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वायुमंडल में जल Notes in Hindi Class 11 Geography Chapter-10 Water in the Atmosphere Book- Bhutiq Bhugol ke Mul Sidhant

 

वायुमंडल में जल Notes in Hindi Class 11 Geography Chapter-10 Book- Bhutiq Bhugol ke Mul Sidhant



  • हवा में जलवाष्प (पानी की भाप) मौजूद रहती है, जो वायुमंडल के आयतन में 0 से 4 प्रतिशत तक हो सकती है। यह मौसम से जुड़ी घटनाओं में अहम भूमिका निभाती है। वायुमंडल में जल तीन रूपों—गैस, द्रव और ठोस—में पाया जाता है। 

  • जल का यह चक्र वाष्पीकरण (पानी का भाप बनना), वाष्पोत्सर्जन (पौधों से पानी का भाप बनना), संघनन (भाप का पानी बनना) और वर्षा के जरिए चलता रहता है।

  • हवा में मौजूद इस जलवाष्प को आर्द्रता कहते हैं, जिसे अलग-अलग तरीकों से मापा जाता है। उदाहरण के लिए:

  • निरपेक्ष आर्द्रता: यह हवा के प्रति घन मीटर में जलवाष्प का वजन है।

  • सापेक्ष आर्द्रता: यह बताए गए तापमान पर हवा में मौजूद जलवाष्प की तुलना उसकी अधिकतम क्षमता से प्रतिशत के रूप में करती है।

  • हवा की आर्द्रता तापमान पर निर्भर करती है, और जब हवा में भाप उसकी पूरी क्षमता तक पहुंच जाती है, तो उसे संतृप्त कहा जाता है। जिस तापमान पर यह संतृप्ति होती है, उसे ओसांक कहते हैं।


वाष्पीकरण और संघनन

वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा वाष्पीकरण और संघनन की प्रक्रियाओं से बदलती रहती है।

वाष्पीकरण (Evaporation)

  • वाष्पीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें जल द्रव अवस्था से गैस (जलवाष्प) में परिवर्तित होता है। इस प्रक्रिया का मुख्य कारण तापमान होता है। जिस तापमान पर पानी वाष्पीकृत होता है, उसे वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। इसके अलावा, हवा की नमी और गति भी वाष्पीकरण को प्रभावित करती हैं। हवा की तेज़ गति वाष्पीकरण की प्रक्रिया को तेज़ कर देती है।

संघनन (Condensation)

  • संघनन वह प्रक्रिया है जिसमें जलवाष्प ठंडा होकर फिर से द्रव (पानी) में परिवर्तित हो जाता है। इसका मुख्य कारण ऊष्मा का ह्रास (Heat loss) है। ठंडी हवा में जलवाष्प की धारण क्षमता कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप अतिरिक्त जलवाष्प द्रव में परिवर्तित हो जाता है। यह प्रक्रिया छोटे कणों, जैसे धूल, धुआं, या नमक के चारों ओर होती है, जिन्हें संघनन केंद्रक कहा जाता है।


संघनन के प्रकार

संघनन के बाद जलवाष्प विभिन्न रूपों में बदल सकता है, जैसे:

1. ओस (Dew)

2. कोहरा (Fog)

3. तुषार (Frost)

4. बादल (Clouds)

संघनन के लिए आवश्यक स्थितियां

संघनन की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में हवा का तापमान ओसांक (Dew Point) तक गिरना, हवा का आयतन कम होना, और हवा में अतिरिक्त जलवाष्प का प्रवेश शामिल हैं। इन कारकों के कारण हवा में मौजूद जलवाष्प द्रव में बदलने लगता है।

1. ओस

  • ओस तब बनती है जब हवा में मौजूद नमी ठंडी सतहों, जैसे घास, पौधों की पत्तियां, या पत्थरों पर पानी की बूंदों के रूप में जम जाती है। यह तब होता है जब नमी संघनन केंद्रकों पर संघनित होने के बजाय ठोस सतहों पर जमने लगती है।

ओस बनने की अनुकूल स्थितियां

1. साफ आसमान।

2. शांत और धीमी हवा।

3. उच्च सापेक्ष आर्द्रता।

4. ठंडी और लंबी रातें।

  • ओस तभी बनती है जब ओसांक (Dew Point) का तापमान जमाव बिंदु (Freezing Point) से ऊपर होता है।


2. तुषार

  • तुषार तब बनता है जब ठंडी सतहों पर नमी बर्फ के छोटे-छोटे क्रिस्टल के रूप में जम जाती है। यह तब होता है जब हवा का तापमान जमाव बिंदु (0°C) या उससे नीचे पहुंच जाता है।

तुषार बनने की स्थितियां

1. साफ और ठंडी रातें।

2. शांत और धीमी हवा।

3. उच्च सापेक्ष आर्द्रता।

4. हवा का तापमान 0°C या उससे कम।

ओस और तुषार का अंतर

  • ओस पानी की बूंदों के रूप में जमती है, जबकि तुषार बर्फ के क्रिस्टल के रूप में जमता है। दोनों ही संघनन के परिणामस्वरूप बनते हैं, लेकिन उनका निर्माण तापमान के अनुसार भिन्न होता है।


3. कोहरा और कुहासा

  • कोहरा और कुहासा ठंडी सतह के पास बनने वाले छोटे-छोटे बादल हैं। ये तब बनते हैं जब वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प धूल या धुएं के कणों पर संघनित हो जाती है।

