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आओ, मिलकर बचाएँ Class 11 Book-Aroh Poem-8 Chapter wise Summary

आओ, मिलकर बचाएँ Class 11 Book-Aroh Poem-8 Chapter wise Summary


निर्मला पुतुल का परिचय:

निर्मला पुतुल का जन्म 1972 में झारखंड के दुमका जिले में हुआ था। वे आदिवासी समाज की प्रमुख कवयित्री हैं, जिन्होंने संथाली समाज की वास्तविकताओं, संघर्षों और विसंगतियों को अपनी कविताओं में उजागर किया है। उनकी कविताएँ प्रकृति, आदिवासी संस्कृति, विस्थापन, पुरुष वर्चस्व, कुरीतियों, और आर्थिक शोषण पर आधारित होती हैं।


कविता "आओ, मिलकर बचाएँ" का सारांश

यह कविता प्राकृतिक संसाधनों, आदिवासी संस्कृति और मानवीय मूल्यों को बचाने की अपील करती है।

संस्कृति और परंपरा को बचाने की जरूरत:

  • कवयित्री कहती हैं कि आदिवासी बस्तियों को शहर की बुरी हवा से बचाना जरूरी है।
  • संथाली संस्कृति की सादगी, भाषा, रीति-रिवाज और पहचान को बचाना जरूरी है।

प्राकृतिक सौंदर्य और जीवनशैली को बचाने की जरूरत:

  • जंगल की ताजी हवा, नदियों की निर्मलता, पहाड़ों का मौन और मिट्टी की खुशबू को बचाना चाहिए।
  • कुल्हाड़ी की धार, धनुष की डोरी और तीर की नोक को बचाने का मतलब है कि संघर्ष और जुझारूपन जिंदा रहना चाहिए।

सामाजिक ताने-बाने को बचाने की जरूरत:

  • बच्चों के खेलने के लिए मैदान, बुजुर्गों के लिए शांति, पशुओं के लिए हरी घास—यह सब बचाना जरूरी है।
  • हँसी, गीत, नृत्य और थोड़ी-सी निजता को बचाए रखना चाहिए ताकि समाज जीवंत बना रहे।

भरोसा, उम्मीद और सपनों को बचाने की जरूरत:

  • इस दौर में भी विश्वास, उम्मीद और सपनों को बचाना जरूरी है क्योंकि वे ही समाज को आगे ले जाते हैं।
  • आदिवासी समाज और उसकी परंपराएँ धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ बचाया जा सकता है।


मुख्य संदेश:

  • प्रकृति और आदिवासी संस्कृति का संरक्षण बहुत जरूरी है।
  • आधुनिकता और शहरों की चकाचौंध से बचकर अपनी पहचान को बनाए रखना चाहिए।
  • विश्वास, सपने और उम्मीदें नष्ट न होने दें, क्योंकि इन्हीं से समाज आगे बढ़ता है।
  • हर इंसान को अपने मूल्यों, परंपराओं और प्रकृति को बचाने में योगदान देना चाहिए।

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