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विदाई-संभाषण Class 11 Chapter-4 Book-Aroh Chapter Summary

विदाई-संभाषण Class 11 Chapter-4 Book-Aroh Chapter Summary


विदाई - संभाषण


प्रस्तावना

"विदाई-संभाषण" शिवशंभु द्वारा लिखित व्यंग्यात्मक रचना है, जिसमें भारत से वायसराय लॉर्ड कर्ज़न की विदाई के अवसर पर उनके शासनकाल की विफलताओं, जिद्द और प्रजा के प्रति उनकी उदासीनता को तीखे कटाक्ष के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह लेख औपनिवेशिक शासन की आलोचना करते हुए भारतीय जनमानस की भावना को प्रकट करता है।

प्राकृतिक और नियतिगत सत्य

लेखक बताते हैं कि संसार में हर चीज़ का अंत होता है। लॉर्ड कर्ज़न के शासनकाल का अंत भी इसी नियम का परिणाम है।उनके कार्यकाल की शुरुआत में जो प्रसन्नता और उम्मीद थी, वह अंत तक आते-आते दुःख और निराशा में बदल गई। उनकी जिद्द और गलत नीतियों ने देश को अशांति और विघटन की स्थिति में ला खड़ा किया।

विभाजन का दर्द

लॉर्ड कर्ज़न ने बंगाल का विभाजन किया, जो जनता की भावनाओं और प्रार्थनाओं के विरुद्ध था।लेखक उनकी तुलना नादिरशाह से करते हैं, जो जनता की प्रार्थनाओं पर दया दिखाने के बावजूद अत्यंत क्रूर था। कर्ज़न ने भी जनता की भावनाओं को न केवल अनदेखा किया, बल्कि उनकी बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता तक महसूस नहीं की।

शासन की विफलताएँ

कर्ज़न का शासन प्रजा के कल्याण पर आधारित न होकर जिद्द, मनमाने फैसलों और प्रजा के दमन का प्रतीक था। उनके कार्यकाल में भारत की शिक्षा, स्वाधीनता और सामाजिक संरचना को नुकसान पहुँचाने वाले कई निर्णय लिए गए, जिनका दुष्प्रभाव लंबे समय तक महसूस किया गया।

उनकी गिरावट

लेखक इंगित करते हैं कि कर्ज़न की स्थिति, जो प्रारंभ में अत्यंत ऊँची और प्रभावशाली थी, अंत में पूरी तरह गिर गई। दिल्ली दरबार की भव्यता और शान से लेकर वायसराय के पद से उनकी विदाई तक का यह पतन, उनके घमंड और असफल नीतियों का स्पष्ट परिणाम था।

प्रजा की सहनशीलता

भारत की जनता, जो हर प्रकार की पीड़ा सहने में सक्षम है, ने कर्ज़न की जिद्द और अन्याय का भी अद्भुत धैर्यपूर्वक सामना किया। लेखक उनकी इस सहनशीलता और भविष्य में अपने गौरव को पुनः प्राप्त करने की अद्वितीय क्षमता की प्रशंसा करते हैं।

नसीहत और व्यंग्य

लेखक कर्ज़न को प्रजा के प्रति दायित्व और सेवा का पाठ पढ़ाने का प्रयास करते हैं। वे नरवरगढ़ के राजकुमार के विदाई भाषण का उदाहरण देते हुए कर्ज़न से अपेक्षा करते हैं कि वे भी प्रजा के प्रति कृतज्ञता और पश्चाताप का भाव दिखाएँ। हालांकि, लेखक को आशंका है कि कर्ज़न में ऐसी उदारता या आत्म-आलोचना की क्षमता नहीं है।

निष्कर्ष:

"विदाई-संभाषण" एक व्यंग्यात्मक लेख है, जो लॉर्ड कर्ज़न के शासनकाल की आलोचना करते हुए भारतीय जनता के दुःख, उनकी सहनशीलता और औपनिवेशिक सत्ता की अन्यायपूर्ण नीतियों को उजागर करता है। यह रचना जनता की भावना और औपनिवेशिक शासन के प्रति उनकी नाराज़गी को प्रकट करने का एक सशक्त माध्यम है।

शिक्षा:

नेता का कर्तव्य है कि वह जनता के कल्याण और उनकी भावनाओं का सम्मान करे, क्योंकि घमंड, जिद्द और अन्यायपूर्ण शासन अंततः पतन का कारण बनते हैं। वहीं, जनता की सहनशीलता और धैर्य उन्हें हर प्रकार की कठिनाई से उबरने और भविष्य में अपने गौरव को पुनः स्थापित करने में मदद करता है।

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