अधिगम Notes in Hindi Class 11 Psychology Chapter-5 Book-1
0Team Eklavyaअगस्त 02, 2025
परिचय
एक नवजात शिशु में शुरुआत में केवल कुछ सरल प्रतिक्रियाएँ होती हैं, जो विशेष उद्दीपनों पर स्वतः होती हैं। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, वह पहचानना, बोलना, लिखना, चम्मच से खाना, और दूसरों की नकल करके नई क्रियाएँ करना सीखता है। आगे चलकर वह वस्तुओं के नाम याद करता है, बातचीत करना, स्कूटर चलाना, और सामाजिक कौशल विकसित करना सीखता है। ये सब अधिगम (Learning) के कारण संभव होता है, जिससे मनुष्य अपने वातावरण के साथ अनुकूल होता है और समस्याओं का समाधान करता है। इस अध्याय में अधिगम की परिभाषा, उसकी प्रक्रिया, विभिन्न विधियाँ, अधिगम से जुड़े अनुभव, और अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों के साथ-साथ अधिगम की कठिनाइयों का वर्णन किया गया है।
अधिगम का स्वरूप
अधिगम अनुभव के कारण व्यवहार या उसकी क्षमता में होने वाले अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन को कहते हैं। यह अभ्यास और अनुभव से होता है, न कि दवाओं या थकान जैसी अस्थायी स्थितियों से। केवल वे परिवर्तन अधिगम माने जाते हैं जो स्थायी और अनुभव आधारित हों।
अधिगम की विशेषताएँ
अधिगम की कुछ विशेषताएँ हैं। यह हमेशा अनुभव पर आधारित होता है, जैसे किसी घटना का बार-बार होना या एक बार का अनुभव, जो स्थायी परिवर्तन लाता है। उदाहरण के लिए, भोजन की घंटी बजने पर छात्र समझ जाते हैं कि खाना तैयार है, या दियासलाई से जलने के बाद बच्चा सावधान हो जाता है। अधिगम से होने वाले परिवर्तन अपेक्षाकृत स्थायी होते हैं और थकान, दवाओं या आदत से होने वाले अस्थायी बदलाव अधिगम नहीं माने जाते। अधिगम एक अनुमानित प्रक्रिया है, जिसे निष्पादन से अलग समझना चाहिए। जैसे, कविता याद करना अधिगम है और उसे सुनाना निष्पादन, जिसके आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि अधिगम हुआ है।
अधिगम के प्रतिमान
अधिगम विभिन्न विधियों से होता है। सरलतम विधि अनुबंधन (conditioning) है, जिसके दो प्रकार हैं—प्राचीन अनुबंधन (classical conditioning) और क्रियाप्रसूत या नैमित्तिक अनुबंधन (operant/instrumental conditioning)। इसके अलावा, प्रेक्षणात्मक अधिगम, संज्ञानात्मक अधिगम, वाचिक अधिगम और कौशल अधिगम भी महत्वपूर्ण विधियाँ हैं।
प्राचीन अनुबंधन
प्राचीन अनुबंधन (Classical Conditioning) का अध्ययन सबसे पहले पावलव ने किया। उन्होंने देखा कि कुत्ते भोजन देखते ही लार टपकाते हैं, जो एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। पावलव ने प्रयोग में घंटी की आवाज़ को भोजन के साथ कई बार जोड़ा। बाद में, केवल घंटी बजाने पर भी कुत्ता लार टपकाने लगा। यहाँ भोजन अननुबंधित उद्दीपक (US), लार का स्राव अननुबंधित अनुक्रिया (UR) है। घंटी की आवाज़ अनुबंधित उद्दीपक (CS) बन गई और घंटी पर लार टपकाना अनुबंधित अनुक्रिया (CR)। इसका अर्थ है कि दो उद्दीपकों (घंटी और भोजन) के बीच संबंध बनने से अधिगम होता है। दैनिक जीवन में उदाहरण—मिठाई देखकर मुँह में पानी आना या गुब्बारे के फटने से बच्चा डरना और फिर गुब्बारा देखकर भी डरना।
