यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति Notes in Hindi Class 9 Bharat Aur Samkalin Vishwa-I Chapter-2 Book 4 Socialism in Europe and the Russian Revolution
0Team Eklavyaजनवरी 14, 2025
1 सामाजिक परिवर्तन का युग
फ़्रांसीसी क्रांति ने स्वतंत्रता और समानता के विचारों को दुनिया भर में फैलाया, जिससे सामाजिक संरचना में आमूल परिवर्तन की संभावनाएँ उभरीं। क्रांति के बाद, कुलीन वर्ग और चर्च के नियंत्रण वाले समाज को बदलना संभव लगा, और व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक सत्ता पर चर्चा शुरू हुई।
भारत में राजा राममोहन रॉय और डेरोजियो ने इन विचारों को महत्व दिया। हालांकि, यूरोप में समाज परिवर्तन पर मतभेद थे। कुछ लोग बदलाव के पक्ष में थे, पर धीरे-धीरे, जबकि रैडिकल और उदारवादी आमूल परिवर्तन चाहते थे।
हम उन्नीसवीं शताब्दी की राजनीतिक परंपराओं और रूस की क्रांति का अध्ययन करेंगे, जिसने समाजवाद को बीसवीं सदी का प्रमुख विचार बना दिया।
1.1 उदारवादी, रैडिकल और रुढ़िवादी
उदारवादी, रैडिकल, और रुढ़िवादी समूहों के बीच समाज परिवर्तन को लेकर अलग-अलग विचार थे:
उदारवादी
वे ऐसी सरकार चाहते थे जो सभी धर्मों को समान सम्मान दे।
वंश-आधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता और अधिकारों के हनन का विरोध करते थे।
प्रतिनिधित्व आधारित, निर्वाचित सरकार के पक्षधर थे, जो कानून के अनुसार काम करे।
लोकतंत्रवादी नहीं थे और वोट का अधिकार केवल संपत्ति वालों को देना चाहते थे।
रैडिकल (आमूल परिवर्तनवादी)
ऐसे शासन का समर्थन करते थे जो बहुमत के समर्थन पर आधारित हो।
महिला मताधिकार और समानता के पक्षधर थे।
बड़े जमींदारों और उद्योगपतियों के विशेषाधिकारों का विरोध करते थे।
निजी संपत्ति को पूरी तरह खत्म नहीं करना चाहते थे, लेकिन संपत्ति का कुछ लोगों में संकेंद्रण नहीं चाहते थे।
रुढ़िवादी
बदलाव के विरोधी थे, लेकिन फ़्रांसीसी क्रांति के बाद बदलाव की जरूरत को स्वीकार किया।
वे चाहते थे कि बदलाव धीमी गति से हो और अतीत का सम्मान बना रहे।
1.2 औद्योगिक समाज और सामाजिक परिवर्तन
यह समय गहरे सामाजिक और आर्थिक बदलावों का था। नए शहर बस रहे थे, उद्योग बढ़ रहे थे, रेलवे का विस्तार हो रहा था, और औद्योगिक क्रांति पूरी हो चुकी थी।
औद्योगीकरण की चुनौतियाँ
पुरुष, महिलाएँ, और बच्चे सभी कारखानों में काम करने लगे।
काम के घंटे लंबे और मजदूरी कम थी।
बेरोजगारी बड़ी समस्या थी, खासकर जब औद्योगिक वस्तुओं की माँग घट जाती थी।
तेजी से बढ़ते शहरों में आवास और सफाई की समस्या थी।
उदारवादी और रैडिकल दृष्टिकोण
दोनों समूह इन समस्याओं का हल खोजने में लगे थे।
ज्यादातर उद्योग व्यक्तिगत स्वामित्व में थे, और उदारवादी व रैडिकल खुद संपत्ति के मालिक थे।
वे जन्मजात विशेषाधिकारों के खिलाफ थे और व्यक्तिगत प्रयास, श्रम, और स्वतंत्रता पर विश्वास करते थे।
उनका मानना था कि मजदूर स्वस्थ हों, नागरिक शिक्षित हों, और व्यापार को बढ़ावा मिले तो समाज तरक्की करेगा।
