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जीवन की चुनौतियों का सामना Notes in Hindi Class 12 Psychology Chapter-3 Book-1

जीवन की चुनौतियों का सामना Notes in Hindi Class 12 Psychology Chapter-3 Book-1


परिचय

राज अपनी अंतिम परीक्षा की तैयारी कर रहा है, लेकिन तनाव के कारण वह ठीक से सो नहीं पाता और सुबह भारी मन से परीक्षा देने जाता है। प्रश्नपत्र देखते ही वह घबरा जाता है और सब कुछ भूल जाता है। ऐसा अनुभव कई छात्रों को होता है। ज़िंदगी में चुनौतियाँ सबको मिलती हैंजैसे किसी बच्चे का अनाथ होना, किसी महिला का पति खो देना, या कॉल सेंटर में काम करने वाले युवाओं की थकान। फर्क इस बात से पड़ता है कि हम इन स्थितियों को कैसे देखते हैंदबाव के रूप में या चुनौती के रूप में। कुछ लोग इनसे सीखकर आगे बढ़ते हैं, तो कुछ दबाव में टूट जाते हैं। यह अध्याय हमें सिखाएगा कि कैसे जीवन की स्थितियाँ दबाव या चुनौती बन सकती हैं और लोग इनसे कैसे प्रतिक्रिया करते हैं।

दबाव की प्रकृति, प्रकार एवं स्त्रोत

सोमवार की व्यस्त सुबह सड़क पार करते समय जो क्षणिक तनाव महसूस होता है, वह हमें सतर्क और जागरूक बनाता है जिससे हम सुरक्षित निर्णय ले पाते हैं। चुनौतियाँ और कठिन परिस्थितियाँ अक्सर दबाव उत्पन्न करती हैं, लेकिन यदि इसका सही प्रबंधन किया जाए तो यह हमारे प्रदर्शन को बेहतर बना सकती हैं। ठीक विद्युत की तरह, जो ऊर्जा देती है लेकिन अत्यधिक मात्रा में नुकसान भी कर सकती है, वैसे ही अधिक दबाव हमारे प्रदर्शन को बिगाड़ सकता है, जबकि कम दबाव उदासीनता और कम प्रेरणा का कारण बन सकता है। ऐसा तनाव जो सकारात्मक ऊर्जा और प्रदर्शन में मदद करता है, उसे 'यूस्ट्रेस' (eustress) कहते हैं, लेकिन यह आसानी से नकारात्मक 'डिस्ट्रेस' (distress) में बदल सकता है। लंबे समय तक बना तनाव शरीर को नुकसान पहुँचा सकता है। इस प्रकार, दबाव को उस जैविक प्रतिक्रिया के रूप में समझा जाता है जो किसी उद्दीपक घटना के कारण होती है और व्यक्ति की साम्यावस्था को चुनौती देती है।

दबाव की प्रकृति

1. दबाव (Stress) का अर्थ और उत्पत्ति:

"Stress" शब्द लैटिन शब्दों ‘strictusऔर ‘stringereसे बना है, जिसका अर्थ है "कसना" या "तंग करना"। यह उस शारीरिक अवस्था को दर्शाता है जिसमें व्यक्ति मांसपेशियों और सांसों में कसाव महसूस करता है।

2. दबावकारक (Stressor):

तनाव उत्पन्न करने वाली घटनाओं को तनावकारक (Stressors) कहा जाता है। इनमें शोर, भीड़, रिश्तों में परेशानी, परीक्षा का दबाव और नौकरी से जुड़ा तनाव जैसे उदाहरण शामिल हैं।

3. दबाव और तनाव में अंतर:

Stressor वह कारण होता है जो तनाव उत्पन्न करता है, जबकि Strain (तनाव) शरीर और मन की उस प्रतिक्रिया को कहते हैं जो उस कारण के प्रति दिखाई देती है।

4. हांस सेल्ये का दृष्टिकोण (Hans Selye):

दबाव को अक्सर “किसी भी माँग के प्रति शरीर की सामान्य प्रतिक्रिया” माना जाता है, लेकिन कई मनोवैज्ञानिक इससे सहमत नहीं हैं क्योंकि हर व्यक्ति की प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है और यह उसकी व्यक्तिगत समझ, अनुभव और स्थिति पर निर्भर करती है।

5. दबाव एक सतत प्रक्रिया है:

तनाव केवल व्यक्ति के भीतर या केवल पर्यावरण में नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति और पर्यावरण के बीच की एक गत्यात्मक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति किसी चुनौती या माँग का सामना करता है और उसके अनुसार प्रतिक्रिया देता है

