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सिंधु घाटी की कलाएँ Notes in Hindi Class 11 Fine Art Chapter-2 Book-1

सिंधु घाटी की कलाएँ Notes in Hindi Class 11 Fine Art Chapter-2 Book-1



सिंधु घाटी सभ्यता में कला का विकास ईसा पूर्व तीसरी सहस्राब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे प्रमुख नगरों से मिली कलाकृतियों में मिट्टी की मूर्तियाँ, मुहरें, बर्तन, आभूषण आदि शामिल हैं। इन कलाओं में उच्च कोटि की कलात्मकता और कल्पनाशक्ति दिखाई देती है। मूर्तियाँ इतनी स्वाभाविक थीं कि उनके अंग असली जैसे लगते हैं, विशेषकर जानवरों की मूर्तियों में विशेष सूझ-बूझ दिखती है। नगर नियोजन, जल निकासी, और सार्वजनिक भवनों की दृष्टि से हड़प्पा और मोहनजोदड़ो बेहतरीन उदाहरण हैं। अन्य प्रमुख स्थल जैसे लोथल, धौलावीरा, राखीगढ़ी, रोपड़ और कालीबंगा से भी कला के सुंदर नमूने प्राप्त हुए हैं।


पत्थर की मूर्तियाँ

हड़प्पा स्थलों से प्राप्त पत्थर, कांसे और मिट्टी की मूर्तियाँ संख्या में कम होने पर भी कला की दृष्टि से अत्यंत श्रेष्ठ हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की त्रि-आयामी पत्थर की मूर्तियाँ शिल्पकला की उत्कृष्ट मिसाल हैं। इनमें दो प्रमुख पुरुष मूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं—एक लाल चूना पत्थर का पुरुष धड़ और दूसरी सेलखड़ी की बनी दाढ़ी वाले धार्मिक पुरुष की आवक्ष मूर्ति। यह मूर्ति शॉल ओढ़े ध्यानमग्न मुद्रा में दिखाई गई है, जिसमें त्रिफुलिया डिज़ाइन, उभरी हुई दाढ़ी-मूँछ, सीप जैसे कान, सुंदर नाक, गहरे होंठ, बालों की मांग, बाजूबंद और हार के संकेत देने वाले छेद जैसी बारीक कलात्मक विशेषताएँ मौजूद हैं।


कांसे की ढलाई

हड़प्पा सभ्यता के लोग कांसे की ढलाई की कला में निपुण थे और यह कार्य बड़े पैमाने पर करते थे। वे मोम से प्रतिमा बनाकर उस पर चिकनी मिट्टी का आवरण चढ़ाते, फिर गर्म कर मोम निकालते और खाली सांचे में पिघली धातु भरते थे। ठंडी होने पर मिट्टी हटाकर मूर्ति प्राप्त होती थी। इस तकनीक से मनुष्यों और जानवरों की मूर्तियाँ बनाई गईं। सबसे प्रसिद्ध मानव मूर्ति कांस्य की नर्तकी है, जबकि भैंस और बकरी की जानवरों की मूर्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं। लोथल से मिला तांबे का कुत्ता और पक्षी तथा कालीबंगा से मिली साँड़ की मूर्ति भी हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की मूर्तियों के समान ही उत्कृष्ट मानी जाती हैं।


मृण्मूर्तियाँ (टेराकोटा)

सिंधु घाटी सभ्यता में मिट्टी की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं, हालांकि वे पत्थर और कांसे की मूर्तियों जितनी उत्कृष्ट नहीं थीं। इनमें मातृदेवी की प्रतिमाएँ प्रमुख हैं, जिनकी शैली लोथल और कालीबंगा में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की मूर्तियों से अलग है। कुछ मूर्तियाँ दाढ़ी-मूँछ वाले पुरुषों की भी मिली हैं, जो सीधे खड़े हैं, बाल गुंथे हुए हैं और भुजाएँ शरीर के पास नीचे लटकी हैं—यह मुद्रा बार-बार दिखती है, जिससे लगता है कि ये किसी देवता की मूर्तियाँ थीं। एक सींग वाले देवता का मिट्टी का मुखौटा भी मिला है। इसके अलावा मिट्टी से बनी पहिएदार गाड़ियाँ, सीटियाँ, पशु-पक्षियों की आकृतियाँ, खेलने के पासे, गिट्टियाँ और चक्रिकाएँ भी पाई गई हैं।


