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अभिप्रेरणा एवं संवेग Notes in Hindi Class 11 Psychology Chapter-8 Book-1

अभिप्रेरणा एवं संवेग Notes in Hindi Class 11 Psychology Chapter-8 Book-1



परिचय

सुनीता एक छोटे शहर की लड़की है, जो इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं में सफल होने के लिए रोज़ 10-12 घंटे मेहनत करती है। हेमंत, जो शारीरिक रूप से चुनौतीग्रस्त है, पर्वतारोहण अभियान में भाग लेने के लिए प्रशिक्षण ले रहा है। अमन अपनी छात्रवृत्ति से पैसे बचा रहा है ताकि माँ के लिए उपहार खरीद सके। ये उदाहरण दिखाते हैं कि हमारे व्यवहार में अभिप्रेरणा (Motivation) की बड़ी भूमिका होती है। हमारा व्यवहार हमेशा किसी लक्ष्य की ओर होता है और तब तक चलता है जब तक वह लक्ष्य हासिल न हो जाए। लेकिन अगर सुनीता मेहनत के बाद भी असफल हो जाए या अमन के पैसे चोरी हो जाएँ, तो उन्हें दुख या गुस्सा आ सकता है। इस अध्याय में हम अभिप्रेरणा और संवेग (Emotion) के मूल विचारों, उनके विकास, कुंठा, द्वंद्व, संवेगों की अभिव्यक्ति, सांस्कृतिक प्रभाव और उन्हें सही तरीके से प्रबंधित करने के तरीकों को समझेंगे।


अभिप्रेरणा का स्वरूप

अभिप्रेरणा का मतलब है वह शक्ति जो हमारे व्यवहार को गति देती है। यह शब्द लैटिन के movere से आया है, जिसका अर्थ है "चलना"। हमारे काम करने के पीछे हमेशा कुछ कारण होते हैं। जैसे, आप स्कूल क्यों जाते हैं? हो सकता है ज्ञान पाने के लिए, दोस्तों से मिलने के लिए, नौकरी के लिए डिग्री लेने के लिए, या माता-पिता को खुश करने के लिए। अभिप्रेरणा हमें न केवल व्यवहार की व्याख्या करने में मदद करती है, बल्कि उसका अनुमान लगाने में भी सहायक होती है। जैसे, अगर किसी में उपलब्धि की अभिप्रेरणा ज्यादा है तो वह पढ़ाई, खेल, या काम में मेहनत करेगा। अभिप्रेरणा में प्रवृत्तियाँ, आवश्यकताएँ, लक्ष्य और उत्प्रेरक शामिल होते हैं।


अभिप्रेरणात्मक चक्र

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आवश्यकता वह स्थिति है जब किसी जरूरी चीज़ की कमी होती है। यह कमी अंतर्नाद (तनाव या उत्तेजना) पैदा करती है, जिससे जीव सक्रिय हो जाता है और विभिन्न क्रियाएँ करता है। जब सही क्रिया से लक्ष्य मिल जाता है, तो अंतर्नाद खत्म हो जाता है और जीव फिर संतुलित हो जाता है। इसे अभिप्रेरणात्मक घटनाओं का चक्र कहा जाता है। आगे हम जानेंगे कि अभिप्रेरक कितने प्रकार के होते हैं, क्या वे जैविक आधार पर समझे जा सकते हैं, और अगर अभिप्रेरक पूरे न हों तो क्या होता है।


अभिप्रेरकों के प्रकार

अभिप्रेरक दो प्रकार के होते हैं: जैविक (Biological) और मनोसामाजिक (Psychosocial)। जैविक अभिप्रेरक शरीर की शारीरिक प्रक्रियाओं पर आधारित होते हैं, जबकि मनोसामाजिक अभिप्रेरक पर्यावरण और अनुभवों से सीखे जाते हैं। दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। कई बार जैविक कारण अभिप्रेरक पैदा करते हैं और कई बार मनोसामाजिक कारण। इसलिए कोई भी अभिप्रेरक पूरी तरह जैविक या पूरी तरह मनोसामाजिक नहीं होता, बल्कि दोनों का मिश्रण होता है।


