सामाजिक प्रभाव एवं समूह प्रक्रम Notes in Hindi Class 12 Psychology Chapter-7 Book-1
0Team Eklavyaजुलाई 30, 2025
परिचय
हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में परिवार, स्कूल और दोस्तों जैसे कई समूहों से जुड़े होते हैं, जो न केवल हमें सहायता और सहयोग देते हैं बल्कि हमारे विकास में भी मदद करते हैं। स्कूल जाने से पहले परिवार से बातचीत, स्कूल में शिक्षकों और सहपाठियों से विचार-विमर्श, और दोस्तों के साथ समय बिताना—all ये अनुभव हमें यह दिखाते हैं कि समूह हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं। अगर कभी हम ऐसे स्थान पर रहें जहाँ ये सभी लोग न हों, तो हमें अकेलेपन और किसी महत्वपूर्ण चीज की कमी महसूस होती है। इसलिए, ऐसा समूह चुनना ज़रूरी है जो हमें सकारात्मक दिशा में प्रभावित करे और एक अच्छे नागरिक बनने में मदद करे। साथ ही, हम भी समाज और दूसरों को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं।
समूह की प्रकृति एवं इसका निर्माण
समूह क्या है?
परिभाषा:
समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों का एक संगठित ढांचा होता है, जहाँ वे आपस में बातचीत करते हैं, परस्पर निर्भर होते हैं, समान उद्देश्य रखते हैं, और उनकी भूमिकाएँ व व्यवहार निश्चित प्रतिमानों पर आधारित होते हैं।
समूह और अन्य लोगों की भीड़ में अंतर:
समूह और अन्य व्यक्ति समुच्चय (जैसे भीड़) में मुख्य अंतर यह है कि समूह में परस्पर निर्भरता होती है, सदस्य एक-दूसरे से अपेक्षाएँ रखते हैं, और उनकी निश्चित भूमिका और स्थिति होती है। साथ ही, समूह में व्यवहार को नियंत्रित करने के कुछ मानक होते हैं। जबकि भीड़ जैसे समुच्चय में न तो कोई परस्पर निर्भरता होती है, न ही भूमिका या अपेक्षाएँ तय होती हैं, और वहाँ व्यवहार अक्सर अव्यवस्थित और अविवेकी होता है।
समूह की मुख्य विशेषताएँ:
सामाजिक इकाई – दो या अधिक लोग जो स्वयं को समूह से जोड़ते हैं।
समान लक्ष्य – सभी सदस्यों की समान अभिप्रेरणाएँ होती हैं।
परस्पर निर्भरता – एक सदस्य का कार्य दूसरों को प्रभावित करता है (जैसे क्रिकेट में कैच छोड़ना)।
अंतःक्रिया – सदस्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बातचीत करते हैं।
भूमिका और प्रतिमान – प्रत्येक सदस्य की भूमिका तय होती है और व्यवहार के नियम होते हैं।
अन्य समुच्चयों से अंतर:
भीड़ एक ऐसा समूह होता है जो संयोगवश एकत्रित होता है, जिसमें कोई संरचना या आपसी आत्मीयता नहीं होती और इसका व्यवहार अक्सर अविवेकी होता है। दर्शकगण वे लोग होते हैं जो किसी कार्यक्रम को देखने के लिए एकत्रित होते हैं; ये सामान्यतः निष्क्रिय होते हैं लेकिन कभी-कभी उत्तेजित भी हो सकते हैं। असंयत भीड़ एक ऐसी भीड़ होती है जिसका कोई स्पष्ट उद्देश्य होता है और जिसके सदस्य भावनाओं में बहकर व्यवहार करते हैं।
दल (Team) और समूह में अंतर:
व्यक्ति समूहों में क्यों सम्मिलित होते हैं?