प्राचीन अनुबंधन के निर्धारक
प्राचीन अनुबंधन में अनुक्रिया कितनी जल्दी और मजबूती से बनेगी, यह कई कारकों पर निर्भर करता है। पहला, उद्दीपकों के बीच समय संबंध—चार प्रकार की प्रक्रियाएँ होती हैं: (1) सहकालिक अनुबंधन: अनुबंधित (CS) और अननुबंधित उद्दीपक (US) साथ प्रस्तुत हों; (2) विलंबित अनुबंधन: CS पहले शुरू होकर US के दौरान खत्म हो; (3) अवशेष अनुबंधन:CS खत्म होने के बाद थोड़ा अंतराल, फिर US; (4) पश्चगामी अनुबंधन:US पहले, फिर CS। इनमें विलंबित अनुबंधन सबसे प्रभावी है। दूसरा, US का प्रकार—प्रवृत्यात्मक उद्दीपक (खाना, दुलार) से अधिगम धीमा होता है जबकि विमुखी उद्दीपक (तेज़ शोर, बिजली का झटका) से अधिगम तेज़ और कम प्रयासों में हो जाता है। तीसरा, CS की तीव्रता—जितना तीव्र CS होगा, उतनी जल्दी और कम प्रयास में अनुबंधन स्थापित होगा।
क्रियाप्रसूत/नैमित्तिक अनुबंधन
क्रियाप्रसूत अनुबंधन (Operant Conditioning) का अध्ययन बी.एफ. स्किनर ने किया। इसमें ऐच्छिक व्यवहारों का अधिगम शामिल है, जहाँ प्राणी अपने पर्यावरण में सक्रिय रहकर कार्य करता है। स्किनर ने स्किनरबॉक्स में चूहे पर प्रयोग किया। बॉक्स में एक लीवर और भोजन-पात्र था। भूखा चूहा बॉक्स में घूमते हुए संयोग से लीवर दबाता है और भोजन पाता है। धीरे-धीरे चूहा सीख जाता है कि लीवर दबाने से भोजन मिलता है। इस तरह, लीवर दबाना क्रियाप्रसूत अनुक्रिया है और भोजन उसका परिणाम। इस प्रक्रिया को नैमित्तिक अनुबंधन भी कहते हैं। दैनिक जीवन में इसके उदाहरण हैं—बच्चों का मिठाई खोज लेना, विनम्रता से बात करके कुछ प्राप्त करना, या यंत्रों का संचालन सीखना।
क्रियाप्रसूत अनुबंधन के निर्धारक
क्रियाप्रसूत या नैमित्तिक अनुबंधन में व्यवहार को उसके परिणाम से सीखा और बनाए रखा जाता है। इस परिणाम को प्रबलक (reinforcer) कहते हैं, जो वांछित अनुक्रिया की संभावना बढ़ाता है। प्रबलक की विशेषताएँ—प्रकार (धनात्मक या ऋणात्मक), संख्या, गुणवत्ता और अनुसूची (सतत या आंशिक)—अधिगम को प्रभावित करती हैं। साथ ही, अनुक्रिया का स्वरूप और अनुक्रिया तथा प्रबलन के बीच का समय अंतराल भी क्रियाप्रसूत अधिगम की प्रभावशीलता तय करते हैं।
प्रबलन के प्रकार
प्रबलन दो प्रकार का होता है—धनात्मक और ऋणात्मक। धनात्मक प्रबलन सुखद उद्दीपक होते हैं, जैसे भोजन, प्रशंसा, धन, जो अनुक्रिया को मजबूत करते हैं। ऋणात्मक प्रबलन अप्रिय उद्दीपकों से छुटकारा दिलाने वाली अनुक्रियाओं को बढ़ावा देता है, जैसे ठंड से बचने के लिए ऊनी कपड़े पहनना। ध्यान दें, ऋणात्मक प्रबलन दंड नहीं है। दंड अनुक्रिया को दबाता है, पर स्थायी नहीं होता और कभी-कभी विपरीत प्रभाव डालकर व्यक्ति में दंड देने वाले के प्रति घृणा उत्पन्न करता है।
