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संस्थाओं का कामकाज Notes in Hindi Class 9 Loktantrik Rajniti Chapter-4 Book 2 Functioning of Institutions sansthaon ka kamakaj

संस्थाओं का कामकाज Notes in Hindi Class 9 Loktantrik Rajniti Chapter-4 Book 2 Functioning of Institutions sansthaon ka kamakaj


परिचय

लोकतंत्र केवल शासकों के चुनाव तक सीमित नहीं है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में शासकों को भी नियमों और संस्थाओं के दायरे में रहकर काम करना होता है। इन संस्थाओं के कामकाज और उनके महत्व को समझाने पर केंद्रित है। भारत में महत्त्वपूर्ण फैसले कैसे लिए जाते हैं और उनसे जुड़े विवादों को कैसे सुलझाया जाता है। इसमें तीन प्रमुख संस्थाओं - विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका - पर ध्यान दिया जाएगा।

हम इन सवालों पर विचार करेंगे:

1. ये संस्थाएँ क्या काम करती हैं?

2. एक संस्था दूसरी से कैसे जुड़ी है?

3. इनके काम कितने लोकतांत्रिक हैं?

इस अध्याय का उद्देश्य यह समझना है कि ये संस्थाएँ मिलकर सरकार का काम कैसे करती हैं। इसमें राष्ट्रीय स्तर की सरकार के उदाहरण दिए जाएँगे, जिसे केंद्र सरकार भी कहते हैं। साथ ही, आप अपने राज्य की सरकार के कामकाज पर भी गौर कर सकते हैं।


4.1 प्रमुख नीतिगत फ़ैसले कैसे किए जाते हैं?

एक सरकारी आदेश

13 अगस्त 1990 को भारत सरकार ने एक आदेश जारी किया (ओ.एम. नं. 36012/31/90), जिसमें सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) के लिए देने का निर्णय लिया गया। इससे पहले आरक्षण का लाभ केवल अनुसूचित जाति और जनजातियों को मिलता था। इस आदेश ने SEBC के लिए अलग कोटा बनाया, जिसमें अन्य लोग हिस्सा नहीं ले सकते थे। यह फैसला महत्वपूर्ण था और लंबे समय तक विवाद का कारण बना।


निर्णय करने वाले

भारत में बड़े सरकारी फैसले कैसे लिए जाते हैं और लागू होते हैं, यह समझने के लिए मंडल आयोग और आरक्षण का मामला एक अच्छा उदाहरण है।

मंडल आयोग की सिफारिशें

मंडल आयोग का गठन 1979 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान और उनके लिए उपाय सुझाने के लिए किया गया। आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण की सिफारिश की गई। इस रिपोर्ट और सिफारिशों पर लंबे समय तक संसद और राजनीतिक दलों के बीच बहस चलती रही, और कई पार्टियाँ इसे लागू करने की मांग करती रहीं। 1989 के चुनाव घोषणा-पत्र में जनता दल ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने का वादा किया। चुनाव जीतने के बाद वी.पी. सिंह के नेतृत्व में जनता दल सरकार बनी।

आरक्षण लागू करने की प्रक्रिया

नई सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने की मंशा जाहिर की। 6 अगस्त 1990 को केंद्रीय कैबिनेट ने इसे औपचारिक रूप से मंजूरी दी, और 7 अगस्त 1990 को प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने संसद में इसकी घोषणा की। इसके बाद, 13 अगस्त 1990 को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने कैबिनेट के फैसले के अनुसार आदेश जारी किया, जिसे "ओ.एम. नं. 36012/31/90" के नाम से जाना गया।

विवाद और प्रतिक्रियाएँ

इस फैसले का समर्थन और विरोध दोनों हुआ। समर्थकों ने इसे सामाजिक असमानता कम करने और पिछड़े वर्गों को बराबरी का मौका देने वाला कदम माना। वहीं, विरोध करने वालों का तर्क था कि इससे योग्य लोगों के मौके छिनेंगे और जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा, जिससे देश की एकता पर असर पड़ेगा। इस फैसले के खिलाफ कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें से कुछ हिंसक भी हो गए।

अदालत का हस्तक्षेप

सरकार के 1990 के आदेश के खिलाफ अदालतों में कई मुकदमे दायर हुए। इनमें इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार का मामला (1992) प्रमुख था। सुप्रीम कोर्ट की 11 जजों की पीठ ने सभी मामलों को एक साथ सुना। कोर्ट ने आदेश को वैध ठहराया, लेकिन यह भी फैसला दिया कि पिछड़े वर्गों के आर्थिक रूप से संपन्न लोग (क्रीमी लेयर) आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते। इसके बाद, 1993 में सरकार ने संशोधित आदेश जारी किया।


