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मुगलकालीन लघु चित्रकला Notes in Hindi Class 12 Fine Art Chapter-3 Book-1

मुगलकालीन लघु चित्रकला Notes in Hindi Class 12 Fine Art Chapter-3 Book-1



मुग़ल चित्रकला एक लघु चित्रकला शैली है, जो सोलहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी के बीच भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित हुई। यह चित्रकला अपनी सूक्ष्म तकनीक और विषयों की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। मुग़ल शासकों ने कला के विभिन्न रूपों जैसे सुलेखन, वास्तुकला और चित्रयुक्त पुस्तकों को प्रोत्साहित किया। हर शासक ने अपनी रुचि के अनुसार कला को बढ़ावा दिया, जिससे यह शैली अत्यंत परिष्कृत और प्रभावशाली बनी। मुग़ल चित्रकला ने भारतीय चित्रकला की कई अन्य शैलियों को प्रेरित किया और इसका विशिष्ट स्थान स्थापित किया। इसे समझने के लिए उस काल की राजनीति और वंशावली को जानना आवश्यक होता है।


मुगल चित्रकला पर विभिन्न प्रभाव

मुगल लघु चित्रकला एक मिश्रित शैली है, जिसमें भारतीय, फ़ारसी और यूरोपीय प्रभाव साफ दिखाई देते हैं। यह शैली भारतीय और ईरानी चित्रकला परंपराओं के परिष्कृत मेल से विकसित हुई, जिसे मुगल दरबार के चित्रकारों और संरक्षकों ने अपनी कलात्मक रुचियों, दर्शन और सौंदर्यबोध के अनुसार निखारा। मुगल दरबार की औपचारिक कार्यशालाओं में देशी और विदेशी कलाकारों ने मिलकर चित्र बनाए, जिससे यह कला शैली धीरे-धीरे पल्लवित हुई। मुगल चित्रकला एक साथ भारतीय परंपरा और इस्लामिक सौंदर्य को दर्शाती है और इसके विकास में कई शैलियों का आपसी आदान-प्रदान हुआ। यह शैली एक दिन में नहीं बनी, बल्कि यह विभिन्न कलारूपों और संस्कृतियों के समन्वय का परिणाम है।


प्रारंभिक मुगलकालीन चित्रकला

1. बाबर (1526-1530):

भारत आने वाला पहला मुगल शासक बाबर था, जो उज्बेकिस्तान से आया था और तैमूर तथा चरगटाई तुर्क वंश से संबंधित था। वह ईरानी और मध्य एशियाई कला-संस्कृति से गहराई से प्रभावित था। उसकी आत्मकथा "बाबरनामा" में कला और प्रकृति के प्रति उसकी गहरी रुचि का उल्लेख मिलता है। यहीं से भारत में शाही चित्रशाला की शुरुआत हुई। इस काल में बिहज़ाद और शाह मुज़फ्फर जैसे प्रसिद्ध चित्रकारों का नाम सामने आता है, जो मुगल चित्रकला की नींव रखने में सहायक रहे।

2. हुमायूँ (1530-1556):

बाबर का पुत्र हुमायूँ वह मुगल शासक था जिसने कला को संरक्षण दिया और उसे एक संगठित रूप में विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ाया। निर्वासन के दौरान वह ईरान में शाह तहमास के दरबार में रहा, जहाँ उसकी चित्रकला की समझ गहराई से विकसित हुई। वहीं से वह दो प्रसिद्ध फारसी चित्रकार—मीर सैयद अली और अब्द उस समद—को भारत लेकर आया। हुमायूँ ने भारत में 'निगारख़ाना' नामक एक चित्रशाला की स्थापना की, जो मुगल चित्रकला की औपचारिक शुरुआत थी। उसके काल में 'प्रिंसेज़ ऑफ तैमूर' जैसे ऐतिहासिक विषयों पर आधारित चित्रों की परंपरा की भी शुरुआत हुई।

3. अकबर (1556-1605):