प्रबलन की संख्या तथा अन्य विशेषताएँ
प्रबलन की संख्या से तात्पर्य प्रयासों की उस गिनती से है जिसमें प्राणी को पुरस्कार मिलता है। मात्रा का अर्थ है प्रत्येक बार प्रबलक की दी जाने वाली मात्रा, और गुणवत्ता से मतलब है प्रबलक का प्रकार। उच्च गुणवत्ता वाले प्रबलक (जैसे केक) अधिगम को अधिक तेज़ करते हैं। आमतौर पर प्रबलनों की संख्या, मात्रा और गुणवत्ता जितनी अधिक होगी, नैमित्तिक अनुबंधन की गति उतनी ही तेज़ होगी।
प्रबलनअनुसूचियाँ
प्रबलनअनुसूची से तात्पर्य प्रबलन देने की योजना से है। यह सतत हो सकती है, जहाँ हर सही अनुक्रिया पर प्रबलन दिया जाता है, या सविराम (आंशिक), जहाँ प्रबलन कभी दिया जाता है और कभी नहीं। आंशिक प्रबलन, सतत प्रबलन की तुलना में विलोप (extinction) के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती है।
विलंबित प्रबलन
प्रबलन में विलंब होने पर उसकी प्रभावशीलता घट जाती है। यदि बच्चों को विकल्प दिया जाए कि वे काम के तुरंत बाद छोटा पुरस्कार लें या देर से बड़ा पुरस्कार, तो वे तुरंत मिलने वाला छोटा पुरस्कार चुनते हैं।
प्रमुख अधिगम प्रक्रियाएँ
अधिगम की मुख्य प्रक्रियाएँ हैं: प्रबलन (अनुक्रिया को मजबूत करना), विलोप (अनुक्रिया का समाप्त होना जब प्रबलन बंद हो जाए), सामान्यीकरण (अर्जित अनुक्रिया का समान उद्दीपकों पर भी होना), विभेदन (प्रबलन वाले और बिना प्रबलन वाले उद्दीपकों में अंतर करना), और स्वतः पुनःप्राप्ति (कुछ समय बाद विलोपित अनुक्रिया का पुनः प्रकट होना)।
प्रबलन
प्रबलन वह प्रक्रिया है जिसमें प्रबलक देकर अनुक्रिया की संभावना बढ़ाई जाती है। धनात्मक प्रबलक अनुक्रिया को सुखद परिणाम से मजबूत करते हैं, जबकि ऋणात्मक प्रबलक अप्रिय उद्दीपक को हटाकर अनुक्रिया को बढ़ाते हैं। प्रबलक प्राथमिक (जैविक रूप से आवश्यक, जैसे भोजन) या द्वितीयक (अनुभव से अर्जित, जैसे धन, प्रशंसा) हो सकते हैं। नियमित प्रबलन से वांछित अनुक्रियाएँ विकसित की जा सकती हैं, जिसमें अनुमानित अनुक्रियाओं को धीरे-धीरे प्रबलित किया जाता है।
विलोप
विलोप का अर्थ है सीखी हुई अनुक्रिया का धीरे-धीरे लुप्त होना, जब प्रबलन देना बंद कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि प्राचीन अनुबंधन में घंटी के बाद भोजन न दिया जाए या स्किनरबॉक्स में लीवर दबाने पर भोजन न मिले, तो सीखा व्यवहार कमजोर होकर अंततः समाप्त हो जाता है। सीखी हुई अनुक्रिया कुछ समय तक बिना प्रबलन के भी जारी रह सकती है, जिसे विलोप का प्रतिरोध कहते हैं। यह प्रतिरोध कई कारकों पर निर्भर करता है—जैसे अर्जन के समय प्रबलनों की संख्या, मात्रा और प्रबलन का तरीका। अधिक प्रबलन या सतत प्रबलन विलोप को तेज करता है, जबकि आंशिक प्रबलन विलोप के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनाता है।