जैविक अभिप्रेरक

अभिप्रेरणा को समझने के लिए पहले जैविक दृष्टिकोण अपनाया गया। इसके अनुसार, जब शरीर में असंतुलन होता है तो अंतर्नाद (तनाव) पैदा होता है, जो ऐसे व्यवहार को प्रेरित करता है जिससे संतुलन वापस आए। सबसे पुरानी व्याख्या मूल प्रवृत्तियों पर आधारित थी। ये जन्मजात और जैविक रूप से निर्धारित व्यवहार हैं, जैसे जिज्ञासा, पलायन, प्रजनन, पैतृक देखभाल। इन प्रवृत्तियों में एक बल होता है जो हमें कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, ताकि आवश्यकता पूरी हो सके। मुख्य जैविक आवश्यकताएँ हैं भूख, प्यास और काम-वृत्ति, जो जीवन के लिए जरूरी हैं।


भूख

जब हमें भूख लगती है, तो भोजन की आवश्यकता सबसे महत्वपूर्ण हो जाती है और यह हमें खाने के लिए प्रेरित करती है। भूख कई कारणों से होती है, जैसे पेट का खाली होना और उसका संकुचन, रक्त में शर्करा और प्रोटीन का कम स्तर, शरीर में वसा की कमी, और यकृत द्वारा मस्तिष्क को भेजे गए संकेत। इसके अलावा, भोजन की खुशबू, स्वाद, रंग या दूसरों को खाते देखना भी भूख बढ़ाता है। ये सभी कारक मिलकर हमें बताते हैं कि हम भूखे हैं। इसलिए, भूख शरीर के अंदरूनी तंत्र और बाहरी संकेतों दोनों से नियंत्रित होती है।


प्यास

अगर हम लंबे समय तक पानी न पिएँ, तो मुँह और गला सूखने लगता है और शरीर में निर्जलीकरण होता है। प्यास सिर्फ मुँह के सूखने से नहीं, बल्कि शरीर के अंदर की प्रक्रियाओं से नियंत्रित होती है। पानी पीने की आवश्यकता तब होती है जब कोशिकाओं से पानी कम हो जाता है और रक्त का परिमाण घटता है। इस स्थिति में अग्र अधश्चेतक (हाइपोथैलेमस) में मौजूद विशेष तंत्रिका कोशिकाएँ, जिन्हें परासरणग्राही कहते हैं, संकेत भेजती हैं और प्यास की अनुभूति कराती हैं।


काम

मनुष्य और पशुओं में काम (यौन) अंतर्नाद बहुत शक्तिशाली होता है और व्यवहार को प्रभावित करता है। लेकिन यह भूख या प्यास जैसे अन्य जैविक अभिप्रेरकों से अलग है। पहला, यह जीवन के लिए जरूरी नहीं है; दूसरा, इसका उद्देश्य शरीर का संतुलन बनाए रखना नहीं है; और तीसरा, यह उम्र के साथ विकसित होता है। जानवरों में यह मुख्य रूप से शारीरिक स्थितियों पर निर्भर करता है, जबकि मनुष्यों में जैविक कारकों के साथ अन्य कारक भी प्रभाव डालते हैं। इसलिए, इसे सिर्फ एक जैविक अंतर्नाद मानना आसान नहीं है।


मनोसामाजिक अभिप्रेरक

सामाजिक अभिप्रेरक ज्यादातर सीखे हुए होते हैं और इन्हें पाने में परिवार, मित्र, पड़ोस और रिश्तेदारों जैसे सामाजिक समूहों की बड़ी भूमिका होती है। ये अभिप्रेरक व्यक्ति और उसके सामाजिक माहौल की आपसी बातचीत से विकसित होते हैं।


संबंधन अभिप्रेरक

हम सभी को दूसरों के साथ रहने और संबंध बनाने की जरूरत होती है, क्योंकि कोई भी हमेशा अकेला नहीं रहना चाहता। लोग समानताएँ देखकर समूह बनाते हैं और दूसरों के करीब आने, मदद पाने और समूह का हिस्सा बनने की कोशिश करते हैं। दूसरों के साथ रहने की इस इच्छा को संबंधन कहते हैं, जिसमें सामाजिक संपर्क की प्रेरणा होती है। यह जरूरत तब ज्यादा महसूस होती है जब हम खतरे या असहायता में होते हैं या बहुत खुश होते हैं। जिनमें यह आवश्यकता अधिक होती है, वे दूसरों का साथ पसंद करते हैं और मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखते हैं।


