1. हे भूख। मत मचल 2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर Class 11 Book-Aroh Poem-6 Chapte wise Summary
0Team Eklavyaमार्च 13, 2025
अक्कमहादेवी का जीवन परिचय:
अक्कमहादेवी 12वीं सदी की कर्नाटक की संत कवयित्री थीं। वे वीर शैव आंदोलन से जुड़ी हुई थीं और चन्नमल्लिकार्जुन (शिव) की अनन्य भक्त थीं। उनकी कविताएँ स्त्री मुक्ति, आध्यात्मिक प्रेम और भक्ति की अनूठी मिसाल हैं।
उनका विवाह एक स्थानीय राजा से हुआ था, लेकिन जब उसने उनकी शर्तों का पालन नहीं किया, तो उन्होंने राजमहल, वस्त्र और सारी सांसारिक चीजें त्याग दीं। यह त्याग केवल शरीर का नहीं था, बल्कि यह समाज की बेड़ियों को तोड़ने का भी प्रतीक था।
उनकी कविताएँ (वचन) स्त्री-स्वतंत्रता और भक्ति के क्रांतिकारी स्वर को दर्शाती हैं। उनकी रचनाएँ कन्नड़ भाषा में हैं, जिनका अनुवाद हिंदी में वचन सौरभ और अंग्रेजी में स्पीकिंग ऑफ़ शिवा नाम से हुआ है।
पहले वचन (कविता) का सारांश:
भावार्थ:
इस वचन में इंद्रियों पर नियंत्रण की बात की गई है। यह कोई कठोर उपदेश नहीं, बल्कि प्रेम-भरी मनुहार है।
भूख, प्यास और नींद को संयमित करने का आग्रह है, जिससे मन को साधा जा सके।
क्रोध और मोह से बचने की सीख दी गई है, ताकि जीवन में शांति बनी रहे।
लोभ और मद (अहंकार) से दूर रहने की बात है, क्योंकि ये आध्यात्मिक जीवन के बाधक हैं।
ईर्ष्या और द्वेष से बचने को कहा गया है, क्योंकि ये मन को अशांत कर देते हैं।
अंत में कहा गया है कि पूरा संसार शिव के संदेश को ग्रहण करने के लिए तैयार रहे।
👉 मुख्य संदेश:
भक्ति और आध्यात्मिक जीवन के लिए इंद्रियों पर नियंत्रण आवश्यक है।
मनुष्य को लोभ, क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या से मुक्त होकर शिव की भक्ति में लीन होना चाहिए।
दूसरे वचन (कविता) का सारांश:
भावार्थ:
इस वचन में ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण व्यक्त किया गया है।
कवयित्री ईश्वर से भीख मांगने की इच्छा जताती हैं, जिससे वे संसार से पूरी तरह मुक्त हो सकें।
वे चाहती हैं कि भौतिक वस्तुओं से उनका संबंध खत्म हो जाए।
यदि कोई उन्हें कुछ देना चाहे, तो वह वस्तु गिर जाए और वे उसे उठा भी न सकें।
यदि वे उसे उठाने की कोशिश करें, तो कोई कुत्ता उसे छीन ले।
👉 मुख्य संदेश:
यह कविता त्याग और भक्ति की चरम सीमा को दर्शाती है।
अहंकार, संपत्ति और सांसारिक इच्छाओं का पूरी तरह त्याग ही ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग है।
सच्ची भक्ति वही है, जिसमें आत्मा पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित हो जाए।
समग्र निष्कर्ष:
अक्कमहादेवी का जीवन और उनकी कविताएँ स्त्री-मुक्ति, भक्ति और सामाजिक बेड़ियों के विरोध का प्रतीक हैं।
उनके वचन संयम, त्याग और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की सीख देते हैं।
उनकी भक्ति मीरा की भक्ति से मिलती-जुलती है, लेकिन इसमें अधिकार और विद्रोह का स्वर अधिक प्रबल है।
उनके वचन भारतीय साहित्य में स्त्री-सशक्तिकरण और आध्यात्मिक चेतना का प्रेरणास्रोत हैं।