व्यक्ति को समूह से सुरक्षा की भावना मिलती है, क्योंकि अकेलेपन में असुरक्षा महसूस होती है। किसी महत्वपूर्ण समूह से जुड़ने पर प्रतिष्ठा और सम्मान की अनुभूति होती है, जिससे आत्म-सम्मान बढ़ता है और सामाजिक पहचान मिलती है। समूह मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकताओं जैसे प्रेम, अपनापन और ध्यान की पूर्ति भी करता है। इसके अलावा, कुछ लक्ष्य ऐसे होते हैं जिन्हें अकेले हासिल करना मुश्किल होता है, लेकिन समूह के सहयोग से उन्हें प्राप्त किया जा सकता है, जैसे खेल प्रतियोगिता जीतना।
ज्ञान और जानकारी या सूचना प्रदान करना समूह
सदस्यता हमें ज्ञान और जानकारी प्रदान करती है और हमारे दृष्टिकोण को विस्तृत करती है। संभव है कि वैयक्तिक रूप से हम सभी वांछित जानकारियों या सूचनाओं को प्राप्त न कर सकें। समूह इस प्रकार की जानकारी और ज्ञान की कमी को पूरा करता है।
समूह का निर्माण
समूहों का निर्माण लोगों के बीच संपर्क और अंतःक्रिया से होता है। जब लोग एक-दूसरे के करीब रहते हैं, एक ही स्कूल, कॉलोनी या खेल मैदान में होते हैं, तो मिलने-जुलने का मौका बढ़ता है और दोस्ती बनती है। बार-बार की बातचीत से हम दूसरों को बेहतर समझते हैं और उनकी पसंद-नापसंद जान पाते हैं। समान रुचियाँ, सोच और पृष्ठभूमि हमें दूसरों की ओर आकर्षित करती हैं और यही बातें समूह बनने की नींव रखती हैं।
समानता किसी के साथ कुछ समय तक रहने पर
हम समूह उन लोगों के साथ बनाते हैं जो हमारे जैसे होते हैं, क्योंकि समानता हमें एक-दूसरे को समझने और पसंद करने में मदद करती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, हम संगत संबंधों को पसंद करते हैं, और जब हमारी रुचियाँ, विचार या मूल्य मेल खाते हैं, तो एक जुड़ाव महसूस होता है। जैसे अगर दो लोग फुटबॉल पसंद करते हैं, तो उनकी दोस्ती की संभावना बढ़ जाती है। दूसरी व्याख्या यह है कि जब कोई हमारे जैसे विचार रखता है, तो हमें अपने विचारों की मान्यता मिलती है, जिससे हम उस व्यक्ति को और पसंद करने लगते हैं। इससे समूह निर्माण और भी आसान हो जाता है।
समान अभिप्रेरक एवं लक्ष्य जब लोगों के अभिप्रेरक
जब लोगों के लक्ष्य और रुचियाँ एक जैसी होती हैं, तो वे मिलकर समूह बनाते हैं ताकि लक्ष्य को आसानी से हासिल किया जा सके। जैसे अगर आप मलिन बस्ती के बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन अकेले समय नहीं मिल पा रहा, तो आप अपने जैसे सोच वाले दोस्तों के साथ एक समूह बनाकर यह काम शुरू करते हैं। इससे आप मिलकर वह काम कर पाते हैं जो अकेले करना कठिन होता।
समूह निर्माण की अवस्थाएँ
समूह का विकास (Group Development):
ब्रूस टकमैन (Bruce Tuckman) के अनुसार, समूह विकास की 5 मुख्य अवस्थाएँ होती हैं:
निर्माण या आकृतिकरण (Forming):
जब समूह के सदस्य पहली बार मिलते हैं, तो वे एक-दूसरे को जानने की कोशिश करते हैं। इस अवस्था में उनके भीतर उत्साह और थोड़ी झिझक या डर दोनों होते हैं। साथ ही, समूह का लक्ष्य और प्रत्येक सदस्य की भूमिका अभी स्पष्ट नहीं होती।
विप्लवन या झंझावात (Storming):
