अभिवृत्ति एवं सामाजिक संज्ञान Notes in Hindi Class 12 Psychology Chapter-6 Book-1
0Team Eklavyaजुलाई 30, 2025
परिचय
सामाजिक मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जो यह समझने का प्रयास करती है कि किसी व्यक्ति का व्यवहार उसके आसपास के लोगों और सामाजिक वातावरण से कैसे प्रभावित होता है। हम सभी अलग-अलग विषयों या लोगों के प्रति अपनी सोच और दृष्टिकोण (अभिवृत्ति) बनाते हैं। हालांकि ये व्यवहार बाहर से सामान्य लग सकते हैं, लेकिन इनके पीछे की मानसिक प्रक्रियाएँ काफी जटिल होती हैं। इस अध्याय में हम अभिवृत्ति से जुड़े बुनियादी विचारों को जानेंगे।
सामाजिक व्यवहार की व्याख्या करना
सामाजिक व्यवहार मानव जीवन का जरूरी हिस्सा है, जो सिर्फ साथ रहने तक सीमित नहीं है। सामाजिक मनोविज्ञान उन सभी व्यवहारों का अध्ययन करता है जो दूसरों की मौजूदगी (वास्तविक या कल्पित) में होते हैं। समाज मनोवैज्ञानिक यह समझने की कोशिश करते हैं कि लोग कैसे दृष्टिकोण (attitude) बनाते हैं और दूसरों के व्यवहार को कैसे समझते हैं। सामाजिक संदर्भ में व्यवहार को समझने के लिए हमें सामाजिक सोच और व्यवहार दोनों का अध्ययन करना होता है। यह जानने के लिए कि लोग खुद और दूसरों को कैसे देखते हैं, केवल सामान्य समझ काफी नहीं, बल्कि गहराई से सोचने की जरूरत होती है।
अभिवृत्ति की प्रकृति एवं घटक
1. 'मत' बनाम 'अभिवृत्ति':
हम अक्सर कहते हैं—"मेरी राय में..." या "मुझे ऐसा लगता है..." ये केवल मत (Opinion) होते हैं। लेकिन जब कोई मत हमारे लिए भावनात्मक रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाता है और उसमें सोच (Cognition), भावना (Emotion) और क्रिया की प्रवृत्ति (Action tendency) जुड़ जाती है, तब वह अभिवृत्ति (Attitude) बन जाता है।
2. अभिवृत्ति की परिभाषा:
अभिवृत्ति (Attitude) मन की एक ऐसी अवस्था है जिसमें किसी विषय (अभिवृत्ति-विषय) के प्रति संगठित विचारों का समूह होता है। इसमें मूल्यांकन का तत्व होता है, जो सकारात्मक, नकारात्मक या तटस्थ हो सकता है।
3. अभिवृत्ति के 3 प्रमुख घटक – A-B-C मॉडल (सं-भा-व्य):
दृष्टिकोण (Attitude) के तीन मुख्य घटक होते हैं: (1) भावात्मक (Affective) – यह किसी विषय के प्रति हमारी भावना को दर्शाता है, जैसे हमें वह अच्छा लगता है या नहीं; (2) व्यवहारपरक (Behavioural) – यह बताता है कि हम उस विषय को लेकर क्या करने की प्रवृत्ति रखते हैं; (3) संज्ञानात्मक (Cognitive) – इसमें उस विषय से जुड़ी हमारी सोच और मान्यताएँ शामिल होती हैं। ये तीनों मिलकर हमारे दृष्टिकोण को बनाते हैं।
अभिवृत्ति = विचार + भावना + क्रिया की प्रवृत्ति
4. विश्वास (Beliefs), मूल्य (Values) और अभिवृत्ति में अंतर:
विश्वास, मूल्य और अभिवृत्ति –ये तीनों हमारे सामाजिक विचारों के प्रमुख तत्व हैं:
विश्वास (Belief): यह तथ्यों या धारणाओं पर आधारित सोच होती है, जैसे – "ईश्वर है", "प्रजातंत्र अच्छा है"।
मूल्य (Value): यह इस बात से जुड़ा होता है कि "क्या होना चाहिए", जैसे – "ईमानदार होना चाहिए", "मेहनत ज़रूरी है"।
अभिवृत्ति (Attitude): यह किसी विषय के प्रति हमारी सोच, भावना और प्रतिक्रिया का मेल होता है, जैसे – "मैं भ्रष्टाचार से नफरत करता हूँ"।
ये तीनों मिलकर हमारे व्यवहार और निर्णयों को प्रभावित करते हैं।
5. अभिवृत्ति के उद्देश्य:
अभिवृत्ति निर्णय लेने में सहायता करती है और यह निर्धारित करती है कि किसी स्थिति में हमें कैसे व्यवहार करना है। यह मानसिक ब्लूप्रिंट की तरह कार्य करती है। उदाहरण: विदेशियों के प्रति हमारी अभिवृत्ति यह तय करती है कि उनसे मिलने पर हमारा व्यवहार कैसा होगा।
6. अभिवृत्ति की चार विशेषताएँ:
अभिवृत्ति की विशेषताएँ हमारे विचारों और व्यवहार की गहराई को दर्शाती हैं:
कर्षण-शक्ति (Valence): यह दर्शाती है कि किसी विषय पर अभिवृत्ति सकारात्मक है या नकारात्मक, जैसे – “मैं योग पसंद करता हूँ” (सकारात्मक) या “मुझे झूठ पसंद नहीं” (नकारात्मक)।
चरम-सीमा (Extremeness): यह बताती है कि किसी विषय पर हमारी अभिवृत्ति हल्की है या तीव्र, जैसे – “थोड़ा पसंद है” बनाम “बहुत ज़्यादा पसंद है”।
सरलता / जटिलता (Simplicity / Complexity): अगर किसी विषय पर केवल एक राय है तो वह सरल, लेकिन अगर कई उप-अभिवृत्तियाँ हैं तो वह जटिल होती है।
केंद्रिकता (Centrality): यह दर्शाती है कि कोई अभिवृत्ति हमारे सोचने के ढंग में कितनी महत्वपूर्ण या केंद्रित है, जैसे –धार्मिक या राजनीतिक विचार।
इन विशेषताओं से यह समझने में मदद मिलती है कि कोई व्यक्ति किसी विषय पर कैसा और कितना मजबूत रुख रखता है।
उदाहरण –नाभिकीय शोध के प्रति अभिवृत्ति (5-बिंदु मापनी):
7. जटिल (Complex) अभिवृत्ति:
जब किसी विषय के प्रति कई दृष्टिकोण और पहलू होते हैं, तो उसे समग्र अभिवृत्ति (Holistic Attitude) कहा जाता है। उदाहरण: स्वास्थ्य के प्रति समग्र अभिवृत्ति में शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और खुशहाली सभी शामिल होते हैं।
8. केंद्रिकता (Centrality) – महत्त्वपूर्ण अभिवृत्तियाँ:
कुछ अभिवृत्तियाँ व्यक्ति की सोच का केंद्र होती हैं और वे अन्य सभी अभिवृत्तियों को प्रभावित करती हैं। उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति की "विश्व शांति" के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति है, तो वह "सैन्य खर्च" के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण विकसित कर सकता है।
अभिवृत्ति निर्माण एवं परिवर्तन
अभिवृत्ति निर्माण
अभिवृत्तियाँ हमारे अनुभवों और दूसरों के साथ अंतःक्रिया के माध्यम से बनती हैं। जैसे हम विचार और मान्यताएँ सीखते हैं, वैसे ही वस्तुओं, व्यक्तियों और विषयों के प्रति विशेष दृष्टिकोण भी विकसित करते हैं। हालांकि कुछ अभिवृत्तियों में आनुवंशिक प्रभाव हो सकता है, पर मुख्य रूप से ये अधिगम (learning) द्वारा बनती हैं। समाज मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अभिवृत्ति का निर्माण खास परिस्थितियों और अनुभवों के आधार पर होता है, जो हमारे संज्ञानात्मक तंत्र का हिस्सा बन जाता है।
अभिवृत्ति निर्माण की प्रक्रिया
अभिवृत्तियाँ विभिन्न अधिगम प्रक्रियाओं से बनती हैं। ये साहचर्य (जैसे किसी प्रिय शिक्षक के कारण विषय के प्रति रुचि), पुरस्कार या दंड (जैसे अच्छे स्वास्थ्य पर सम्मान पाकर योग के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण), और प्रतिरूपण (जैसे माता-पिता को देखकर बड़ों के प्रति श्रद्धा) के माध्यम से सीखी जाती हैं। साथ ही, संस्कृति और समूह मानकों से भी अभिवृत्तियाँ बनती हैं, जैसे पूजा स्थल पर भेंट देना एक सामाजिक रूप से स्वीकृत व्यवहार बन जाता है। आधुनिक समय में मीडिया और पुस्तकों से भी अभिवृत्तियाँ बनती हैं, जैसे प्रेरणादायक जीवनी पढ़कर मेहनत की सकारात्मक सोच विकसित होना।
अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक
निम्नलिखित कारक ऊपर वर्णित प्रक्रियाओं के द्वारा अभिवृत्तियों के अधिगम के लिए एक संदर्भ प्रदान करते हैं।
1. परिवार और विद्यालय का प्रभाव
बचपन में अभिवृत्तियाँ माता-पिता और परिवार से बनती हैं।
बाद में स्कूल का माहौल भी सोच और व्यवहार को आकार देता है।
ये प्रभाव साहचर्य, पुरस्कार-दंड, और अनुकरण (role model) के जरिए होते हैं।
2. संदर्भ समूह (Reference Group)
वे समूह जिनसे हम प्रभावित होते हैं (जैसे –दोस्त, धार्मिक, राजनीतिक समूह)।
ये समूह हमें सोचने और व्यवहार करने के नियम सिखाते हैं।
किशोरावस्था में यह प्रभाव सबसे ज़्यादा होता है।
3. व्यक्तिगत अनुभव
कुछ अभिवृत्तियाँ सीधे अपने जीवन के अनुभवों से बनती हैं।
उदाहरण: सेना का चालक जिसने मौत का अनुभव किया और गाँव में लौटकर समाज सेवा को जीवन का उद्देश्य बना लिया।
4. संचार माध्यम (Media)
टीवी, इंटरनेट, किताबें आदि लोगों की सोच और नजरिए को प्रभावित करते हैं।
ये माध्यम अच्छे या बुरे दोनों तरह के प्रभाव डाल सकते हैं।
इन्हें सामाजिक समरसता बढ़ाने या उपभोक्तावाद फैलाने –दोनों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
अभिवृत्ति परिवर्तन
अभिवृत्तियाँ समय के साथ बदल सकती हैं, विशेषकर वे जो अभी निर्माण की प्रक्रिया में हैं और व्यक्ति के मूल्यों का स्थायी हिस्सा नहीं बनी हैं। ऐसी अभिवृत्तियाँ जो गहराई से स्थापित नहीं हैं, अधिक परिवर्तनीय होती हैं। सामुदायिक नेता, राजनेता, विज्ञापनकर्ता आदि लोगों की अभिवृत्तियाँ बदलने में रुचि रखते हैं। इसलिए यह जानना ज़रूरी है कि किन परिस्थितियों में और कैसे अभिवृत्तियाँ बदलती हैं, तभी हम प्रभावी ढंग से परिवर्तन ला सकते हैं।
अभिवृत्ति परिवर्तन की प्रक्रिया
अभिवृत्ति परिवर्तन को समझने के लिए तीन प्रमुख संप्रत्ययों पर ध्यान दिया जाता है। पहला है फ्रिट्ज हाइडर का संतुलन सिद्धांत (P-O-X मॉडल), जिसमें यदि किसी व्यक्ति (P), दूसरे व्यक्ति (O) और विषयवस्तु (X) के बीच तीनों अभिवृत्तियाँ संतुलित नहीं होतीं (जैसे दो सकारात्मक और एक नकारात्मक), तो असंतुलन की स्थिति बनती है और व्यक्ति इनमें से किसी एक अभिवृत्ति को बदलकर संतुलन प्राप्त करता है। उदाहरण के लिए, यदि पी दहेज को पसंद करता है, ओ नापसंद करता है, और ओ-पी के बीच संबंध सकारात्मक है, तो यह असंतुलन होगा। इसे संतुलित करने के लिए किसी एक संबंध में परिवर्तन करना पड़ेगा।
दूसरा सिद्धांत लिऑन फेस्टिंगर का संज्ञानात्मक विसंवाद (Cognitive Dissonance) है, जिसमें यदि किसी व्यक्ति की सोच या मान्यताएँ आपस में विरोधी होती हैं (जैसे – "पान मसाला कैंसर पैदा करता है" और फिर भी वह उसे खाता है), तो वह मानसिक असुविधा अनुभव करता है और इन विसंवादों को कम करने के लिए अपनी सोच या व्यवहार में परिवर्तन करता है।
संज्ञान 2
अभिवृत्ति परिवर्तन को समझाने के लिए तीन प्रमुख संप्रत्यय हैं। पहला, हाइडर का संतुलन सिद्धांत (P-O-X मॉडल) कहता है कि यदि व्यक्ति, दूसरा व्यक्ति और विषयवस्तु के बीच संबंधों में असंतुलन होता है (जैसे दो सकारात्मक और एक नकारात्मक), तो व्यक्ति किसी एक अभिवृत्ति को बदलकर संतुलन लाने की कोशिश करता है। दूसरा, फेस्टिंगर का संज्ञानात्मक विसंवाद सिद्धांत बताता है कि जब किसी की सोच या व्यवहार में विरोधाभास होता है (जैसे – "पान मसाला कैंसर करता है" लेकिन "मैं पान मसाला खाता हूँ"), तो वह मानसिक असुविधा महसूस करता है और इसे दूर करने के लिए सोच या व्यवहार में बदलाव करता है। तीसरा, एस.एम. मोहसिन का द्विस्तरीय सिद्धांत कहता है कि अभिवृत्ति परिवर्तन दो चरणों में होता है: पहले व्यक्ति स्त्रोत (जैसे कोई सेलिब्रिटी) से तादात्म्य स्थापित करता है, और फिर उस स्त्रोत के व्यवहार को देखकर अपनी अभिवृत्ति भी बदल लेता है, जैसे कोई प्रशंसक अपने पसंदीदा खिलाड़ी को देखकर हानिकारक पेय छोड़ दे।
अभिवृत्ति परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारक
क्या अभिवृत्ति बदली जा सकती है?
