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धर्मनिरपेक्षता Notes in Hindi Class 11 Political Science Chapter-8 Book 2 secularism dharmanirapekshata

धर्मनिरपेक्षता Notes in Hindi Class 11 Political Science Chapter-8 Book 2 secularism dharmanirapekshata


धर्मनिरपेक्षता क्या हैं ?

धर्मनिरपेक्षता (Secularism) का अर्थ है किसी राज्य या सरकार का धर्म से पृथक रहना और सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखना। 

धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य है कि किसी भी व्यक्ति या समूह को उनके धर्म के आधार पर विशेष अधिकार या भेदभाव न किया जाए। 

यह एक ऐसी व्यवस्था है जहां राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता और सभी नागरिकों को उनके धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता देता है।

  • यहू‌दियों को समस्त यूरोप में सदियों तक भेदभाव झेलना पड़ा था 
  • मगर वर्तमान इजरायल राष्ट्र में ईसाई और मुसलमान दोनों ही अल्पसंख्यक हैं। वे उन राजनीतिक और आर्थिक लाभों से वंचित हैं जो यहूदी नागरिकों को मिले हुए हैं। 
  • यूरोप के अनेक हिस्सों में गैर-ईसाइयों के प्रति भेदभाव के सूक्ष्म रूप अभी भी बरकरार हैं।
  • पड़ोसी देश, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। 
  • इस तरह के उदाहरण हमें समकालीन विश्व में धर्मनिरपेक्षता के महत्त्व की याद दिलाते हैं।


धर्मों के बीच वर्चस्ववाद

हमारे अपने देश में संविधान घोषणा करता है कि हर भारतीय नागरिक को देश के किसी भी भाग में आजादी और प्रतिष्ठा के साथ रहने का अधिकार है। लेकिन वास्तव में भेदभाव के अनेक रूप अभी भी बरकरार हैं।

  • 1984 में दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों में लगभग 2,700 से अधिक सिख मारे गए। 
  • पीड़ितों के परिवारजनों का मानना है कि दोषियों को आजतक सजा नहीं मिली है।
  • हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपना घर छोड़ने के लिए विवश किया गया। 
  • वे दो दशकों के बाद भी अपने घर नहीं लौट सके हैं।
  • 2002 में गुजरात में गौधरा दंगों के पश्चात लगभग 1,000 से अधिक लोग मारे गए। 
  • इन परिवारों के जीवित बचे हुए बहुत से सदस्य अपने गाँव वापस नहीं जा सके, जहाँ से वे उजाड़ दिये गये थे।
  • इन सभी उदाहरणों में किसी न किसी रूप में भेदभाव है। 
  • हर मामले में किसी एक धार्मिक समुदाय के लोगों को लक्ष्य किया गया और उनकी धार्मिक पहचान के कारण सताया गया। 


धर्म के अन्दर वर्चस्व

कुछ लोगों का मानना है कि धर्म महज 'जनसमुदाय के लिए अफीम' है और जिस दिन सभी लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी हो जाएँगी और वे खुशहाल तथा संतुष्ट जीवन-यापन करने लगेंगे, धर्म विलुप्त हो जाएगा। ऐसा विचार मानव की क्षमता के बारे में अतिरंजित बोध से पैदा होता है। 

यह संभावना से परे है कि मनुष्य कभी भी प्रकृति को पूरी तरह जान पाने और इसे नियंत्रित करने में समर्थ हो जाएगा। 

बहरहाल, जिन समस्याओं ने गहरे जड़ जमा रखा है उनमें धर्म का भी कुछ योगदान है। उदाहरण के लिए किसी ऐसे धर्म के बारे में सोचना भी मुश्किल है, जो पुरुष और स्त्री को समान नजर से देखता हो। 

हिंदू धर्म में कुछ तबके भेदभाव से स्थायी तौर पर पीड़ित रहे हैं। दलितों को हिंदू मंदिरों में प्रवेश से हमेशा रोका जाता रहा है। जब कोई धर्म एक संगठन में बदलता है तो आमतौर पर इसका सर्वाधिक रुढ़ि‌वादी हिस्सा इस पर हावी हो जाता है जो किसी किस्म को असहमति बर्दाश्त नहीं करता।

अमेरिका के कुछ हिस्सों में धार्मिक रुढ़िवाद बड़ी समस्या बन गया है जो देश के अंदर भी शांति के लिए खतरा पैदा कर रहा है और बाहर भी। 

