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लोकतांत्रिक अधिकार Notes in Hindi Class 9 Loktantrik Rajniti Chapter-5 Book 2 Democratic Rights loktantrik adhikar

लोकतांत्रिक अधिकार Notes in Hindi Class 9 Loktantrik Rajniti Chapter-5 Book 2 Democratic Rights loktantrik adhikar


भूमिका

हम लोकतंत्र के एक और जरूरी हिस्से – अधिकारों – पर चर्चा करेंगे। लोकतांत्रिक सरकार के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और कायदे-कानून से चलने वाली संस्थाएँ जरूरी हैं। लेकिन लोकतंत्र इनसे ही पूरा नहीं होता। लोकतंत्र में नागरिकों को अपने अधिकारों का उपयोग करने की आज़ादी होनी चाहिए। ये अधिकार शासकों के लिए सीमा रेखा तय करते हैं, ताकि वे अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल न करें।

हम जानेंगे:

  • अधिकारों का क्या मतलब है और उनकी जरूरत क्यों है।
  • भारतीय संविधान में दर्ज मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं।
  • आम लोग अपने अधिकारों का प्रयोग और उनकी रक्षा कैसे कर सकते हैं।
  • अधिकार लोकतंत्र को मजबूत बनाने में कैसे मदद करते हैं।

अंत में, हम देखेंगे कि अधिकारों ने भारत में लोकतंत्र को कैसे प्रभावित किया और उनका आज के समय में क्या महत्व 


5.1 अधिकारों के बिना जीवन

अध्याय 1: लोकतंत्र की परिभाषा में अधिकार लोगों की स्वतंत्रता और समानता को सुनिश्चित करते हैं।

अध्याय 2: हमारे संविधान निर्माताओं का मानना था कि मौलिक अधिकार संविधान की आत्मा हैं क्योंकि ये नागरिकों को स्वतंत्रता और गरिमा देते हैं।

अध्याय 3: भारत के प्रत्येक वयस्क को वोट देने और चुनाव लड़ने का अधिकार है।

अध्याय 4: अगर कोई कानून संविधान के खिलाफ है, तो हर नागरिक को उसके खिलाफ अदालत जाने का अधिकार है।


गुआंतानामो बे का जेल

अमेरिकी सेना ने 600 लोगों को, जिनमें अनस के पिता जमिल अल-बन्ना भी शामिल थे, 11 सितंबर 2001 के हमलों के संदेह में गुआंतानामो बे जेल में बिना मुकदमे के बंद कर दिया। इन कैदियों को उनके देश की अदालतों तक पहुंचने या परिवार से मिलने की इजाजत नहीं दी गई। एमनेस्टी इंटरनेशनल और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों ने बताया कि कैदियों के साथ ज्यादती हुई और अमेरिकी कानूनों का पालन भी नहीं किया गया। कई कैदियों को निर्दोष साबित होने के बावजूद नहीं छोड़ा गया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने जेल बंद करने की अपील की, जिसे अमेरिकी सरकार ने खारिज कर दिया। 


सऊदी अरब में नागरिक अधिकार

सऊदी अरब में राजशाही है, जहाँ शाह को चुनने या बदलने में जनता की कोई भूमिका नहीं होती। शाह विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका को नियंत्रित करते हैं। राजनैतिक दल बनाने और स्वतंत्र मीडिया की अनुमति नहीं है। केवल मुसलमान नागरिक हो सकते हैं, और अन्य धर्मों के लोग सार्वजनिक रूप से पूजा नहीं कर सकते। महिलाओं को पुरुषों से कम अधिकार दिए गए हैं और उन्हें स्थानीय निकाय चुनावों में मताधिकार नहीं है। ऐसी स्थिति केवल सऊदी अरब में नहीं, बल्कि कई अन्य देशों में भी पाई जाती है। 