राजनैतिक संस्थाओं की आवश्यकता

सरकार की जिम्मेदारियाँ:

  • नागरिकों की सुरक्षा, शिक्षा, और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना।
  • कर वसूलना और सेना, पुलिस, तथा विकास कार्यों पर खर्च करना।
  • कल्याणकारी योजनाएँ बनाना और लागू करना।

संस्थाओं की भूमिका:

  • आधुनिक लोकतंत्र में कामकाज के लिए संस्थाएँ बनाई जाती हैं।
  • संविधान में प्रत्येक संस्था के अधिकार और कार्यों का विवरण होता है।

मुख्य संस्थाएँ:

  • प्रधानमंत्री और कैबिनेट: सभी महत्त्वपूर्ण नीतिगत फैसले लेते हैं।
  • नौकरशाही: मंत्रियों के फैसलों को लागू करती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय: नागरिक और सरकार के बीच विवाद सुलझाता है।

संस्थाओं का महत्व:

  • संस्थाएँ सुनिश्चित करती हैं कि सरकार का कामकाज नियमित और प्रभावी तरीके से चले।
  • फैसले लेने में देरी हो सकती है, लेकिन यह विचार-विमर्श का अवसर देती है।
  • संस्थाएँ गलत फैसले जल्दी लेने से रोकती हैं, जिससे लोकतंत्र मजबूत होता है।

चुनौतियाँ:

  • संस्थाओं से जुड़े कायदे-कानून के कारण काम में देरी और जटिलता हो सकती है।
  • एक व्यक्ति द्वारा सारे फैसले लेने की सोच लोकतंत्र के अनुकूल नहीं है।


4.2 संसद

मंडल आयोग की सिफारिशें सीधे संसद में पारित नहीं हुईं, लेकिन इस पर संसद में चर्चा ने सरकार की राय को प्रभावित किया। राष्ट्रपति ने इसका जिक्र किया, और प्रधानमंत्री ने इसकी जानकारी दी। संसद के समर्थन के बिना सरकार यह कदम नहीं उठा सकती थी, क्योंकि संसद ही सरकार की नीतियों को मंजूरी देती है। अगर संसद ने कैबिनेट के फैसले का समर्थन नहीं किया होता, तो यह लागू नहीं हो सकता था।


हमें संसद की आवश्यकता क्यों है ?

लोकतंत्र में संसद जनता के प्रतिनिधियों की सभा होती है, जो कानून बनाती है, सरकार को नियंत्रित करती है, और सार्वजनिक मसलों पर चर्चा करती है। भारत में इसे संसद कहा जाता है। संसद में दो सदन होते हैं:

1. लोकसभा (हाउस ऑफ पीपल)

2. राज्यसभा (काउंसिल ऑफ स्टेट्स)

संसद के काम

कानून बनाना:

  • संसद नए कानून बना सकती है, पुराने कानूनों में बदलाव कर सकती है या उन्हें खत्म कर सकती है।
  • इसी वजह से इसे विधायिका कहा जाता है।

सरकार पर नियंत्रण:

  • संसद सरकार के फैसलों और कामकाज की निगरानी करती है।
  • सरकार संसद का विश्वास जीतकर ही चल सकती है।

वित्तीय नियंत्रण:

  • सरकार को पैसे खर्च करने के लिए संसद से अनुमति लेनी पड़ती है।

राष्ट्रीय नीति पर बहस:

संसद राष्ट्रीय और सार्वजनिक मुद्दों पर चर्चा करती है और किसी भी मामले की जानकारी माँग सकती है।

लोकसभा और राज्यसभा का अंतर

राष्ट्रपति की भूमिका

भारत के राष्ट्रपति भी संसद का हिस्सा होते हैं। हालांकि वे किसी भी सदन के सदस्य नहीं होते। संसद के किसी भी फैसले को लागू करने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी होती है।


लोकसभा बनाम राज्य सभा

लोकसभा राज्यसभा से अधिक प्रभावशाली है, क्योंकि अधिकतर मामलों में इसे प्राथमिकता दी जाती है:

1. सामान्य कानून दोनों सदनों से पारित होते हैं, लेकिन मतभेद होने पर संयुक्त सत्र में फैसला होता है, जहाँ लोकसभा के विचार को प्राथमिकता मिलती है क्योंकि इसके सदस्य अधिक होते हैं।

2. पैसे के मामलों में लोकसभा का अधिकार ज्यादा है। बजट या वित्तीय बिल को राज्यसभा खारिज नहीं कर सकती, केवल 14 दिन की देरी या सुझाव दे सकती है। लोकसभा इन सुझावों को मानने या न मानने के लिए स्वतंत्र है।