अकबर के शासनकाल में मुगल चित्रकला को उसका स्वर्ण युग प्राप्त हुआ। उसके नवरत्नों में शामिल अबुल फ़ज़ल के अनुसार, उस समय दरबार में 100 से अधिक चित्रकार कार्यरत थे। इनमें फ़ारसी और भारतीय कलाकारों का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। इस काल की प्रमुख उपलब्धियों में हम्जानामा की चित्रित पांडुलिपि है, जिसे तैयार करने में लगभग 15 वर्ष लगे। इसके अतिरिक्त महाभारत का फ़ारसी रूपांतरण रज़्मनामा, रामायण, और अकबरनामा जैसे महान ग्रंथों का चित्रात्मक रूप में निर्माण हुआ। साथ ही, मेडोना एंड चाइल्ड जैसे यूरोपीय प्रभाव वाले चित्र भी बनाए गए, जो अकबर की कला के प्रति खुले दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

4. जहाँगीर (1605-1627):

जहाँगीर, अकबर का पुत्र, कला में वैज्ञानिक सटीकता और यथार्थवादी शैली का प्रबल समर्थक था। उसने अपने दरबार में अबुल हसन और मनोहर जैसे प्रसिद्ध चित्रकारों को नियुक्त किया, जिन्होंने मुगल चित्रकला को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। जहाँगीर के शासन में मुरक्का (एल्बम चित्रों) की परंपरा शुरू हुई, जिसमें सुंदर लघुचित्रों को सजाकर संग्रहित किया जाता था।

उसके काल के प्रतीकात्मक चित्रों में ‘जहाँगीर का स्वप्न’ और ‘रेतघड़ी पर विराजमान जहाँगीर’ जैसे चित्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। जहाँगीर यूरोपीय कला से भी प्रभावित था, और उसने पादरियों, अंग्रेज़ों तथा ईसाई विषयों पर आधारित चित्र बनवाए, जिससे मुगल चित्रकला में अंतरराष्ट्रीय प्रभावों का समावेश हुआ।

5. शाहजहाँ (1628-1658):

शाहजहाँ के शासनकाल में मुगल चित्रकला में भव्यता और आदर्शीकरण को विशेष प्राथमिकता दी गई। चित्रों में हीरे-जवाहरात, शाही वस्त्रों और दरबारी वैभव के माध्यम से समृद्धि को दर्शाया गया। इस काल की एक महत्वपूर्ण कृति ‘पदशाहनामा’ है, जो एक भव्य रूप में चित्रित ऐतिहासिक ग्रंथ है। शाहजहाँ के काल में रंग संयोजन की सुंदरता और शाही छवियों की उत्कृष्टता अपने चरम पर पहुँच गई, जिससे मुगल चित्रकला अत्यंत निखरकर सामने आई।

6. दारा शिकोह:

शाहजहाँ का पुत्र दारा शिकोह एक कला, दर्शन और धार्मिक समन्वय में रुचि रखने वाला उदार शासक था। उसकी विद्वता और आध्यात्मिक झुकाव को ‘दारा शिकोह विद सेजेज इन गार्डन’ जैसे चित्रों में खूबसूरती से दर्शाया गया है, जहाँ वह विद्वानों के साथ चर्चा करता दिखाई देता है। दारा शिकोह को संस्कृत ग्रंथों और सूफी विचारधारा में गहरी रुचि थी, जिससे उसकी कला और संस्कृति के प्रति दृष्टि में एक गहराई और सहिष्णुता दिखाई देती है।

7. औरंगज़ेब (1658-1707):

औरंगज़ेब का शासनकाल मुगल चित्रकला के लिए एक पतनशील चरण माना जाता है। उसने कला में विशेष रुचि नहीं दिखाई और चित्रशालाओं को सक्रिय रूप से प्रोत्साहन नहीं दिया, हालांकि उसने उन्हें पूरी तरह बंद भी नहीं किया। इसके बावजूद, इस काल में भी कुछ सुंदर और कलात्मक चित्र बनाए जाते रहे, जो उस समय की कला परंपरा के निरंतर अस्तित्व का संकेत देते हैं।


