राष्ट्रवाद शब्द के प्रति आम समझ क्या है ?
- देशभक्ति
- राष्ट्रीय ध्वज
- देश के लिए बलिदान
- देशप्रेम
- दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड भारतीय राष्ट्रवाद का बेजोड़ प्रतीक है
राष्ट्रवाद
- पिछले 200 वर्षों में राष्ट्रवाद एक महत्वपूर्ण राजनीतिक सिद्धांत के रूप में उभरा है राष्ट्रवाद ने इतिहास रचने में योगदान किया है।
- इसने निष्ठाओं के साथ-साथ गहरे विद्वेषों को भी प्रेरित किया है।
- इसने जनता को जोड़ा है तो विभाजित भी किया है।
- इसने अत्याचारी शासन से मुक्ति दिलाने में मदद की तो इसके साथ यह विरोध, कटुता और युद्धों का कारण भी रहा है।
- राष्ट्रवाद कई चरणों से गुजर चुका है।
- उदाहरण - उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप में इसने कई छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से वृहत्तर राष्ट्र-राज्यों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
- आज के जर्मनी और इटली का गठन एकीकरण और सुदृढ़ीकरण की इसी प्रक्रिया के जरिए हुआ था।
- लातिनी अमेरिका में बड़ी संख्या में नए राज्य भी स्थापित किए गए थे।
- नए राष्ट्रों के लोगों ने एक नई राजनीतिक पहचान अर्जित की, जो राष्ट्र राज्य की सदस्यता पर आधारित थी।
साम्राज्यों के पतन
- राष्ट्रवाद बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन में हिस्सेदार भी रहा है।
- यूरोप में बीसवीं शताब्दी के आरंभ में ऑस्ट्रियाई-हंगेरियाई और रूसी साम्राज्य तथा इनके साथ एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश, फ्रांसीसी, डच और पुर्तगाली साम्राज्य के विघटन के मूल में राष्ट्रवाद ही था।
- राष्ट्रों की सीमाओं के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया अभी जारी है। 1960 के दशक से ही, सीधे तौर पर सुस्थिर राष्ट्र-राज्य भी कुछ समूह या अंचलों द्वारा उठाई गई राष्ट्रवादी माँगों का सामना करते रहे हैं। इन माँगों में पृथक राज्य की माँग भी शामिल है।
- आज दुनिया के अनेक भागों में हम ऐसे राष्ट्रवादी संघर्षों को देख सकते हैं जो मौजूदा राष्ट्रों के अस्तित्व के लिए खतरे पैदा कर रहे हैं।
- ऐसे पृथकतावादी आंदोलन अन्य जगहों के साथ-साथ कनाडा के क्यूबेकवासियों, उत्तरी स्पेन के बास्कवासियों, तुर्की और इराक के कुर्दों श्रीलंका के तमिलों द्वारा भी चलाए जा रहे हैं।
राष्ट्र और राष्ट्रवाद
- राष्ट्र केवल एक आकस्मिक समूह नहीं होता, बल्कि यह एक विशिष्ट सामाजिक संरचना है, जो अन्य मानव समूहों से अलग होती है।
- यह परिवार, जनजातीय समूह, जातीय समुदाय या किसी अन्य सगोत्रीय समूह से भिन्न होता है, क्योंकि इसका आधार प्रत्यक्ष संबंधों, वंश परंपरा या विवाह नहीं होता।
राष्ट्र और अन्य सामाजिक समूहों में अंतर:
1. परिवार से अलग:
- परिवार प्रत्यक्ष संबंधों पर आधारित होता है।
- परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं।
2.जनजातीय और जातीय समूहों से अलग:
- इनमें सदस्य वंशानुगत संबंधों से जुड़े होते हैं।
- विवाह और कुल परंपरा से संबंध स्थापित होते हैं।
- पहचान स्थापित करने के लिए एक साझा इतिहास और वंश परंपरा होती है।
3.राष्ट्र का विशिष्ट स्वरूप:
- राष्ट्र में अधिकतर सदस्य एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते।
- कोई अनिवार्य रूप से साझा भाषा, धर्म या जातीय पहचान आवश्यक नहीं होती।
- फिर भी राष्ट्र के लोग उसमें रहते हैं और उसकी पहचान को स्वीकार करते हैं।
4.राष्ट्र की निर्माण प्रक्रिया:
- अक्सर यह माना जाता है कि राष्ट्र कुल, भाषा, धर्म या जातीयता पर आधारित होते हैं।
- लेकिन, वास्तविकता में कोई एक विशेष गुण सभी राष्ट्रों में समान रूप से नहीं पाया जाता।
- कई राष्ट्रों की कोई एक सामान्य भाषा नहीं होती, जैसे कनाडा, जहाँ अंग्रेजी और फ्रांसीसी भाषाएँ प्रमुख हैं।
- भारत जैसे देशों में भी अनेक भाषाएँ और धर्म हैं, लेकिन फिर भी यह एक राष्ट्र के रूप में संगठित है।
5.राष्ट्र: एक काल्पनिक समुदाय
- राष्ट्र एक ‘काल्पनिक समुदाय’ की तरह होता है।
- यह अपने सदस्यों की साझा मान्यताओं, विश्वासों और आकांक्षाओं के आधार पर निर्मित होता है।
- लोग कुछ खास मान्यताओं को राष्ट्र से जोड़ते हैं और उसी के माध्यम से अपनी पहचान को स्थापित करते हैं।
साझे विश्वास
- पहला, राष्ट्र विश्वास के जरिए बनता है। राष्ट्र पहाड़, नदी या भवनों की तरह नहीं होते, जिन्हें हम देख सकते हैं और जिनका स्पर्श महसूस कर सकते हैं। वे ऐसी चीजें भी नहीं हैं जिनका लोगों के विश्वासों से स्वतंत्र अस्तित्व हो।
- किसी समाज के लोगों को राष्ट्र की संज्ञा देना उनके शारीरिक विशेषताओं या आचरण पर टिप्पणी करना नहीं है। यह समूह के भविष्य के लिए सामूहिक पहचान और दृष्टि का प्रमाण है, जो स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व का आकांक्षी है। इस मायने में राष्ट्र की तुलना किसी टीम से की जा सकती है।
- जब हम टीम की बात करते हैं तो हमारा मतलब लोगों के ऐसे समूह से है, जो एक साथ काम करते या खेलते हों और इससे भी ज्यादा जरूरी है कि वे स्वयं को एकीकृत समूह मानते हों।
- अगर वे अपने बारे में इस तरह नहीं सोचते तो एक टीम की उनको हैसियत जाती रहेगी और वे खेल खेलने या काम करने वाले महज अलग-अलग व्यक्ति रह जाएँगे। एक राष्ट्र का अस्तित्व तभी कायम रहता है जब उसके सदस्यों को यह विश्वास हो कि वे एक-दूसरे के साथ है।
साझे विश्वास और राष्ट्र की अवधारणा
1. राष्ट्र और विश्वास का संबंध:
- राष्ट्र किसी भौतिक वस्तु (जैसे पहाड़, नदी या इमारत) की तरह नहीं होता जिसे हम देख या छू सकते हैं।
- राष्ट्र का अस्तित्व पूरी तरह से लोगों के साझे विश्वास पर आधारित होता है।
- किसी समूह को राष्ट्र मानना केवल उनकी भौतिक विशेषताओं या
- आचरण पर आधारित नहीं होता, बल्कि यह एक सामूहिक पहचान और दृष्टि से जुड़ा होता है।
- यह विश्वास राष्ट्र को एक स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व के रूप में स्थापित करता है।
2. राष्ट्र की तुलना टीम से:
- राष्ट्र को एक टीम की तरह देखा जा सकता है।
- एक टीम वह समूह होती है जो मिलकर कार्य करती है और स्वयं को एक एकीकृत समूह मानती है।
- यदि कोई टीम अपने बारे में एकजुटता की भावना नहीं रखती, तो वह केवल अलग-अलग व्यक्तियों का समूह रह जाएगी।
- इसी तरह, यदि राष्ट्र के लोगों में आपसी विश्वास और एकता की भावना नहीं होगी, तो राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
