Editor Posts footer ads

संविधान के राजनीतिक दर्शन notes political science class 11 sanvidhan ka rajnitik darshan

संविधान के राजनीतिक दर्शन notes political science class 11 sanvidhan ka rajnitik darshan



संविधान के दर्शन का क्या आशय है ?

  • कुछ लोग मानते हैं कि संविधान सिर्फ कानूनों से बनता है और कानून एक बात है तथा मूल्य और नैतिकता बिलकुल ही अलग बात, इसलिए संविधान के प्रति केवल कानूनी नजरिया अपनाया जा सकता है न कि नैतिक या राजनीतिक दर्शन का नजरिया। 
  • यह सच है कि हर कानून में नैतिक तत्व नहीं होता लेकिन बहुत-से कानून ऐसे हैं जिनका हमारे मूल्यों और आदशों से गहरा संबंध है।

उदहारण  – 

  • संविधान धर्म के आधार पर व्यक्तियों के बीच भेदभाव की मनाही करता है। 
  • इस तरह का कानून समानता के विचार से जुड़ा है। 
  • यह कानून इसलिए बना है क्योंकि हम लोग समानता को मूल्यवान मानते हैं। 
  • इस उदाहरण से स्पष्ट है कि कानून और नैतिक मूल्यों के बीच गहरा संबंध है।

इसी कारण संविधान को एक ऐसे दस्तावेज़ के रूप में देखना जरूरी है 

  • जिसके पीछे एक नैतिक दृष्टि काम कर रही है। 
  • संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन का नज़रिया अपनाने की जरूरत है। 
  • संविधान कुछ अवधारणाओं के आधार पर बना है। 
  • जैसे 'अधिकार', 'नागरिकता', 'अल्पसंख्यक’ अथवा 'लोकतंत्र'

भारतीय संविधान की बहस

  • भारतीय संविधान को संविधान सभा की बहसों के साथ जोड़कर पढ़ा जाना चाहिए ताकि सैद्धांतिक रूप से हम बता सकें कि ये आदर्श कहाँ तक और क्यों ठीक हैं तथा आगे उनमें कौन-से सुधार किए जा सकते हैं। 
  • किसी मूल्य को अगर हम संविधान की बुनियाद बनाते हैं, तो हमारे लिए यह बताना जरूरी हो जाता है कि यह मूल्य सही और सुसंगत क्यों है। 
  • संविधान के निर्माताओं ने जब भारतीय समाज और राज-व्यवस्था को अन्य मूल्यों के बदले किसी खास मूल्य-समूह से दिशा-निर्देशित करने का फ़ैसला किया, तो ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि उनके पास इस मूल्य-समूह को जायज ठहराने के लिए कुछ तर्कमौजूद थे, भले ही इनमें से बहुत से तर्क पूरी तरह से स्पष्ट न हों चाहे संविधान निर्माताओं के तर्क कितने भी कच्चे और अनगढ़ क्यों न हों, यह कल्पना करना मुश्किल है कि संविधान में अंतर्निहित मूल्यों को जायज ठहराने के लिए उनके पास तर्क नहीं थे।

संविधान- लोकतांत्रिक बदलाव का साधन

  • पहले अध्याय में हमने संविधान के अर्थ और एक अच्छे संविधान की जरूरत के बारे में पढ़ा। 
  • इस बात पर व्यापक सहमति है कि संविधान को अंगीकार करने का एक बड़ा कारण है सत्ता को निरंकुश होने से रोकना। 
  • आधुनिक राज्य अति की हद तक ताकतवर हैं। 
  • बल प्रयोग और दंड-शक्ति पर राज्य का एकाधिकार माना जाता है।
  • यदि ऐसे राज्य की संस्थाएँ गलत हाथों में पड़ जाएँ तो क्या होगा ? 
  • भले ही इन संस्थाओं का निर्माण हमारी सुरक्षा और भलाई के लिए किया गया था, परंतु ये बड़ी आसानी से हमारे ही विरुद्ध काम कर सकती हैं। 
  • राज्य की शक्ति का दुनियाभर का अनुभव बताता है कि अधिकांश राज्य कुछ व्यक्ति अथवा समूहों के हित को नुकसान पहुँचाने की दिशा में काम कर सकते हैं। 
  • अगर ऐसा है, तो हमें सत्ता के खेल के नियमों को इस तरह बनाना चाहिए कि राज्य की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगे। 
  • संविधान ये बुनियादी नियम प्रदान करता है और राज्य को निरंकुश बनने से रोकता है।
  • नेहरू की दलील थी कि संविधान सभा सिर्फ जन-प्रतिनिधियों अथवा योग्य वकीलों का जमावड़ा भर नहीं है
  • बल्कि यह स्वयं में 'राह पर चल पड़ा एक राष्ट्र है जो अपने अतीत के राजनीतिक और सामाजिक ढाँचे के खोल से निकलकर अपने बनाए नए आवरण को पहनने की तैयारी कर रहा है।’ 
  • भारतीय संविधान का निर्माण परंपरागत सामाजिक ऊँच-नीच के बंधनों को तोड़ने और स्वतंत्रता, समता तथा न्याय के नये युग में प्रवेश के लिए हुआ।
  • इस नजरिए के अनुसार संविधान की मौजूदगी सत्तासीन लोगों की शक्ति पर अंकुश ही नहीं लगाती बल्कि जो लोग परंपरागत तौर पर सत्ता से दूर रहे हैं उनका सशक्तिकरण भी करती है। 
  • सविधान, कमजोर लोगों को उनका वाजिब हक सामुदायिक रूप में हासिल करने की ताकत देता है।