इस अवस्था में समूह में मतभेद और संघर्ष उत्पन्न होते हैं। यह स्पष्ट नहीं होता कि कौन नेतृत्व करेगा और कौन कौन-सा कार्य करेगा, जिससे तनाव और असहमति की स्थिति बन सकती है।
मानक निर्माण (Norming):
इस अवस्था में समूह में सहयोग की भावना विकसित होती है। सदस्य आपसी नियम और व्यवहार के मानक तय करते हैं और एक-दूसरे को स्वीकार करना शुरू कर देते हैं।
निष्पादन (Performing):
इस अवस्था में समूह पूरी तरह से संगठित हो जाता है। सभी सदस्य अपनी-अपनी जिम्मेदारियाँ समझते हैं और मिलकर एकजुट होकर लक्ष्य की ओर कार्य करते हैं।
समापन (Adjourning):
जब समूह का निर्धारित कार्य पूरा हो जाता है, तो उसे भंग कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से अस्थायी समूहों, जैसे आयोजन समितियों, के लिए लागू होती है।
नोट: सभी समूह इन अवस्थाओं को हमेशा एक क्रम में नहीं अपनाते। कभी-कभी अवस्थाएँ साथ-साथ या उलट-पलट कर हो सकती हैं।
समूह संरचना (Group Structure):
समूह जब विकसित होता है, तो उसमें एक संरचना बनती है जो सदस्यों के कार्य और व्यवहार को निर्धारित करती है।
समूह संरचना के चार मुख्य घटक:
भूमिकाएँ (Roles):
समाज प्रत्येक व्यक्ति से कुछ विशेष भूमिकाएँ निभाने की अपेक्षा करता है। उदाहरण के लिए, एक पुत्र या पुत्री से जिम्मेदार होने और बड़ों का आदर करने की अपेक्षा की जाती है।
मानक या प्रतिमान (Norms):
ये समूह के "अनकहे नियम" होते हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि समूह में कौन-सा व्यवहार स्वीकार्य है और कौन-सा नहीं।
हैसियत या प्रतिष्ठा (Status):
समूह में स्थिति का अर्थ है सदस्य की सापेक्ष सामाजिक या कार्यात्मक स्थिति, जो या तो जन्म से (प्रदत्त) या मेहनत से (उपार्जित) प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, टीम का कप्तान विशेष सम्मान और निर्णय लेने की शक्ति रखता है।
अंतः क्रिया (Interaction):
समूह में सदस्य एक-दूसरे से संवाद और सहयोग करते हैं, और यही अंतःक्रिया समूह की संरचना को मजबूत और सक्रिय बनाए रखती है।
संसक्तता (cohesiveness) समूह सदस्यों के बीच
संसक्तता (cohesiveness) समूह के भीतर एकता, जुड़ाव और आपसी आकर्षण को दर्शाती है। जब समूह अधिक संसक्त होता है, तो सदस्य एकजुट होकर सोचते और काम करते हैं, और समूह में बने रहने की इच्छा भी प्रबल होती है। यह भावना दल-निष्ठा या 'हम भावना' को दिखाती है, जिससे ऐसे समूह को छोड़ना कठिन हो जाता है। हालांकि, कभी-कभी अत्यधिक संसक्तता नुकसानदायक भी हो सकती है, क्योंकि इससे समूहचिंतन (groupthink) जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जहाँ सदस्य आलोचनात्मक सोच की बजाय समूह की एकरूपता बनाए रखने को प्राथमिकता देने लगते हैं।
समूह के प्रकार
समूह आकार, समय अवधि और संगठन के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। कुछ समूह बड़े (जैसे देश), कुछ छोटे (जैसे परिवार) होते हैं। कुछ अस्थायी (जैसे समिति) और कुछ स्थायी (जैसे धार्मिक समूह) होते हैं। कुछ समूह औपचारिक रूप से संगठित होते हैं (जैसे सेना), जबकि कुछ अनौपचारिक होते हैं (जैसे खेल दर्शक)। लोग एक साथ कई तरह के समूहों के सदस्य हो सकते हैं। मुख्य प्रकार हैं: प्राथमिक और द्वितीयक समूह, औपचारिक और अनौपचारिक समूह, तथा अंतः समूह और बाह्य समूह।