कोसोवो में जातीय नरसंहार

कोसोवो, जो पहले यूगोस्लाविया का हिस्सा था, में अल्बानियाई लोग बहुसंख्यक थे, लेकिन पूरे देश में सर्ब लोग अधिक थे। सर्ब नेता मिलोशेविक ने चुनाव जीतकर सत्ता हासिल की और कोसोवो के अल्बानियाई लोगों के प्रति कठोर नीति अपनाई। उनका उद्देश्य सर्बों का प्रभुत्व स्थापित करना था, और अल्पसंख्यकों को दबाना या देश छोड़ने पर मजबूर करना था।

1999 में, कोसोवो में सर्ब सेना ने अल्बानियाई परिवारों पर अत्याचार किया। एक घटना में, बतीशा होक्सा ने देखा कि सर्ब सैनिकों ने उनके पति की हत्या कर दी और उनके घर को जला दिया। हजारों अल्बानियाई लोग इसी तरह के अत्याचार का शिकार हुए।

यह नरसंहार एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार के तहत हुआ, जो जातीय नफरत का नतीजा था। अंततः अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप से यह अत्याचार रुका, मिलोशेविक की सत्ता खत्म हुई, और उन पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मानवता के खिलाफ अपराध का मुकदमा चला।


5.2 लोकतंत्र में अधिकार

अगर आप इन उदाहरणों के शिकार लोगों की जगह होते, तो आपके मन में न्याय, सुरक्षा और समान अवसर की चाहत होती। आप एक ऐसी व्यवस्था चाहते, जिसमें बिना कारण और सूचना के किसी को गिरफ्तार न किया जाए, और यदि गिरफ्तार किया जाए तो उसे अपनी बात रखने का मौका मिले। आप यह चाहते कि यह व्यवस्था केवल कागजों तक सीमित न रहे, बल्कि सही अमल किया जाए और जो इसका उल्लंघन करें, उन्हें सजा मिले। यह अधिकारों की सोच का आधार है, जिसमें हर व्यक्ति, चाहे वह अमीर हो या गरीब, ताकतवर हो या कमजोर, समान अधिकारों की गारंटी प्राप्त करता है।


अधिकार क्या है ?

अधिकार किसी व्यक्ति का समाज और सरकार से दावा है, जो उसे बिना डर या अपमान के जीने का मौका देता है। हम चाहते हैं कि हमें किसी से नुकसान न हो, और हमें दूसरों से भी यही उम्मीद होती है। इसलिए, अधिकार तभी संभव हैं जब हम दूसरों के अधिकारों का सम्मान करें। उदाहरण के लिए, आप क्रिकेट खेलने का अधिकार नहीं रख सकते अगर इससे आपके पड़ोसी को नुकसान हो।

अधिकारों का दावा तब तक पूरा नहीं होता जब तक समाज उसे स्वीकार न करे। समाज के कायदे-कानून बताते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। अधिकार समाज में मान्यता प्राप्त होते हैं और जब उन्हें कानूनी रूप से स्वीकार किया जाता है, तो हम उन्हें लागू करने की माँग कर सकते हैं।

अगर किसी का अधिकार का उल्लंघन होता है, तो वह अदालत में जा सकता है। इसलिए, अधिकार तीन बुनियादी चीजों पर आधारित होते हैं: वे तार्किक दावे होते हैं, समाज से स्वीकृत होते हैं, और अदालतों द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं।


लोकतंत्र में अधिकारों की क्या ज़रूरत है ?

लोकतंत्र में अधिकारों का होना जरूरी है, क्योंकि ये नागरिकों को वोट देने, चुनाव लड़ने और अपने विचार व्यक्त करने की आजादी देते हैं। अधिकार बहुसंख्यकों के दमन से अल्पसंख्यकों की रक्षा करते हैं और सरकार को नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होती है। अगर सरकार खुद नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो कुछ अधिकारों को संविधान में दर्ज कर सरकार से ऊँचा दर्जा दिया जाता है, ताकि सरकार भी उनका उल्लंघन न कर सके।


