सौर विकिरण
- सौर विकिरण वह ऊर्जा है जो सूर्य से पृथ्वी तक आती है। इसे "सूर्यातप" (Insolation) भी कहते हैं। पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा का बड़ा हिस्सा छोटे तरंगदैर्ध्य में होता है।
- पृथ्वी का आकार पूरी तरह गोल न होकर "भू-आभ" (Geoid) के रूप में है, जिसके कारण सूर्य की किरणें पृथ्वी पर सीधी न पड़कर तिरछी पड़ती हैं। इस वजह से पृथ्वी को सूर्य की पूरी ऊर्जा प्राप्त नहीं होती।
- पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी सतह पर प्रति मिनट प्रति वर्ग सेंटीमीटर लगभग 1.94 कैलोरी ऊर्जा पहुंचती है। पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी भी ऊर्जा प्राप्ति को प्रभावित करती है।
- 4 जुलाई को पृथ्वी सूर्य से सबसे दूर (अपसौर) होती है, जिसकी दूरी लगभग 15 करोड़ 20 लाख किमी होती है, जबकि 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य के सबसे करीब (उपसौर) होती है, जिसकी दूरी लगभग 14 करोड़ 70 लाख किमी होती है।
- इस कारण जनवरी में पृथ्वी को सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा जुलाई की तुलना में अधिक होती है।
- पृथ्वी पर सूर्यातप का प्रभाव स्थल और समुद्र के वितरण के कारण अलग-अलग जगहों पर भिन्न होता है। इसके अलावा, वायुमंडलीय परिवर्तन, जैसे हवा और बादलों का संचलन, सूर्यातप की मात्रा को कम या ज्यादा कर सकता है।
- सूर्यातप में बदलाव का असर पृथ्वी पर बड़े मौसम चक्रों पर बहुत कम पड़ता है। इसके बजाय, दैनिक और क्षेत्रीय मौसम में अन्य कारकों का प्रभाव ज्यादा होता है।
पृथ्वी की सतह पर सूर्यातप में भिन्नता
पृथ्वी पर सूरज से आने वाली ऊर्जा (सूर्यातप) हर दिन, मौसम और साल में बदलती रहती है। सूर्यातप की भिन्नता के मुख्य कारण ये हैं:
सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक:
- पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है, जिससे दिन और रात बनते हैं, और यह सूर्यातप को प्रभावित करता है। सूर्य की किरणों का कोण भी महत्वपूर्ण होता है; सीधी किरणें अधिक गर्मी देती हैं, जबकि तिरछी किरणें वायुमंडल में अधिक दूरी तय करने के कारण कम ऊर्जा प्रदान करती हैं, क्योंकि ऊर्जा का नुकसान ज्यादा होता है।
- दिन की लंबाई भी सूर्यातप को प्रभावित करती है, क्योंकि लंबे दिनों में सूर्य की किरणें अधिक समय तक पृथ्वी तक पहुंचती हैं, जिससे सूर्यातप बढ़ता है।
- वायुमंडल की पारदर्शिता का भी असर पड़ता है; धूल, जलवाष्प और अन्य गैसें सूर्य की किरणों को रोककर या बिखेरकर सूर्यातप को कम कर देती हैं।
- इसके अलावा, पृथ्वी की सतह का स्वरूप, जैसे पहाड़, मैदान और समुद्र का वितरण, भी सूर्यातप पर हल्का प्रभाव डालता है।
- पृथ्वी का अक्ष 66½° पर झुका हुआ है, जो अलग-अलग अक्षांशों पर सूर्यातप को भिन्न बनाता है।
- ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं, जिसके कारण इन क्षेत्रों को कम ऊर्जा मिलती है। इसके विपरीत, भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं, जिससे यहां अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
सौर विकिरण का वायुमंडल से होकर गुजरना
- सूर्य की किरणें वायुमंडल से गुजरकर पृथ्वी तक पहुंचती हैं, जहां वायुमंडल में मौजूद गैसें, जैसे जलवाष्प और ओज़ोन, कुछ विकिरण को अवशोषित कर लेती हैं।
- तिरछी किरणें वायुमंडल में अधिक दूरी तय करती हैं और बिखर जाती हैं, जिससे सूरज उगने और डूबने के समय लाल दिखाई देता है। इसी प्रक्रिया के कारण प्रकाश के प्रकीर्णन से आकाश नीला दिखाई देता है।
- पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में सूर्यातप (सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा) की मात्रा बदलती रहती है। इसका वितरण स्थान, मौसम और पर्यावरण पर निर्भर करता है।
सूर्यातप का स्थानिक वितरण:
- उष्ण कटिबंध में सूर्यातप की मात्रा सबसे अधिक होती है, लगभग 320 वॉट प्रति वर्गमीटर, लेकिन विषुवत् वृत्त पर मेघाच्छादन (बादलों के कारण) यह थोड़ा कम हो जाता है।
- ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्यातप की मात्रा केवल लगभग 70 वॉट प्रति वर्गमीटर होती है, क्योंकि सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं।
- उपोष्ण कटिबंधीय मरुस्थलों, जैसे सहारा में, साफ आसमान और बादलों की कमी के कारण सूर्यातप सबसे ज्यादा होता है।
- महाद्वीप और महासागरों की तुलना में, एक ही अक्षांश पर महाद्वीपीय क्षेत्रों में सूर्यातप अधिक मिलता है, क्योंकि महासागर सूर्य की किरणों को गहराई तक अवशोषित कर लेते हैं, जिससे सतह पर कम ऊर्जा पहुंचती है।
- मौसम का भी सूर्यातप पर प्रभाव पड़ता है; ग्रीष्म ऋतु में मध्य और उच्च अक्षांशों में सूर्यातप अधिक होता है, जबकि शीत ऋतु में यह मात्रा कम हो जाती है।
वायुमंडल का तापन और शीतलन
पृथ्वी का वायुमंडल कई तरीकों से गर्म और ठंडा होता है। इसे समझने के लिए मुख्य प्रक्रियाओं को जानना जरूरी है:
1. चालन (Conduction):
- पृथ्वी की सतह सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा को अवशोषित कर गर्म हो जाती है, जिससे सतह के संपर्क में आने वाली हवा भी गर्म हो जाती है।
- यह गर्मी निचली परतों से ऊपरी परतों में स्थानांतरित होती है।
- चालन तब होता है जब अलग-अलग तापमान वाले दो पिंड आपस में संपर्क में आते हैं, और वायुमंडल की निचली परतों को गर्म करने में चालन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
2. संवहन (Convection):
- गर्म हवा हल्की होकर ऊपर उठती है, जबकि ठंडी हवा नीचे आ जाती है, जिससे वायुमंडल में ताप का लंबवत स्थानांतरण होता है।
- यह प्रक्रिया वायुमंडल में तापमान को फैलाने में मदद करती है और मुख्य रूप से क्षोभमंडल (Troposphere) तक सीमित रहती है।
3. अभिवहन (Advection):
- जब हवा क्षैतिज रूप से (दाएं-बाएं) चलती है, तो वह अपने साथ गर्मी या ठंडक को भी ले जाती है।
- यह प्रक्रिया वायुमंडल में ताप के स्थानांतरण के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
- मध्य अक्षांशों में दैनिक मौसम के बदलाव और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मियों की लू का मुख्य कारण यही होता है।
4. पार्थिव विकिरण (Terrestrial Radiation):
- सूर्य से आने वाली लघु तरंगें (Short Waves) पृथ्वी की सतह को गर्म करती हैं, और गर्म होने के बाद पृथ्वी ऊर्जा को दीर्घ तरंगों (Long Waves) के रूप में विकीर्ण करती है।
- यह विकिरण वायुमंडल में मौजूद गैसें, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें, अवशोषित कर लेती हैं।
- वायुमंडल सीधे सूर्य से गर्म नहीं होता, बल्कि पृथ्वी से आने वाले इस विकिरण के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होता है।
5. विकिरण (Radiation):
- वायुमंडल में मौजूद गैसें और पृथ्वी की सतह विकिरण के माध्यम से अपनी ऊर्जा को अंतरिक्ष में भेजते हैं, जिससे पृथ्वी का तापमान संतुलित बना रहता है।
पृथ्वी का ऊष्मा बजट
पृथ्वी का ऊष्मा बजट (Heat Budget) इस बात का संतुलन है कि पृथ्वी को सूर्य से कितनी ऊर्जा मिलती है और वह अंतरिक्ष में कितनी ऊर्जा वापस भेजती है। यह संतुलन पृथ्वी के तापमान को स्थिर बनाए रखता है।
ऊष्मा बजट कैसे काम करता है?