क्रांति और राष्ट्रवाद
1815 के बाद यूरोप में बनी सरकारों के खिलाफ राष्ट्रवादी, उदारवादी, और रैडिकल क्रांतिकारी हो गए।
फ्रांस, इटली, जर्मनी, और रूस में राजाओं के तख्तापलट की कोशिशें हुईं।
इटली के राष्ट्रवादी गिसेप्पे मेजिनी ने समान अधिकारों वाले राष्ट्र बनाने के लिए आंदोलन किया।
भारत समेत कई देशों के राष्ट्रवादी मेजिनी की रचनाओं से प्रेरित हुए।
1.3 यूरोप में समाजवाद का आना
समाजवाद एक ऐसी विचारधारा थी जो समाज को पुनर्गठित करने और निजी संपत्ति के विरोध में थी। समाजवादी मानते थे कि संपत्ति पर निजी स्वामित्व समस्याओं की जड़ है, क्योंकि संपत्तिधारी केवल अपने लाभ के बारे में सोचते हैं। वे चाहते थे कि संपत्ति पर पूरे समाज का नियंत्रण हो, जिससे सभी का भला हो सके।
कुछ समाजवादी सामूहिक उद्यम (कोऑपरेटिव) के पक्षधर थे। रॉबर्ट ओवेन ने अमेरिका में "नया समन्वय" नामक सामूहिक समुदाय की स्थापना की, और लुई ब्लांक ने सामूहिक खेती और उद्यमों को बढ़ावा देने की वकालत की।
कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने तर्क दिया कि पूँजीवादी समाज में पूँजीपति मजदूरों की मेहनत का मुनाफा लेते हैं। मार्क्स ने कहा कि मजदूरों को पूँजीवाद और निजी संपत्ति खत्म कर एक साम्यवादी (कम्युनिस्ट) समाज बनाना होगा, जहाँ संपत्ति पर सामाजिक स्वामित्व होगा। उनका विश्वास था कि भविष्य में मजदूरों की जीत होगी और साम्यवादी समाज स्थापित होगा।
1.4 समाजवाद के लिए समर्थन
1870 के दशक तक समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुके थे, और समन्वय के लिए उन्होंने द्वितीय इंटरनेशनल की स्थापना की। इंग्लैंड और जर्मनी के मजदूरों ने संगठनों और कोष बनाए, काम के घंटों में कमी और मताधिकार के लिए संघर्ष किया।
जर्मनी में ये संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) से जुड़े थे। ब्रिटेन में 1905 तक लेबर पार्टी और फ्रांस में सोशलिस्ट पार्टी बनी। हालांकि, 1914 तक समाजवादी सरकार बनाने में असफल रहे। वे संसदीय राजनीति में प्रभावी रहे लेकिन सरकारों पर रुढ़िवादियों, उदारवादियों और रैडिकल्स का ही नियंत्रण रहा।
2 रूसी क्रांति
रूस, यूरोप के सबसे पिछड़े औद्योगिक देशों में से एक, 1917 की अक्तूबर क्रांति में समाजवादियों की सत्ता में आने का गवाह बना। फरवरी 1917 में राजशाही का पतन और अक्तूबर की घटनाएँ इस क्रांति की मुख्य कड़ियाँ थीं। इसे समझने के लिए, क्रांति से पहले रूस की सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों का अध्ययन करना जरूरी है।
2.1 रूसी साम्राज्य, 1914
1914 में रूस और उसका साम्राज्य जार निकोलस II के अधीन था, जिसमें आज का फ़िनलैंड, लातविया, लिथुआनिया, एस्तोनिया, पोलैंड, यूक्रेन, बेलारूस, मध्य एशिया, और काकेशस के जॉर्जिया, आर्मेनिया व अज़रबैजान शामिल थे। यह साम्राज्य प्रशांत महासागर तक फैला हुआ था। अधिकांश लोग रूसी ऑर्थोडॉक्स ईसाई थे, लेकिन इसमें कैथलिक, प्रोटेस्टेंट, मुस्लिम, और बौद्ध जैसे धर्मों के अनुयायी भी थे।
