महासागरीय जल Notes in Hindi Class 11 Geography Chapter-12 ocean water Book- Bhutiq Bhugol ke Mul Sidhant
0Team Eklavyaदिसंबर 03, 2024
जलीय चक्र
जल एक चक्रीय संसाधन है, जिसे बार-बार इस्तेमाल और पुनः उपयोग किया जा सकता है। जलीय चक्र में जल महासागरों से वायुमंडल में वाष्पित होता है, धरती पर बारिश के रूप में गिरता है और फिर नदियों के जरिए महासागरों में लौट आता है। यह प्रक्रिया करोड़ों वर्षों से चल रही है और पृथ्वी पर हर जीव के जीवन का आधार है।
जलीय चक्र की विशेषताएं
संचलन प्रक्रिया: जल गैस, तरल और ठोस रूपों में महासागरों, वायुमंडल, धरातल और जीवों के बीच लगातार घूमता रहता है।
जल का वितरण: 71% जल महासागरों में पाया जाता है, लेकिन खारा होने के कारण यह पीने योग्य नहीं है। शेष जल हिमनदियों, भूमिगत जल, झीलों, नदियों और वायुमंडल में पाया जाता है।
जल संकट के कारण:जल का वितरण असमान है; कुछ स्थानों पर जल की प्रचुरता है, जबकि कुछ क्षेत्रों में इसकी भारी कमी है। बढ़ती जनसंख्या और जल की बढ़ती मांग ने जल संकट को और अधिक गंभीर बना दिया है। इसके अलावा, नदी जल का प्रदूषण इस समस्या को और जटिल बना देता है।
महासागरीय अधस्तल का उच्चावच
महासागर पृथ्वी की बाहरी परत का एक बड़ा हिस्सा हैं, जिनकी सतह के नीचे की भू-आकृति (अधस्तल) जटिल और विविध है। महासागर पृथ्वी की सतह का एक बड़ा हिस्सा कवर करते हैं और इन्हें पांच प्रमुख महासागरों में बांटा गया है:
1. प्रशांत महासागर
2. अटलांटिक महासागर
3. हिंद महासागर
4. दक्षिणी महासागर
5. आर्कटिक महासागर
6. इन महासागरों में समुद्र, खाड़ियाँ, गलक और अन्य छोटी जल निकाय भी शामिल हैं।
महासागरीय अधस्तल की विशेषताएं
महासागरीय अधस्तल आमतौर पर समुद्र तल के नीचे 3 से 6 किमी की गहराई में स्थित होता है।
इसकी भू-आकृति भूमि पर मौजूद लक्षणों जैसे पहाड़, मैदान और गर्त से भी अधिक विविध और जटिल होती है।
महासागर की तली पर प्रमुख संरचनाओं में विश्व की सबसे बड़ी पर्वत श्रृंखलाएं (जैसे मिड-ओशन रिज), सबसे गहरे गर्त (जैसे मारियाना ट्रेंच) और विशाल समतल क्षेत्र (अभ्रक प्लेन) शामिल हैं।
महासागरीय अधस्तल का विभाजन
महासागरीय अधस्तल को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है:
1. महाद्वीपीय शेल्फ़
महाद्वीपीय शेल्फ़ हर महाद्वीप का विस्तृत किनारा है, जो उथले समुद्रों और खाड़ियों से घिरा होता है। यह महासागर का सबसे उथला भाग है, जहां समुद्र तल की ढाल बहुत कम होती है (औसतन 1° से भी कम)। शेल्फ़ का अंत तीव्र ढाल वाले क्षेत्र से होता है जिसे शेल्फ़ अवकाश कहा जाता है।
महासागरीय शेल्फ़ की चौड़ाई में विविधता पाई जाती है, जिसकी औसत चौड़ाई लगभग 80 किमी है। हालांकि, कुछ स्थानों पर, जैसे चिली और सुमात्रा के तट, यह शेल्फ़ बहुत संकीर्ण या पूरी तरह से गायब हो सकती है।
आर्कटिक महासागर में साइबेरियन शेल्फ़ सबसे चौड़ा है, जिसकी चौड़ाई लगभग 1,500 किमी है। शेल्फ़ की गहराई 30 मीटर से 600 मीटर तक हो सकती है।
यह शेल्फ़ अवसाद जमा होने का प्रमुख क्षेत्र है, जहां भूमि से लाए गए तलछट, नदियों, हिमनदियों और हवाओं के माध्यम से जमा होते हैं। समय के साथ, ये अवसाद जीवाश्म ईंधन जैसे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के स्रोत बन जाते हैं।
2. महाद्वीपीय ढाल
महाद्वीपीय ढाल वह हिस्सा है जो महाद्वीपीय शेल्फ़ को महासागरीय बेसिन से जोड़ता है। यह वहाँ से शुरू होता है, जहां शेल्फ़ की सतह अचानक ढलान में बदल जाती है।
महाद्वीपीय ढलान 2° से 5° तक की प्रवणता वाले क्षेत्र पर स्थित होता है, जिसकी गहराई 200 मीटर से 3,000 मीटर तक हो सकती है।