हाँ, लेकिन यह निर्भर करता है कई कारकों पर।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कुछ अभिवृत्तियाँ बदलना आसान होता है और कुछ काफी कठिन।
1. पहले से विद्यमान अभिवृत्ति की विशेषताएँ
अभिवृत्तियों को बदलने की कठिनाई विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है:
कर्षण-शक्ति (Valence): सकारात्मक अभिवृत्तियाँ नकारात्मक की तुलना में अधिक आसानी से बदलती हैं।
चरम सीमा (Extremity): अत्यधिक तीव्र या कट्टर अभिवृत्तियाँ बदलना कठिन होता है।
सरलता या जटिलता (Simplicity vs Complexity): सरल अभिवृत्तियाँ जटिल के मुकाबले आसानी से परिवर्तित हो जाती हैं।
केंद्रिकता (Centrality): जो अभिवृत्तियाँ व्यक्ति की सोच और मूल्यों के केंद्र में होती हैं, उन्हें बदलना सबसे कठिन होता है।
2. अभिवृत्ति परिवर्तन की दिशा
अभिवृत्ति परिवर्तन दो प्रकार के हो सकते हैं: संगत परिवर्तन (Congruent Change), जिसमें पहले से मौजूद अभिवृत्ति और मजबूत हो जाती है, जैसे महिला सशक्तीकरण के समर्थन में और दृढ़ता आना; और विसंगत परिवर्तन (Incongruent Change), जिसमें अभिवृत्ति विपरीत दिशा में बदल जाती है, जैसे पहले समर्थन करना लेकिन बाद में उसके प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण विकसित कर लेना।
3. सूचना की दिशा का प्रभाव
सकारात्मक जानकारी व्यक्ति की सकारात्मक अभिवृत्ति को बढ़ावा देती है, जैसे दाँत साफ करने के फायदों वाला पोस्टर लोगों को प्रेरित कर सकता है। लेकिन यदि जानकारी अत्यधिक डरावनी या भय पैदा करने वाली हो, तो उसका उलटा असर हो सकता है—जैसे डरावने चित्रों को देखकर लोग पूरे संदेश से ही दूरी बना सकते हैं।
4. स्रोत की विशेषताएँ
अभिवृत्ति परिवर्तन में संदेश देने वाले व्यक्ति की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। यदि व्यक्ति विश्वसनीय (Credible) हो, जैसे कोई जानकार इंजीनियर लैपटॉप की सलाह दे, तो उसका असर ज़्यादा होता है। वहीं, कभी-कभी आकर्षकता (Attractiveness) भी प्रभाव डालती है—जैसे किसी कार के विज्ञापन में फिल्म स्टार होना, जिससे लोग प्रभावित हो जाते हैं।
5. संदेश की विशेषताएँ
अभिवृत्ति परिवर्तन में संदेश की प्रकृति महत्त्वपूर्ण होती है। जानकारी की पर्याप्तता ज़रूरी है—न बहुत अधिक, न बहुत कम। संदेश में तर्कात्मक अपील हो सकती है, जैसे: कुकर से गैस की बचत होती है; या सांवेगिक अपील, जैसे: कुकर से पोषण सुरक्षित रहता है। साथ ही, प्रेरणा भी दी जाती है, जैसे: दूध पीने से सेहत और सुंदरता दोनों मिलती है।
6. माध्यम (Mode) की भूमिका
अभिवृत्ति परिवर्तन में संचार का माध्यम भी प्रभाव डालता है। आमने-सामने की बातचीत (Face to Face) सबसे असरदार होती है क्योंकि यह व्यक्तिगत जुड़ाव और गहराई प्रदान करती है। जबकि पत्र, बुकलेट या रेडियो का असर अपेक्षाकृत कम होता है। टीवी और इंटरनेट प्रभावी माध्यम हैं, लेकिन वे आमने-सामने जैसी गहराई और तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं दे पाते।
7. लक्ष्य (Target) की विशेषताएँ
अभिवृत्ति परिवर्तन व्यक्ति की विशेषताओं पर भी निर्भर करता है। अनुनयता (Persuasibility) वाले यानी खुले और लचीले लोग जल्दी प्रभावित हो जाते हैं, जबकि पूर्वाग्रह (Prejudice) रखने वाले, जिनकी सोच पहले से ही मज़बूत होती है, उन्हें बदलना कठिन होता है। कम आत्म-सम्मान वाले लोग दूसरों के प्रभाव में जल्दी आ सकते हैं। वहीं, बुद्धिमान व्यक्ति आमतौर पर जल्दी नहीं बदलते, लेकिन वे विचार करके, तर्क के आधार पर अपनी अभिवृत्तियाँ बदल सकते हैं।
अभिवृत्ति-व्यवहार संबंध
हम अक्सर यह मानते हैं कि व्यक्ति का व्यवहार उसकी अभिवृत्ति (attitude) के अनुसार होगा, पर ऐसा हमेशा नहीं होता। जब अभिवृत्ति प्रबल हो, व्यक्ति उसके प्रति सजग हो और उस पर कोई बाहरी दबाव न हो, तभी व्यवहार और अभिवृत्ति में संगति देखने को मिलती है। उदाहरण के रूप में, समाजशास्त्री रिचर्ड लॉ पियरे ने पाया कि अमेरिकी होटल प्रबंधकों ने प्रश्नावली में चीनियों को ठहराने से मना किया, लेकिन व्यवहार में उन्होंने चीनी दंपति को सेवा दी, जिससे अभिवृत्ति और व्यवहार के बीच विरोध दिखाई दिया। वहीं कभी-कभी व्यवहार ही अभिवृत्ति को प्रभावित करता है। फेस्टिंगर और कार्लस्मिथ के प्रयोग में जिन विद्यार्थियों को सिर्फ 1 डॉलर मिला था, उन्होंने बाद में यह मान लिया कि प्रयोग वास्तव में रोचक था, ताकि उनके झूठे व्यवहार को सही ठहराया जा सके। इस प्रकार, व्यवहार और अभिवृत्ति का संबंध जटिल होता है और वे हमेशा एक-दूसरे से मेल नहीं खाते।
पूर्वाग्रह एवं भेदभाव
पूर्वाग्रह किसी विशेष समूह के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति का उदाहरण है, जो अक्सर रूढ़धारणाओं (stereotypes) पर आधारित होता है। ये रूढ़धारणाएँ समूह के सभी सदस्यों को एक जैसे नकारात्मक गुणों से जोड़ती हैं और भावात्मक रूप से नापसंद या घृणा उत्पन्न करती हैं। यह पूर्वाग्रह व्यवहार में भेदभाव के रूप में प्रकट हो सकता है, जैसे किसी समूह के प्रति कम सकारात्मक व्यवहार करना। इतिहास में जाति, धर्म, नस्ल और लिंग पर आधारित भेदभाव के अनेक उदाहरण हैं, जैसे नाजियों द्वारा यहूदियों का संहार। पूर्वाग्रह बिना भेदभाव के या भेदभाव बिना पूर्वाग्रह के भी मौजूद हो सकता है, लेकिन दोनों मिलकर समाज में तनाव और संघर्ष बढ़ाते हैं। इसके स्रोतों में अधिगम (सीखना), सामाजिक अनन्यता, बलि का बकरा बनाना, सत्य का भ्रम और स्वयं-साधक भविष्योक्ति शामिल हैं। पूर्वाग्रहों को बदलना कठिन होता है क्योंकि वे गहरे भावात्मक और संज्ञानात्मक स्तर पर जमे होते हैं, हालांकि कानून के माध्यम से भेदभाव को नियंत्रित किया जा सकता है।
पूर्वाग्रह नियंत्रण की युक्तियाँ
पूर्वाग्रह को नियंत्रित करने का पहला कदम है उसके कारणों को समझना। इसके लिए जरूरी है कि पूर्वाग्रहों के अधिगम (सीखने) के अवसरों को कम किया जाए, नकारात्मक अभिवृत्तियों को बदला जाए, संकुचित समूह भावना को कमजोर किया जाए, और पूर्वाग्रह के शिकार लोगों में आत्म-हीनता या नकारात्मक भविष्यवाणी जैसी सोच को रोका जाए। यह सब शिक्षा और सही जानकारी के माध्यम से किया जा सकता है, जिससे गलत रूढ़धारणाएँ दूर हों। साथ ही, अलग-अलग समूहों के बीच सहयोगात्मक माहौल में सीधा संवाद और संपर्क बढ़ाना चाहिए, ताकि वे एक-दूसरे को बेहतर समझ सकें। यह तभी सफल होगा जब दोनों समूह समान शक्ति और प्रतिष्ठा रखते हों और एक-दूसरे को केवल समूह के सदस्य के रूप में नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रूप में देखें। इससे सामाजिक विभाजन कम होता है और समझदारी बढ़ती है।