2.2 अर्थव्यवस्था और समाज
1. खेती पर निर्भरता
रूस की 85% आबादी खेती पर निर्भर थी, जबकि फ्रांस और जर्मनी में यह केवल 40-50% थी। किसान अपनी जरूरतों के साथ-साथ बाजार के लिए भी अनाज उगाते थे। रूस अनाज का बड़ा निर्यातक था।
2. औद्योगिक विकास
रूस में उद्योग सीमित थे। सेंट पीटर्सबर्ग और मॉस्को मुख्य औद्योगिक केंद्र थे।
1890 के दशक में रेलवे नेटवर्क के विस्तार और विदेशी निवेश से कोयला और स्टील उत्पादन में भारी वृद्धि हुई।
मजदूरों के लिए काम की पाली 10-12 घंटे लंबी होती थी, और महिलाओं को पुरुषों से कम वेतन मिलता था।
3. मजदूरों की स्थिति
मजदूरों में विभाजन था – कुछ शहरों में स्थायी रूप से बस गए थे, जबकि अन्य अपने गाँवों से जुड़े थे।
धातुकर्मी और प्रशिक्षित मजदूरों को अधिक सम्मान मिलता था।
मजदूरों के बीच सहयोग सीमित था, लेकिन वे हड़तालों में एकजुट होते थे। जैसे, 1896-1897 में कपड़ा उद्योग और 1902 में धातु उद्योग की हड़तालें।
4. किसानों की स्थिति
अधिकांश जमीन सामंतों, राजशाही, और चर्च के अधीन थी।
किसान सामंतों का सम्मान नहीं करते थे और जमीन पर अपने अधिकार चाहते थे।
1902 और 1905 में किसान विद्रोह हुए, जिसमें जमींदारों की हत्याएं और जमीन पर कब्जा शामिल था।
5. मीर प्रणाली
रूसी किसान अन्य यूरोपीय किसानों से अलग थे। वे जमीन को सामूहिक कम्यून (मीर) को सौंप देते थे, और मीर इसे परिवारों की जरूरत के अनुसार बांटता था।
2.3 रूस में समाजवाद
1914 से पहले रूस में सभी राजनीतिक पार्टियाँ गैरकानूनी थीं। 1898 में समाजवादियों ने रशियन सोशल डेमोक्रैटिक वर्कर्स पार्टी बनाई, जो मजदूरों को संगठित करती और हड़तालें आयोजित करती थी।
कुछ समाजवादियों का मानना था कि रूसी किसान स्वाभाविक रूप से समाजवादी हैं और क्रांति के मुख्य नेता बन सकते हैं। 1900 में सोशलिस्ट रेवलूशनरी पार्टी बनी, जिसने किसानों के अधिकारों और जमीन के पुनर्वितरण की माँग की।
लेनिन ने किसानों की एकजुटता पर संदेह जताया, क्योंकि उनमें आर्थिक और सामाजिक विभेद थे। सांगठनिक मतभेद के कारण पार्टी दो हिस्सों में बँट गई: बोल्शेविक, जो अनुशासित और नियंत्रित पार्टी चाहते थे, और मेन्शेविक, जो खुली सदस्यता के पक्षधर थे।
2.4 उथल-पुथल का समय : 1905 की क्रांति
रूस में जार निरंकुश शासक था, जिसे राष्ट्रीय संसद के प्रति जवाबदेह नहीं होना पड़ता था। 1905 की क्रांति से पहले उदारवादियों, सोशल डेमोक्रेट्स, और समाजवादी क्रांतिकारियों ने किसानों और मजदूरों को संगठित किया।
1904 में महंगाई और मजदूरों की दुर्दशा ने असंतोष बढ़ा दिया। पादरी गैपॉन के नेतृत्व में मजदूरों का विंटर पैलेस तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन "खूनी रविवार" में बदल गया, जब पुलिस ने हमला कर 100 से ज्यादा मजदूरों को मार डाला। इस घटना से 1905 की क्रांति शुरू हुई।