कई धर्म संप्रदायों में टूट जाते हैं और निरंतर आपसी हिंसा तथा भिन्न मत रखने वाले अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में लगे रहते हैं।


धर्मनिरपेक्ष राज्य 

धार्मिक टकराव रोकने और धार्मिक समानता को प्रोत्साहित करने के लिए किस किस्म की राज्यसत्ता आवश्यक है।

धार्मिक भेदभाव रोकने का एक रास्ता यह हो सकता है

1. जागरूकता 

2. शिक्षा 

3. शक्ति का प्रयोग 


एक राष्ट्र को किसी धार्मिक समूह के वर्चस्व को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए:

राज्यसत्ता और धर्म का पृथक्करण:-

  • राज्यसत्ता किसी भी धर्म विशेष से प्रभावित या संचालित नहीं होनी चाहिए।
  • धार्मिक संस्थाओं और राज्य संस्थाओं के बीच स्पष्ट अलगाव सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि धर्म का राजनीति पर प्रभाव न पड़े।

धर्मतांत्रिक व्यवस्था का विरोध:-

  • धर्मतांत्रिक शासन प्रणाली में धार्मिक स्वतंत्रता का अभाव होता है और यह उत्पीड़न और असमानता को जन्म देती है।
  • मध्यकालीन यूरोप के पोप का शासन और हाल में तालिबानी शासन इसके उदाहरण हैं।

धर्मनिरपेक्षता का पालन:-

  • धर्मनिरपेक्ष राज्य न केवल धर्मतांत्रिक शासन से बचना चाहिए बल्कि किसी भी धर्म के साथ कानूनी या औपचारिक गठजोड़ से परहेज करना चाहिए।
  • यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी धर्म विशेष रूप से राज्य का समर्थन न पाए।

धार्मिक समानता और स्वतंत्रता:-

  • राज्य को शांति, धार्मिक स्वतंत्रता, और भेदभाव के खिलाफ काम करना चाहिए।
  • अंतर-धार्मिक और अंतः धार्मिक समानता को प्रोत्साहित करना राज्य का कर्तव्य होना चाहिए।

गैर-धार्मिक सिद्धांतों को बढ़ावा देना:-

  • राज्य को अपने सिद्धांत और लक्ष्य ऐसे रखने चाहिए जो धर्म से स्वतंत्र हों।
  • जैसे कि शांति, स्वतंत्रता, समानता, और धार्मिक उत्पीड़न से मुक्ति।

राजनीतिक धर्मनिरपेक्षता के विविध रूप:-

  • धर्म और राज्य का संबंध अलग-अलग तरीकों से परिभाषित किया जा सकता है।
  • अमेरिका जैसे देशों में पूर्ण पृथक्करण का मॉडल है, जबकि भारत जैसे देशों में यह मॉडल बहुलतावादी और सहिष्णुता पर आधारित है।


धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल

यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता का मॉडल राज्यसत्ता और धर्म के बीच स्पष्ट और सख्त पृथक्करण पर आधारित है। इसे निम्नलिखित विशेषताओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

धर्म और राज्यसत्ता का पारस्परिक निषेध –

  • धर्म और राज्यसत्ता दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र होते हैं।
  • राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, और धर्म राज्य की नीतियों को प्रभावित नहीं कर सकता।
  • किसी भी सार्वजनिक नीति को धार्मिक तर्क के आधार पर नहीं बनाया जा सकता।

धार्मिक संस्थाओं को राज्य का सहयोग नहीं –

  • राज्य किसी भी धार्मिक संस्था या समुदाय को वित्तीय सहायता प्रदान नहीं करता।
  • धार्मिक समुदायों द्वारा संचालित स्कूलों और अन्य संस्थाओं को भी वित्तीय मदद नहीं दी जाती।

धार्मिक समुदायों की स्वायत्तता –

  • धार्मिक संस्थाएँ अपने नियम और परंपराएँ तय करने के लिए स्वतंत्र होती हैं, जब तक वे देश के कानूनों के दायरे में हैं।

उदाहरण:- 

  • अगर कोई धार्मिक संस्था महिलाओं को पुरोहित बनने से रोकती है, तो राज्य हस्तक्षेप नहीं करता।
  • अगर कोई धर्म अपने अनुयायियों को कुछ क्षेत्रों (जैसे मंदिर के गर्भगृह) में प्रवेश से रोकता है, तो राज्य इसे यथावत रहने देता है।