उत्तरकालीन मुगल चित्रकला

मुगल काल के अंत में जब कला संरक्षण घटने लगा, तब कई कुशल कलाकारों ने मुगल दरबार छोड़कर प्रांतीय शासकों की शरण ली। ये शासक भी मुगलों की तरह राजसी जीवन और दरबारी घटनाओं को चित्रों में दिखाना चाहते थे। यद्यपि मोहम्मद शाह रंगीला, शाह आलम द्वितीय, और बहादुर शाह ज़फर के समय कुछ अच्छे चित्र बने, लेकिन वे मुगल चित्रकला की अंतिम चमक थे। 1838 में बना बहादुर शाह ज़फर का चित्र इसका उदाहरण है। 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज़ों ने मुगल शासन का अंत कर दिया। ज़फर, जो कवि और कला प्रेमी थे, आखिरी मुगल शासक बने। इसके बाद बदलते राजनीतिक माहौल और नए संरक्षकों के प्रभाव में चित्रकला की दिशा बदली और मुगल चित्रकला धीरे-धीरे प्रांतीय और कंपनी शैली में विलीन हो गई।


मुगल चित्रकला की प्रक्रिया

मुगल लघु चित्रकला शैली के अधिकतर चित्र पांडुलिपियों या शाही एल्बमों का हिस्सा होते थे, जहाँ चित्र और लेखन एक साथ तयशुदा स्थान पर बनाए जाते थे। पहले हाथ से कागज़ बनाकर उसे पांडुलिपि के आकार में काटा जाता, फिर उस पर लेखन होता और चित्र के लिए स्थान खाली छोड़ा जाता था। कलाकार पहले खाका (रेखाचित्र) बनाता, फिर चित्र (चिहारनामा) तैयार करता और अंत में उसमें रंग भरता, जिसे रंगमिज़ी कहा जाता था।


मुगल चित्रकला के रंग और तकनीक

मुगलकालीन चित्रकार न केवल चित्र बनाने में, बल्कि रंग तैयार करने की कला में भी माहिर थे। चित्र आमतौर पर हस्तनिर्मित कागज़ पर बनाए जाते थे, और रंग प्राकृतिक स्रोतों से जैसे—हिंगुल से सिंदूरी, लाजवर्त से नीला, हरताल से पीला, सीप से सफेद, और लकड़ी के कोयले से काला रंग बनता था। रंगों को गिलहरी या बिल्ली के बच्चों के बालों से बनी बारीक तूलिकाओं से भरा जाता था। एक चित्र को बनाने में कई कलाकारों की सामूहिक मेहनत होती थी—जैसे कोई खाका बनाता, कोई रंग पीसता, कोई रंग भरता, और कोई सूक्ष्म बारीकियाँ जोड़ता। कुछ चित्र एक ही कलाकार द्वारा भी बनाए जाते थे। चित्र पूर्ण होने पर उसे एगेट नामक पत्थर से घिसकर चमकाया जाता था, ताकि रंग टिकाऊ बनें और उसमें चमक आए। खास चित्रों में सोने-चाँदी का चूरा मिलाकर उसे और भी बेशकीमती बनाया जाता था। कलाकारों को उनके काम के अनुसार वेतन और पद भी दिए जाते थे।


विद्यार्थियों के लिए प्रोजेक्ट

किसी लेखक, कवि या दार्शनिक के लगभग पाँच उद्धरणों का चयन करें। उनका अपनी पसंद की भाषा में अनुवाद करें। मुगल पांडुलिपियों से प्रेरणा लेकर सुलेख शैली और अलंकृत किनारों के साथ अपने अनुवाद की एक पांडुलिपि बनाएँ। 


नोआस् आर्क

नोआस् आर्क (1590) अकबर की शाही चित्रशाला के प्रसिद्ध कलाकार मिस्किन द्वारा बनाई गई दीवाने हाफिज़ पांडुलिपि का एक सुंदर चित्र है, जिसके पृष्ठ विभिन्न संग्रहालयों में बिखरे हैं। इसमें पैगंबर नूह को उनके जहाज़ में जानवरों के जोड़ों के साथ दिखाया गया है, ताकि बाढ़ के बाद दुनिया फिर से बस सके। चित्र में इब्लीस को नूह का बेटा जहाज़ से बाहर फेंकता हुआ दिखाया गया है। सफ़ेद, लाल, नीले और पीले रंगों का सुंदर व सूक्ष्म उपयोग चित्र को आकर्षक बनाता है। ऊर्ध्वाधर परिप्रेक्ष्य में जल का चित्रण इसे नाटकीय ऊर्जा देता है। यह चित्र अब फ्रीयर गैलरी ऑफ़ आर्ट, वाशिंगटन डी.सी. में संग्रहित है।