संविधान सभा की ओर मुड़कर क्यों देखें ?

  • अमेरिका का उदाहरण -वहाँ संविधान 18 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में लिखा गया। 
  • उस युग के मूल्य और मानक का इस्तेमाल 21 वीं सदी में करना बेतुका कहा जाएगा। 
  • लेकिन , हिंदुस्तान की स्थिति अलग है। यहाँ संविधान निर्माताओं के समय जो स्थिति थी और हम लोग आज जिन स्थितियों में रहते हैं-उसमें कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं आया है। 
  • मूल्यों, आदशों और अवधारणाओं के लिहाज से हम लोग संविधान सभा की सोच और समय से अलग नहीं हो पाए। 
  • हमारे संविधान का इतिहास अब भी हमारे वर्तमान का इतिहास है।
  • हो सकता है कि हमारे कानूनी और राजनीतिक व्यवहार-बरताव के पीछे जो असली बात है, हमने उसे भुला दिया हो। कालक्रम में हमने उन्हें स्वाभाविक मान लिया हो। 


हमारे संविधान का राजनीतिक दर्शन क्या है ?

  • इस दर्शन को एक शब्द में बताना कठिन है। 
  • हमारा संविधान किसी एक शीर्षक में अँटने से इनकार करता है क्योंकि यह उदारवादी, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, संघवादी, सामुदायिक जीवन मूल्यों का हामी, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के साथ-साथ ऐतिहासिक रूप से अधिकार, वंचित वर्गों की जरूरतों के प्रति संवेदनात्मक तथा एक सर्व सामान्य राष्ट्रीय पहचान बनाने को प्रतिबद्ध संविधान है।
  • संक्षेप में यह संविधान स्वतंत्रता, समानता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय तथा राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिबद्ध है। 
  • इन सबके साथ एक बुनियादी चीज और है संविधान का जोर इस बात पर है कि उसके दर्शन पर शांतिपूर्ण तथा लोकतांत्रिक तरीके से अमल किया जाए।


व्यक्ति की स्वतंत्रता

  • हमारा संविधान व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है। 
  • यह प्रतिबद्धता लगभग एक सदी तक निरंतर चली बौद्धिक और राजनीतिक गतिविधियों का परिणाम है। 
  • 19 वीं सदी के शुरुआती समय में ही राममोहन राय ने प्रेस की आजादी की काट-छाँट का विरोध किया था। 
  • अंग्रेजी सरकार प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध लगा रही थी। 
  • राममोहन राय का तर्क था कि जो राज्य व्यक्ति की जरूरतों का ख्याल रखता है, उसे चाहिए कि वह व्यक्ति को अपनी जरूरतों की अभिव्यक्ति का साधन प्रदान करे। 
  • आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे संविधान का अभिन्न अंग है। 
  • इसी तरह, मनमानी गिरफ्तारी के विरुद्ध हमें स्वतंत्रता प्रदान की गई है। 
  • रौलेट एक्ट ने हमारी इसी स्वतंत्रता के अपहरण का प्रयास किया था और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम ने इसके विरुद्ध जमकर लोहा लिया। 
  • इस आधार पर हम कह सकते हैं कि भारतीय संविधान का चरित्र मजबूत उदारवादी बुनियाद पर प्रतिष्ठित है। 
  • मौलिक अधिकारों से संबंधित अध्याय में हम देख चुके हैं कि भारतीय संविधान व्यक्ति की स्वतंत्रता को कितना महत्त्व देता है।


