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प्रागैतिहासिक शैल-चित्र Notes in Hindi Class 11 Fine Art Chapter-1 Book-1

प्रागैतिहासिक शैल-चित्र Notes in Hindi Class 11 Fine Art Chapter-1 Book-1



प्रागैतिहासिक काल (Pre-historic Period) क्या है?

जब कोई लिखित दस्तावेज़ या भाषा नहीं थी, उस समय को प्रागैतिहासिक काल कहा जाता है। उस दौर में न तो कागज़ था और न ही लेखन प्रणाली, इसलिए उस काल की जानकारी हमें चित्रों, पत्थर के औजारों और अन्य अवशेषों के माध्यम से मिलती है।

इस युग की जानकारी कैसे मिली?

गुफाओं की दीवारों पर बने चित्र, मिट्टी के बर्तन, औजार और खुदाई में मिली मानव व जानवरों की हड्डियों के आधार पर विद्वानों ने प्रागैतिहासिक मानव जीवन का विवरण तैयार किया।

चित्र बनाने की शुरुआत क्यों हुई?

जब भोजन और आवास जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी हो गईं, तो मानव ने अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए चित्र बनाना शुरू किया। ये चित्र संभवतः रोज़मर्रा की घटनाओं और घर को सजाने के उद्देश्य से बनाए गए होंगे, जैसे आज हम डायरी लिखते हैं।

प्रागैतिहासिक चित्र कहाँ-कहाँ पाए गए?

भारत में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड (कुमाऊँ) और कश्मीर में गुफा चित्र मिले हैं। विश्व में भी फ्रांस, स्पेन जैसे देशों में ऐसे चित्रों की खोज हुई है।

भारत में चित्रों की खोज

गुफा चित्रों की सबसे पहली खोज 1867-68 में आर्किबोल्ड कार्लाइल ने की थी, जो स्पेन के आल्तामीरा की खोज से 12 साल पहले हुई थी। प्रमुख खोजकर्ताओं में कॉकबर्न, एंडरसन, मित्रा और घोष शामिल हैं।

प्रमुख स्थल और उनके चित्र

उत्तराखंड में स्थित लखुडियार, जिसका अर्थ है "एक लाख गुफाएँ", एक प्रमुख गुफा चित्र स्थल है। यहाँ के चित्रों में मानव, पशु और ज्यामितीय आकृतियाँ दिखाई देती हैं। इन चित्रों में सफेद, काले और लाल रंगों का उपयोग हुआ है। मानव आकृतियाँ छड़ी जैसी बनी हैं, और एक चित्र में लोगों को हाथ पकड़कर नाचते हुए दर्शाया गया है।

ग्रेनाइट की चट्टानों पर चित्र (कर्नाटक, आंध्र प्रदेश)

कुपगल्लू, पिकलिहाल और टेक्कलकोटा जैसे स्थलों पर गुफा चित्रों में साँड़, हाथी, भेड़, घोड़ा, त्रिशूल और मानव आकृतियाँ दिखाई देती हैं। एक चित्र में पुरुषों को स्त्रियों को भगाते हुए दर्शाया गया है।

कैमूर और विंध्यांचल की पहाड़ियाँ (उ.प्र., म.प्र.)

भरपूर गुफाएँ और घने जंगल पाषाण युग के जीवन के लिए उपयुक्त थे। यहाँ के चित्रों में शिकार, नृत्य, संगीत, घोड़े और हाथी की सवारी, शहद इकट्ठा करना और सजावट जैसे विषय प्रमुख रूप से दिखते हैं।

भीमबेटका (मध्य प्रदेश)

भोपाल से लगभग 45 किमी दूर स्थित इस स्थल पर लगभग 800 शैलाश्रय हैं, जिनमें से 500 में चित्र पाए गए हैं। इनकी खोज 1957-58 में डॉ. वाकणकर ने की थी। चित्रों के प्रमुख विषयों में शिकार, नृत्य, मुखौटे, धार्मिक दृश्य और सजावट शामिल हैं।

चित्रों के काल और श्रेणियाँ

1. उत्तर पुरापाषाण युग (Upper Palaeolithic Period):

इस काल में गहरे लाल और हरे रंगों का उपयोग किया गया। चित्रों में भैंस, हाथी, बाघ, गैंडा और सूअर जैसे जानवरों को दर्शाया गया है। मानव आकृतियाँ छड़ी जैसी बनी हैं। कुछ चित्र धवन चित्र (wash painting) शैली में हैं। हरे रंग के चित्रों में नृत्य और लाल रंग के चित्रों में शिकार के दृश्य दिखते हैं।

2. मध्य पाषाण युग (Mesolithic Period):

3. ताम्रपाषाण युग (Chalcolithic Period):


मध्यपाषाण युग (मेसोलिथिक पीरियड)

चित्रों की संख्या और विषय-वस्तु

मध्य पाषाण युग के चित्रों की संख्या सबसे अधिक पाई गई है। इस काल में चित्रों के विषयों में काफी विविधता आ गई, लेकिन उनके आकार छोटे हो गए। शिकार इस युग का प्रमुख विषय बन गया।