कोहरा

  • कोहरा सतह के पास बनने वाला एक प्रकार का बादल है, जो दृश्यता को कम या शून्य कर देता है। नगरीय और औद्योगिक क्षेत्रों में धुएं के कारण कोहरा और अधिक घना हो जाता है। जब कोहरे और धुएं का मिश्रण बनता है, तो इसे 'धूम्र कोहरा' कहा जाता है।

कुहासा

  • कुहासे में कोहरे की तुलना में अधिक नमी होती है और यह पहाड़ों पर अधिक बनता है, जब गर्म हवा ठंडी सतह के संपर्क में आती है। कोहरे की तुलना में कुहासा अधिक गीला और नमीयुक्त होता है।

कोहरा और कुहासा में अंतर

  • कोहरा अधिक शुष्क होता है और सतह के पास बनता है, जबकि कुहासा अधिक नमीयुक्त होता है और मुख्यतः पहाड़ी इलाकों में बनता है।


5. बादल

  • बादल हवा में जलवाष्प के संघनन से बनते हैं और इनमें पानी की बूंदें या बर्फ के कण होते हैं। ये अलग-अलग ऊंचाई और आकार में दिखाई देते हैं।

बादलों के प्रकार

  • पक्षाभ मेघ (Cirrus Clouds) ऊंचाई 8,000-12,000 मीटर पर बनते हैं। ये पतले, बिखरे हुए, और पंख जैसे सफेद बादल होते हैं, जो हल्के और हमेशा सफेद रंग के दिखते हैं। 

  • कपासी मेघ (Cumulus Clouds) 4,000-7,000 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं और रूई के समान बिखरे हुए बादल होते हैं। इनका चपटा आधार होता है और यह बेहद सुंदर दिखते हैं। 

  • स्तरी मेघ (Stratus Clouds) परतदार बादल होते हैं, जो आकाश के बड़े हिस्से को ढक लेते हैं। ये ठंडी हवा या हवा के मिश्रण से बनते हैं और आमतौर पर सफेद या हल्के भूरे रंग के होते हैं। 

  • वर्षा मेघ (Nimbus Clouds) गहरे स्लेटी या काले रंग के मोटे बादल होते हैं, जो भारी वर्षा के लिए जिम्मेदार होते हैं और कभी-कभी सतह के बहुत करीब दिखाई देते हैं।


वर्षण

वर्षण वह प्रक्रिया है जब वायुमंडल में संघनन के बाद जलवाष्प पृथ्वी पर गिरती है। यह द्रव (पानी) या ठोस (बर्फ) के रूप में हो सकता है।

वर्षण के प्रकार

  • वर्षा (Rain): जब जलवाष्प पानी की बूंदों के रूप में जमीन पर गिरता है, तो यह सामान्य तापमान पर होने वाली एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।

  • हिमपात (Snowfall): जब तापमान 0°C से कम होता है, तो जलवाष्प बर्फ के रूप में जमीन पर गिरता है। यह बर्फ षट्कोणीय क्रिस्टल्स के रूप में बनती है, जो अद्वितीय और सुंदर आकार लेती है।

  • सहिम वृष्टि (Sleet): जमी हुई पानी की बूंदें ठंडी हवा में गिरती हैं और तब बनती हैं जब बारिश ठंडी परतों से होकर गुजरती है। यह प्रक्रिया ठंडे मौसम में होती है और पानी बर्फ के रूप में जम जाता है।

  • ओलावृष्टि (Hail): बर्फ के गोलाकार टुकड़े ठंडी हवा से गुजरने पर बनते हैं और बर्फ की परतों से ढके होते हैं। ये आमतौर पर ओलों के रूप में गिरते हैं और ठंडे वातावरण में बनने वाली विशेष प्रक्रिया का परिणाम होते हैं।


वर्षा के प्रकार (उत्पत्ति के आधार पर)

  • संवहनीय वर्षा (Convectional Rainfall): जब गर्म हवा ऊपर उठती है, तो ठंडी होकर संघनित हो जाती है, जिससे बारिश होती है। यह बारिश तेज़ होती है लेकिन कम समय तक रहती है और मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है।

  • पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall): जब हवा पर्वत की ढलान पर ऊपर उठती है, तो ठंडी होकर संघनित होती है और बारिश करती है। पवनाभिमुख (हवा वाली दिशा) ढलान पर अधिक बारिश होती है, जबकि दूसरी ढलान पर कम बारिश होती है, जिसे वृष्टि छाया क्षेत्र कहा जाता है।

  • चक्रवातीय वर्षा (Cyclonic Rainfall): चक्रवातों के कारण होने वाली बारिश तब होती है जब ठंडी और गर्म हवा आपस में मिलती हैं। यह प्रक्रिया चक्रवातीय वर्षा का कारण बनती है, जो भारी और व्यापक हो सकती है।


विश्व में वर्षा का वितरण

वर्षा की मात्रा को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। 

  • अधिक वर्षा (200 सेमी से अधिक) विषुवतीय क्षेत्रों, मानसूनी तटीय इलाकों, और शीतोष्ण प्रदेशों के पश्चिमी तटों पर होती है। 

  • मध्यम वर्षा (100-200 सेमी) महाद्वीपों के आंतरिक भागों और तटीय क्षेत्रों में होती है। कम वर्षा (50-100 सेमी) उष्णकटिबंधीय और रीतोष्ण क्षेत्रों के भीतरी भागों में पाई जाती है। 

  • बहुत कम वर्षा (50 सेमी से कम) वृष्टि छाया क्षेत्रों और ऊंचे अक्षांशों वाले क्षेत्रों में होती है।




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