6.3 भारतीय संविधान में अधिकार

भारत का संविधान छः मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जो नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय दिलाने का काम करते हैं। ये अधिकार संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता हैं। इन अधिकारों का उद्देश्य नागरिकों को बुनियादी सुरक्षा और स्वतंत्रता प्रदान करना है। आम नागरिक के लिए इन अधिकारों का मतलब है कि वे सरकार से अपनी स्वतंत्रता, समानता और न्याय की गारंटी मांग सकते हैं।


समानता का अधिकार

समानता का अधिकार भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिक, चाहे उनका दर्जा या पद कुछ भी हो, कानून के सामने समान हैं। इसे कानून का राज कहा जाता है, जिसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।

कानून के सामने सभी समान

समानता का अर्थ है कि प्रधानमंत्री से लेकर गाँव के खेतिहर मजदूर तक, सभी पर एक जैसा कानून लागू होता है और किसी को उसके पद या जन्म के आधार पर विशेषाधिकार नहीं मिल सकता। उदाहरण के तौर पर, एक पूर्व प्रधानमंत्री को भी अदालत में अपनी बेगुनाही साबित करनी पड़ी थी।

समानता के अधिकार के प्रावधान

भेदभाव पर रोक का मतलब है कि धर्म, जाति, लिंग, समुदाय या जन्म स्थान के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जा सकता और सार्वजनिक स्थलों का उपयोग सभी के लिए समान है। सरकारी नौकरियों में समान अवसर का मतलब है कि रोजगार और सरकारी पदों में सभी नागरिकों को समान अवसर मिलते हैं, और जाति, धर्म, या लिंग के आधार पर किसी को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।

आरक्षण और समानता

आरक्षण का उद्देश्य अवसर की समानता सुनिश्चित करना है। अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ी जातियों, महिलाओं, और विकलांग लोगों को विशेष अवसर दिए जाते हैं, जो समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है। संविधान कहता है कि जरूरतमंदों को विशेष अवसर देना समानता का हिस्सा है।

छुआछूत और सामाजिक भेदभाव पर रोक

छुआछूत को कानूनी अपराध घोषित किया गया है, जिसका मतलब सिर्फ शारीरिक संपर्क से बचना नहीं, बल्कि किसी जाति को नीचा दिखाने वाला हर व्यवहार भी शामिल है। संविधान ने इसे समाप्त करने का निर्देश दिया है।


स्वतंत्रता का अधिकार

स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय नागरिकों को अपने जीवन में बाधाओं से मुक्त होकर जीने की आजादी देता है। इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति के जीवन में सरकार या अन्य व्यक्तियों का अनुचित हस्तक्षेप न हो।

संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रताएँ

भारतीय संविधान नागरिकों को कई स्वतंत्रताएँ देता है, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जिसमें बोलने, लिखने, विचार रखने और कला के माध्यम से खुद को व्यक्त करने का अधिकार है। शांतिपूर्ण ढंग से जमा होने की स्वतंत्रता, जो बैठक करने, प्रदर्शन करने, और जुलूस निकालने का अधिकार देती है। संगठन बनाने की स्वतंत्रता, जिसमें लोग अपने हितों के लिए संघ या संगठन बना सकते हैं। कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता, जो देश के किसी भी हिस्से में जाने का अधिकार देती है। रहने-बसने की स्वतंत्रता, जो देश के किसी भी हिस्से में बसने का अधिकार देती है, और पेशा चुनने की स्वतंत्रता, जो किसी भी काम, व्यवसाय या पेशे को अपनाने का अधिकार देती है।

स्वतंत्रता की सीमाएँ

स्वतंत्रता का मतलब असीमित मनमानी नहीं है। इसे इस तरह से इस्तेमाल किया जाना चाहिए कि दूसरों की स्वतंत्रता बाधित न हो, सार्वजनिक अव्यवस्था या हिंसा न फैले, और कानून और समाज का सम्मान बना रहे। उदाहरण के लिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग हिंसा भड़काने, बगावत करने, या किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने के लिए नहीं किया जा सकता। शांतिपूर्ण प्रदर्शन में हथियार ले जाना या अशांति फैलाना प्रतिबंधित है।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकार

जीवन का अधिकार है कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन से वंचित नहीं किया जा सकता, जब तक अदालत उसे कानून के अनुसार सजा न दे। गिरफ्तारी के नियम के तहत, गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारण बताए जाने चाहिए और 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना जरूरी है। उसे वकील रखने और अपनी रक्षा का अधिकार भी होता है।

स्वतंत्रता के अधिकार का महत्व

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें अपने विचार साझा करने और सरकार की नीतियों या अन्य मुद्दों पर राय रखने का अधिकार देती है, जो विकास के लिए जरूरी है। शांतिपूर्ण सभा और संगठन की स्वतंत्रता नागरिकों को अपनी समस्याओं पर चर्चा करने और समाधान खोजने का अधिकार देती है, जैसे मजदूर संघ, महिला संगठन, या भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन। रहने-बसने और पेशा चुनने की स्वतंत्रता के तहत, कोई भी व्यक्ति देश के किसी भी हिस्से में जाकर रह सकता है या व्यवसाय शुरू कर सकता है, जो समानता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।


शोषण के खिलाफ़ अधिकार

संविधान ने कमजोर वर्गों के शोषण को रोकने के लिए तीन प्रमुख बुराइयों को गैर-कानूनी घोषित किया है। पहला, मनुष्य जाति का अवैध व्यापार, जो खासकर महिलाओं के अनैतिक शोषण को रोकता है। दूसरा, बेगार प्रथा, जिसमें मजदूरों से जबरन मुफ्त या बहुत कम मजदूरी पर काम कराया जाता है। जब यह जीवनभर के लिए हो जाए, तो इसे बंधुआ मजदूरी कहते हैं। तीसरा, बाल मजदूरी, जिसमें 14 साल से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक उद्योगों में काम करने से रोका गया है। इसके तहत बीड़ी, पटाखे, दियासलाई, प्रिंटिंग, और रंगाई जैसे उद्योगों में बाल मजदूरी रोकने के कानून बनाए गए हैं।


धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

भारतीय संविधान धार्मिक स्वतंत्रता को स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा मानता है और इसे विशेष दर्जा देता है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहाँ सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार किया जाता है। हर व्यक्ति को अपना धर्म मानने, उस पर आचरण करने और उसका प्रचार करने का अधिकार है, लेकिन झाँसा, लालच या जबरदस्ती से धर्म परिवर्तन की अनुमति नहीं है। धर्म के नाम पर नर बलि, पशु बलि, या महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण प्रथाओं की इजाजत नहीं है। धर्मनिरपेक्ष शासन किसी धर्म को विशेषाधिकार नहीं देता और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करता। सरकारी शैक्षिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती, और निजी संस्थानों में भी किसी को प्रार्थना या धार्मिक निर्देश के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।


सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार

हमारे संविधान निर्माता अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के प्रति सचेत थे, क्योंकि लोकतंत्र में बहुसंख्यकों को स्वाभाविक रूप से अधिक ताकत मिलती है। अल्पसंख्यकों को उनकी भाषा, संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए विशेष संरक्षण की जरूरत होती है। संविधान के अनुसार, विशिष्ट भाषा या संस्कृति वाले समूहों को अपनी पहचान बचाने का अधिकार है। किसी सरकारी या अनुदान प्राप्त संस्थान में किसी को धर्म या भाषा के आधार पर दाखिला नहीं रोका जा सकता। अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थान स्थापित और संचालित करने का अधिकार है। यहाँ "अल्पसंख्यक" का मतलब राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि स्थानीय भाषाई अल्पसंख्यक भी है, जैसे आंध्र प्रदेश में तेलुगु बोलने वाले बहुसंख्यक हैं, लेकिन कर्नाटक में अल्पसंख्यक हैं।


हमें ये अधिकार कैसे मिल सकते हैं ?