प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह
प्राथमिक और द्वितीयक समूहों में मुख्य अंतर यह है कि प्राथमिक समूह व्यक्ति को जन्म से मिलते हैं, जैसे परिवार, जाति और धर्म, जबकि द्वितीयक समूह व्यक्ति अपनी इच्छा से चुनता है, जैसे राजनीतिक दल। प्राथमिक समूह में आमने-सामने की घनिष्ठ और भावनात्मक बातचीत होती है, और ये व्यक्ति के मूल्य, आदर्श और प्रारंभिक विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। वहीं द्वितीयक समूहों में संबंध औपचारिक, कम व्यक्तिगत और कम बार होने वाले होते हैं। प्राथमिक समूह की सदस्यता को छोड़ना मुश्किल होता है, जबकि द्वितीयक समूह में आना-जाना आसान होता है।
औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह
औपचारिक और अनौपचारिक समूहों में अंतर उनके गठन और संरचना के आधार पर होता है। औपचारिक समूह, जैसे कार्यालय या विश्वविद्यालय, तय नियमों और विधियों के अनुसार बनाए जाते हैं, जहाँ प्रत्येक सदस्य की भूमिका और कार्य स्पष्ट रूप से निर्धारित होते हैं। इन समूहों में व्यवस्था बनाए रखने के लिए मानकों का एक समुच्चय होता है। इसके विपरीत, अनौपचारिक समूह नियमों पर आधारित नहीं होते और इनमें सदस्यता स्वाभाविक होती है। इन समूहों में सदस्यों के बीच घनिष्ठ, व्यक्तिगत और भावनात्मक संबंध होते हैं, जैसे दोस्तों का समूह।
अंतः समूह एवं बाह्य समूह
व्यक्ति जिस समूह से जुड़ा होता है, उसे अंतः समूह (in-group) और जिनसे वह जुड़ा नहीं होता, उन्हें बाह्य समूह (out-group) कहा जाता है। अंतः समूह के लिए हम 'हमलोग' शब्द का प्रयोग करते हैं और बाह्य समूह के लिए 'वे', जिससे यह पता चलता है कि हम किसे अपना मानते हैं और किसे अलग। आमतौर पर लोग अपने समूह को बेहतर और समान मानते हैं, जबकि बाह्य समूह को अलग और कम अनुकूल नजरिए से देखते हैं। यह सोच हमारे सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करती है। हालांकि यह समझना जरूरी है कि ये वर्गीकरण हमारे द्वारा बनाए गए हैं, वे वास्तविक नहीं होते। भारत जैसी संस्कृति में विविधता को सम्मान दिया जाता है और हमारी कला, संगीत और जीवनशैली में यह सामासिकता साफ दिखाई देती है।
व्यक्ति के व्यवहार पर समूह प्रभाव
हमने यह देखा कि समूह शक्तिशाली होते हैं क्योंकि ये व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। इस प्रभाव की प्रकृति कैसी होती है? हमारे निष्पादन पर दूसरों की उपस्थिति का क्या प्रभाव पड़ता है? हम लोग दो स्थितियों की परिचर्चा करेंगे (1) दूसरों की उपस्थिति में एक व्यक्ति का अकेले किसी कार्य पर निष्पादन करना (सामाजिक सुकरीकरण) (social facilitation) तथा (2) एक बड़े समूह के अंग के रूप में दूसरे व्यक्तियों के साथ एक व्यक्ति का किसी कार्य पर निष्पादन करना (सामाजिक स्वैराचार) (social loafing)
सामाजिक स्वैराचार
1. सामाजिक सुक्रियकरण (Social Facilitation):