शक्ति अभिप्रेरक

शक्ति की आवश्यकता वह योग्यता है जिससे व्यक्ति दूसरों की भावनाओं और व्यवहार पर प्रभाव डालता है। इसके लक्ष्य होते हैं: प्रभाव जमाना, नियंत्रण करना, नेतृत्व करना, और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना। डेविड मैकक्लीलैंड के अनुसार, शक्ति की अभिव्यक्ति चार तरीकों से होती है:

  • बाहरी स्रोतों से शक्ति का अनुभव, जैसे मशहूर लोगों से जुड़ना।
  • आंतरिक स्रोतों से शक्ति दिखाना, जैसे शारीरिक ताकत या आत्म-नियंत्रण।
  • व्यक्तिगत स्तर पर प्रभाव डालना, जैसे बहस या प्रतिस्पर्धा करना।
  • संगठन के माध्यम से शक्ति दिखाना, जैसे राजनीतिक दल का नेता बनना।
  • ये तरीके उम्र और अनुभव के साथ बदल सकते हैं।


उपलब्धि अभिप्रेरक 

जब छात्र अच्छे अंक या रैंक पाने के लिए मेहनत करते हैं ताकि उच्च शिक्षा और अच्छी नौकरी मिल सके, तो यह उपलब्धि अभिप्रेरक कहलाता है। इसे n-Ach भी कहते हैं। यह हमारे व्यवहार को दिशा देता है और परिस्थितियों को समझने के तरीके को प्रभावित करता है। बच्चे यह अभिप्रेरक माता-पिता, आदर्श व्यक्तियों और समाज से सीखते हैं। जिनमें यह अधिक होता है, वे मध्यम कठिनाई और चुनौती वाले कार्य पसंद करते हैं और अपने प्रदर्शन की जानकारी चाहते हैं ताकि लक्ष्य में सुधार कर सकें।


जिज्ञासा एवं अन्वेषण

कभी-कभी लोग ऐसे काम करते हैं जिनका कोई खास लक्ष्य नहीं होता, फिर भी वे उनसे आनंद लेते हैं। यह जिज्ञासा कहलाती है, जिसमें नए अनुभव और जानकारी पाने की इच्छा होती है। जैसे, "अगर आकाश गिर जाए तो क्या होगा?" ऐसे प्रश्न हमें खोज करने के लिए प्रेरित करते हैं। यह प्रवृत्ति सिर्फ मनुष्यों में ही नहीं, पशुओं में भी होती है। हम नए अनुभवों की तलाश इसलिए करते हैं क्योंकि बार-बार एक जैसी चीजें करने से ऊब हो जाती है। शिशुओं में जिज्ञासा बहुत प्रबल होती है, इसलिए वे चीजों को खोजते और खेलते रहते हैं। जब उनकी खोज की आज़ादी रोकी जाती है, तो वे उदास हो जाते हैं।


मैस्लो का आवश्यकता पदानुक्रम

मानव अभिप्रेरणा का सबसे प्रसिद्ध सिद्धांत अब्राहम मैस्लो ने दिया, जिसे आत्म-सिद्धि का सिद्धांत कहते हैं। उन्होंने आवश्यकताओं को एक पदानुक्रम (Hierarchy) में दिखाया, जिसे पिरामिड के रूप में समझा जाता है। सबसे नीचे मूल जैविक आवश्यकताएँ होती हैं, जैसे भूख और प्यास। इनके बाद सुरक्षा की आवश्यकता आती है, फिर प्रेम और संबंधों की जरूरत, उसके बाद आत्म-सम्मान और दूसरों से सम्मान पाने की इच्छा। सबसे ऊपर आत्म-सिद्धि है, यानी अपनी पूरी क्षमता को विकसित करना। आत्म-सिद्ध व्यक्ति रचनात्मक, आत्म-जागरूक, स्वतंत्र और चुनौतियों को स्वीकार करने वाला होता है। जब तक निचले स्तर की जरूरतें पूरी नहीं होतीं, ऊँचे स्तर की जरूरतों पर ध्यान नहीं जाता। अधिकतर लोग निचले स्तर की जरूरतों में ही उलझे रहते हैं और सर्वोच्च स्तर तक नहीं पहुँच पाते।