धर्म को निजी मामला मानना

  • धर्म को व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता का हिस्सा माना जाता है।
  • यह राज्य की नीतियों या कानूनों का विषय नहीं हो सकता।

व्यक्तिवादी दृष्टिकोण पर आधारित स्वतंत्रता और समानता

  • स्वतंत्रता: यह व्यक्तियों की व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता देता है।
  • समानता: सभी व्यक्तियों को समान अधिकार और अवसर प्रदान करने पर जोर देता है, न कि धार्मिक समुदायों के विशेषाधिकारों पर।


धर्मनिरपेक्षता का भारतीय  मॉडल

भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी मॉडल से बुनियादी रूप से भिन्न है और इसका विकास भारत की धार्मिक विविधता और ऐतिहासिक परंपराओं के संदर्भ में हुआ है। 


भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएँ

अंतर-धार्मिक समानता पर बल

  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता केवल धर्म और राज्य के अलगाव पर आधारित नहीं है।
  • यह हिंदुओं के भीतर जातिगत भेदभाव और महिलाओं के उत्पीड़न जैसे मसलों पर ध्यान केंद्रित करती है, साथ ही बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के हनन का भी विरोध करती है।

धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्वतंत्रता

  • अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी संस्कृति और शैक्षणिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार है, जिसे राज्य से सहायता भी मिल सकती है। 
  • साथ ही बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के हनन का भी विरोध करती है।

राज्य समर्थित धार्मिक सुधार

  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्य को धार्मिक सुधारों की पहल करने की अनुमति देती है।
  • अस्पृश्यता पर प्रतिबंध, बाल विवाह का उन्मूलन, और अंतर्जातीय विवाह पर रोक हटाने जैसे सुधार इसी का हिस्सा हैं।


पश्चिमी मॉडल से भिन्नता

धर्म का पूर्ण अलगाव नहीं -

  • पश्चिमी मॉडल (जैसे अमेरिकी मॉडल) राज्य और धर्म के बीच पूर्ण पृथक्करण पर आधारित है।
  • भारतीय मॉडल में राज्य, धर्म के मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है, जैसे सामाजिक सुधार लाने के लिए।

सहिष्णुता से परे समानता - 

  • पश्चिमी मॉडल सहिष्णुता पर जोर देता है, जबकि भारतीय मॉडल समानता और धार्मिक विविधता की रक्षा पर जोर देता है।
  • यह न केवल सहिष्णुता को प्रोत्साहित करता है, बल्कि सामाजिक समानता के लिए कदम भी उठाता है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता की रणनीतियाँ -

(क) निषेधात्मक और सकारात्मक जुड़ाव

  • राज्य धार्मिक अत्याचार और भेदभाव का विरोध करता है।
  • इसके साथ ही, धार्मिक अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार देता है और सहायता प्रदान करता है।

(ख) "सर्व धर्म समभाव" की सीमाएँ

  • सर्व धर्म समभाव" का अर्थ सिर्फ शांति और सहिष्णुता नहीं है।
  • यह राज्य को संगठित धर्मों के उन पहलुओं में हस्तक्षेप की अनुमति देता है जो समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों के विपरीत हैं।

भारतीय मॉडल की जटिलता -

धार्मिक सुधारों की गुंजाइश

  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता हर धर्म के कुछ पहलुओं की आलोचना और सुधार की अनुमति देती है।
  • जातिगत विभाजन या धार्मिक रूढ़ियों को अस्वीकार करना इसका उदाहरण है।

धर्म और राज्य का संतुलन

  • भारतीय मॉडल में राज्य, जरूरत पड़ने पर धर्म से दूरी भी बना सकता है और उसके साथ जुड़ाव भी कर सकता है।
  • इसका उद्देश्य शांति, समानता, और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को प्रोत्साहित करना है।


भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचना 

  • धर्म विरोधी 
  • अल्पसंख्यक वाद 
  • पश्चिम से आयातित 
  • धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप  
  • वोट बैंक की राजनीति 
  • एक असम्भव परियोजना 

धर्म विरोधी 

  • कुछ लोगों को लगता है कि धर्मनिरपेक्षता धर्म विरोधी है 
  • यह केवल धार्मिक वर्चस्व और उसके संस्थागत स्वरूपों का विरोध करती है
  • धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य धार्मिक स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देना है। यह धार्मिक पहचान को खतरा नहीं, बल्कि सुरक्षा प्रदान करती है। 