सामान्यीकरण तथा विभेदन
सामान्यीकरण का मतलब है सीखी हुई अनुक्रिया का समान उद्दीपकों पर भी होना। उदाहरण के लिए, यदि कुत्ते को घंटी की आवाज़ पर लार स्राव के लिए अनुबंधित किया गया है, तो वह टेलीफोन की घंटी पर भी लार स्राव कर सकता है। इसी तरह, बच्चा अगर मिठाई वाले जार की जगह सीख गया है, तो वह नए जार में भी मिठाई खोज सकता है। इसके विपरीत, विभेदन का मतलब है अलग-अलग उद्दीपकों के बीच फर्क करना और केवल सही उद्दीपक पर अनुक्रिया करना। जैसे बच्चा काले कपड़ों और मूँछों वाले व्यक्ति से डरता है लेकिन धूसर कपड़ों वाले से नहीं। सामान्यीकरण समानता के कारण होता है, जबकि विभेदन भिन्नता पहचानने की क्षमता पर निर्भर करता है।
स्वतः पुनःप्राप्ति
स्वतः पुनःप्राप्ति तब होती है जब विलोप के बाद कुछ समय बीतने पर सीखी हुई अनुक्रिया फिर से प्रकट होती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी प्राणी की सीखी हुई अनुक्रिया विलोपित हो गई हो और कुछ समय बाद उसी उद्दीपक को प्रस्तुत किया जाए, तो अनुक्रिया फिर से होती है। पुनःप्राप्ति की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि विलोप के बाद कितना समय बीता है—समय जितना अधिक होगा, पुनःप्राप्ति उतनी अधिक होगी।
प्रेक्षणात्मक अधिगम
प्रेक्षणात्मक अधिगम वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति दूसरों को देखकर सीखता है, इसलिए इसे सामाजिक अधिगम भी कहा जाता है। जब हमें यह नहीं पता होता कि किसी स्थिति में कैसे व्यवहार करना है, तो हम दूसरों के व्यवहार का प्रेक्षण करके उसी तरह व्यवहार करते हैं। इसे मॉडलिंग कहते हैं। हमारे जीवन में इसके कई उदाहरण हैं, जैसे लोग फैशनमॉडलों को देखकर उनके पहनावे की नकल करते हैं। बंदूरा के प्रसिद्ध प्रयोग में बच्चों को एक फिल्म दिखाई गई जिसमें एक लड़का खिलौनों के साथ आक्रामक व्यवहार करता है। जिन बच्चों ने देखा कि लड़के को पुरस्कृत किया गया, वे सबसे अधिक आक्रामक बने, और जिन बच्चों ने दंड देखा, वे कम आक्रामक बने। इससे स्पष्ट हुआ कि बच्चे देखकर सीखते हैं और उनका आचरण इस पर निर्भर करता है कि मॉडल को पुरस्कृत किया गया या दंडित। बच्चे घर, समाज और मीडिया में देखे गए व्यवहारों की नकल करते हैं। कपड़े पहनने की शैली, बातचीत, आक्रामकता, परोपकार, आदर जैसे गुण भी इसी तरह सीखे जाते हैं।
संज्ञानात्मक अधिगम
संज्ञानात्मक अधिगम में ध्यान ज्ञान के परिवर्तन पर होता है, न कि केवल उद्दीपक-प्रतिक्रिया संबंध पर। कोहलर ने चिम्पैंजी पर किए गए प्रयोगों से अंतर्दृष्टि अधिगम को समझाया। उन्होंने पाया कि चिम्पैंजी ने भोजन पाने के लिए डंडे और बॉक्स का उपयोग बिना प्रयास-त्रुटि के, अचानक समाधान सोचकर किया। इस प्रक्रिया को अंतर्दृष्टि अधिगम कहते हैं, जिसमें समस्या का हल एकाएक स्पष्ट हो जाता है। एक बार समाधान मिलने के बाद इसे आसानी से दोहराया जा सकता है और यह अन्य समान समस्याओं पर भी लागू होता है।