संवेगों का स्वरूप

हम दिनभर कई भावनाएँ महसूस करते हैं, जैसे खुशी, दुख, आशा, क्रोध, प्रेम और घृणा। संवेग एक जटिल अवस्था है जिसमें भावनाएँ, उत्तेजना और सोच शामिल होती हैं। भावना सुख या दुख से जुड़ी होती है, जबकि मनःस्थिति लंबे समय तक रहने वाली लेकिन कम तीव्र अवस्था है। संवेग व्यक्ति-व्यक्ति में अलग होता है और शरीर तथा मन दोनों में बदलाव लाता है। शोध से पता चला है कि कम से कम छह मूल संवेग हर जगह पाए जाते हैं: क्रोध, घृणा, भय, खुशी, दुख और आश्चर्य। इजार्ड ने 10 और प्लुचिक ने 8 मूल संवेग बताए, जिनसे अन्य संवेग बनते हैं। संवेगों की तीव्रता और प्रकार लिंग, व्यक्तित्व और परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। आमतौर पर महिलाएँ क्रोध छोड़कर अन्य भावनाएँ अधिक गहराई से महसूस करती हैं, जबकि पुरुषों में क्रोध अधिक पाया जाता है।


संवेगों की अभिव्यक्ति

क्या आप पहचान पाते हैं कि आपका मित्र खुश है, दुखी है या सामान्य है? संवेग अंदर की अनुभूति है, जिसे सीधे नहीं देखा जा सकता। हम इसे व्यक्ति की वाचिक (बोलचाल) और अवाचिक (हाव-भाव, चेहरे के भाव) अभिव्यक्तियों से समझते हैं। ये अभिव्यक्तियाँ संचार का माध्यम हैं, जिनसे हम अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं और दूसरों की भावनाएँ समझते हैं। 


संस्कृति एवं संवेगात्मक अभिव्यक्ति

वाचिक संचार में शब्दों के साथ बोलने की विशेषताएँ जैसे स्वर, ऊँचाई और लय शामिल होती हैं। इन विशेषताओं को पराभाषीय कहते हैं। अवाचिक संचार में चेहरे के हाव-भाव, शरीर की मुद्रा, गति और बातचीत के दौरान दूरी शामिल है। चेहरा सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है, क्योंकि इससे खुशी, दुख, भय, क्रोध और आश्चर्य जैसे संवेग आसानी से समझे जाते हैं। शरीर की गति भी भावनाओं को व्यक्त करती है, जैसे क्रोध में तेज गति या शर्म में धीमी गति। नृत्य और नाटक में शरीर और हाव-भाव का उपयोग संवेग दिखाने के लिए किया जाता है। संवेगों की अभिव्यक्ति पर संस्कृति का भी असर होता है। उदाहरण के लिए, लैटिन अमेरिकी लोग आँखों में देखते हैं, जबकि एशियाई लोग बातचीत के दौरान दृष्टि हटाकर बात करते हैं।


संस्कृति एवं संवेगों का नामकरण

मूल संवेगों के नाम और उनका विस्तार अलग-अलग भाषाओं और संस्कृतियों में भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, टाहिटी भाषा में "क्रोध" के लिए 46 शब्द हैं, जबकि उत्तरी अमरीकी लोग क्रोध के चेहरे के लिए 40 और अवमानना के लिए 81 लेबल देते हैं। जापानी और अन्य संस्कृतियों में भी ऐसे अंतर पाए जाते हैं। प्राचीन चीनी साहित्य में सात संवेग बताए गए हैं, जबकि भारतीय साहित्य में आठ, जैसे प्रेम, आनंद, क्रोध, शोक और भय। पाश्चात्य साहित्य में प्रसन्नता, दुख, भय, क्रोध और घृणा को मूल संवेग माना जाता है। संक्षेप में, कुछ संवेग सार्वभौमिक होते हैं, लेकिन उनकी अभिव्यक्ति और अनुभव संस्कृति के नियमों से प्रभावित होते हैं। संस्कृति तय करती है कि कौन-से संवेग कब और कितनी तीव्रता से दिखाए जाएँ।


निषेधात्मक संवेगों का प्रबंधन

संवेग का महत्व

संवेग जीवन और रिश्तों के लिए जरूरी हैं, और उनका सही प्रबंधन सामाजिक सफलता की कुंजी है। संतुलन बनाए रखने के लिए गहरी साँस लेना, ध्यान लगाना, सकारात्मक सोच रखना और प्रतिक्रिया देने से पहले रुककर सोचना मददगार है।

1. आत्म-जागरूकता बढ़ाइए

अपने संवेगों और अनुभूतियों को पहचानना जरूरी है। यह समझें कि वे कब और क्यों उत्पन्न होते हैं, ताकि आप उन्हें बेहतर तरीके से नियंत्रित और प्रबंधित कर सकें।