6. लेजारस का संज्ञानात्मक दृष्टिकोण (Lazarus’ Cognitive Appraisal Model):

1. प्राथमिक मूल्यांकन (Primary Appraisal):

कोई घटना हमें कैसी लगेगीसकारात्मक, तटस्थ या नकारात्मकयह हमारे मूल्यांकन पर निर्भर करता है। नकारात्मक मूल्यांकन तीन प्रकार के हो सकते हैं: हानि (जो नुकसान हो चुका है), खतरा (जो भविष्य में हो सकता है), और चुनौती (जिसमें जोखिम के साथ लाभ की संभावना भी होती है)।

2. द्वितीयक मूल्यांकन (Secondary Appraisal):

तनाव से निपटने के लिए हम यह आकलन करते हैं कि क्या हमारे पास पर्याप्त संसाधन और क्षमताएँ हैं। ये संसाधन मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक हो सकते हैं, जो हमें दबाव की स्थिति में समाधान खोजने में मदद करते हैं।

7. दबाव की अनुक्रियाएँ (Responses to Stress):

8. दबाव के निर्धारक (Determinants of Stress Experience):

तनाव के आयामों में उसकी तीव्रता (कितना गंभीर है), अवधि (क्षणिक या दीर्घकालिक), जटिलता (समस्या कितनी उलझी हुई है) और भविष्यकथनीयता (क्या वह पूर्वानुमेय है या अचानक आया) शामिल होते हैंये सभी आयाम तनाव की प्रकृति और व्यक्ति पर उसके प्रभाव को निर्धारित करते हैं

9. दबाव सहन करने की क्षमता को प्रभावित करने वाले कारक:

दबाव के संकेत और लक्षण

हर व्यक्ति दबाव की स्थिति में अलग-अलग ढंग से प्रतिक्रिया करता है, जो उसके व्यक्तित्व, पालन-पोषण और जीवन अनुभवों पर निर्भर करता है। दबाव के प्रति चेतावनी संकेत और उनकी तीव्रता भी व्यक्ति-विशेष में अलग होती है। कुछ लोग अपने शारीरिक, संवेगात्मक और व्यवहारात्मक लक्षणों को पहचानकर दबाव की गंभीरता का अंदाजा लगा लेते हैं। ये लक्षण यदि समय रहते न पहचाने जाएँ और उनका समाधान न किया जाए, तो वे गंभीर समस्याओं का कारण बन सकते हैं।

दबाव के प्रकार

चित्र 3.2 में तीन प्रमुख प्रकार के दबाव, अर्थात भौतिक एवं पर्यावरणी, मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक बताए गए हैं। यह समझना महत्वपूर्ण है कि दबाव के ये सभी प्रकार परस्पर संबद्ध हैं।

भौतिक एवं पर्यावरणी दबाव

भौतिक दबाव वे परिस्थितियाँ हैं जो हमारी शारीरिक स्थिति को प्रभावित करती हैं, जैसे अधिक परिश्रम, चोट, नींद या पौष्टिक भोजन की कमी। वहीं, पर्यावरणी दबाव हमारे आसपास की अपरिहार्य स्थितियाँ होती हैं जैसे वायु प्रदूषण, भीड़, शोर, अत्यधिक गर्मी या सर्दीइसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूकंप, बाढ़ और आग भी पर्यावरणी दबाव का कारण बनती हैं।

मनोवैज्ञानिक दबाव

मनोवैज्ञानिक दबाव वे आंतरिक तनाव हैं जिन्हें हम स्वयं उत्पन्न करते हैं। ये व्यक्ति-विशिष्ट होते हैं और चिंता, अवसाद या मानसिक संघर्ष जैसे रूपों में प्रकट होते हैं। इसके मुख्य स्रोत कुंठा, द्वंद्व, आंतरिक और सामाजिक दबाव होते हैंजब हमारी आवश्यकताएँ या लक्ष्य बाधित होते हैं, तो कुंठा उत्पन्न होती है। दो विरोधी इच्छाओं या मूल्यों के बीच उलझन से द्वंद्व होता है। "हर काम में श्रेष्ठ होना चाहिए" जैसी सोच आंतरिक दबाव पैदा करती है। वहीं, सामाजिक दबाव तब आता है जब दूसरों की अपेक्षाएँ या माँगें हमारे ऊपर बोझ बन जाती हैं, जिससे अंतर्वैयक्तिक टकराव भी हो सकता है।