3. लोकसभा मंत्रिपरिषद् को नियंत्रित करती है। प्रधानमंत्री वही बन सकता है जिसे लोकसभा का बहुमत हासिल हो। अगर लोकसभा बहुमत खोने का फैसला करे, तो मंत्रिपरिषद् को इस्तीफा देना पड़ता है, जो अधिकार राज्यसभा के पास नहीं है।


4.3 राजनैतिक कार्यपालिका

सरकारी आदेश के पीछे नीतिगत फैसले का क्रियान्वयन होता है, जो कार्यपालिका द्वारा किया जाता है। कार्यपालिका में प्रधानमंत्री, मंत्री, और अधिकारी शामिल होते हैं, जो सरकार की नीतियों को लागू करते हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री संसद के समर्थन के बिना फैसले नहीं ले सकते। कार्यपालिका सरकार की नीतियों को अमल में लाने के लिए जिम्मेदार होती है, और "सरकार" का सामान्य अर्थ कार्यपालिका ही होता है।

राजनैतिक और स्थायी कार्यपालिका

लोकतंत्र में कार्यपालिका के दो हिस्से होते हैं:

1. राजनीतिक कार्यपालिका: जनता द्वारा चुने गए मंत्री, जो बड़े फैसले लेते हैं और जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं।

2. स्थायी कार्यपालिका: सिविल सेवक या नौकरशाह, जो मंत्रियों के तहत काम करते हैं और प्रशासन चलाने में मदद करते हैं।

मंत्रियों को नौकरशाहों से ज्यादा अधिकार इसलिए होते हैं क्योंकि वे जनता के प्रतिनिधि हैं और उनकी इच्छाओं को लागू करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। मंत्री विशेषज्ञों की सलाह लेकर निर्णय लेते हैं, लेकिन अंतिम फैसला उनकी व्यापक दृष्टि और जनता की जरूरतों पर आधारित होता है। लोकतंत्र में जनता की इच्छा सर्वोपरि होती है, इसलिए मंत्री फैसलों के लिए जवाबदेह होते हैं।


प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद्

भारत में प्रधानमंत्री सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक संस्था है। हालांकि, प्रधानमंत्री का चुनाव सीधे जनता नहीं करती। आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं।

प्रधानमंत्री की नियुक्ति

राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत वाली पार्टी या गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करते हैं। अगर बहुमत स्पष्ट न हो, तो राष्ट्रपति उस नेता को चुनते हैं, जिसे सदन में बहुमत मिलने की संभावना हो।

कार्यकाल:

प्रधानमंत्री का कार्यकाल तय नहीं है। वह तब तक पद पर रहता है, जब तक वह पार्टी या गठबंधन का नेता है।

मंत्रियों की नियुक्ति:

प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति अन्य मंत्रियों को नियुक्त करते हैं। मंत्री आमतौर पर बहुमत वाली पार्टी या गठबंधन से होते हैं। कोई व्यक्ति संसद का सदस्य न होते हुए भी मंत्री बन सकता है, लेकिन उसे 6 महीने के भीतर संसद का सदस्य बनना होता है।

मंत्रिपरिषद और कैबिनेट

मंत्रिपरिषद में सभी मंत्री शामिल होते हैं और इसमें आमतौर पर 60-80 मंत्री होते हैं। कैबिनेट, मंत्रिपरिषद का शीर्ष समूह है, जिसमें करीब 25 वरिष्ठ मंत्री होते हैं। कैबिनेट देश के बड़े फैसले लेने के लिए बैठकों में चर्चा करती है।

मंत्रियों के प्रकार

कैबिनेट मंत्री वरिष्ठ नेता होते हैं जो बड़े मंत्रालयों के प्रभारी रहते हैं और कैबिनेट की बैठकों में भाग लेकर फैसले करते हैं। स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री छोटे मंत्रालयों का स्वतंत्र रूप से प्रभार संभालते हैं और कैबिनेट बैठक में केवल विशेष आमंत्रण पर शामिल होते हैं। राज्य मंत्री कैबिनेट मंत्रियों की सहायता करते हैं और उनके अधीन काम करते हैं।

फैसले कैसे होते हैं?