गोवर्धन पर्वत को उठाते हुए कृष्ण

हरिवंश पुराण पर आधारित यह सुंदर चित्र मिस्किन द्वारा 1585–90 के बीच बनाया गया था और आज यह मेट्रोपोलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट, न्यूयॉर्क में संग्रहित है। इसके अलग-अलग पृष्ठ विभिन्न संग्रहालयों में हैं। यह ग्रंथ भगवान कृष्ण पर आधारित है और इसका फ़ारसी अनुवाद अकबर ने अपने विद्वान बदायूनी से करवाया था, जो अपने कट्टर धार्मिक विचारों के लिए जाना जाता था। चित्र में भगवान कृष्ण को गोवर्धन पर्वत को एक विशाल छतरी की तरह उठाकर अपने अनुयायियों और उनके पशुओं को इंद्र की बारिश से बचाते हुए दर्शाया गया है। यह चित्र धार्मिक कथा को सुंदर और नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करता है।


पक्षी-विश्राम पर बाज़

यह चित्र 'पक्षी-विश्राम पर बाज़' (1615) प्रसिद्ध मुगल कलाकार उस्ताद मंसूर द्वारा बनाया गया है, जिसे सम्राट जहाँगीर ने उसकी कला प्रतिभा के लिए 'नादिर उल अस्र' की उपाधि दी थी। जहाँगीर को बाज़ों का शौक था और उसने अपने बेहतरीन बाजों के चित्र उस्ताद मंसूर से बनवाए। यह विशेष चित्र क्लीवलैंड संग्रहालय, ओहायो (अमेरिका) में संग्रहित है और इसकी छवियाँ जहाँगीरनामा में भी शामिल हैं। एक दिलचस्प किस्सा यह है कि शाह अब्बास द्वारा भेंट किए गए बाज़ की मृत्यु बिल्ली द्वारा हो जाने पर जहाँगीर ने उसकी स्मृति में उसका चित्र बनवाया, जिससे उस समय के प्राकृतिक इतिहास और कला के प्रति मुगल रुचि झलकती है।


ज़ेबरा

यह चित्र उस्ताद मंसूर द्वारा बनाया गया है, जिसमें तुर्कों द्वारा इथियोपिया से लाया गया ज़ेबरा दिखाया गया है। यह ज़ेबरा 1621 में नवरोज़ उत्सव के दौरान मीर जाफ़र ने मुगल सम्राट जहाँगीर को भेंट किया था। जहाँगीर ने इसे गौर से देखा क्योंकि कुछ लोगों को संदेह था कि यह सिर्फ धारियाँ पेंट किया गया घोड़ा है। उन्होंने इसे ईरान के शाह अब्बास को उपहार स्वरूप भेजने का निर्णय लिया। यह चित्र जहाँगीरनामा में वर्णित है और बाद में इसे शाही एल्बम में जोड़ा गया, जबकि शाहजहाँ के काल में इसके किनारों पर अलंकरण किया गया।


दारा शिकोह की बारात

यह सुंदर चित्र हाजी मदनी द्वारा शाहजहाँ के शासनकाल में बनाया गया है और इसमें दारा शिकोह के विवाह का भव्य दृश्य दिखाया गया है। चित्र में दारा शिकोह पारंपरिक सेहरे के साथ भूरे घोड़े पर सवार है, जबकि उसके पीछे उसके पिता शाहजहाँ, जिनके सिर के चारों ओर प्रभामंडल है, सफेद घोड़े पर बैठे हैं। बारात का स्वागत संगीत, नृत्य, उपहारों और आतिशबाज़ी के साथ हुआ है। कलाकार ने इस राजसी आयोजन को अत्यंत जीवंत और रंगीन ढंग से चित्रित किया है। यह चित्र राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में संग्रहित है।

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