सामाजिक दबाव

सामाजिक दबाव वे बाह्य दबाव होते हैं जो दूसरों के साथ हमारी अंतःक्रियाओं से उत्पन्न होते हैं। जैसे परिवार में किसी की मृत्यु, बीमारी, संबंधों में तनाव, या पड़ोसियों से टकराव। ये दबाव व्यक्ति-व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति जो शांत वातावरण पसंद करता है, उसके लिए पार्टी में जाना तनावपूर्ण हो सकता है, जबकि बहुत मिलनसार व्यक्ति के लिए अकेले घर पर रहना ही दबावपूर्ण अनुभव हो सकता है।

दबाव के स्त्रोत

उन घटनाओं तथा दशाओं का प्रसार बहुत विस्तृत है जो दबाव को उत्पन्न करती हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण जीवन में घटने वाली ये प्रमुख दबावपूर्ण घटनाएँ हैं, जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु या व्यक्तिगत चोट, खीझ उत्पन्न करने वाली दैनिक जीवन की परेशानियाँ, जो बहुत आवृत्ति के साथ घटित होती हैं तथा अभिघातज घटनाएँ जो हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं।

जीवन घटनाएँ

जैसे ही हमारा जीवन शुरू होता है, वैसे ही छोटे-बड़े, अचानक या धीरे-धीरे होने वाले परिवर्तन हमें प्रभावित करने लगते हैं। हालांकि हम रोजमर्रा के छोटे परिवर्तनों को संभालना सीख जाते हैं, लेकिन जीवन की बड़ी घटनाएँ अधिक दबावपूर्ण होती हैं क्योंकि ये हमारी नियमितता को तोड़ती हैं और जीवन में हलचल मचा देती हैं। यदि ऐसी घटनाएँ चाहे वे योजनाबद्ध हों (जैसे नया घर लेना) या अप्रत्याशित (जैसे किसी गहरे रिश्ते का टूटना) थोड़े समय में बार-बार घटित हों, तो व्यक्ति का तनाव बढ़ जाता है और वह दबाव के लक्षणों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।

परेशान करने वाली घटनाएँ

इस प्रकार के दबाव व्यक्तिगत होते हैं और हमारे दैनिक जीवन की सामान्य घटनाओं से उत्पन्न होते हैं। जैसेशोरगुल भरा माहौल, रोज़ का आवागमन, झगड़ालू पड़ोसी, बिजली-पानी की समस्याएँ, और ट्रैफिक जाम जैसी बातें। एक गृहिणी को भी दिनभर में कई अप्रत्याशित परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कुछ व्यवसायों में भी ऐसी कष्टप्रद स्थितियाँ बार-बार आती हैं। जब कोई व्यक्ति इन समस्याओं का अकेले सामना करता है, तो उनके नकारात्मक प्रभाव और बढ़ जाते हैं, क्योंकि बाहर के लोग इनकी जानकारी नहीं रखते। ऐसे व्यक्ति जितना अधिक इन दबावों को महसूस करता है, उतना ही अधिक उसका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।

अभिघातज घटनाएँ

इस प्रकार के दबावों में अग्निकांड, सड़क या रेल दुर्घटनाएँ, लूट, भूकंप, सुनामी जैसी गंभीर घटनाएँ शामिल होती हैं। इनका प्रभाव तुरंत नहीं बल्कि कुछ समय बाद उभरता है, और ये लंबे समय तक दुश्चिता, बुरे स्वप्न, अतीत की यादें या चिंताजनक विचारों के रूप में बने रह सकते हैंऐसे तीव्र अभिघात संबंधों में भी तनाव पैदा कर सकते हैं। जब ये प्रभाव महीनों तक जारी रहते हैं, तो इनसे उबरने के लिए विशेषज्ञ सहायता की आवश्यकता होती है।

मनोवैज्ञानिक प्रकार्य तथा स्वास्थ्य पर दबाव का प्रभाव

दबाव के प्रभाव चार प्रमुख प्रकार के होते हैं: संवेगात्मक, शरीरक्रियात्मक, संज्ञानात्मक और व्यवहारात्मकसंवेगात्मक प्रभावों में व्यक्ति अचानक मनःस्थिति में बदलाव महसूस करता है, चिड़चिड़ा और सनकी व्यवहार करता है, जिससे वह अपने परिवार और मित्रों से दूर हो जाता है। इससे एक दुश्चक्र शुरू हो जाता है, जिसमें आत्मविश्वास की कमी, दुश्चिंता, अवसाद, मानसिक तनाव और शारीरिक तनाव जैसे लक्षण उभरते हैं। यदि इनका समय रहते समाधान न किया जाए, तो ये गंभीर मानसिक समस्याओं का रूप ले सकते हैं।