यह क्षेत्र महाद्वीपों के समाप्ति बिंदु को दर्शाता है। इस ढाल वाले क्षेत्र में गहरी खड्डें (कैनियन) और खाइयां जैसी भू-आकृतियां पाई जाती हैं, जो इसे भूगर्भीय रूप से विशिष्ट बनाती हैं।
3. गंभीर सागरीय मैदान
गंभीर सागरीय मैदान महासागरीय बेसिन के मंद ढाल वाले क्षेत्र हैं। ये दुनिया के सबसे चिकने और सपाट भूभाग माने जाते हैं।
गहरे समुद्री मैदानों की गहराई 3,000 से 6,000 मीटर तक होती है।
ये मैदान महीन कणों, जैसे मृत्तिका (क्ले) और गाद (सिल्ट), से ढके रहते हैं, जो इन्हें एक सपाट सतह प्रदान करते हैं।
यह क्षेत्र महासागरों का सबसे समतल हिस्सा माना जाता है।
4. महासागरीय गर्त
महासागरीय गर्त महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं। ये खड़े किनारों वाले संकीर्ण और गहरे बेसिन होते हैं, जो अपने आसपास की महासागरीय तली से 3 से 5 किमी तक गहरे होते हैं।
महासागरीय गर्त महाद्वीपीय ढाल के आधार और द्वीपीय चापों के पास स्थित होते हैं।
ये महासागरों के अन्य हिस्सों की तुलना में सबसे गहरे क्षेत्र हैं और सक्रिय ज्वालामुखियों तथा प्रबल भूकंप वाले क्षेत्रों से जुड़े होते हैं।
ये गर्त प्लेट टेक्टोनिक्स के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे प्लेटों के संचलन को समझने में मदद करते हैं।
अब तक 57 महासागरीय गर्त खोजे जा चुके हैं, जिनमें से 32 प्रशांत महासागर, 19 अटलांटिक महासागर और 6 हिंद महासागर में स्थित हैं।
उच्चावच की लघु आकृतियाँ
ऊपर बताए गए महासागरीय अधस्तल के प्रमुख उच्चावचों के अतिरिक्त कुछ लघु किंतु महत्वूपर्ण आकृतियाँ महासागरों के विभिन्न भागों में प्रमुखता से पाई जाती हैं।
1. मध्य-महासागरीय कटक
मध्य-महासागरीय कटक महासागरों के भीतर स्थित पर्वतों की दो श्रृंखलाओं से मिलकर बनता है। इन श्रृंखलाओं के बीच एक गहरी दरार (अवनमन) होती है।
महासागरीय पर्वत श्रृंखलाओं की ऊँचाई लगभग 2,500 मीटर तक होती है, और कुछ स्थानों पर ये समुद्र की सतह तक पहुंच जाती हैं, जैसे कि आईसलैंड, जो मध्य अटलांटिक कटक का हिस्सा है।
ये पर्वत श्रृंखलाएं महासागरों के तल पर लावा के ठंडा होने से बनती हैं और पृथ्वी की प्लेटों के अलग होने का परिणाम होती हैं।
2. समुद्री टीला
समुद्री टीला समुद्र की तली से उठने वाले नुकीले शिखर वाले पर्वत हैं, जो समुद्र की सतह तक नहीं पहुंचते। ये ज्वालामुखी गतिविधियों के कारण बनते हैं।
समुद्री टीले ज्वालामुखीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप बनते हैं और इनकी ऊँचाई 3,000 से 4,500 मीटर तक हो सकती है।
उदाहरण के तौर पर, एम्पेरर समुद्री टीला प्रशांत महासागर में हवाई द्वीपसमूह का विस्तार है।
3. सबसे सपाट जलमग्न घाटियाँ
समुद्री कैनियन गहरी जलमग्न घाटियाँ होती हैं, जिनकी तुलना अक्सर कोलोरेडो नदी की ग्रैंड कैनियन से की जाती है।
समुद्री घाटियाँ बड़ी नदियों के मुहाने से शुरू होती हैं और महाद्वीपीय शेल्फ़ तथा ढालों को काटती हुई गहराई में आगे बढ़ती हैं।
इनका एक प्रमुख उदाहरण हडसन कैनियन है, जो दुनिया का सबसे प्रसिद्ध और बड़ा समुद्री कैनियन माना जाता है।
4. निमग्न द्वीप
ये समुद्र के अंदर चपटे शिखर वाले टीले होते हैं। ये जल में डूबे हुए पहाड़ हैं, जो धीरे-धीरे डूबने की प्रक्रिया से बने हैं।
प्रशांत महासागर में ऐसे करीब 10,000 से ज्यादा समुद्री टीले और निमग्न द्वीप मौजूद हैं।
5. प्रवाल द्वीप
ये छोटे-छोटे द्वीप हैं जो गर्म महासागरों में प्रवाल भित्तियों से बनते हैं। ये चारों ओर से गहरे पानी को घेरते हैं। कभी-कभी ये साफ, खारे या बहुत पानी से घिरे हो सकते हैं।