संवैधानिक उपचार का अधिकार हमारे मौलिक अधिकारों को प्रभावी और लागू करने का अधिकार देता है। यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि अगर हमारे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो, तो हम अदालत में जाकर न्याय पा सकें।

संवैधानिक उपचार का महत्व

डॉ. अंबेडकर ने इसे संविधान की "आत्मा और हृदय" कहा, क्योंकि यह अन्य सभी मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाता है। हमारे मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है, और कोई भी व्यक्ति, संस्था, या सरकार उनका उल्लंघन नहीं कर सकती। यदि ऐसा होता है, तो हम सीधे सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में न्याय के लिए जा सकते हैं।

मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट मौलिक अधिकारों के हनन पर रिट, आदेश, या निर्देश जारी कर सकते हैं। वे पीड़ित को हर्जाना दिलवा सकते हैं और दोषियों को दंडित कर सकते हैं। न्यायपालिका सरकार और संसद से स्वतंत्र है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए पूरी तरह सक्षम है।

जनहित याचिका (PIL)

जनहित याचिका (PIL) तब दायर की जाती है जब मामला किसी व्यक्ति विशेष के बजाय सामाजिक या सार्वजनिक हित से जुड़ा हो। कोई भी व्यक्ति या समूह इसे सरकारी नीतियों, पर्यावरण, या मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ दायर कर सकता है। इसे दायर करना आसान है, यहाँ तक कि जज को पोस्टकार्ड पर अर्जी लिखकर भी किया जा सकता है। अगर अदालत को मामला गंभीर और सार्वजनिक हित से जुड़ा लगे, तो वह इसे स्वीकार कर सकती है।

संवैधानिक उपचार क्यों जरूरी है?

  • यह हमारे मौलिक अधिकारों की सुरक्षा और न्याय दिलाने का आधार है।
  • सरकारी नीतियों, कानूनों, या फैसलों के खिलाफ भी इसे लागू किया जा सकता है।
  • यह नागरिकों को समानता और न्याय की गारंटी देता है।


5.4 अधिकारों का बढ़ता दायरा

अधिकार केवल संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों तक सीमित नहीं हैं। ये हमारे जीवन और समाज के विकास के साथ निरंतर बढ़ते और विस्तार पाते हैं।

अधिकारों का विस्तार

मौलिक अधिकार सभी अधिकारों का आधार हैं, जिनसे प्रेस की स्वतंत्रता, सूचना का अधिकार, और शिक्षा का अधिकार जैसे अधिकारों का विस्तार हुआ है। नई पहलों में शिक्षा का अधिकार 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है, सूचना का अधिकार नागरिकों को सरकारी जानकारी प्राप्त करने की आजादी देता है, और भोजन का अधिकार सुप्रीम कोर्ट ने जीवन के अधिकार का हिस्सा घोषित किया है।

संवैधानिक और कानूनी अधिकार

संवैधानिक अधिकार कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त अधिकार हैं, जैसे संपत्ति रखने का अधिकार और चुनाव में वोट देने का अधिकार। मानवाधिकार नैतिक दावे हैं जो कानूनी मान्यता प्राप्त कर सकते हैं, जैसे काम का अधिकार और स्वास्थ्य का अधिकार।

अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव

लोकतंत्र के विस्तार और अंतर्राष्ट्रीय संधियों ने अधिकारों का दायरा बढ़ाया है। उदाहरण के लिए, दक्षिण अफ्रीका में निजता का अधिकार, पर्यावरण का अधिकार, और पर्याप्त आवास व स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार जैसे अधिकार शामिल किए गए हैं।

भारत में नए अधिकारों की मांग

भारत में कई लोग मानते हैं कि काम का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, और न्यूनतम जीवन आवश्यकताओं का अधिकार को भी मौलिक अधिकार बनाया जाना चाहिए, क्योंकि ये समाज की भलाई और नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए जरूरी हैं।

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