जार ने ड्यूमा (निर्वाचित संसद) की स्थापना की, लेकिन उसे जल्दी बर्खास्त कर दिया और मतदान कानून बदलकर रुढ़िवादियों को भर दिया। मजदूर संगठनों और राजनीतिक गतिविधियों पर भारी पाबंदियाँ लगा दी गईं।
2.5 पहला विश्वयुद्ध और रूसी साम्राज्य
1914 में पहला विश्वयुद्ध शुरू हुआ, जिसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया, और तुर्की (केंद्रीय शक्तियाँ) ने फ़्रांस, ब्रिटेन, रूस और बाद में इटली व रूमानिया से युद्ध किया।
शुरुआत में रूसियों ने जार का समर्थन किया, लेकिन युद्ध के खिंचने और ड्यूमा को नजरअंदाज करने से जार अलोकप्रिय हो गया। जर्मनी-विरोधी भावनाओं के कारण सेंट पीटर्सबर्ग का नाम बदलकर पेत्रोग्राद रखा गया। रासपुतिन जैसे सलाहकारों ने राजशाही की छवि और खराब कर दी।
पूर्वी मोर्चे पर रूसी सेना को भारी नुकसान हुआ, और 70 लाख सैनिक मारे गए। पीछे हटती सेनाओं ने फसलें और इमारतें नष्ट कर दीं, जिससे 30 लाख लोग शरणार्थी बन गए।
युद्ध ने उद्योग और आपूर्ति को तबाह कर दिया। जर्मनी ने बाल्टिक रास्ते बंद कर दिए, औद्योगिक उपकरण खराब हो गए, रेलवे ठप हो गई, और अनाज की कमी से शहरों में रोटी के दंगे शुरू हो गए।
3 पेत्रोग्राद में फरवरी क्रांति
सन् 1917 की सर्दियों में पेत्रोग्राद में भयंकर ठंड और खाद्य संकट से हालात बिगड़ गए। नेवा नदी के दाएँ किनारे पर मजदूरों और कारखानों के इलाके थे, जबकि बाएँ किनारे पर फैशनेबल इलाके और सरकारी इमारतें थीं।
22 फरवरी को एक फ़ैक्ट्री में तालाबंदी से शुरू हुआ मजदूरों का आंदोलन महिलाओं की अगुवाई में फैला। 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया, जिससे जनता और भड़क गई। 27 फरवरी को प्रदर्शनकारियों ने पुलिस मुख्यालयों पर हमला किया और सिपाहियों ने मजदूरों का साथ देते हुए बगावत कर दी।
प्रदर्शनकारियों ने 'पेत्रोग्राद सोवियत' का गठन किया। 2 मार्च को ज़ार ने गद्दी छोड़ दी, और ड्यूमा और सोवियत के नेताओं ने अंतरिम सरकार बनाई। फरवरी 1917 की क्रांति से राजशाही का अंत हुआ।
3.1 फरवरी के बाद
अंतरिम सरकार में सैनिक अधिकारी, भूस्वामी, और उद्योगपति प्रभावशाली थे। उदारवादी और समाजवादी निर्वाचित सरकार चाहते थे, और देशभर में सोवियतें बन गईं।
अप्रैल 1917 में लेनिन रूस लौटे और अपनी 'अप्रैल थीसिस' में युद्ध समाप्ति, जमीन किसानों को देने और बैंकों के राष्ट्रीयकरण की माँग की। उन्होंने बोल्शेविक पार्टी का नाम बदलकर कम्युनिस्ट पार्टी रखने का सुझाव दिया। शुरुआत में पार्टी में इस पर असहमति थी, लेकिन बाद की घटनाओं ने सोच बदल दी।
गर्मियों में मजदूर आंदोलनों और ट्रेड यूनियनों का विस्तार हुआ। फैक्ट्री कमेटियों ने मालिकों को चुनौती दी, और सिपाहियों की समितियाँ बनीं। अंतरिम सरकार कमजोर पड़ने पर सख्त कदम उठाने लगी। जुलाई 1917 में बोल्शेविक प्रदर्शनों का दमन किया गया, और नेताओं को भागना पड़ा।
इस बीच, गाँवों में किसान भूमि पुनर्वितरण के लिए सक्रिय हो गए और भूमि समितियों के नेतृत्व में जमीन पर कब्जा करने लगे।