अव्यक्त अधिगम
1. अव्यक्त अधिगम (Latent Learning)
गोपनीय अधिगम वह है जिसमें नया व्यवहार सीख लिया जाता है, लेकिन प्रबलन मिलने तक प्रदर्शित नहीं होता। इसे एडवर्डटोलमैन ने प्रस्तुत किया। उनके प्रयोग में चूहों के दो समूह भूल-भुलैया में छोड़े गए। प्रबलित समूह को अंत में भोजन मिला और उन्होंने रास्ता जल्दी सीख लिया। अप्रबलित समूह ने शुरुआत में संकेत नहीं दिया, लेकिन बाद में भोजन मिलने पर वे भी तेजी से सही रास्ता अपनाने लगे। निष्कर्ष: उन्होंने पहले ही संज्ञानात्मक मानचित्र बना लिया था, पर प्रदर्शन प्रबलन मिलने पर हुआ।
2. वाचिक अधिगम (Verbal Learning)
वाचिक अधिगम अनुबंधन से अलग है और मुख्यतः मनुष्यों में होता है, जहाँ ज्ञान शब्दों के माध्यम से अर्जित होता है और शब्दों के बीच साहचर्य बनता है। इसके अध्ययन में निरर्थक शब्दांश (CVC), परिचित-अपरिचित शब्द, वाक्य और अनुच्छेद जैसी सामग्री का उपयोग किया जाता है।
इस विधि में उद्दीपक-अनुक्रिया युग्म बनाए जाते हैं, जैसे मातृभाषा के शब्द और विदेशी भाषा के अर्थ। दोनों शब्द साथ दिखाए जाते हैं, फिर केवल उद्दीपक देकर अनुक्रिया याद कराई जाती है। गलती होने पर सही उत्तर दिखाया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक सभी उत्तर सही न हों, और माप सही उत्तर तक पहुँचने के लिए किए गए कुल प्रयासों से होता है।
(b) क्रमिक अधिगम (Serial Learning)
इस विधि का उद्देश्य प्रतिभागी को सूची क्रम में सिखाना है। इसमें शब्दों की सूची दी जाती है, पहला शब्द दिखाकर अगला पूछा जाता है। गलती होने पर सही उत्तर बताया जाता है, और वह अगला उद्दीपक बन जाता है। इसे क्रमिक पूर्वाभास विधि कहते हैं, और अभ्यास तब तक चलता है जब तक सभी शब्द क्रम में याद न हो जाएँ।
(c) मुक्त पुनःस्मरण (Free Recall)
प्रतिभागी को शब्दों की सूची दी जाती है और बाद में किसी भी क्रम में याद करने को कहा जाता है, जबकि शब्दों का क्रम हर प्रयास में बदला जाता है। परिणामस्वरूप सूची की शुरुआत और अंत के शब्द अधिक याद रहते हैं, जिसे प्राथमिकता और नवीनता प्रभाव (Primacy और Recency Effect) कहते हैं।
वाचिक अधिगम के निर्धारक
वाचिक अधिगम पर कई प्रयोगों से पता चला है कि इसे सूची की लंबाई और सामग्री की अर्थपूर्णता प्रभावित करती है। लंबी सूचियाँ या कम साहचर्य वाले शब्द अधिगम को कठिन बनाते हैं। संपूर्ण काल नियम के अनुसार किसी सामग्री को सीखने के लिए निश्चित समय जरूरी होता है, चाहे उसे कितने भी प्रयासों में बाँट लें। मुक्त पुनःस्मरण विधि से सीखने पर शब्दों का संगठन होता है। बोसफील्ड के अध्ययन में प्रतिभागियों ने यादृच्छिक प्रस्तुत शब्दों को वर्गानुसार स्मरण किया, इसे वर्ग-गुच्छन कहा गया। वाचिक अधिगम प्रायः साभिप्राय होता है, पर कभी-कभी लोग तुक, अक्षर या स्वर जैसी समानताओं को अनजाने में भी सीखते हैं।