- सूर्य से पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा, जिसे सूर्यातप कहा जाता है, कुल 100 इकाइयों के रूप में मानी जा सकती है।
- इनमें से 35 इकाइयाँ परावर्तित होकर अंतरिक्ष में लौट जाती हैं, जिसे पृथ्वी का एल्बिडो कहा जाता है। इन 35 इकाइयों में से 27 इकाइयाँ बादलों द्वारा और 2 इकाइयाँ बर्फ द्वारा परावर्तित होती हैं।
- शेष 65 इकाइयाँ पृथ्वी और वायुमंडल द्वारा अवशोषित की जाती हैं, जिनमें 14 इकाइयाँ वायुमंडल और 51 इकाइयाँ पृथ्वी की सतह द्वारा अवशोषित होती हैं।
- पृथ्वी की सतह इस ऊर्जा को पार्थिव विकिरण के रूप में अंतरिक्ष में पुनः भेजती है। इस ऊर्जा के पुनः वितरण में 17 इकाइयाँ सीधे अंतरिक्ष में लौट जाती हैं, जबकि 34 इकाइयाँ वायुमंडल द्वारा अवशोषित होकर अंततः अंतरिक्ष में भेजी जाती हैं।
- कुल मिलाकर, 65 इकाइयाँ (17 सतह से और 48 वायुमंडल से) अंतरिक्ष में लौटाई जाती हैं, जो सूर्य से मिलने वाली 65 इकाइयों का संतुलन करती हैं। यही ऊर्जा संतुलन पृथ्वी को न तो बहुत गर्म होने देता है और न ही बहुत ठंडा।
ऊष्मा बजट में भिन्नता:
- 40° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के बीच सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा अधिक होती है, जिससे इन क्षेत्रों में ऊष्मा का संचय होता है, जिसे अधिशेष (Surplus) कहा जाता है।
- इसके विपरीत, ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा कम होती है, जिससे यहां ऊर्जा की कमी, अर्थात घाटा (Deficit), होता है।
ताप का पुनर्वितरण
- उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों से अतिरिक्त ऊर्जा हवा और महासागरीय धाराओं के माध्यम से ध्रुवीय क्षेत्रों तक पहुंचती है।
- यह पुनर्वितरण सुनिश्चित करता है कि उष्ण कटिबंध अत्यधिक गर्म न हो और ध्रुवीय क्षेत्र पूरी तरह से न जमें, जिससे पृथ्वी का तापमान संतुलित बना रहता है।
तापमान
तापमान वह माप है जो बताता है कि कोई स्थान कितना गर्म या ठंडा है। यह सूरज से मिलने वाली ऊर्जा (सूर्यातप) और पृथ्वी के सतह-वायुमंडल की आपसी क्रिया से तय होता है। तापमान को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक:
- अक्षांश (Latitude): सूरज से मिलने वाली ऊर्जा अक्षांश के अनुसार बदलती है, जिससे भूमध्य रेखा पर तापमान अधिक होता है, जबकि ध्रुवों की ओर बढ़ने पर यह ऊर्जा कम हो जाती है, जिससे तापमान भी घटता है।
- ऊँचाई (Altitude): ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान कम हो जाता है, जिसे सामान्य हास दर कहा जाता है। समुद्र तल से हर 1,000 मीटर ऊपर जाने पर तापमान लगभग 6.5°C घटता है। इसी कारण निचले स्थानों, जैसे मैदानों में, तापमान ऊँचे स्थानों, जैसे पहाड़ों की तुलना में अधिक होता है।
- समुद्र से दूरी (Distance from Sea): समुद्र धीरे-धीरे गर्म होता है और धीरे-धीरे ठंडा होता है, जबकि स्थल जल्दी गर्म और जल्दी ठंडा हो जाता है। इस कारण समुद्र के पास के इलाकों का तापमान स्थिर रहता है, जबकि स्थल के अंदरूनी इलाकों में तापमान में अधिक बदलाव देखा जाता है।