3.2 अक्तूबर 1917 की क्रांति
सितंबर 1917 में लेनिन ने अंतरिम सरकार के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाई। 16 अक्तूबर को उन्होंने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को सत्ता कब्जे के लिए राजी किया। ट्रॉट्स्की के नेतृत्व में एक सैनिक क्रांतिकारी समिति बनाई गई।
24 अक्तूबर को विद्रोह शुरू हुआ। प्रधानमंत्री केरेंस्की सेना जुटाने शहर से बाहर गए, लेकिन क्रांतिकारियों ने सरकारी कार्यालयों और मंत्रियों पर कब्जा कर लिया। युद्धपोत "ऑरोरा" ने विंटर पैलेस पर बमबारी की। शाम तक शहर बोल्शेविकों के नियंत्रण में था।
पेत्रोग्राद में अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस ने विद्रोह का समर्थन किया। अन्य शहरों में भी बगावत हुई। दिसंबर तक मास्को-पेत्रोग्राद क्षेत्र पर बोल्शेविकों का नियंत्रण हो गया।
4 अक्तूबर के बाद क्या बदला?
बोल्शेविक निजी संपत्ति के खिलाफ थे। नवंबर 1917 में उद्योगों और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जमीन को सामाजिक संपत्ति घोषित कर किसानों को सामंतों की जमीन लेने की छूट दी गई। शहरों में मकानों को जरूरतमंदों के लिए बांटा गया। सेना और अफसरों की वर्दी बदली गई, और पार्टी का नाम "रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक)" रखा गया।
नवंबर 1917 में हुए चुनावों में बोल्शेविक बहुमत नहीं जीत सके, और जनवरी 1918 में लेनिन ने संविधान सभा को बर्खास्त कर दिया। मार्च 1918 में जर्मनी से ब्रेस्ट-लिटोस्क संधि हुई।
रूस एकदलीय व्यवस्था वाला देश बन गया, और ट्रेड यूनियनों व गुप्तचर पुलिस (चेका) पर पार्टी का नियंत्रण था। कला और साहित्य में नए प्रयोग हुए, लेकिन सेंसरशिप के कारण कई लोगों का पार्टी से मोह भंग हुआ।
4.1 गृह युद्ध
बोल्शेविकों के जमीन पुनर्वितरण के आदेश से रूसी सेना बिखरने लगी, क्योंकि किसान सिपाही घर लौटने लगे। गैर-बोल्शेविक समाजवादियों, उदारवादियों, और जार-समर्थकों ('व्हाइट्स') ने बोल्शेविकों ('रेड्स') के खिलाफ टुकड़ियाँ बनाईं। 1918-1919 में 'व्हाइट्स' और 'ग्रीन्स' का ज्यादातर इलाकों पर नियंत्रण रहा, जिन्हें विदेशी शक्तियों का समर्थन था।
गृह युद्ध के दौरान लूट, डकैती और भुखमरी बढ़ी। 'व्हाइट्स' की सख्ती से जनसमर्थन घटा, और 1920 तक बोल्शेविकों ने अधिकांश इलाकों पर नियंत्रण कर लिया। गैर-रूसी राष्ट्रवादियों और मुस्लिम जदीदियों ने भी उनकी मदद की।
1922 में सोवियत संघ (यूएसएसआर) बना, और गैर-रूसी राष्ट्रीयताओं को राजनीतिक स्वायत्तता दी गई। हालांकि, सख्त नीतियों, जैसे घुमंतूवाद पर रोक, के कारण विश्वास पूरी तरह नहीं जीता जा सका।
4.2 समाजवादी समाज का निर्माण
गृह युद्ध के दौरान बोल्शेविकों ने उद्योगों और बैंकों का राष्ट्रीयकरण जारी रखा और किसानों को समाजीकृत जमीन पर खेती की अनुमति दी। केंद्रीकृत नियोजन के तहत पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गईं। पहली दो योजनाओं (1927-1932 और 1933-1938) में औद्योगिक विकास पर जोर दिया गया, जिससे तेल, कोयला और स्टील उत्पादन दोगुना हो गया, और नए औद्योगिक शहर बने।