कौशल अधिगम
कौशल का स्वरूप
कौशल किसी जटिल कार्य को आसानी और दक्षता से करने की योग्यता है, जैसे कार चलाना, विमान उड़ाना या लिखना। ये अनुभव और अभ्यास से सीखे जाते हैं और इनमें उद्दीपक-अनुक्रिया साहचर्य या प्रात्यक्षिक-पेशीय क्रियाओं की श्रृंखला शामिल होती है।
कौशल अर्जन के चरण
कौशल अधिगम तीन चरणों में होता है: संज्ञानात्मक, साहचर्यात्मक, और स्वायत्त। संज्ञानात्मक चरण में व्यक्ति निर्देशों को समझता है और कार्य करने का तरीका सीखता है। साहचर्यात्मक चरण में उद्दीपकों को सही अनुक्रियाओं से जोड़ते हुए अभ्यास से त्रुटियाँ घटती हैं और गति बढ़ती है। स्वायत्त चरण में निष्पादन स्वचालित हो जाता है, अवधान की आवश्यकता कम होती है और बाहरी बाधाओं का असर घटता है। लगातार अभ्यास से प्रदर्शन बेहतर होता है, और अंततः कौशल सहज और त्रुटिहीन हो जाता है। अभ्यास कौशल अधिगम की कुंजी है।
अधिगम को सुगम बनाने वाले कारक
पिछले खंड में हमने अधिगम के विशिष्ट निर्धारकों का अध्ययन किया, जैसे प्राचीन अनुबंधन में उद्दीपकों का समीपस्थ प्रस्तुतीकरण, क्रियाप्रसूत अनुबंधन में प्रबलन की संख्या, मात्रा और विलंब, प्रेक्षणात्मक अधिगम में मॉडल की आकर्षकता, वाचिक अधिगम में सीखने की विधि और संप्रत्यय अधिगम में लक्षण व नियम। अब इस खंड में हम अधिगम के कुछ सामान्य और महत्वपूर्ण कारकों का संक्षिप्त वर्णन करेंगे।
सतत बनाम आंशिक प्रबलन
अधिगम में प्रबलन दो प्रकार की अनुसूचियों पर आधारित हो सकता है: सतत (continuous) और आंशिक (partial)। सतत प्रबलन में हर सही अनुक्रिया के बाद प्रबलन दिया जाता है, जिससे अनुक्रिया की दर तेज़ होती है लेकिन प्रबलन बंद होते ही विलोप जल्दी हो जाता है। इसके विपरीत, आंशिक प्रबलन में हर बार प्रबलन नहीं दिया जाता, जिससे अनुक्रिया की दर ऊँची रहती है और विलोप कठिन हो जाता है। इस कारण आंशिक प्रबलन से सीखी गई अनुक्रियाएँ विलोप के प्रति अधिक प्रतिरोधी होतीहैं। इसे आंशिक प्रबलनप्रभाव (partial reinforcement effect) कहा जाता है।
अभिप्रेरणा
अभिप्रेरणा वह मानसिक और शारीरिक अवस्था है जो प्राणी को उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सक्रिय करती है और लक्ष्य प्राप्ति तक ऊर्जा प्रदान करती है। अधिगम के लिए अभिप्रेरणा जरूरी है, जैसे भूखा चूहा लीवर दबाकर भोजन पाना सीखता है या बच्चा मिठाई खोजता है। मनुष्य भी अच्छे अंक पाने या ज्ञान अर्जित करने के लिए सीखता है। अभिप्रेरणा दो प्रकार की होती है: अंतर्भूत, जब कार्य करना स्वयं आनंद देता है, और बहिर्निहित, जब कार्य किसी अन्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
अधिगम की तत्परता