3. राष्ट्र का अस्तित्व और एकजुटता:
- राष्ट्र तब तक कायम रहता है जब तक उसके नागरिकों को यह विश्वास होता है कि वे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
- यह विश्वास राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक तत्वों पर आधारित होता है।
- यदि राष्ट्र के सदस्यों में यह साझा भावना समाप्त हो जाए, तो राष्ट्र में विभाजन और अस्थिरता आ सकती है।
इतिहास की भूमिका
1.राष्ट्र और ऐतिहासिक पहचान:
- जो लोग स्वयं को एक राष्ट्र के रूप में देखते हैं, उनके भीतर अपने अतीत और भविष्य को लेकर एक स्थायी पहचान की भावना होती है।
- राष्ट्र केवल वर्तमान की इकाई नहीं होता, बल्कि यह अतीत की स्मृतियों और भविष्य की आकांक्षाओं को भी समाहित करता है।
- राष्ट्र अपने अस्तित्व को मजबूत करने के लिए साझी ऐतिहासिक घटनाओं, किंवदंतियों और अभिलेखों का निर्माण करता है।
2. इतिहासबोध और राष्ट्रवाद:
- राष्ट्र की ऐतिहासिक पहचान उसकी सभ्यता, संस्कृति और निरंतरता से जुड़ी होती है।
- भारत के राष्ट्रवादियों ने यह सिद्ध करने की कोशिश की कि भारत की सभ्यता प्राचीन, समृद्ध और एक अटूट निरंतरता से जुड़ी हुई है।
- इतिहास को राष्ट्र की एकता और अस्तित्व के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
3. भारत में इतिहासबोध और राष्ट्रवाद:
- भारतीय राष्ट्रवादियों ने यह दावा किया कि भारत एक प्राचीन सभ्यता रहा है, जो सांस्कृतिक विरासत और निरंतरता को बनाए रखता है।
- पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' में लिखा कि भारत में विविधता होने के बावजूद एकता की गहरी छाप रही है।
- यह एकता सदियों से बनी रही, चाहे कोई भी राजनीतिक परिवर्तन हुआ हो।
4. ऐतिहासिक स्मृतियों की भूमिका:
राष्ट्र निर्माण के लिए साझी ऐतिहासिक स्मृतियाँ महत्वपूर्ण होती हैं। ऐतिहासिक घटनाएँ, नायक, संघर्ष और उपलब्धियाँ राष्ट्र की सामूहिक पहचान को मजबूत करती हैं। इतिहास का उपयोग राष्ट्रीय एकता, गौरव और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए किया जाता है।
i. भूक्षेत्र और राष्ट्रीय पहचान:
- अधिकांश राष्ट्रों की पहचान एक विशिष्ट भूगोल से जुड़ी होती है।
- किसी खास क्षेत्र में लंबे समय तक निवास और उससे जुड़ी ऐतिहासिक स्मृतियाँ लोगों को एक सामूहिक पहचान प्रदान करती हैं।
- यह भूगोल न केवल रहने की जगह होता है, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है।
ii. गृहभूमि की अवधारणा:
जो लोग स्वयं को एक राष्ट्र के रूप में देखते हैं, वे अक्सर गृहभूमि (Homeland) की बात करते हैं।वे अपने निवास स्थान पर अपना अधिकार जताते हैं और उसे अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं।अलग-अलग राष्ट्र अपनी गृहभूमि को अलग-अलग तरीकों से व्यक्त करते हैं:
- कोई इसे मातृभूमि (Motherland) कहता है।
- कोई इसे पितृभूमि (Fatherland) कहता है।
- कुछ इसे पवित्र भूमि (Sacred Land) मानते हैं।
iii. ऐतिहासिक उदाहरण:
यहूदी समुदाय : यहूदी लोग लंबे समय तक विभिन्न देशों में बिखरे रहे।लेकिन उन्होंने हमेशा फिलीस्तीन को अपनी मातृभूमि माना। इसे वे "स्वर्ग" के रूप में देखते थे।
भारत का भूगोल और राष्ट्रीय पहचान: