मनोविज्ञान और खेल Notes in Hindi Class 11 Physical Education Chapter-9 psychology and sports
0Team Eklavyaमार्च 09, 2025
शारीरिक शिक्षा एवं खेलों में मनोविज्ञान की परिभाषा एवं महत्व
मनोविज्ञान की परिभाषाएं
क्रो एण्ड को के अनुसार, "मनोविज्ञान मानव व्यवहार तथा मानव संबंधों का अध्ययन है।"
जेबी वॉटसन के अनुसार, "मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है।"
खेल मनोविज्ञान की परिभाषा
खेल मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है, जो प्रतियोगिता से पहले, प्रतियोगिता के दौरान और प्रतियोगिता के बाद एक खिलाड़ी के व्यवहार का अध्ययन करती है।
शारीरिक शिक्षा एवं खेलकूद में मनोविज्ञान का महत्व
प्रदर्शन में सुधार:
खेल मनोविज्ञान एथलीटों या खिलाड़ियों को उनका आत्मविश्वास बढ़ाने और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में मदद करता है।
यह वैज्ञानिक तरीकों से उनके व्यवहार में सुधार लाकर उनके प्रदर्शन और व्यक्तित्व को बेहतर बनाता है।
प्रेरणा और प्रतिक्रिया:
उचित प्रेरणा और प्रतिक्रिया खिलाड़ियों के प्रदर्शन को बढ़ाने में मदद करती है।
यह खिलाड़ियों को यह परामर्श देती है कि वे अपना प्रदर्शन कैसे सुधार सकते हैं।
यह खेल मनोविज्ञान के निर्देशन में किया जाता है।
अच्छे खिलाड़ियों के चुनाव में सहायक:
खेल मनोविज्ञान प्रशिक्षकों को अच्छे खिलाड़ियों के चुनाव में मदद करता है।
इससे उन्हें खिलाड़ियों के व्यवहार को समझने और उनके प्रशिक्षण को बेहतर बनाने में सहायता मिलती है।
विकास की विभिन्न अवस्थाओं में विकास संबंधी विशेषताएं
शैशवावस्था / शिशु अवस्था :
जन्म से लेकर 5 वर्ष तक।
शारीरिक विकास : शारीरिक वृद्धि आकार और वजन में तेजी से होती है।
बौद्धिक विकास : शैशव अवस्था या काल में बच्चा सिर्फ उन्हीं वस्तुओं में रुचि रखता है जो कि उसकी भूख व भोजन की तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।
2 से 3 वर्ष की आयु में वह छोटे-छोटे वाक्य बोलने से सीखता है। 5 वर्ष की आयु में वह सोचना शुरू कर देता है व खेलने में गहरी रुचि लेता है।
प्रारंभिक बाल्यावस्था :
6 वर्ष की आयु में शुरू होती है और 9 वर्ष की आयु में खत्म।
शारीरिक विकास : लड़कों और लड़कियों की भौतिक विशेषताएं परिपक्व होती हैं।
बौद्धिक विकास : इस अवस्था में, मानसिक स्तर का भी विकास होता है और बच्चा चीज़ों का बारीकी से निरीक्षण करने लगता है और चर्चा करने की क्षमता बढ़ जाती है।
भावनात्मक विकास : भावनाओं पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
सामाजिक विकास : किशोर अपने आस-पास की दुनिया में अधिक रुचि लेता है।
वयस्क अवस्था :
9 वर्ष की आयु से शुरू होती है और 12 वर्ष तक चलती है।
शारीरिक विकास : इस अवस्था में मांसपेशियां परिपक्व हो जाती हैं और उनकी शक्ति में सुधार आता है।
बौद्धिक विकास : दिमाग पूरी तरह से परिपक्व हो जाता है।
भावनात्मक विकास : इस अवस्था में भावनाओं पर बहुत अधिक नियंत्रण होता है।
सामाजिक विकास : वयस्क समाज के क्रियाशील सदस्य बन जाते हैं।
किशोरों की समस्याएं एवं उनका समाधान
किशोरावस्था में आने वाली समस्या
शारीरिक समस्याएं
आत्म-जागरूकता में वृद्धि
यौन संबंधी समस्याएं
मित्र-मंडली के साथ संबंध
किशोरावस्था में लापरवाही
करियर के चुनाव में समस्या
निर्भरता-आत्मनिर्भरता
आदर्शवाद बनाम यथार्थवाद
नशाखोरी
भावनात्मक समस्याएं
किशोरों की समस्याओं के समाधान के उपाय
सहानुभूति और स्वतंत्रपूर्ण व्यवहार:
माता-पिता को किशोरों के बदलते व्यवहार के कारण चिंतित होने के बजाय उनके साथ सहानुभूति और स्वतंत्रता प्रदान करने वाला व्यवहार करना चाहिए। यह व्यवहार शारीरिक परिवर्तनों के कारण होने वाले तनाव को कम करने में मदद करता है।
घर एवं विद्यालय का स्वस्थ वातावरण:
अगर घर और विद्यालय का वातावरण स्वस्थ नहीं होगा तो किशोर अपने लक्ष्य से भटक सकते हैं और गलत आदतों, जैसे जुआ खेलना, नशा करना आदि का शिकार हो सकते हैं। किशोरों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए इन जगहों पर सकारात्मक वातावरण सुनिश्चित करना आवश्यक है।
नैतिक एवं धार्मिक शिक्षा:
घर पर माता-पिता तथा परिवार के बड़े बुजुर्गों द्वारा किशोरों को नैतिक तथा धार्मिक शिक्षा दी जानी चाहिए। इससे उनके व्यवहार संबंधी समस्याओं का निदान किया जा सकता है।
मित्रता पूर्ण व्यवहार:
जब बच्चा किशोरावस्था में पहुँचता है तो माता एवं शिक्षकों को इनके साथ मित्रता पूर्ण व्यवहार रखना चाहिए, ताकि वह स्वतंत्रता के साथ अपनी समस्याएं बता सके।
पर्याप्त स्वतंत्रता:
किशोरों को अपनी भावनाएं और सुझाव व्यक्त करने के लिए पर्याप्त स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। उन्हें अपने मित्रों का चुनाव तथा उनके साथ घूमने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। हालांकि माता-पिता को अपने बच्चों के मित्र के विषय में पूरी जानकारी होनी चाहिए।
टीम सामंजस्य एवं खेल
टीम सामंजस्य का अर्थ
अल्बर्ट कैरॉन के अनुसार, "एक गतिशील प्रक्रिया जो लक्ष्यों और उद्देश्यों की खोज में समूह के 'एक साथ रहने' और एकजुट रहने की प्रवृत्ति में परिलक्षित (प्रतिबिंबित) होती है।"
समूह सामंजस्य को एकता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें व्यक्तियों का समूह, एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एकजुट होकर कार्य करता है।
टीम सामंजस्य के प्रकार
कार्य सामंजस्य
सामाजिक सामंजस्य
कार्य सामंजस्य –
एक विशिष्ट और पहचान योग्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक टीम के सदस्य जब एकमत होकर कार्य करते हैं, वह कार्य सामंजस्य कहलाता है।
उदाहरण – किसी एक विभाग के कर्मचारी।
सामाजिक सामंजस्य –
प्रत्येक स्थिति में एक टीम के सदस्य परस्पर एक दूसरे को पसंद करते हैं और टीम के सदस्य होने से व्यक्तिगत संतुष्टि का आनंद प्राप्त करते हैं।
उदाहरण – मित्रता।
समूह सामंजस्य को प्रभावित करने वाले कारक
समूह पर निर्भरता: समूह में लोगों की निर्भरता जितनी अधिक होगी, सामंजस्य उतना ही अधिक होगा।
समूह का आकार: यदि समूह का आकार छोटा है, तो सामंजस्य अधिक होगा। (छोटे समूहों में उच्च सामंजस्य होता है)
सदस्यता की एकरूपता: यदि समूह में लोगों की पृष्ठभूमि और रुचियां समान हैं, तो समूह की एकजुटता अधिक होगी।
स्थिर सदस्यता: अधिक सामंजस्य के लिए समूह में स्थिरता बनाए रखनी चाहिए।
समूह का स्थान: समूह का स्थान अनुकूल और पहुँच योग्य होना चाहिए।
समूह की स्थिति: सफलता की कहानियां हमेशा उच्च सामंजस्य की ओर ले जाती हैं।
नेतृत्व: यदि समूह का नेता गतिशील है तो सामंजस्य स्वतः अच्छा होगा।
मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का परिचय: अवधान, लचीला पन, मानसिक दृढ़ता
अवधान / ध्यान
यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से उत्तेजनाओं (सूचनाओं) के समूह में से किसी एक उत्तेजना (सूचना) को चुना जाता है।
अवधान के प्रकार
1. ऐच्छिक अवधान
इस तरह के ध्यान में व्यक्ति की इच्छा या आवश्यकता की प्रधानता होती है।
उदाहरण: क्रिकेट में बैटर द्वारा गेंद पर प्रहार करना।
2. अनैच्छिक अवधान :
अनैच्छिक अवधान में इच्छा की प्रधानता नहीं होती है बल्कि वस्तु के चमकीली रोशनी, ध्वनि या रंग जैसी विशेषताओं की प्रधानता होती है।
उदाहरण: तेज आवाज, चमकीली रोशनी / रंग।
लचीलापन
लचीलापन – "बदलती परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को तैयार रखना और नकारात्मक भावनात्मक अनुभवों से वापस आने की क्षमता लचीलापन कहलाती है।"
स्टुअर्ट के अनुसार – लचीलापन प्रतिकूल परिस्थितियों से वापसी करने की क्षमता है।
सकारात्मक मनोविज्ञान में लचीलापन
जीवन में किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति का सामना करने की क्षमता को स्पष्ट करता है। कुछ लोग चुनौतियों से टूट जाते हैं, लेकिन वे पहले की तुलना में अधिक दृढ़ व्यक्ति के रूप में लौटते हैं।
मानसिक दृढ़ता
मानसिक दृढ़ता – यह एक व्यक्तित्व की विशेषता है जो तनाव और दबाव में अच्छा प्रदर्शन करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है। यह चरित्र, लचीलापन, धैर्य, और दृढ़ता जैसे गुणों से संबंध रखता है।
मानसिक दृढ़ता – वह क्षमता है जिसके द्वारा व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों, असफलताओं एवं नकारात्मक घटनाओं का सामना सतत प्रयास, दृष्टिकोण (व्यवहार) और उत्साह के साथ करता है।
मानसिक दृढ़ता – एक एथलीट की चुनौतियों, गलतियों और विफलता का सामना करने की क्षमता को स्पष्ट करती है।
मानसिक दृढ़ता – लचीलापन, दृढ़ संकल्प और आशावाद का संयोग है जो व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थितियों में आत्मकेंद्रित और प्रेरित रहने हेतु प्रोत्साहित करता है।