2. परिस्थिति का वास्तविक आकलन करें

घटनाओं को बाधा न मानकर सामान्य अनुभव के रूप में स्वीकार करें, इससे तनाव कम होगा। आपका दृष्टिकोण तय करता है कि आप परेशान होंगे या शांत रहेंगे।

3. आत्म-परिवीक्षण करें

अपनी उपलब्धियों और भावनात्मक तथा शारीरिक स्थिति का मूल्यांकन करें। सकारात्मक मूल्यांकन आत्मविश्वास और संतोष बढ़ाता है, जिससे मानसिक संतुलन बना रहता है।

4. आत्म-प्रतिरूपण (Self-Modeling)

अपने पिछले अच्छे प्रदर्शन को याद करें और उन्हें भविष्य की सफलता के लिए प्रेरणा बनाएं। यह आत्मविश्वास बढ़ाने और सकारात्मक सोच बनाए रखने में मदद करता है।

5. प्रात्यक्षिक पुनर्व्यवस्था और संज्ञानात्मक पुनर्रचना

घटनाओं के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करें और नकारात्मक विचारों को रचनात्मक सोच से बदलें। यह मानसिक संतुलन और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने में मदद करता है।

6. सर्जनात्मक बनिए

नए शौक या रुचियाँ विकसित करें और मनोरंजक गतिविधियों में भाग लें। यह मन को तरोताज़ा करता है, तनाव कम करता है और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है।

7. अच्छे संबंध बनाएँ

प्रसन्नचित्त और सकारात्मक सोच वाले मित्रों का चयन करें, क्योंकि अच्छे मित्र सकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा देते हैं और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करते हैं।

8. तदनुभूति (Empathy) रखें

दूसरों की भावनाओं को समझने का प्रयास करें, क्योंकि यह सहानुभूति बढ़ाता है। पारस्परिक मदद और सहयोग से संबंध मजबूत और भरोसेमंद बनते हैं।

9. सामुदायिक सेवा में भाग लें

दूसरों की मदद करने से न केवल उनका जीवन आसान होता है, बल्कि आपको अपनी समस्याओं पर नई अंतर्दृष्टि मिलती है। उदाहरण के लिए, विशेष जरूरत वाले बच्चों की सहायता करने से सहानुभूति बढ़ती है और जीवन के प्रति दृष्टिकोण सकारात्मक होता है।


आपके क्रोध का प्रबंधन

क्रोध एक नकारात्मक भावना है जो व्यक्ति के नियंत्रण को कम कर देती है। इसका मुख्य कारण इच्छाओं या लक्ष्यों का रुक जाना होता है। लेकिन क्रोध कोई स्वचालित प्रतिक्रिया नहीं है; यह हमारी सोच का परिणाम है, इसलिए इसे विचारों के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। क्रोध प्रबंधन के लिए सुझाव: अपने विचारों की शक्ति को पहचानें और समझें कि नियंत्रण आपके हाथ में है। ऐसा आत्म-संवाद न करें जो गुस्सा बढ़ाए। दूसरों के इरादों को गलत न मानें और अतार्किक विश्वास न बनाएं। क्रोध को व्यक्त करने के रचनात्मक तरीके अपनाएं और उसकी मात्रा व समय को नियंत्रित करें। बदलाव के लिए खुद को समय दें क्योंकि आदतें धीरे-धीरे बदलती हैं।


विध्यात्मक संवेगों में वृद्धि

संवेगों का उद्देश्य हमें बदलते वातावरण के साथ अनुकूल होने में मदद करना है। नकारात्मक संवेग जैसे भय, क्रोध और घृणा हमें खतरे से बचाने के लिए तुरंत प्रतिक्रिया करने को तैयार करते हैं, लेकिन अगर ये ज्यादा हो जाएँ तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। सकारात्मक संवेग जैसे खुशी, भरोसा और आशावाद हमें ऊर्जा देते हैं, सोच को खुला करते हैं और समस्याओं से निपटने में मदद करते हैं। ये हमें लक्ष्य तय करने, नए रिश्ते बनाने और कठिन परिस्थितियों से जल्दी उबरने में सहायक होते हैं। सकारात्मक संवेग बढ़ाने के लिए आशावादी बनें, कठिन समय में भी अच्छा अर्थ खोजें, अच्छे रिश्ते बनाए रखें, काम में व्यस्त रहें और जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाएं।

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