकारात्मक सोच, मानसिक प्रतिमा, और भावनाओं के प्रभाव से शरीर की क्रियाओं, जैसे रक्त प्रवाह एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता, को बेहतर किया जा सकता है। इसी प्रकार मानसिक चित्रों (mental imagery) द्वारा भय और चिंता के उपचार के भी प्रभावी परिणाम मिले हैं। इस क्षेत्र में "मनस्तंत्रिकीय रोग प्रतिरोधक विज्ञान" (psychoneuroimmunology) नामक नई शाखा उभर रही है, जो शरीर के स्वास्थ्य में मन की भूमिका पर केंद्रित है।
मनोविज्ञान विद्याशाखा की प्रसिद्ध धारणाएँ
1. हम रोज़ मनोवैज्ञानिक की तरह क्यों सोचते हैं?
हम रोज़ यह समझने की कोशिश करते हैं कि लोग ऐसा क्यों करते हैं और अपने अनुभव से मानव व्यवहार के सिद्धांत बना लेते हैं, जैसे "लोग आलसी होते हैं, इसलिए सख्ती जरूरी है" या "लोगों को उत्साहित करना होगा ताकि वे बेहतर काम करें।"
2. सामान्य बोध (Common Sense) की समस्या
सामान्य बोध पर आधारित व्याख्याएँ अक्सर अनुमान होती हैं, जैसे "दृष्टि ओझल, मन ओझल" या "दूरी से प्रेम बढ़ता है"। कौन-सा सही है, यह परिस्थिति पर निर्भर करता है, इसलिए ये वैज्ञानिक नहीं मानी जातीं।
3. मनोविज्ञान क्यों अलग है?
मनोविज्ञान केवल घटनाओं की व्याख्या नहीं करता, बल्कि भविष्यवाणी भी करता है। इसका ज्ञान वैज्ञानिक होता है, जो सामान्य बोध से अलग और प्रयोगों व प्रमाणों पर आधारित होता है।
4. ड्वेक (Dweck) का अध्ययन – उदाहरण
कुछ बच्चे कठिनाई आने पर जल्दी हार मान लेते हैं। सामान्य बोध के अनुसार उन्हें आसान से कठिन प्रश्न देने चाहिए। ड्वेक के प्रयोग में एक समूह को केवल आसान प्रश्न दिए गए, जबकि दूसरे को आसान और कठिन दोनों। कठिनाई पर बच्चों को बताया गया कि असफलता का कारण प्रयास की कमी है और उन्हें प्रयास जारी रखने को कहा गया। परिणामस्वरूप, केवल आसान प्रश्न पाने वाला समूह नई समस्याओं में जल्दी हार गया, जबकि दूसरा समूह बेहतर रहा। निष्कर्ष: असफलता और प्रयास का अनुभव बच्चों को अधिक सक्षम बनाता है।
5. सामान्य बोध की गलत धारणाएँ (उदाहरण)
"पुरुष महिलाओँ से अधिक बुद्धिमान हैं" और "महिलाएँ अधिक दुर्घटनाएँ करती हैं" जैसी धारणाएँ गलत हैं। इसी तरह, यह मान्यता भी गलत है कि बड़े दर्शक समूह के सामने प्रदर्शन खराब होता है; वास्तव में, अच्छा अभ्यास होने पर प्रदर्शन बेहतर होता है।
6. मनोवैज्ञानिक ज्योतिषियों या तांत्रिकों जैसे क्यों नहीं हैं?
मनोविज्ञान तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित होकर मानव व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं का व्यवस्थित अध्ययन करता है। इसके सिद्धांत वैज्ञानिक अनुसंधान से बनते हैं, न कि अंधविश्वास से। सामान्य बोध केवल अनुमान है, जबकि मनोविज्ञान अनुसंधान, प्रयोग और प्रमाण पर आधारित होकर व्यवहार की सटीक व्याख्या और भविष्यवाणी करता है।
मनोविज्ञान का विकास
1. आधुनिक मनोविज्ञान का उद्भव
आधुनिक मनोविज्ञान का इतिहास छोटा है, लेकिन इसकी जड़ें प्राचीन दर्शन में हैं। इसकी औपचारिक शुरुआत 1879 में हुई जब विल्हेम वुंट ने जर्मनी के लिपजिग में पहला प्रायोगिक मनोविज्ञान प्रयोगशाला स्थापित की। वुंट सचेतन अनुभव और मन के अवयवों का अध्ययन अंतर्निरीक्षण (Introspection) द्वारा करना चाहते थे, जहाँ व्यक्ति अपने मानसिक अनुभवों का विवरण देता था। इस दृष्टिकोण को संरचनावाद (Structuralism) कहा गया, लेकिन इसे अवैज्ञानिक माना गया क्योंकि बाहरी व्यक्ति इसे सत्यापित नहीं कर सकता था।
2. प्रमुख उपागम (Schools of Thought)
(i) संरचनावाद (Structuralism) – वुंट
संरचनावाद का केंद्र मन की संरचना और अवयवों का विश्लेषण था, जिसकी विधि अंतर्निरीक्षण थी, लेकिन यह व्यक्तिपरक और सत्यापित न होने योग्य होने के कारण अवैज्ञानिक माना गया।
(ii) प्रकार्यवाद (Functionalism) – विलियम जेम्स
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स ने संरचनावाद की प्रतिक्रिया में कार्यात्मकवाद विकसित किया। इसका केंद्र मन क्या करता है और व्यवहार व मानसिक प्रक्रियाएँ वातावरण से निपटने में कैसे मदद करती हैं, यह समझना था। चेतना को मानसिक प्रक्रियाओं की सतत धारा माना गया, और जॉन डीवी ने इसे शिक्षा व अनुकूलन से जोड़ा।
(iii) गेस्टाल्ट मनोविज्ञान (Gestalt Psychology)
गेस्टाल्ट मनोविज्ञान जर्मनी में संरचनावाद के विरोध में विकसित हुआ। इसका सिद्धांत था कि अनुभव समग्र होता है, भागों का मात्र योग नहीं—“The whole is greater than the sum of its parts.” उदाहरण के लिए, चलचित्र देखते समय हम स्थिर चित्रों के बजाय गति का अनुभव करते हैं। अनुभव को एक गेस्टाल्ट (पूर्ण रूप) माना गया।
(iv) व्यवहारवाद (Behaviourism) – जॉन वाट्सन
व्यवहारवाद ने मन और चेतना को अस्वीकार कर मनोविज्ञान को प्रेक्षणीय व मापन योग्य व्यवहार का अध्ययन माना। यह इवान पावलव के अनुबंधन सिद्धांत से प्रभावित था और उद्दीपक (S) व अनुक्रिया (R) के संबंध पर जोर देता था। इसके प्रमुख मनोवैज्ञानिक जॉन वाट्सन (संस्थापक) और बी.एफ. स्किनर थे, जिन्होंने इसे व्यापक बनाया। यह दशकों तक मनोविज्ञान में प्रभावी रहा।
(v) मनोविश्लेषण (Psychoanalysis) – सिगमंड फ्रायड
मनोविश्लेषण का केंद्र यह मान्यता है कि मानव व्यवहार अचेतन इच्छाओं और द्वंद्वों का परिणाम है, जिनकी मुख्य प्रेरणा आनंद प्राप्ति, विशेषकर लैंगिक इच्छाएँ होती हैं। इसका उद्देश्य मानसिक विकारों को समझना और उनका उपचार करना है, जिसकी प्रमुख विधि मनोविश्लेषण है।
मानवतावादी दृष्टिकोण के प्रमुख मनोवैज्ञानिक कार्ल रोजर्स और अब्राहम मैस्लो थे। इसका केंद्र यह था कि मानव स्वभाव सकारात्मक है और उसका लक्ष्य स्वतंत्र इच्छा, आत्मविकास और पूर्ण क्षमता तक पहुँचना है। यह व्यवहारवाद की उस धारणा की आलोचना करता है जिसमें मानव को वातावरण का गुलाम माना गया था, और मानता है कि मानव स्वतंत्र और रचनात्मक है।
संज्ञानात्मक दृष्टिकोण संरचनावाद और गेस्टाल्ट से मिलकर विकसित हुआ, जिसका केंद्र यह समझना है कि हम ज्ञान कैसे प्राप्त करते हैं। यह चिंतन, समझ, स्मरण और समस्या समाधान जैसी मानसिक प्रक्रियाओं पर ध्यान देता है। आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार मन सूचना संसाधन तंत्र है, जो कंप्यूटर की तरह जानकारी लेता, प्रक्रिया करता, संग्रह करता और पुनःप्राप्त करता है। निर्मितिवाद में पियाजे ने कहा कि बच्चे सक्रिय रूप से अपने मन का निर्माण करते हैं, जबकि व्यगाट्स्की के अनुसार मन सांस्कृतिक और सामाजिक अंतःक्रिया का परिणाम है।
मुख्य बिंदु
1879 में वुंट ने संरचनावाद की शुरुआत की, जो अंतर्निरीक्षण पर आधारित था। जेम्स ने प्रकार्यवाद प्रस्तुत किया, जो मन के कार्य पर केंद्रित था। गेस्टाल्ट ने अनुभव को समग्र माना। वाट्सन ने व्यवहारवाद विकसित किया, जो प्रेक्षणीय व्यवहार पर केंद्रित था, जबकि फ्रायड का मनोविश्लेषण अचेतन इच्छाओं पर आधारित था। इसके बाद मानवतावाद आया, जिसने स्वतंत्रता और आत्मविकास पर जोर दिया। आधुनिक संज्ञानात्मक दृष्टिकोण मन को सूचना प्रक्रमण तंत्र मानता है।
भारत में मनोविज्ञान का विकास
भारतीय दार्शनिक परंपरा मन, चेतना, संज्ञान, प्रत्यक्षण, तथा मन-शरीर संबंधों के गहन अध्ययन में समृद्ध रही है, परंतु आधुनिक भारतीय मनोविज्ञान मुख्यतः पाश्चात्य प्रभाव से विकसित हुआ। आधुनिक भारतीय मनोविज्ञान का आरंभ 1915 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रायोगिक मनोविज्ञान की प्रथम प्रयोगशाला स्थापना के साथ हुआ, जिसमें एन.एन. सेनगुप्ता और प्रोफेसर जी. बोस जैसे मनोवैज्ञानिकों का विशेष योगदान रहा। धीरे-धीरे मैसूर, पटना, उत्कल और इलाहाबाद जैसे विश्वविद्यालयों में मनोविज्ञान के प्रमुख केंद्र स्थापित हुए। दुर्गानन्द सिन्हा ने भारत में मनोविज्ञान के विकास को चार चरणों में बाँटा है—प्रथम चरण में प्रयोगात्मक और मनोविश्लेषणात्मक पद्धतियों का वर्चस्व था; द्वितीय चरण में भारतीय संदर्भ में पश्चिमी सिद्धांतों को लागू किया गया; तृतीय चरण (1960 के बाद) में सामाजिक समस्याओं पर आधारित शोध हुए; और चतुर्थ चरण (1970 के दशक के अंत से) में देशज मनोविज्ञान की स्थापना हुई, जिसमें भारतीय समाज, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान के आधार पर सिद्धांतों का विकास हुआ। वर्तमान में भारतीय मनोविज्ञान सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों तथा आधुनिक तंत्रिका-जैविक और स्वास्थ्य अनुसंधानों के साथ अंतरापृष्ठीय अध्ययन को लेकर आगे बढ़ रहा है। अब भारत में मनोविज्ञान शिक्षा, स्वास्थ्य, मानव संसाधन विकास, खेलकूद, विज्ञापन तथा सूचना प्रौद्योगिकी जैसे अनेक व्यावसायिक क्षेत्रों में प्रभावी रूप से लागू किया जा रहा है।
मनोविज्ञान की शाखाएँ
1. संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (Cognitive Psychology)
संज्ञानात्मक मनोविज्ञान सूचनाओं के अर्जन, संग्रह, रूपांतरण और उपयोग का अध्ययन करता है। इसकी प्रमुख प्रक्रियाएँ हैं अवधान, प्रत्यक्षण, स्मृति, तर्कना, समस्या समाधान, निर्णय और भाषा। इसका अध्ययन प्रयोगशाला और प्राकृतिक वातावरण दोनों में किया जाता है, जिसमें तंत्रिकाविज्ञानी और कंप्यूटर वैज्ञानिक भी सहयोग करते हैं।
2. जैविक मनोविज्ञान (Biological Psychology)
जैविक दृष्टिकोण व्यवहार और शारीरिक संरचनाओं के संबंध का अध्ययन करता है, विशेषकर मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र, प्रतिरोधक तंत्र और आनुवंशिकी पर ध्यान देता है। इसमें तंत्रिकाविज्ञानी और प्राणिविज्ञानी सहयोग करते हैं। तंत्रिका मनोविज्ञान मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और मानसिक कार्यों का अध्ययन करता है, जिसके लिए EEG, PET और fMRI जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