विभिन्न प्रजातियों की संवेदनशीलता और प्रतिक्रिया क्षमताएँ अलग होती हैं, जिससे उनके अधिगम की क्षमता जैविक रूप से सीमित रहती है। हर प्राणी वही साहचर्य (SS या SR) सीख सकता है जिसके लिए वह आनुवंशिक रूप से सक्षम है। मनुष्य और वनमानुष कुछ कार्य आसानी से सीख सकते हैं, जबकि बिल्लियों या चूहों के लिए वही कार्य कठिन या असंभव हो सकते हैं। इसे तत्परता का संप्रत्यय कहते हैं, जिसमें कुछ कार्य सरल, कुछ कठिन और कुछ असंभव होते हैं। शिक्षा में कठिनाई का एक प्रमुख कारण अधिगम अशक्तता है। यह विकार जन्मजात तंत्रिका तंत्र की समस्याओं से उत्पन्न होता है, जिससे पढ़ने, लिखने, बोलने, गणित करने आदि में परेशानी होती है। यह सामान्य या उच्च बुद्धि वाले बच्चों में भी हो सकती है और यदि इसका प्रबंधन न किया जाए तो जीवनभर बनी रहती है, जिससे आत्म-सम्मान, पेशा और सामाजिक संबंध प्रभावित होते हैं।
अधिगम अशक्तता के लक्षण
अधिगम अशक्तता के अनेक लक्षण हैं। अधिगम अशक्तता वाले बच्चों में ये लक्षण भिन्न-भिन्न संयोजनों में प्रकट होते हैं चाहे उनकी बुद्धि, अभिप्रेरणा तथा अधिगम के लिए किया गया परिश्रम कुछ भी हो।
अधिगम अशक्तताएँ
कई बार आपने देखा या सुना होगा कि कुछ बच्चे स्कूल में दाखिला लेने के बाद भी पढ़ाई में बहुत मुश्किल महसूस करते हैं। इसका कारण अधिगम अशक्तता (Learning Disability) हो सकता है। ऐसे बच्चों की मुख्य समस्याएँ इस प्रकार हैं:
पढ़ने-लिखने में कठिनाई –अक्षरों, शब्दों और वाक्यों को लिखना, पढ़ना और बोलना इनके लिए मुश्किल होता है। सुनने में भी दिक्कत आती है, हालाँकि सुनने की क्षमता सामान्य होती है।
ध्यान की कमी –ये लंबे समय तक ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते और जल्दी ध्यान भटक जाता है। कभी-कभी बहुत ज्यादा सक्रिय (Hyperactive) हो जाते हैं।
समय और स्थान का ज्ञान कम –नई जगह पहचानना, समय पर पहुँचना और दिशा (ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ) समझना इनके लिए कठिन होता है।
पेशीय समन्वय कमजोर –पेंसिल तेज करना, दरवाज़े का हैंडल पकड़ना या साइकिल चलाना सीखने में दिक्कत होती है।
मौखिक निर्देश न समझना –जब इन्हें कोई काम बोलकर बताया जाता है, तो उसे सही तरह से समझ नहीं पाते।
सामाजिक समझ कम –कौन मित्र है, कौन नहीं, यह पहचानना मुश्किल होता है। शरीर भाषा समझने में भी दिक्कत होती है।
संवेदी संकेतों का सही उपयोग नहीं –घंटी की आवाज़ और फोन की घंटी में फर्क नहीं कर पाते।
पठनवैकल्य (Dyslexia) –अक्षरों और शब्दों में भ्रम होता है, जैसे ‘कमर’ को ‘रकम’ पढ़ना या ‘प’ और ‘फ’ में फर्क न कर पाना। वाक्यों को सही तरीके से बनाना भी मुश्किल होता है।
महत्वपूर्ण बात: इन बच्चों का इलाज संभव है। विशेष शिक्षण विधियों (Remedial Teaching) से ये बच्चे भी कक्षा में दूसरे बच्चों की तरह सफल हो सकते हैं।