शरीरक्रियात्मक प्रभाव जब शारीरिक या मनोवैज्ञानिक

जब दबाव मनुष्य के शरीर पर प्रभाव डालता है, तो एड्रिनलीन और कॉर्टिसोल जैसे हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है। ये हार्मोन हृदयगति, रक्तचाप, चयापचय और शारीरिक क्रियाओं में बदलाव लाते हैं। अल्पकालिक दबाव में ये प्रतिक्रियाएँ मददगार होती हैं, लेकिन लंबे समय तक यह शरीर को नुकसान पहुँचा सकती हैं। उदाहरणस्वरूप: एपिनेफ्रीन और नॉरएपिनेफ्रीन का स्राव, पाचन प्रक्रिया की मंदता, फेफड़ों की वायुमार्गों का फैलाव, हृदयगति में तेजी और रक्त-वाहिकाओं का संकुचनये सभी शरीरक्रियात्मक प्रभाव दबाव के कारण होते हैं।

संज्ञानात्मक प्रभाव

लगातार दबाव बने रहने पर व्यक्ति मानसिक अतिभार का शिकार हो सकता है, जिससे उसकी निर्णय लेने की क्षमता घटती है। इससे घर, काम या जीविका से जुड़े गलत निर्णय, असफलता, आर्थिक नुकसान या नौकरी छूटने तक के परिणाम हो सकते हैं। दबाव के संज्ञानात्मक प्रभावों में एकाग्रता में कमी और अल्पकालिक स्मृति का कमजोर होना शामिल है। व्यवहारात्मक रूप से, व्यक्ति कम पौष्टिक भोजन करने, कैफीन, सिगरेट, शराब या दवाओं का अधिक सेवन करने लगता है। ये आदतें व्यसन का रूप ले सकती हैं और समन्वय, ध्यान और स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। निद्रा में गड़बड़ी, अनुपस्थित रहना और कार्य क्षमता में गिरावट भी आम प्रभाव हैं।


दबाव तथा स्वास्थ्य

परीक्षा या निजी समस्याओं के समय कई लोग बीमार पड़ जाते हैं जैसे पेट दर्द, बुखार, थकावट आदि। यह इस बात को दर्शाता है कि दीर्घकालिक दबाव हमारे शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है। जब व्यक्ति निरंतर तनाव में होता है, तो वह अपनी देखभाल ठीक से नहीं कर पाता और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर हो जाती है। दीर्घकालिक दबाव से शारीरिक थकावट (कमजोरी, ऊर्जा की कमी), मानसिक थकावट (चिड़चिड़ापन, दुश्चिंता, निराशा) और भावनात्मक थकावट होती है। इन सभी को मिलाकर बर्नआउट कहा जाता है। शोध बताते हैं कि तनाव से प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर पड़ता है, जिससे बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है। हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, अल्सर, दमा, एलर्जी और सिरदर्द जैसी कई समस्याओं में तनाव की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। चिकित्सा मामलों में लगभग 60% लोग तनाव-जनित लक्षणों के कारण ही डॉक्टर के पास जाते हैं।


सामान्य अनुकूलन संलक्षण

जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक दबाव में रहता है, तो शरीर में कई जैविक और मानसिक परिवर्तन होते हैं। हांस सेल्ये ने इस पर शोध कर सामान्य अनुकूलन संलक्षण (General Adaptation Syndrome - GAS) नामक प्रतिरूप प्रस्तुत किया, जिसमें शरीर की प्रतिक्रिया को तीन चरणों में बाँटा गया:

  • सचेत प्रतिक्रिया चरण: जैसे ही कोई हानिकारक दबाव उत्पन्न होता है, शरीर अलर्ट हो जाता है और एड्रिनल ग्रंथि से हार्मोन निकलते हैं। इससे व्यक्ति संघर्ष या पलायन के लिए तैयार होता है।
  • प्रतिरोध चरण: यदि तनाव बना रहता है, तो शरीर उससे निपटने के लिए अपनी ऊर्जा का उपयोग करता है। परानुकंपी तंत्रिका तंत्र संसाधनों का संतुलन बनाए रखता है।
  • परिश्रांति चरण: जब शरीर लंबे समय तक तनाव से जूझता है, तो उसकी ऊर्जा समाप्त हो जाती है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और दबाव से जुड़ी बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, थकावट आदि की संभावना बढ़ जाती है।
  • आलोचना: सेल्ये के मॉडल में मनोवैज्ञानिक पक्षों को बहुत कम महत्व दिया गया है, जबकि शोध बताते हैं कि व्यक्ति का तनाव को कैसे अनुभव करता है, यह उसके व्यक्तित्व, सोचने के ढंग और जैविक संरचना पर भी निर्भर करता है।


दबाव तथा प्रतिरक्षक तंत्र

दबाव का हमारे प्रतिरक्षक तंत्र पर नकारात्मक असर पड़ता है, जिससे शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाती है। यह तंत्र श्वेत रक्त कोशिकाओं (टी-कोशिकाएँ, बी-कोशिकाएँ, प्राकृतिक हत्यारे कोशिकाएँ) द्वारा वायरस और संक्रमण से रक्षा करता है। अधिक दबाव के कारण इन कोशिकाओं की कार्यक्षमता घट जाती है, विशेषकर प्राकृतिक रूप से नष्ट करने वाली कोशिकाएँ, जो कैंसर और संक्रमण से लड़ती हैं। ऐसे प्रभाव छात्रों, शोकसंतप्त व्यक्तियों, और अवसादग्रस्त लोगों में देखे गए हैं। शोध बताते हैं कि जिन लोगों को सामाजिक सहयोग मिलता है, उनका प्रतिरक्षा तंत्र बेहतर कार्य करता है। साथ ही, नकारात्मक भावनाएँ जैसे क्रोध, दुश्चिंता और अवसाद प्रतिरक्षा प्रणाली को और अधिक कमजोर कर देते हैं, जिससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है, जैसे दिल की बीमारी, अविवेकी भय, पैनिक अटैक, और मृत्यु का खतरा।


जीवन शैली

दबाव व्यक्ति को अस्वास्थ्यकर जीवनशैली अपनाने की ओर ले जा सकता है, जिससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दबाव में व्यक्ति पौष्टिक आहार नहीं लेता, नींद कम होती है और वह धूम्रपान, मद्यपान जैसे जोखिमपूर्ण व्यवहारों में लिप्त हो जाता है। ये आदतें धीरे-धीरे विकसित होती हैं और थोड़े समय के लिए आनंददायक लग सकती हैं, लेकिन इनका दीर्घकालिक असर नुकसानदायक होता है। इसके विपरीत, अध्ययन बताते हैं कि संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, पारिवारिक सहयोग और सकारात्मक सोच जैसी स्वास्थ्यवर्धक जीवनशैली दीर्घ जीवन और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है। आधुनिक जीवनशैली की तेज़ रफ्तार ने हमें यह भूलने पर मजबूर कर दिया है कि हम क्या खाते, क्या सोचते और जीवन के साथ क्या करते हैं, यही हमारे स्वास्थ्य का मूल आधार है।


दबाव का सामना करना

1. दबाव का सामना (Coping) क्या है?

दबाव (Stress) हमारे स्वास्थ्य, मानसिक स्थिति और सामाजिक व्यवहार को तब प्रभावित करता है जब हम उसे कैसे संभालते हैं। Coping वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति तनावपूर्ण परिस्थितियों में समस्या का समाधान ढूंढता है और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने का प्रयास करता है

2. दबाव का सामना करने की विशेषताएँ:

Coping एक गत्यात्मक (dynamic) प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य होता है समस्या को हल करना, तनाव को कम करना और मानसिक शांति बनाए रखना। यह प्रक्रिया व्यक्ति की स्थिति और संसाधनों के अनुसार बदलती रहती है।

3. सोचने का तरीका (Belief System) महत्त्वपूर्ण है:

हम दबाव में कैसी प्रतिक्रिया देंगे, यह हमारे गहरे विश्वासों और पूर्व अनुभवों पर निर्भर करता है। 📌 उदाहरण के रूप में, यदि हमें यह विश्वास है कि "ट्रैफिक नहीं होना चाहिए", तो ट्रैफिक जाम में फँसने पर गुस्सा आना स्वाभाविक है।

4. कमजोर सामना क्षमता के परिणाम:

कमज़ोर coping क्षमता के कारण व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो सकती है और तनाव बढ़ने पर बीमार पड़ने की आशंका अधिक हो जाती है।

5. एंडलर और पार्कर के अनुसार दबाव का सामना करने की 3 युक्तियाँ:

Coping की तीन प्रमुख युक्तियाँ होती हैं: कृत्य-अभिविन्यस्त (Task-Oriented), जिसमें व्यक्ति समाधान खोजने की योजना बनाता है, जैसे टाइम टेबल बनाना या पहले की गई कोशिशों को याद करना। 💬 संवेग-अभिविन्यस्त (Emotion-Oriented), जिसमें भावनाओं को नियंत्रित किया जाता है, जैसे मन को समझाना या चिंता प्रकट करना। परिहार-अभिविन्यस्त (Avoidance-Oriented), जिसमें समस्या को नजरअंदाज किया जाता है या हल्का समझा जाता है, जैसे ध्यान भटकाना या खुद को यह यकीन दिलाना कि कुछ नहीं हुआ

6. लेजारस और फोकमैन का सिद्धांत:

Coping एक सतत बदलती हुई प्रक्रिया है, जिसका मुख्य उद्देश्य दबाव को कम करना और उससे उत्पन्न होने वाली भावनाओं को नियंत्रित करना होता है, ताकि व्यक्ति मानसिक संतुलन बनाए रख सके।

7. दो प्रमुख युक्तियाँ (Lazarus & Folkman):

Coping के दो प्रमुख प्रकार हैं: समस्या-केंद्रित Coping, जिसका उद्देश्य समस्या को हल करना, योजना बनाना और जानकारी जुटाना होता है, जैसे"मैंने कार्य की योजना बनाई और उस पर काम किया।" 💭 संवेग-केंद्रित Coping में व्यक्ति अपनी भावनाओं को संभालता है और चिंता या क्रोध कम करने का प्रयास करता है, जैसे"मैंने वह कार्य किया जिससे मेरे मन की बात निकल जाए।"

नोट: आमतौर पर लोग समस्या-केंद्रित युक्तियों का अधिक उपयोग करते हैं, क्योंकि ये सीधे समाधान पर केंद्रित होती हैं। हालांकि, कई स्थितियों में संवेग-केंद्रित युक्तियों की भी आवश्यकता होती है, जिससे व्यक्ति भावनात्मक रूप से संतुलित रह सके।


दबाव प्रबंधन तकनीकें

दबाव एक मूक हत्यारे की तरह कार्य करता है, जो उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अल्सर, मधुमेह और यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से जुड़ा होता है। आधुनिक जीवनशैली के बदलावों के कारण दबाव लगातार बढ़ रहा है, जिससे व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इसलिए विद्यालय, संस्थाएं, कार्यालय और समुदाय अब ऐसी प्रभावी तकनीकों की खोज में हैं जिनसे दबाव को सफलतापूर्वक प्रबंधित किया जा सके।


विश्रांति की तकनीकें

दबाव प्रबंधन के लिए विश्राम तकनीकें बहुत उपयोगी होती हैं, जो शरीर और मन को शांति देने में सहायक हैं। इन तकनीकों में गहरी श्वास और पेशी-शिथिलन के माध्यम से शरीर के निचले हिस्से से लेकर चेहरे तक संपूर्ण विश्राम लाया जाता है। योग में ध्यान प्रक्रियाएँ भी महत्वपूर्ण हैं, जिनमें एकाग्रता को पूरी तरह केंद्रित कर चेतना की एक शांत और परिवर्तित स्थिति प्राप्त की जाती है, जिससे बाहरी तनावों का प्रभाव कम हो जाता है।


जैवप्रतिप्राप्ति या बायोफीडबैक

दबाव प्रबंधन के लिए कई प्रभावी तकनीकें अपनाई जाती हैं। जैवप्रतिप्राप्ति प्रशिक्षण में व्यक्ति अपनी शारीरिक प्रतिक्रियाओं जैसे हृदय गति को पहचानना, नियंत्रित करना और दैनिक जीवन में लागू करना सीखता है। सर्जनात्मक मानस-प्रत्यक्षीकरण में कल्पना के माध्यम से सकारात्मक लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे आत्म-विश्वास बढ़ता है। संज्ञानात्मक व्यवहारात्मक तकनीकें जैसे मीचेनबॉम की दबाव संचारण प्रशिक्षण विधि व्यक्ति के नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों से प्रतिस्थापित करती है। इसके तीन चरण हैंमूल्यांकन, दबाव न्यूनीकरण तकनीकें, और अनुप्रयोग। साथ ही, व्यायाम जैसे दौड़ना, तैरना या टहलना शारीरिक और मानसिक तनाव को कम करते हैं और शरीर को स्वस्थ बनाते हैं।


सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम का उन्नयन

हर व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी तीव्र दबावपूर्ण संकटों का सामना करना पड़ता है, लेकिन कुछ लोग सकारात्मक दृष्टिकोण और सामाजिक-संवेगात्मक सहयोग से इन परिस्थितियों का सफलतापूर्वक सामना कर लेते हैं। ऐसे लोगों में दबाव प्रतिरोधी व्यक्तित्व पाया जाता है, जिसे कोबासा ने 'वृढ़ता' (hardiness) कहा है। इसमें तीन मुख्य गुण होते हैंप्रतिबद्धता (commitment), नियंत्रण (control), और चुनौती (challenge)। ये व्यक्ति अपने कार्यों और जीवन में उद्देश्य पाते हैं, परिस्थितियों पर नियंत्रण महसूस करते हैं, और परिवर्तनों को खतरे की बजाय अवसर मानते हैं। हालांकि सभी में यह गुण नहीं होते, लेकिन विवेकपूर्ण सोच और व्यवहार के माध्यम से ये जीवन कौशल सीखे जा सकते हैं ताकि हम दबाव का बेहतर सामना कर सकें।


जीवन कौशल

1. जीवन कौशल क्या हैं?

जीवन कौशल ऐसी योग्यताएँ हैं जो हमें रोज़मर्रा की चुनौतियों और दबावों का प्रभावी ढंग से सामना करने में मदद करती हैं। ये कौशल सीखे जा सकते हैं और नियमित अभ्यास से बेहतर बनाए जा सकते हैं।

2. मुख्य जीवन कौशल:

(i) आग्रहिता (Assertiveness):

आत्मविश्वास के साथ खुलकर अपनी बात कहना एक महत्वपूर्ण जीवन कौशल है, जिसमें व्यक्ति बिना डर के "ना" कहने, अपने विचार और भावनाएँ स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में सक्षम होता है। यह योग्यता आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास को बढ़ाती है।

(ii) समय प्रबंधन (Time Management):

समय प्रबंधन एक महत्वपूर्ण जीवन कौशल है, जिसमें व्यक्ति आवश्यक कार्यों को प्राथमिकता देता है और समय का प्रभावी उपयोग करता है। बेहतर समय प्रबंधन से दबाव कम होता है और जीवन में संतुलन बना रहता है। इसके लिए स्पष्ट लक्ष्य, अच्छी योजना और अनुशासन आवश्यक होते हैं।

(iii) सविवेक चिंतन (Rational Thinking):

यह जीवन कौशल नकारात्मक विचारों को पहचानने और उन्हें सकारात्मक सोच में बदलने की प्रक्रिया है। इसमें व्यक्ति अपनी गलत मान्यताओं को चुनौती देता है, जैसे “मुझे सब कुछ परफेक्ट करना है” जैसी सोच को सुधार कर अधिक यथार्थवादी और संतुलित दृष्टिकोण अपनाता है।

(iv) संबंधों में सुधार (Improving Relationships):

अच्छा संप्रेषण (communication) तीन मुख्य तत्वों पर आधारित होता है: ध्यानपूर्वक सुनना, जिससे हम सामने वाले की बात सही समझ सकें; स्पष्ट अभिव्यक्ति, ताकि हम अपनी भावनाएँ और विचार साफ़ तौर पर बता सकें; और स्वीकारना, यानी दूसरों की राय का सम्मान करना

(v) स्वयं की देखभाल (Self-care):

स्वास्थ्य का ध्यान रखना एक जरूरी जीवन कौशल है, जिसमें शारीरिक और मानसिक दोनों पक्ष शामिल होते हैं। इसके उदाहरण हैं: अच्छी नींद लेना, संतुलित आहार लेना, नियमित व्यायाम करना और गहरी साँसों के माध्यम से मानसिक शांति बनाए रखना।

(vi) असहायक आदतों पर काबू (Overcoming Unhelpful Habits):

कुछ आदतें जैसे पूर्णतावाद, विलंबन और परिहार दबाव को बढ़ा सकती हैंपूर्णतावादी व्यक्ति हर काम को परफेक्ट करने की कोशिश में थक जाते हैं और खुद पर बेवजह दबाव डालते हैंविलंबन यानी जरूरी कामों को टालना, अंत में तनाव को और बढ़ा देता हैवहीं, परिहार की आदत यानी समस्याओं से भागना या उन्हें नकारना, समस्या को सुलझाने की बजाय तनाव को लंबे समय तक बनाए रखता है

3. सकारात्मक स्वास्थ्य (Positive Health):

सकारात्मक स्वास्थ्य का मतलब केवल बीमार न होना नहीं, बल्कि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आत्मिक रूप से पूरी तरह संतुलित और कुशल होना है। इसके मुख्य घटक हैं:

  • शारीरिक फिटनेस स्वस्थ शरीर और नियमित व्यायाम की आदत
  • अच्छे संबंध परिवार और दोस्तों से भावनात्मक जुड़ाव
  • जीवन का उद्देश्य अपने जीवन के लक्ष्य और अर्थ को पहचानना
  • आत्म-सम्मान स्वयं के प्रति सम्मान और आत्मविश्वास
  • दबाव से निपटने की क्षमता तनावपूर्ण स्थितियों में स्थिरता बनाए रखना
  • यह सम्पूर्ण कुशलता ही सकारात्मक स्वास्थ्य की पहचान है।

4. स्वास्थ्य को बेहतर बनाने वाले कारक:

स्वस्थ जीवन के लिए कुछ महत्वपूर्ण कारक होते हैं, जैसे संतुलित आहार जो शरीर को पोषण, ऊर्जा और रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है; नियमित व्यायाम जो मानसिक और शारीरिक स्फूर्ति बनाए रखता है; सकारात्मक सोच जो तनाव को कम करने में मदद करती है; और सामाजिक अवलंब यानी परिवारदोस्तों का सहयोग, जो कठिन समय में मानसिक सहारा देकर तनाव को घटाता हैये सभी मिलकर जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं

नोट: दबावग्रस्त व्यक्ति अक्सर "आरामदायक भोजन" (comfort food) जैसे तला-भुना, मीठा, नमकीन ज़्यादा खाता है।


व्यायाम बड़ी संख्या में किए गए अध्ययन शारीरिक

स्वस्थता और स्वास्थ्य के बीच गहरा सकारात्मक संबंध होता है। स्वास्थ्य को बनाए रखने और सुधारने के लिए व्यायाम एक प्रभावी उपाय है, जिसे जीवनशैली में शामिल करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। नियमित व्यायाम न केवल वजन और तनाव को नियंत्रित करता है, बल्कि यह दुश्चिंता, अवसाद और मानसिक थकान को भी कम करता है। योग के आसन जैसे तनन वाले व्यायाम मानसिक शांति देते हैं, जबकि दौड़ना, तैरना और साइकिल चलाना जैसे वायुजीवी व्यायाम शरीर की सक्रियता बढ़ाते हैं। व्यायाम व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना सशक्त बनाता है कि वह जीवन की नकारात्मक परिस्थितियों का सामना भी बेहतर तरीके से कर पाता है।


सकारात्मक अभिवृत्ति सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम

सकारात्मक अभिवृत्ति (Positive Attitude) विकसित करने के लिए व्यक्ति को वास्तविकता का सही प्रत्यक्षण करना चाहिए, यानी चीजों को जैसी हैं वैसा स्वीकारना। जीवन में उद्देश्य और जिम्मेदारी की भावना होना जरूरी है। दूसरों के दृष्टिकोण को सहिष्णुता के साथ स्वीकार करना, सफलता और असफलता दोनों को अपनाना, और नए विचारों के प्रति openness के साथ विनोदी स्वभाव बनाए रखना सकारात्मक दृष्टिकोण को मजबूत करता है।

सकारात्मक चिंतन (Positive Thinking):

सकारात्मक अभिवृत्ति (Positive Attitude) विकसित करने के लिए व्यक्ति को वास्तविकता का सही प्रत्यक्षण करना चाहिए, यानी चीजों को जैसी हैं वैसा स्वीकारना। जीवन में उद्देश्य और जिम्मेदारी की भावना होना जरूरी है। दूसरों के दृष्टिकोण को सहिष्णुता के साथ स्वीकार करना, सफलता और असफलता दोनों को अपनाना, और नए विचारों के प्रति openness के साथ विनोदी स्वभाव बनाए रखना सकारात्मक दृष्टिकोण को मजबूत करता है।

सामाजिक अवलंब (Social Support):

सामाजिक अवलंब (Social Support) उन लोगों को दर्शाता है जो हमें समझते हैं, हमारी परवाह करते हैं और जिन पर हम भरोसा कर सकते हैं। इसके तीन प्रकार होते हैं: मूर्त अवलंब जैसे पैसे, चीजें या सेवाओं की मदद (जैसे बीमार छात्र को नोट्स देना), सूचनात्मक अवलंब यानी सलाह और जानकारी (जैसे परीक्षा की तैयारी में टिप्स देना), और सांवेगिक अवलंब जैसे प्रेम, सहानुभूति और आत्म-सम्मान बनाए रखना (जैसे परिवार द्वारा यह जताना कि आप मूल्यवान हैं)। इसका महत्त्व यह है कि सामाजिक अवलंब तनाव को कम करता है, मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है और संकट की स्थिति में भी व्यक्ति को संतुलित बनाए रखने में मदद करता है।

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