विकासात्मक मनोविज्ञान जीवन के सभी चरणों में भौतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों का अध्ययन करता है। पहले इसका ध्यान केवल बच्चों पर था, लेकिन अब वयस्क और वृद्धावस्था भी शामिल हैं। इसमें जैविक, सामाजिक-सांस्कृतिक और पर्यावरणीय कारक प्रभाव डालते हैं। यह शिक्षा, परामर्श और सामाजिक कार्य जैसे क्षेत्रों से जुड़ा है।
4. सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology)
सामाजिक मनोविज्ञान यह अध्ययन करता है कि लोग सामाजिक वातावरण से कैसे प्रभावित होते हैं। इसके प्रमुख विषयों में अभिवृत्ति, आज्ञाकारिता, आकर्षण, सहायतापरक व्यवहार, पूर्वाग्रह, आक्रोश और अंतर्समूह संबंध शामिल हैं।
5. अंतःसांस्कृतिक और सांस्कृतिक मनोविज्ञान
सांस्कृतिक मनोविज्ञान संस्कृति और व्यवहार के संबंध का अध्ययन करता है। इसकी मान्यता है कि व्यवहार जैविक और सांस्कृतिक दोनों कारकों से प्रभावित होता है, और संस्कृति हमारी सोच, भावनाओं और व्यवहार को आकार देती है।
पर्यावरणीय मनोविज्ञान भौतिक पर्यावरण और व्यवहार के संबंध का अध्ययन करता है। इसके विषयों में तापमान, आर्द्रता, प्रदूषण, प्राकृतिक आपदाएँ और कार्यस्थल की व्यवस्था का प्रभाव शामिल है। नए मुद्दों में जनसंख्या विस्फोट, ऊर्जा संरक्षण और सामुदायिक संसाधनों का उपयोग प्रमुख हैं।
7. स्वास्थ्य मनोविज्ञान (Health Psychology)
स्वास्थ्य मनोविज्ञान रोग और स्वास्थ्य में मनोवैज्ञानिक कारकों की भूमिका का अध्ययन करता है। इसका ध्यान तनाव, स्वास्थ्य संवर्धन और डॉक्टर-रोगी संबंधों पर केंद्रित होता है।
8. नैदानिक और उपबोधन मनोविज्ञान (Clinical & Counseling Psychology)
नैदानिक मनोविज्ञान मानसिक विकारों जैसे अवसाद और व्यसन का निदान और उपचार करता है, जबकि उपबोधन मनोविज्ञान रोज़मर्रा की समस्याओं, जीवन योजना और छात्रों की सलाह पर केंद्रित होता है। अंतर यह है कि नैदानिक मनोवैज्ञानिक के पास मनोविज्ञान की डिग्री होती है, जबकि मनोरोगविज्ञानी चिकित्सा की डिग्री रखते हैं और दवाएँ लिख सकते हैं।
औद्योगिक-संगठनात्मक मनोविज्ञान कार्यस्थल के व्यवहार का अध्ययन करता है। इसके विषयों में कर्मचारी चयन और प्रशिक्षण, कार्य स्थितियों में सुधार, तथा प्रबंध संरचना शामिल हैं।
10. शैक्षिक और विद्यालय मनोविज्ञान (Educational & School Psychology)
शैक्षिक मनोविज्ञान यह अध्ययन करता है कि लोग कैसे सीखते हैं और शिक्षण विधियों व सामग्री का उन पर क्या प्रभाव पड़ता है। विद्यालय मनोविज्ञान बच्चों के बौद्धिक और भावनात्मक विकास के कार्यक्रमों पर केंद्रित होता है और विशेष जरूरत वाले बच्चों की सहायता करता है।
11. क्रीड़ा मनोविज्ञान (Sports Psychology)
क्रीड़ा प्रदर्शन सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग।
12. अन्य उभरते क्षेत्र
वैमानिकी मनोविज्ञान
अंतरिक्ष मनोविज्ञान
सैन्य मनोविज्ञान
न्यायालयिक (Forensic) मनोविज्ञान
ग्रामीण मनोविज्ञान
अभियांत्रिकी मनोविज्ञान
महिला मनोविज्ञान
राजनीतिक मनोविज्ञान
सामुदायिक मनोविज्ञान
मुख्य बात
मनोविज्ञान का अध्ययन अब बहु-विषयक है और विभिन्न क्षेत्रों में इसका उपयोग बढ़ रहा है।
मनोविज्ञान एवं अन्य विद्याशाखाएँ
1. मनोविज्ञान का अंतर्विषयक स्वरूप
मनोविज्ञान अकेला नहीं, बल्कि कई विद्याशाखाओं से जुड़ा है क्योंकि मानव व्यवहार को पूरी तरह समझने के लिए अन्य क्षेत्रों की सहायता आवश्यक है। इसी कारण इसका अंतर्विषयक (Interdisciplinary) दृष्टिकोण विकसित हुआ।
2. प्रमुख विद्याशाखाएँ जो मनोविज्ञान से जुड़ी हैं
(i) दर्शनशास्त्र (Philosophy)