सामाजिक न्याय

  • हमारा संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है। 
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान इसका सर्वोतम उदाहरण है। 
  • संविधान निर्माताओं का विश्वास था कि मात्र समता का अधिकार दे देना इन वगों के साथ सदियों से हो रहे अन्याय से मुक्ति के लिए अथवा इनके मताधिकार को वास्तविक अर्थ देने के लिए काफी नहीं है। 
  • इन वर्गों के हितों को बढ़ावा देने के लिए विशेष संवैधानिक उपायों की जरूरत थी। 
  • इस कारण संविधान निर्माताओं ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के हितों की रक्षा के लिए बहुत से विशेष उपाय किए।
  • उदाहरण -अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विधायिका में सीटों का आरक्षण। संविधान के विशेष प्रावधानों के कारण ही सरकारी नौकरियों में इन वर्गों को आरक्षण देना संभव हो सका।


विविधता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान

  • संविधान निर्माताओं के सामने इस बात की कठिन चुनौती थी कि ऊँच-नीच अथवा गहरी प्रतिद्वंद्विता की मौजूदा स्थिति के बीच समुदायों में बराबरी का रिश्ता कैसे कायम किया जाए ? 
  • समुदायों को उदार कैसे बनाया जाए ?
  • समुदायों को मान्यता न देकर इस समस्या का समाधान आसानी से किया जा सकता था।  
  • अधिकांश पश्चिमी राष्ट्रों के उदारवादी संविधान में ऐसा ही किया गया है। लेकिन ऐसा करना न तो अपने देश में कारगर होता और न ही वांछनीय। 
  • इसका कारण यह नहीं कि भारतीय अन्य लोगों की तुलना में समुदायों से कहीं ज्यादा जुड़े हैं। हर जगह के व्यक्ति सांस्कृतिक समुदाय से जुड़े होते हैं और ऐसे हर समुदाय की अपनी परंपरा, मूल्य, रीति-रिवाज तथा भाषा होती है। समुदाय का सदस्य इसमें भागीदार होता है।
  • उदाहरण - फ्रांस और जर्मनी में व्यक्ति भाषाई समुदाय का सदस्य होता है और इससे वह बड़ी गहराई से जुड़ा होता है। 
  • हम लोग सामुदायिक जीवन-मूल्यों को ज्यादा खुले तौर पर स्वीकार करते हैं और यही बात हमें खास बनाती है। 
  • इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत में अनेक सांस्कृतिक समुदाय हैं। 
  • जर्मनी अथवा फ्रांस के विपरीत भारत में बहुत से भाषाई और धार्मिक समुदाय हैं। कोई समुदाय दूसरे पर प्रभुत्व न जमाए – 
  • इस बात को सुनिश्चित करना जरूरी था। इसी कारण हमारे संविधान के लिए समुदाय आधारित अधिकारों को मान्यता देना जरूरी हो गया।
  • ऐसे ही अधिकारों में एक है धार्मिक समुदाय का अपनी शिक्षा संस्था स्थापित करने और चलाने का अधिकार। 
  • ऐसी संस्थाओं को सरकार धन दे सकती है। इस प्रावधान से पता चलता है कि भारतीय संविधान धर्म को सिर्फ व्यक्ति का निजी मामला नहीं मानता।


धर्मनिरपेक्षता

  • धर्म और राज्य दोनों एक-दूसरे के अंदरूनी मामले से दूर रहेंगे। 
  • राज्य के लिए जरूरी है कि वह धर्म के क्षेत्र में हस्तक्षेप न करे। 
  • ठीक इसी तरह धर्म को चाहिए कि वह राज्य की नीति में दखल न दे और न ही राज्य-संचालन को प्रभावित करे। 
  • धर्म और राज्य को एकदम अलग रखने का उद्देश्य – व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा। 
  • जो राज्य संगठित धर्म को समर्थन देता है वह पहले से ही मजबूत धर्म को और ताकतवर बनाता है।
  • जब धार्मिक संगठन व्यक्ति के धार्मिक जीवन का नियंत्रण करने लगते हैं, जब वे यह तक बताने लगें कि किसी व्यक्ति को ईश्वर से किस तरह जुड़ाव रखना चाहिए, कैसे पूजा-प्रार्थना करनी चाहिए, तो व्यक्ति के पास इस स्थिति में अपनी धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए राज्य से अपेक्षा रखने का विकल्प होना चाहिए। 
  • लेकिन, जिस राज्य ने स्वयं इन संगठनों से हाथ मिला लिया हो वह क्या सहायता देगा ? 
  • इसलिए, व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए जरूरी है कि राज्य धार्मिक संगठनों की सहायता न करे।
  • लेकिन इसके साथ-साथ यह भी जरूरी है कि राज्य जैसी ताकतवर संस्था धार्मिक संगठनों को यह न बताने लगे कि उन्हें अपना काम कैसे करना चाहिए। इससे भी धार्मिक स्वतंत्रता बाधित होती है। 
  • इसी कारण, राज्य के लिए भी जरूरी है कि वह धार्मिक संगठनों को बाधा न पहुँचाए।