पश्चिम से आयातित 

कुछ विद्वान कहते हैं की यह एक "पश्चिमी अवधारणा" है और भारतीय परिस्थितियों में अनुपयुक्त है, 

पश्चिमी जड़ों की स्वीकार्यता का प्रश्न:

  • आलोचना को खारिज करते हुए कहा गया है कि भारत में कई चीजें प्रचलन में हैं, जिनकी जड़ें पश्चिम में हैं, जैसे इंटरनेट, संसदीय लोकतंत्र, और पतलून।
  • यह सवाल उठाया गया है कि क्या किसी यूरोपीय ने शून्य के भारतीय आविष्कार के आधार पर उसका उपयोग करने से इनकार किया है?

गहन तर्क और भारतीय परिप्रेक्ष्य:-

धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या अलग-अलग संदर्भों में भिन्न हो सकती है:

  • पश्चिम में यह चर्च और राज्य के अलगाव पर आधारित रही।
  • भारत में यह धार्मिक समुदायों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और उनके संरक्षण पर केंद्रित है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता की विशिष्टता:-

  • भारत में धर्मनिरपेक्षता न तो पश्चिमी मॉडल की नकल है और न ही ईसाइयत पर आधारित है।
  • भारत ने एक अनूठी धर्मनिरपेक्षता विकसित की है, जो सांप्रदायिक शांति और सह-अस्तित्व को प्राथमिकता देती है।
  • पश्चिमी और गैर-पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता के विकास के रास्ते भिन्न रहे हैं, लेकिन उनका अंतिम उद्देश्य समान है।

अल्पसंख्यकवाद 

  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करती है।
  • यह तर्क दिया गया है कि अल्पसंख्यकों के बुनियादी और मौलिक हितों की रक्षा लोकतांत्रिक मूल्यों और न्याय की दृष्टि से आवश्यक है।
  • अल्पसंख्यक अधिकार "विशेषाधिकार" नहीं, बल्कि न्याय और समानता की बुनियाद पर आधारित हैं। 
  • इनका उद्देश्य सभी को समान अवसर और गरिमा प्रदान करना है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता इस दृष्टिकोण को सही ढंग से अपनाती है।

धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप  

  • धर्मनिरपेक्षता उत्पीड़नकारी है और समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता में अतिशय हस्तक्षेप करती है। यह भारतीय धर्मनिरपेक्षता के बारे में गलत समझ है। 
  • क्योंकि राज्य, धर्म से सैद्धांतिक दूरी बनाए रखते हुए सुधारात्मक हस्तक्षेप की अनुमति देती है, लेकिन यह हस्तक्षेप उत्पीड़नकारी नहीं होता।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधार को संभव बनाती है।

वोट बैंक की राजनीति 

  • धर्मनिरपेक्षता को आरोपित किया जाता है कि यह वोट-बैंक की राजनीति को बढ़ावा देती है, जिससे समाज में असमानता और विभाजन पैदा होता है।
  • अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के आरोप लगते हैं, जिससे बहुसंख्यकों के हितों की उपेक्षा होती है।

एक असम्भव परियोजना 

  • यह तर्क दिया जाता है कि धर्मनिरपेक्षता "असंभव परियोजना" है क्योंकि गहरे धार्मिक मतभेद वाले लोग शांति से साथ नहीं रह सकते।
  • सह-अस्तित्व केवल असमानता और श्रेणीबद्धता के संदर्भ में संभव था, जो आज समानता के बढ़ते महत्व के कारण असंभव हो गया है।


इतिहास से उदाहरण:

  • भारतीय सभ्यता और ऑटोमन साम्राज्य दिखाते हैं कि सह-अस्तित्व संभव है।
  • समानता और सह-अस्तित्व: आधुनिक समय में समानता का महत्व सह-अस्तित्व को और मजबूत करता है। 
  • धर्मनिरपेक्षता इस समानता को संरक्षित करती है।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता एक "असंभव परियोजना" नहीं, बल्कि भविष्य की दुनिया का प्रतिबिंब है। 
  • यह विविधता और समानता को साथ लेकर चलने का प्रयास है।
  • वैश्विक महत्व: आज की दुनिया में, जहाँ विविधता तेजी से बढ़ रही है, भारतीय धर्मनिरपेक्षता का मॉडल अन्य देशों के लिए प्रेरणा बन सकता है।


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