- वायु संहति (Air Masses): गर्म वायु (Warm airmasses) वाले क्षेत्रों में तापमान अधिक होता है, जबकि ठंडी वायु (Cold airmasses) वाले क्षेत्रों में तापमान कम होता है।
- महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents): गर्म महासागरीय धाराएँ समुद्र तटों का तापमान बढ़ाती हैं, जबकि ठंडी धाराएँ तटों का तापमान कम कर देती हैं। उदाहरण के लिए, यूरोप का पश्चिमी तट गर्म महासागरीय धारा के प्रभाव से सर्दियों में भी अपेक्षाकृत गर्म रहता है।
- स्थानीय कारक: किसी स्थान का तापमान बादल, वनस्पति, और शहरीकरण जैसे कारकों से भी प्रभावित होता है। ये कारक क्षेत्रीय जलवायु और तापीय संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
तापमान का वितरण
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में तापमान अलग होता है। इसका अध्ययन जनवरी और जुलाई के तापमान के वितरण के जरिए किया जा सकता है। समताप रेखाएं (Isotherms), यानी ऐसी रेखाएं जो समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ती हैं, मानचित्रों पर यह वितरण दर्शाने में मदद करती हैं।
जनवरी में तापमान का वितरण:
- अक्षांश का प्रभाव तापमान वितरण में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, क्योंकि समताप रेखाएं आमतौर पर अक्षांशों के समानांतर होती हैं।
- उत्तरी गोलार्ध में जनवरी के दौरान तापमान में अधिक विचलन देखा जाता है, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में महासागरों के प्रभाव के कारण तापमान का अंतर अपेक्षाकृत कम होता है।
- उत्तरी गोलार्ध में अधिक स्थलीय भाग (Landmass) होने के कारण तापमान में ज्यादा बदलाव होते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तरी अटलांटिक महासागर में गल्फ स्ट्रीम और उत्तरी अटलांटिक महासागरीय धाराएं गर्मी बढ़ाती हैं, जिससे समताप रेखाएं उत्तर की ओर मुड़ जाती हैं।
- वहीं, साइबेरिया के मैदान में जनवरी के दौरान सबसे कम तापमान -18°C से -48°C तक दर्ज किया जाता है। दूसरी ओर, दक्षिणी गोलार्ध में महासागरों का प्रभाव अधिक होने के कारण समताप रेखाएं अक्षांशों के समानांतर रहती हैं, और यहाँ तापमान की भिन्नता उत्तरी गोलार्ध की तुलना में कम होती है।
जुलाई में तापमान का वितरण
- अक्षांश का प्रभाव तापमान वितरण में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, क्योंकि समताप रेखाएं ज्यादातर अक्षांशों के समानांतर रहती हैं।
- विषुवतीय महासागरों का तापमान सामान्यतः 27°C से अधिक होता है। एशिया के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में, विशेषकर 30° उत्तरी अक्षांश पर, तापमान 30°C से अधिक पाया जाता है।
- ध्रुवीय और मध्य अक्षांशों में तापमान कम होता है, जैसे 40° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों पर औसतन 10°C तापमान दर्ज किया जाता है।
तापांतर (Temperature Variation):