कैबिनेट सामूहिक रूप से काम करती है, और हर मंत्री को कैबिनेट के फैसलों की जिम्मेदारी लेनी होती है। कोई मंत्री सरकारी फैसले की सार्वजनिक आलोचना नहीं कर सकता। कैबिनेट सचिवालय कैबिनेट को सहयोग देता है और वरिष्ठ नौकरशाहों के माध्यम से विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करता है।


प्रधानमंत्री के अधिकार

संविधान में प्रधानमंत्री और मंत्रियों के अधिकार स्पष्ट रूप से नहीं बताए गए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री के पास व्यापक अधिकार होते हैं। वह कैबिनेट की अध्यक्षता करता है, विभागों के काम का समन्वय करता है, और मंत्रियों को काम सौंपता है। प्रधानमंत्री के इस्तीफे पर पूरा मंत्रिमंडल भी इस्तीफा दे देता है।

प्रधानमंत्री कैबिनेट का सबसे प्रभावशाली सदस्य होता है और उसका अधिकार उसके व्यक्तित्व और जनता पर प्रभाव पर निर्भर करता है। जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे प्रधानमंत्रियों ने अपने प्रभाव से सारे अधिकार केंद्रित किए। हालांकि, गठबंधन सरकारों के कारण प्रधानमंत्री के अधिकार सीमित हुए हैं। अब उसे गठबंधन के साझीदारों और दूसरी पार्टियों की राय का भी ध्यान रखना पड़ता है।


राष्ट्रपति

प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है, जबकि राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होता है, जिसका काम मुख्य रूप से आलंकारिक होता है। राष्ट्रपति संसद और विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा चुना जाता है और पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्रपति के नाम पर सभी सरकारी गतिविधियाँ, कानून, और प्रमुख नियुक्तियाँ होती हैं, लेकिन वह मंत्रिपरिषद् की सलाह पर काम करता है।

राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बहुमत वाली पार्टी के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करना उसकी जिम्मेदारी है। यदि कोई स्पष्ट बहुमत न हो, तो राष्ट्रपति अपने विवेक से ऐसे नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है, जो लोकसभा में बहुमत साबित कर सके। राष्ट्रपति संसद से पारित विधेयक पर पुनर्विचार के लिए उसे वापस भेज सकता है, लेकिन संसद के दोबारा पारित करने पर उसे मंजूरी देनी होती है।


4.4 न्यायपालिका

भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका एक स्वतंत्र और प्रभावशाली संस्था है। इसका उद्देश्य है नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना, संविधान का पालन सुनिश्चित करना और कानून के राज को बनाए रखना।

न्यायपालिका का महत्व

यदि देश में सर्वोच्च न्यायालय न हो, या उसे सरकार के फैसले जांचने का अधिकार न हो, या उस पर लोगों का विश्वास न हो, तो लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा। न्यायपालिका निष्पक्ष फैसले सुनाए और लोग उनका पालन करें, यह जरूरी है। इसलिए, हर लोकतंत्र में स्वतंत्र और प्रभावशाली न्यायपालिका का होना बहुत जरूरी है।

भारतीय न्यायपालिका का ढांचा

भारतीय न्यायपालिका एकीकृत है, यानी सर्वोच्च न्यायालय पूरे देश की न्यायिक प्रणाली को नियंत्रित करता है। इसका ढांचा:

1. सर्वोच्च न्यायालय: पूरे देश के लिए शीर्ष अदालत।

2. उच्च न्यायालय: प्रत्येक राज्य या राज्यों के लिए।

3. जिला और स्थानीय न्यायालय: स्थानीय स्तर पर।

न्यायपालिका के अधिकार

न्यायपालिका विवादों का निपटारा करती है, जैसे नागरिकों के बीच, नागरिक और सरकार के बीच, राज्य सरकारों के बीच, और केंद्र व राज्य सरकार के बीच। यह न्यायिक समीक्षा के जरिए जांच करती है कि कानून या कार्यपालिका का फैसला संविधान के खिलाफ है या नहीं। अगर कोई कानून संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ हो, तो अदालत उसे अमान्य कर सकती है। न्यायपालिका मौलिक अधिकारों की रक्षक है, और नागरिक अपने अधिकारों के उल्लंघन पर अदालत जा सकते हैं। जनहित याचिका (PIL) के जरिए कोई भी व्यक्ति जनहित के मुद्दों पर अदालत में अपील कर सकता है।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता

न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो प्रधानमंत्री और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से सलाह लेते हैं। नए न्यायाधीशों का चयन वरिष्ठ न्यायाधीश करते हैं, और इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप बहुत कम होता है। किसी न्यायाधीश को हटाना बहुत कठिन है और यह तभी संभव है जब संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित हो। अदालतें संविधान की व्याख्या करने और उसके अनुसार स्वतंत्र रूप से फैसले देने के लिए सक्षम हैं।

जनता का विश्वास

भारतीय न्यायपालिका ने मानवाधिकारों और सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। यह सरकार की गलतियों और शक्ति के दुरुपयोग को रोकने में भी हस्तक्षेप करती है, जिससे लोगों का व्यापक समर्थन और विश्वास इसे हासिल है।

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