महासागरीय जल का तापमान
महासागरों के तापमान में जगह और गहराई के हिसाब से अंतर होता है। महासागरीय जल सूर्य की गर्मी से गर्म होता है। जमीन के मुकाबले पानी धीरे-धीरे गर्म और ठंडा होता है।महासागरों के पानी का तापमान विभिन्न प्राकृतिक कारणों से बदलता रहता है। ये कारक महासागरों के अलग-अलग हिस्सों में तापमान के वितरण को प्रभावित करते हैं।
अक्षांश का प्रभाव:विषुवत रेखा के पास सौर ऊर्जा की अधिकता के कारण सतही जल का तापमान अधिक होता है, जबकि ध्रुवों की ओर बढ़ने पर सौर ऊर्जा की कमी के कारण यह तापमान धीरे-धीरे घटता जाता है।
स्थल और जल का वितरण:उत्तरी गोलार्ध के महासागर अधिक जमीन से घिरे होने के कारण अपेक्षाकृत अधिक गर्मी प्राप्त करते हैं, जबकि दक्षिणी गोलार्ध के महासागर कम जमीन से घिरे होने के कारण अपेक्षाकृत ठंडे रहते हैं।
सनातन पवनें: सनातन पवनें महासागर के गर्म पानी को तट से दूर ले जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप नीचे का ठंडा पानी ऊपर आ जाता है और समुद्र के तापमान में कमी होती है। इसके विपरीत, अभितटीय पवनें गर्म पानी को तट पर जमा करती हैं, जिससे तटीय क्षेत्रों का तापमान बढ़ जाता है।
महासागरीय धाराएँ:गर्म महासागरीय धाराएँ ठंडे क्षेत्रों का तापमान बढ़ा देती हैं, जैसे गल्फ स्ट्रीम, जो यूरोप के पश्चिमी तट को गर्म करती है। वहीं, ठंडी धाराएँ गर्म क्षेत्रों का तापमान कम कर देती हैं, जैसे लेब्रेडोर धारा, जो उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को ठंडा करती है।
परिवेष्ठित समुद्र और खुले समुद्र:निम्न अक्षांशों में स्थित बंद समुद्रों का तापमान खुले समुद्रों की तुलना में अधिक होता है, जबकि उच्च अक्षांशों में बंद समुद्रों का तापमान खुले समुद्रों की तुलना में कम होता है।
तापमान का ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज वितरण:
महासागरों का तापमान सतह से गहराई और अक्षांश के साथ बदलता है। यह सूर्य की ऊष्मा, जल की गहराई और महासागरों के स्थानिक फैले हुए क्षेत्र पर निर्भर करता है।
ऊर्ध्वाधर वितरण (गहराई के साथ तापमान)
1. ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन):
सतही जल और गहरी परतों के बीच थर्मोक्लाइन वह क्षेत्र है, जहां तापमान तेजी से गिरता है।
यह क्षेत्र समुद्र की सतह से 100-400 मीटर की गहराई पर शुरू होता है और कई सौ मीटर तक फैला होता है।
थर्मोक्लाइन के नीचे तापमान घटकर 0°C तक पहुंच सकता है।
2. तापमान की तीन परतें
पहली परत (सतही गर्म परत): सतही परत की गहराई लगभग 500 मीटर तक होती है, और इसका तापमान 20°C से 25°C के बीच रहता है। यह परत उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पूरे वर्ष बनी रहती है, जबकि मध्य अक्षांशों में यह केवल ग्रीष्म ऋतु में बनती है।
दूसरी परत (थर्मोक्लाइन परत):मध्य परत की गहराई 500 से 1,000 मीटर तक होती है, और इस परत में गहराई बढ़ने के साथ तापमान तेजी से गिरता है।
तीसरी परत (ठंडी गहरी परत):गहरी परत महासागरीय तली तक फैली होती है। आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में इस परत का तापमान सतह से लेकर गहराई तक लगभग समान रहता है, जो लगभग 0°C के आसपास होता है।
क्षैतिज वितरण (अक्षांश के साथ तापमान)
1. सतही तापमान
महासागरों का औसत सतही तापमान लगभग 27°C होता है, जो विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर बढ़ने पर घटता जाता है।
प्रत्येक अक्षांश पर तापमान में औसतन 0.5°C की गिरावट होती है।
2. तापमान दर
महासागरों का सतही तापमान 20° अक्षांश पर लगभग 22°C, 40° अक्षांश पर लगभग 14°C और ध्रुवों के पास घटकर लगभग 0°C तक पहुँच जाता है।
3. उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध
उत्तरी गोलार्ध का औसत महासागरीय तापमान लगभग 19°C है, जबकि दक्षिणी गोलार्ध का औसत तापमान लगभग 16°C है। यह अंतर स्थल और जल के असमान वितरण के कारण होता है।
4. महत्त्वपूर्ण तथ्य
महासागरों की ऊपरी सतह का तापमान सूर्य की ऊष्मा को सीधे प्राप्त करने के कारण अधिक होता है।
गहराई बढ़ने के साथ तापमान कम होता जाता है, लेकिन यह कमी हर स्थान पर समान नहीं होती।
लगभग 200 मीटर की गहराई तक तापमान तेजी से गिरता है, उसके बाद यह गिरावट धीमी हो जाती है।
महासागरीय जल की लवणता
महासागरों का पानी खनिज लवणों से भरा होता है। लवणता (Salinity) महासागरीय जल में घुले हुए नमक की मात्रा को मापने का तरीका है।
लवणता समुद्री जल में प्रति 1,000 ग्राम (1 किलोग्राम) पानी में घुले हुए नमक की मात्रा को दर्शाती है। इसे PPT (Parts Per Thousand) या प्रतिशत (%) के रूप में मापा जाता है।
उदाहरण के लिए, यदि जल की लवणता 35 PPT है, तो इसका अर्थ है कि 1,000 ग्राम पानी में 35 ग्राम नमक घुला हुआ है।
लवणता महासागरीय जल का एक महत्वपूर्ण गुण है, जो समुद्री जल की संरचना और गुणधर्म को प्रभावित करती है।
लवणता की सीमा में 24.7% को खारे जल की उच्चतम सीमा माना जाता है।
महासागरीय जल की लवणता को प्रभावित करने वाले कारक
महासागरों की लवणता कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं और कारकों पर निर्भर करती है। ये कारक महासागरीय जल में घुले नमक की मात्रा को बदलते हैं।
वाष्पीकरण और वर्षा: महासागरीय जल की लवणता अधिक वाष्पीकरण के कारण बढ़ती है, जबकि अधिक वर्षा होने पर लवणता घट जाती है।
तटीय और ध्रुवीय प्रभाव: तटीय क्षेत्रों में नदियों से मिलने वाले ताजे पानी के कारण महासागरीय जल की लवणता कम हो जाती है। वहीं, ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ जमने से लवणता बढ़ती है, जबकि बर्फ पिघलने पर यह घट जाती है।
पवन (हवा): पवन जल को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ले जाती है, जिससे लवणता में बदलाव होता है।
महासागरीय धाराएँ: गर्म और ठंडी धाराएँ लवणता के वितरण को प्रभावित करती हैं।
तापमान और घनत्व: तापमान और घनत्व का लवणता से सीधा संबंध होता है। तापमान या घनत्व में किसी भी प्रकार के बदलाव से महासागरीय जल की लवणता में भी परिवर्तन होता है।
लवणता का क्षैतिज वितरण
महासागरों की लवणता भौगोलिक स्थान, वाष्पीकरण, वर्षा और नदियों के जल से प्रभावित होती है। खुले महासागरों की लवणता 33% से 37% के बीच होती है।
लाल सागर में यह 41% तक और आर्कटिक क्षेत्रों में 0% से 35% तक हो सकती है। गर्म और शुष्क क्षेत्रों में लवणता 70% तक पहुँच जाती है।
अटलांटिक महासागर की औसत लवणता 36%, प्रशांत महासागर की 33%-35%, और हिंद महासागर की 35% है।
बंगाल की खाड़ी में गंगा नदी के कारण लवणता कम, जबकि अरब सागर में वाष्पीकरण के कारण अधिक होती है।
भूमध्य सागर में लवणता अधिक, और काला सागर व बाल्टिक सागर में नदियों के कारण कम होती है।
लवणता का ऊर्ध्वाधर वितरण
समुद्र की गहराई के साथ लवणता में परिवर्तन समुद्र की स्थिति पर निर्भर करता है।
सतह पर लवणता बर्फ बनने, वाष्पीकरण, या ताजा पानी मिलने से बदलती है, जबकि गहराई में यह स्थिर रहती है।
हल्का, कम लवणता वाला पानी ऊपर और भारी, अधिक लवणता वाला पानी नीचे रहता है।
गहराई में "हैलोक्लाइन" क्षेत्र में लवणता तेजी से बढ़ती है। लवणता समुद्री पानी के घनत्व को बढ़ाकर जल स्तरीकरण में योगदान देती है।