शिकार के दृश्य

मध्य पाषाण युग के चित्रों में लोग समूह में शिकार करते हुए दिखाए गए हैं। वे भाले, तीर-कमान, डंडे, जाल और गड्ढों का प्रयोग करते थे। कुछ चित्रों में शिकारियों को डरते या जानवरों से बचते हुए भी दर्शाया गया है।

मानव चित्रण

मध्य पाषाण युग के चित्रों में पुरुषों को साधारण या सजे हुए कपड़ों में, और कुछ को मुखौटा लगाए हुए दिखाया गया है। स्त्रियों को निर्वस्त्र और सवस्त्र दोनों रूपों में चित्रित किया गया है। बच्चों को खेलते-कूदते और दौड़ते हुए दर्शाया गया है। इन चित्रों में बूढ़ों से लेकर जवानों तक सभी को स्थान मिला है, और कुछ चित्रों में परिवार जैसा समूह भी दिखाई देता है, जिसमें पुरुष, स्त्री और बच्चे एक साथ दिखते हैं।

अन्य दृश्य

मध्य पाषाण युग के चित्रों में सामूहिक नृत्य, फल और शहद इकट्ठा करने जैसे दृश्य दिखाई देते हैं। स्त्रियों को अनाज पीसते और खाना बनाते हुए भी चित्रित किया गया है। इन चित्रों में मनुष्यों और जानवरों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों के साथ-साथ शिकार जैसे संघर्षपूर्ण संबंध भी दर्शाए गए हैं।

प्रमुख चित्रित जानवर

मध्य पाषाण युग के चित्रों में हाथी, साँड़, बाघ, शेर, सूअर, बारहसिंगा, हिरन, तेंदुआ, चीता, गैंडा, मछली, मेंढक, गिलहरी और पक्षियों जैसी अनेक प्रजातियाँ दिखाई देती हैं। कुछ चित्रों में जानवरों को ही मुख्य विषय बनाकर चित्रित किया गया है।

चित्र बनाने की तकनीक और रंग

प्रागैतिहासिक चित्रों में प्रयुक्त रंग: मुख्य रंगों में लाल (गेरू या हिरमच से), हरा (कैल्सेडोनी पत्थर से) और सफेद (चूना पत्थर से) शामिल थे। इसके अलावा काला, पीला, बैंगनी और भूरा जैसे अन्य रंग भी उपयोग किए जाते थे।

रंग बनाने की विधि: चट्टानों से खनिज निकालकर उन्हें कूट-पीसकर महीन चूर्ण बनाया जाता था। फिर उसमें पानी के साथ चर्बी, गोंद या राल मिलाई जाती थी जिससे वह टिकाऊ रंग बन जाए। चित्र बनाने के लिए पेड़ की टहनी से बने ब्रश या सीधे उंगलियों का उपयोग किया जाता था।

चित्र कहाँ बनाए गए?

प्रागैतिहासिक चित्र शैलाश्रयों की दीवारों, सतहों और छतों पर बनाए गए थे। इनमें से कुछ चित्र ऐसे गुफाओं में मिले हैं जहाँ लोग रहते थे, जबकि कुछ चित्र धार्मिक या अनुष्ठानिक महत्व वाले स्थानों पर पाए गए हैं।

विशेष दृश्य और भावनाएँ

कुछ चित्रों में मनुष्यों के भावनात्मक अनुभवों को दर्शाया गया है। एक दृश्य में शिकार करते लोग घायल होकर गिरे हुए हैं, जबकि एक अन्य चित्र में शिकार के बाद जानवर की मौत पर शिकारी नाचते हुए दिखाए गए हैं। इन चित्रों में डर, साहस, खुशी और सौहार्द जैसे मानवीय मनोभावों को भी खूबसूरती से उकेरा गया है।

हाथों और उंगलियों के निशान

कई गुफाओं में हथेली, मुट्ठी और उंगलियों के निशान मिले हैं।

चित्रों के पीछे की सोच

प्रागैतिहासिक चित्रों में नाटकीयता, कहानी कहने की भावना और कलात्मक संतुलन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इनमें जानवरों को अक्सर अधिक ताकतवर और प्रभावशाली रूप में दर्शाया गया है, जिससे चित्रों में जीवंतता और गहराई आती है।

एक ही जगह पर कई चित्र क्यों?

कुछ शैलाश्रयों में एक ही स्थान पर चित्रों की 20 तक परतें मिली हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं—शायद कलाकार को पुरानी रचना पसंद नहीं आई और उसने नई बनाई, या वह स्थान पवित्र या सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण माना गया। साथ ही, नई पीढ़ी के कलाकारों ने भी उसी जगह पर चित्र बनाकर परंपरा को आगे बढ़ाया।

महत्त्व और धरोहर

प्रागैतिहासिक चित्र प्राचीन मानव जीवन, सोच, जीवनशैली और संस्कृति को समझने के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये चित्र औज़ार, हड्डियाँ और बर्तनों से भी अधिक मूल्यवान धरोहर माने जाते हैं।

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