तेज निर्माण कार्य से मजदूरों की स्थिति खराब हो गई। जैसे, मैग्नीटोगोर्स्क स्टील संयंत्र में कड़ी मेहनत और कठिन जीवन ने काम बार-बार रुकवाया।
शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, और बच्चों के लिए बालवाड़ी जैसी सुविधाएँ दी गईं, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण ये प्रयास हर जगह समान रूप से सफल नहीं हुए।
4.3 स्तालिनवाद और सामूहिकीकरण
1. अनाज संकट और सामूहिकीकरण की शुरुआत
1927-28 में रूस के शहरों में अनाज की भारी कमी हो गई क्योंकि सरकार द्वारा तय कीमत पर किसान अनाज बेचने को तैयार नहीं थे। इस स्थिति से निपटने के लिए स्तालिन ने अमीर किसानों (कुलक) और व्यापारियों पर सट्टेबाजी का आरोप लगाकर उनका अनाज जब्त कर लिया। साथ ही, अनाज की समस्या को हल करने के लिए खेतों का सामूहिकीकरण शुरू किया गया।
2. सामूहिक खेतों (कोलखोज) की स्थापना
1929 से किसानों को सामूहिक खेतों (कोलखोज) में काम करने का आदेश दिया गया, और उनकी जमीन और संसाधन कोलखोज के स्वामित्व में चले गए। हालांकि, किसानों ने दावा किया कि वे अमीर नहीं हैं और सामूहिक खेतों पर काम नहीं करना चाहते। विरोध करने वालों को कड़ी सजा दी गई।
3. विरोध और उसके प्रभाव
किसानों ने विरोध स्वरूप अपने मवेशियों को मारना शुरू कर दिया, जिससे मवेशियों की संख्या में भारी गिरावट आई। 1930-33 के दौरान खराब फसल और अकाल के कारण 40 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।
4. आलोचना और दमन
पार्टी के भीतर नियोजित अर्थव्यवस्था और सामूहिकीकरण की आलोचना शुरू हुई, लेकिन स्तालिन ने आलोचकों पर समाजवाद विरोधी होने का आरोप लगाया। 1939 तक 20 लाख से ज्यादा लोगों को जेलों या श्रम शिविरों में भेज दिया गया। कई निर्दोष लोगों को यातनाएं देकर झूठे बयान लिखवाए गए और उन्हें मार दिया गया।
5 रूसी क्रांति और सोवियत संघ का वैश्विक प्रभाव
बोल्शेविकों द्वारा सत्ता कब्जाने और शासन चलाने के तरीके से यूरोप की समाजवादी पार्टियाँ असहमत थीं, लेकिन मेहनतकशों के राज्य की स्थापना ने वैश्विक स्तर पर उम्मीदें जगाईं। कई देशों में कम्युनिस्ट पार्टियों का गठन हुआ, जैसे इंग्लैंड में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन। बोल्शेविकों ने उपनिवेशों को प्रेरित किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कॉमिन्टर्न तथा अन्य सम्मेलनों का आयोजन किया।
द्वितीय विश्वयुद्ध तक सोवियत संघ ने समाजवाद को वैश्विक पहचान दी, लेकिन पचास के दशक में इसकी शासन शैली पर सवाल उठे। उद्योग-खेती विकसित हुई और गरीबों को भोजन मिला, पर नागरिक स्वतंत्रता सीमित रही और नीतियाँ दमनकारी थीं। बीसवीं सदी के अंत तक सोवियत संघ की प्रतिष्ठा घटी, लेकिन समाजवाद पर पुनर्विचार जारी रहा।