मौर्य कालीन कला Notes in Hindi Class 11 Fine Art Chapter-3 Book-1
0Team Eklavyaजुलाई 01, 2025
ईसा-पूर्व छठी शताब्दी में गंगा घाटी में बौद्ध और जैन धर्मों के रूप में नए धार्मिक-सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत हुई, जो श्रमण परंपरा से जुड़े थे और वर्ण-जाति व्यवस्था का विरोध करते थे। इनकी लोकप्रियता के समय मगध एक शक्तिशाली राज्य बनकर उभरा, और ईसा-पूर्व चौथी शताब्दी तक मौर्यों ने सत्ता स्थापित कर ली। सम्राट अशोक ने ईसा-पूर्व तीसरी शताब्दी में बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया। उस काल में यक्षों और मातृदेवियों की पूजा भी प्रचलित थी, और पूजा के विविध रूप मौजूद थे। हालांकि, बौद्ध धर्म सबसे प्रभावशाली सामाजिक-धार्मिक आंदोलन बन गया। यक्ष पूजा, जो पहले से लोकप्रिय थी, बाद में बौद्ध और जैन धर्मों में विलीन हो गई।
खंभे, मूर्तियाँ और शैलकृत वास्तुकला
1. श्रमण परंपरा से संबंधित निर्माण
बौद्ध परंपरा में मठ, स्तूप और विहार इसके मुख्य अंग बने। मौर्य काल में केवल स्तूप ही नहीं, बल्कि स्तंभ, गुफाएँ और मूर्तियाँ भी बड़ी संख्या में निर्मित की गईं।
मौर्य स्तंभ (Mauryan Pillars)
2. मौर्य स्तंभों की विशेषताएँ
मौर्य काल के स्तंभ एक ही पत्थर से बने होते थे (Monolithic)। इन पर शिलालेख और शेर, साँड़, हाथी जैसे जानवरों की शीर्ष आकृतियाँ उकेरी जाती थीं। स्तंभों की शीर्ष वेदी को कमल की सजावट से अलंकृत किया जाता था।
3. प्रसिद्ध स्तंभ उदाहरण
सारनाथ का सिंह-शीर्ष भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है। अन्य प्रमुख मौर्यकालीन स्तंभ स्थल हैं—लौरिया नंदनगढ़, रामपुरवा (बिहार) और सनकिसा (उत्तर प्रदेश)।
मूर्ति कला (Sculpture Art)
4. यक्ष और यक्षिणी मूर्तियाँ
मौर्यकालीन मूर्तियाँ पटना, विदिशा, मथुरा जैसे स्थलों पर पाई गई हैं। इनकी सतह पर उत्कृष्ट पॉलिश होती है और अंग-प्रत्यंग स्पष्ट रूप से उकेरे गए हैं। दीदारगंज की यक्षिणी (पटना) इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है।
5. अन्य मूर्तियाँ
धौली (ओडिशा) में चट्टान पर एक विशाल हाथी की आकृति उकेरी गई है, जो मौर्यकालीन शिल्पकला का महत्वपूर्ण उदाहरण है। बाराबार की पहाड़ियों (बिहार) में स्थित लोमष ऋषि की गुफा में अर्द्धवृत्ताकार चैत्य द्वार और हाथी की सुंदर आकृति दिखाई देती है।
बौद्ध स्थापत्य (Buddhist Architecture)
6. स्तूप
बौद्ध स्तूप बुद्ध के अवशेषों पर बनाए जाते थे। प्रमुख स्थल हैं: राजगृह, वैशाली, कपिलवस्तु और कुशीनगर। इन स्तूपों की संरचना में बेलनाकार ढोल (Drum), गोल अंडाकार भाग, शीर्ष पर हर्मिक और छत्र शामिल होते थे। साथ ही, परिक्रमा पथ और सुंदर प्रवेश द्वार भी बनाए जाते थे।
7. साँची का स्तूप
अशोक के काल में स्तूपों का निर्माण ईंटों से किया गया था। बाद के समय में इन्हें पत्थरों से ढककर सुंदर नक्काशी और तोरण द्वारों से सजाया गया।
दान, संरक्षण और कलाकार
8. दानदाताओं के नाम
स्तूपों और गुफाओं के निर्माण में आम भक्त, गहपति, राजा और व्यापारी जैसे विभिन्न वर्गों ने योगदान दिया। कुछ स्थानों पर शिल्पकारों के नाम भी मिले हैं, जैसे पीतलखोड़ा में "कान्हा" और कोंडाणे में "बालक"।
9. शिल्पकारों की श्रेणियाँ
प्रस्तर उत्कीर्णक, स्वर्णकार, बढ़ई, चमकाने वाले इत्यादि।
बुद्ध की पूजा और चित्र परंपरा
10. प्रतीकों के माध्यम से बुद्ध का निरूपण
इस काल में बुद्ध की प्रतिमा नहीं बनाई जाती थी, बल्कि उन्हें पदचिह्न, चक्र, कमल और सिंहासन जैसे प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया जाता था। यह शैली उस समय की पूजा पद्धति की सादगी को दर्शाती है।
11. जातक कथाओं का चित्रण
प्राचीन बौद्ध चित्रों में बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाएँ दर्शाई गई हैं, जैसे—जन्म, गृह त्याग, ज्ञान प्राप्ति, धम्मचक्र प्रवर्तन और महापरिनिर्वाण।
इसके अलावा, कई जातक कथाएँ भी चित्रित की गई हैं, जो बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियाँ हैं। प्रमुख जातक कथाओं में शामिल हैं:
बौद्ध चित्रकला में तीन प्रकार की आख्यान शैलियाँ पाई जाती हैं। संक्षेप आख्यान में कई घटनाओं को एक ही चित्र में संक्षिप्त रूप में दिखाया जाता है। सतत आख्यान में एक ही फ्रेम में बुद्ध को कई बार दिखाकर घटनाओं का क्रम दर्शाया जाता है। जबकि घटनात्मक आख्यान में किसी एक प्रमुख घटना को केंद्र में रखकर चित्रित किया जाता है।