पुराने प्रश्न जैसे "मन क्या है?" और "मनुष्य अपनी प्रेरणाओं को कैसे जानता है?" के उत्तर खोजने के लिए वुंट और अन्य मनोवैज्ञानिकों ने प्रायोगिक अध्ययन शुरू किया। आज भी मनोविज्ञान ज्ञान की विधि और मानव स्वभाव के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
(ii) आयुर्विज्ञान (Medical Science)
"स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ मन जरूरी है" इस उक्ति के आधार पर चिकित्सक और मनोवैज्ञानिक मिलकर तनाव प्रबंधन, कैंसर और एड्स रोगियों की देखभाल तथा सर्जरी के बाद की देखभाल में काम करते हैं। उद्देश्य है शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य को बनाए रखना।
(iii) अर्थशास्त्र (Economics), राजनीति विज्ञान (Political Science), समाजशास्त्र (Sociology)
मनोविज्ञान अर्थशास्त्र में उपभोक्ता व्यवहार, बचत-खर्च की आदतें और निर्णय प्रक्रिया को समझने में मदद करता है, जिसमें एच. साइमन, डी. केहनेमन और टी. शेलिंग जैसे नोबेल विजेताओं का योगदान है। राजनीति विज्ञान में यह मतदान आचरण, शक्ति, प्रभुत्व और राजनीतिक द्वंद्व के समाधान पर केंद्रित है, जबकि समाजशास्त्र में समाजीकरण, सामूहिक व्यवहार और अंतःसमूह द्वंद्व का अध्ययन करता है।
(iv) कंप्यूटर विज्ञान (Computer Science)
कृत्रिम बुद्धिमत्ता का लक्ष्य मानव जैसी बुद्धिमान मशीनें बनाना है। इसमें मनोविज्ञान का योगदान सूचना प्रसंस्करण मॉडल प्रदान करने में है, जिसने AI और संज्ञानात्मक विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
(v) विधि और अपराधशास्त्र (Law & Criminology)
मनोविज्ञान ऐसे प्रश्नों का उत्तर देता है जैसे गवाह कितनी सही जानकारी याद रखते हैं, जूरी के निर्णय को कौन से कारक प्रभावित करते हैं, झूठ और पश्चाताप की पहचान कैसे की जाए। यह आपराधिक व्यवहार को समझने और सजा तय करने में भी उपयोगी है।
(vi) जनसंचार (Mass Communication)
मीडिया बच्चों के दृष्टिकोण और सांस्कृतिक बदलाव पर गहरा प्रभाव डालता है। मनोविज्ञान संदेशों को प्रभावी बनाने में मदद करता है और पत्रकारिता में मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि उपयोगी होती है।
(vii) संगीत और कला (Music & Fine Arts)
संगीत भावनाओं से गहराई से जुड़ा है, और इसी आधार पर संगीत चिकित्सा (Music Therapy) विकसित हुई, जो शारीरिक रोगों के उपचार में सहायक होती है।
(viii) वास्तुकला और अभियांत्रिकी (Architecture & Engineering)
भवन डिज़ाइन में मानसिक संतोष और सड़क सुरक्षा डिज़ाइन में मानवीय आदतों का ध्यान रखना मनोविज्ञान के अनुप्रयोग के उदाहरण हैं।
दैनंदिन जीवन में मनोविज्ञान
मनोविज्ञान केवल हमारी जिज्ञासाओं को ही संतुष्ट नहीं करता, बल्कि यह अनेक व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और वैश्विक समस्याओं का समाधान भी करता है। ये समस्याएँ सामान्यतः अस्वस्थ चिंतन, नकारात्मक अभिवृत्तियों एवं अवांछित व्यवहार के कारण उत्पन्न होती हैं। मनोवैज्ञानिक इन समस्याओं को गहराई से समझने और प्रभावी समाधान खोजने में सहायता करते हैं। वर्तमान में मनोवैज्ञानिक स्कूलों, अस्पतालों, उद्योगों, सैन्य संगठनों तथा अन्य संस्थानों में सक्रिय भूमिका निभाते हुए व्यक्तियों एवं समुदायों की समस्याएँ सुलझाते हैं। मनोवैज्ञानिक सिद्धांत व्यक्तिगत स्तर पर भी लाभकारी हैं, जिनकी सहायता से हम अपनी आदतों, अधिगम, स्मृति तथा निर्णय लेने की क्षमता सुधार सकते हैं, और परीक्षा जैसी स्थितियों के दबाव को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर सकते हैं। इस प्रकार मनोविज्ञान हमारे दैनिक जीवन में व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है।