सार्वभौम मताधिकार

  • सार्वभौम वयस्क  मताधिकार से अभिप्राय है कि भारतीय संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक जो 18 वर्ष का हो चूका है उसे मतदान का अधिकार देता है इसमें किसी के साथ जात , धर्म , लिंग , निवास स्थान आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा  


संघवाद

  • भारतीय संविधान के अनुसार भारत में संघवाद की अवधारणा को अपनाया गया है यहाँ शक्तियों का विभाजन केंद्र सरकार , राज्य सरकार और स्थानीय शासन के रूप में है 



राष्ट्रीय पहचान

  • संविधान में समस्त भारतीय जनता की एक राष्ट्रीय पहचान पर निरंतर जोर दिया गया है। 
  • हमारी एक राष्ट्रीय पहचान का भाषा या धर्म के आधार पर बनी अलग-अलग पहचानों से कोई विरोध नहीं है।
  • भारतीय संविधान में इन दो पहचानों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। 
  • फिर भी, किन्हीं विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रीय पहचान को वरीयता प्रदान की गई है। 


प्रक्रियागत उपलब्धि

  • संविधान में सभी को शामिल करने की सोच थी।
  • असहमति को स्वीकार करने की क्षमता संविधान की विशेषता है।
  • समझौते को सही तरीके से अपनाने की जरूरत होती है।
  • सर्वसम्मति से निर्णय लेना संविधान निर्माताओं की प्रशंसनीय नीति थी।


आलोचना

संविधान अस्त-व्यस्त या विस्तृत है

  • कुछ लोगों का मानना है कि संविधान एक सुसंगठित दस्तावेज़ होना चाहिए।
  • भारतीय संविधान में अन्य संवैधानिक दस्तावेज़ों और प्रावधानों (जैसे चुनाव आयोग, लोक सेवा आयोग) को भी शामिल किया गया है।
  • अमेरिका जैसे देशों में संविधान संक्षिप्त है, लेकिन भारत में इसे विस्तृत रूप दिया गया है ताकि सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को समाहित किया जा सके।

सबकी नुमाइंदगी नहीं हो सकी

  • संविधान सभा सार्वभौम मताधिकार से नहीं बनी थी, 
  • बल्कि समाज के अग्रणी तबके के लोग इसमें शामिल थे।
  • नुमाइंदगी के दो पहलू हैं:
  1. आवाज़: संविधान सभा में हर तबके की आवाज़ पूरी तरह नहीं आई।
  2. राय: विभिन्न मुद्दों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ और कई वर्गों के सरोकारों को शामिल किया गया।

  • संविधान में दलितों और अन्य वर्गों की आकांक्षाओं को भी स्थान दिया गया, जिसे अंबेडकर की प्रतिमा के रूप में देखा जा सकता है।


संविधान भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल नहीं

  • आलोचकों के अनुसार, भारतीय संविधान विदेशी संविधानों की नकल है।
  • इसमें भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक परिस्थितियों को पर्याप्त रूप से नहीं दर्शाया गया।
  • हालांकि, संविधान में भारत की विविधता और सामाजिक मूल्यों को समाहित करने का प्रयास किया गया है।


सीमाएँ

  • इन बातों का यह मतलब नहीं कि भारत का संविधान हर तरह से पूर्ण और त्रुटिहीन दस्तावेज है।
  • जिन सामाजिक परिस्थितियों में इसका निर्माण हुआ उसे देखते हुए यह बात स्वाभाविक है कि इसमें कुछ विवादास्पद मुद्दे रह जाएँ ऐसी बातें बच जाएँ जिनके पुनरावलोकन की जरूरत हो। 
  • इस संविधान की बहुत-सी ऐसी बातें समय के दबाव में पैदा हुई। फिर भी, हमें स्वीकार करना चाहिए कि इस संविधान की कुछ सीमाएँ हैं।
  • भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता को धारणा बहुत केंद्रीकृत है। 
  • इसमें लिंगगत-न्याय के कुछ महत्त्वपूर्ण मसलों खासकर परिवार से जुड़े मुद्दों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया है।
  • यह बात स्पष्ट नहीं है कि एक गरीब और विकासशील देश में कुछ बुनियादी सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों का अभिन्न हिस्सा बनाने के बजाय उसे राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व वाले खंड में क्यों डाल दिया गया





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!