मुद्राएँ (मुहरें)

सिंधु घाटी सभ्यता से हजारों मुहरें प्राप्त हुई हैं, जो मुख्यतः सेलखड़ी, गोमेद, तांबा, कांसा और मिट्टी से बनी थीं। इन पर एक सींग वाले साँड़, गैंडा, बाघ, हाथी, बकरी आदि पशुओं की सुंदर और भावपूर्ण आकृतियाँ उकेरी गई थीं। इन मुहरों का मुख्य उद्देश्य वाणिज्यिक था, लेकिन कुछ को लोग बाजूबंद की तरह पहचान चिन्ह के रूप में भी पहनते थे। हड़प्पा की मानक मुद्रा 2x2 इंच की वर्गाकार होती थी, जिसमें चित्रात्मक लिपि खुदी होती थी, जो अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है। विशेष मुद्रा "पशुपति मुद्रा" में एक पालथी मारे मानव आकृति के चारों ओर कई जानवर दिखाए गए हैं, जिसे कुछ विद्वान शिव का प्रारूप मानते हैं। मुहरों के अलावा, तांबे की पट्टियाँ भी मिली हैं जिन पर मानव आकृतियाँ और पशु संबंधी अभिलेख खुदे हैं। ये पट्टियाँ भी बाजूबंद की तरह पहनी जाती थीं और अत्यंत सावधानी से नोकदार औजार से बनाई जाती थीं।


मृद्भाण्ड

सिंधु घाटी सभ्यता से बड़ी संख्या में मिले मृद्भांडों (मिट्टी के बर्तनों) से उस काल की डिज़ाइन और शिल्पकला की विविधता का पता चलता है। अधिकतर बर्तन कुम्हार की चाक पर बनाए गए थे और सादे बर्तन संख्या में अधिक थे, जो लाल चिकनी मिट्टी से बने थे। कुछ पर स्लेटी या लाल लेप और काले रंग से ज्यामितीय आकृतियाँ तथा पशु डिज़ाइन बने हैं। बहुरंगी बर्तन बहुत कम मिले हैं, जिन पर लाल, काले, हरे, सफेद और पीले रंगों से आकृतियाँ बनी हैं। कुछ बर्तनों पर पेंदे या तश्तरियों तक सीमित उत्कीर्ण सजावट भी पाई गई है। छिद्रित पात्रों में तल पर बड़ा और दीवारों पर छोटे छेद होते थे, संभवतः पेय छानने के लिए। घरेलू उपयोग के बर्तन विभिन्न आकारों और सुंदर वक्र रेखाओं वाले होते थे। खासकर छोटे पात्र अत्यंत आकर्षक और कलात्मक होते थे, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।


आभूषण

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग साज-सिंगार और फैशन के प्रति अत्यंत जागरूक थे। पुरुष और महिलाएँ दोनों ही आभूषण पहनते थे, जो सोना, रत्न, तांबा, सीप, हड्डी और मिट्टी से बनाए जाते थे। हार, बाजूबंद, अंगूठियाँ, झुमके, करधनियाँ, पैजनियाँ आम थे। मोहनजोदड़ो, लोथल और फरमाना से मिले आभूषणों और कब्रों से यह पुष्टि होती है कि गहनों का विशेष महत्व था। मनके बनाने की उन्नत तकनीक विकसित थी, जिनमें कार्नीलियन, लाजवर्द, स्फटिक आदि रत्नों का प्रयोग होता था। मनके विविध आकारों व डिज़ाइनों में मिलते हैं, कई पर खुदाई या रंग भी किया गया था। पशुओं जैसे बंदरों और गिलहरियों की आकृतियाँ भी सजावट में प्रयुक्त होती थीं। कताई का चलन आम था, जिससे तकुए और चक्रियां बड़ी संख्या में मिली हैं। पुरुष-स्त्रियाँ धोती और शॉल जैसे वस्त्र पहनते थे और स्त्रियाँ सिंदूर, काजल व लेप का उपयोग करती थीं। बालों की सज्जा और दाढ़ी-मूँछ भी प्रचलित थी। धौलावीरा में पत्थर से बने भवनों के अवशेष मिले हैं। शिल्पकला में वे धातु ढलाई, पत्थर नक्काशी, बर्तन बनाना, रंगना और टेराकोटा निर्माण में दक्ष थे।

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