जब हमारे आसपास दूसरे लोग होते हैं, तो हम उन कार्यों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं जिनमें हम पहले से ही दक्ष होते हैं। यह दूसरों की उपस्थिति से उत्पन्न भावनात्मक जागरूकता (भाव-प्रबोधन) के कारण होता है। यदि हमें लगता है कि कोई हमारे कार्य का मूल्यांकन कर रहा है, तो हमारा प्रदर्शन और भी बेहतर हो जाता है।
2. सामाजिक स्वैराचार (Social Loafing):
यह उस स्थिति को दर्शाता है जब व्यक्ति समूह में काम करते समय कम मेहनत करता है बनिस्बत अकेले काम करते समय।
उदाहरण:
रस्साकशी जैसे खेल में यह समझना मुश्किल होता है कि समूह में कौन कितना प्रयास कर रहा है। इस कारण कुछ लोग कम मेहनत करते हैं और दूसरों के प्रयास का फायदा उठाकर पीछे छिप जाते हैं।
Latane और साथियों का प्रयोग (तालियाँ और वाहवाही):
जब छात्रों को अलग-अलग समूहों में ताली बजाने या चिल्लाने को कहा गया, तो पाया गया कि समूह का कुल शोर तो बढ़ा, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तिगत योगदान घट गया। इसका मतलब यह है कि जैसे-जैसे समूह का आकार बढ़ता है, व्यक्ति का प्रयास कम होता जाता है।
सामाजिक स्वैराचार क्यों होता है?
व्यक्ति के समूह में कम प्रयास करने के मुख्य कारण ये हैं:
उत्तरदायित्व की कमी – व्यक्ति को नहीं लगता कि वह जिम्मेदार है।
व्यक्तिगत मूल्यांकन की अनुपस्थिति – जब कोई देख नहीं रहा होता, तो प्रयास कम हो जाता है।
प्रतिस्पर्धा का अभाव – एक समूह की तुलना दूसरे से नहीं होती, जिससे प्रेरणा घटती है।
समन्वय की कमी – टीम में सही तालमेल नहीं होता।
समूह की पहचान की कमी – जब लोग समूह से जुड़ा महसूस नहीं करते, तो उनका योगदान घट जाता है।
सामाजिक स्वैराचार को कम करने के उपाय:
व्यक्ति के प्रयास को बढ़ाने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं। हर सदस्य का प्रयास पहचानने योग्य बनाया जाए, जैसे नाम लेकर काम की समीक्षा करना। सदस्यों से वचन लेने या लक्ष्य तय करने से उनकी जवाबदेही बढ़ती है। कार्य का महत्त्व समझाना जरूरी है ताकि लोग उसे गंभीरता से लें। यह बताना कि “आपका योगदान ही फर्क ला सकता है” व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी को बढ़ाता है। साथ ही, समूह की एकता और आपसी लगाव को मजबूत करने से सदस्य अधिक ईमानदारी से प्रयास करते हैं।
समूह ध्रुवीकरण
महत्वपूर्ण निर्णय अक्सर समूहों द्वारा लिए जाते हैं, लेकिन समूह निर्णयों में कभी-कभी समूहचिंतन और समूह ध्रुवीकरण (Group Polarization) जैसी प्रवृत्तियाँ भी देखी जाती हैं। समूह ध्रुवीकरण तब होता है जब समूह में विचार-विमर्श के बाद कोई राय पहले से भी ज्यादा मजबूत या चरम हो जाती है। जैसे, यदि किसी कर्मचारी को दंड देने का निर्णय लेना हो, तो समूह बातचीत के बाद उसे नौकरी से निकालने जैसे कठोर फैसले तक पहुँच सकता है। यह इसलिए होता है क्योंकि समान विचार वाले लोगों से बातचीत में नए तर्क मिलते हैं, विचारों को सामाजिक मान्यता महसूस होती है, और व्यक्ति समूह के साथ तादात्म्य स्थापित करने लगता है। यह प्रवृत्ति कभी-कभी खतरनाक निर्णयों को जन्म दे सकती है।