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उमाशंकर जोशी छोटा मेरा खेत और बगुलों के पंख व्याख्या Hindi Chapter-9 Class 12 Book-Aroh Chapter Summary

उमाशंकर जोशी छोटा मेरा खेत और बगुलों के पंख व्याख्या Hindi Chapter-9 Class 12 Book-Aroh Chapter Summary

 

छोटा मेरा खेत

  उमाशंकर जोशी  


इस कविता में कवि ने अपने कवि-कर्म को कृषक के सामान बताया है। किसान अपने खेत में बीज बोता है बीज अंकुरित होकर पौधा बनता है , फिर पुष्पित होकर जब परिपक्व होता है तब उसकी कटाई होती है इस कविता में जोशी जी ने एक कवि के रचना कर्म की व्याख्या की है


छोटा मेरा खेत चौकोना 
कागज का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया 
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी 
बीज गल गया निःशेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

कविता की इन पंक्तियों में खेती के रूपकों अर्थात् बीज बोने, अंकुरित होने , फलने फूलने और अंततः फसल काटने का वर्णन करते हुए कवि कहता है की कोई भी रचना ठीक खेती की फसल की तरह होती है

व्याख्या 

  • कवि कहता है – मैं भी एक प्रकार का किसान हूँ 
  • कागज़ का एक पन्ना मेरे लिए छोटे –से चौकोर खेत के समान है
  • अंतर इतना ही है की किसान ज़मीन पर कुछ बोता है और मैं कागज़ पर कविता उगाता हूँ
  • जिस प्रकार किसान धरती पर फसल उगाने के लिए कोई बीज उगाता है , उसी प्रकार मेरे मन में अचानक आई आंधी के समान कोई भाव रुपी बीज न जाने कहाँ से चला आता है
  • यह भाव रुपी बीज मेरे मन रुपी खेत में अचानक बोया जाता है
  • वास्तव में कविता या साहित्य मनोभावों की ही उपज है |जिस प्रकार धरती में बोया बीज विभिन्न रसायनों – हवा , पानी , खाद आदि को पीकर स्वयं को गला देता है  वैसे ही कवि के मनोभाव काव्य-शब्दों के अंकुर के रूप में कागज़ पर अंकित हो गए
  • कवि आगे इन शब्द रुपी अंकुरों के पल्लव और पुष्पों से युक्त हो जाने की बात कहता है
  • जिस प्रकार अंकुर पूरे खेत में विकसित होते हुए पूरे खेत को अपने पत्तों और फूलों से भरकर विस्तृत फसल का रूप दे देते हैं , वैसे ही कवि के शब्द रुपी अंकुर विकसित होकर रचना का रूप ले लेते हैं


झूमने लगे फल
रस अलौकिक,
रस अमृत धाराएँ फूटतीं 
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की 
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना।

कवि यहाँ अपनी रचना प्रक्रिया के अंतिम चरण का वर्णन करते हुए कहता है की कल्पना के रसायनों से पोषित , पुष्पित एवं पल्लवित उसकी रचना रुपी फसल में कविता रुपी फल लगे हैं

व्याख्या 

  • जब कवि के ह्रदय में पलने वाला भाव पककर कविता रुपी फल के रूप में झूमने लगता है तो उसमे से अद्भुत रस झरने लगता है
  • आनंद की अमृत जैसी धाराएं फूटने लगती हैं
  • वह आगे कहता है की इस प्रकार कवि कर्म के बाद जो रचना रुपी फसल उसने उपजाई , उसमे बोया तो उसने क्षण को , लेकिन काटने के बाद पाया अनंत को
  • अनंत को काटने का अर्थ है , कवि की रचना का कालजयी होना
  • साहित्य में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं , जब रचना अपने समय को लांघकर आगे के समय के लिए भी प्रासंगिक बनी रहती है
  • कवि आगे कहता है की उसकी यह सृजनात्मकता काव्य-पूँजी के व्यय से कम नहीं होती म बल्कि और बढ़ती जाती है
  • लोगों द्वारा अपनाए जाने , प्रचार प्रसार से वह और भी अधिक प्रसिद्ध हो जाती है
  • कविता की फसल ऐसी अनंत है की उसे जितना लुटाओ , वह खाली नहीं होती
  • वह युगों-युगों तक रस देती रहती है 
  • सचमुच कवि के पास कविता रुपी जो चौकोर खेत है , वह रस का अक्षय पात्र है जिसमे से कभी रस समाप्त नहीं होता 

उमाशंकर जोशी छोटा मेरा खेत और बगुलों के पंख व्याख्या Hindi Chapter-9 Class 12 Book-Aroh Chapter Summary




  बगुलों के पंख  

यह कविता प्राकृतिक सौन्दर्य से सम्बंधित है। आकाश में काले-काले बादल छाए हुए हैं। साँझ का समय है , सफ़ेद पंखों वाले बगुले पंक्तिबद्ध होकर आकाश में जा रहे हैं


नभ में पाँती-बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें। 
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया। 
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें 
नभ में पाँती-बँधी बगुलों की पाँखें।

इस काव्यांश में संध्याकालीन आकाश में पंक्तिबद्ध उड़ते बगुलों के श्वेत पंखों के सौन्दर्य तथा संध्याकालीन आकाश में प्राकृतिक दृश्य का सुन्दर वर्णन किया गया है

व्याख्या 

  • कवि कहता है – आकाश में बगुले अपने पंख फैलाए हुए कतार में उड़ रहे हैं
  • उमे इतना आकर्षण है की वे मेरी आँखों को चुराकर ले जा रहे है
  • आकाश में काले-काले बादल छाए हुए हैं  उसे देखकर ऐसा लगता है मानो साँझ की श्वेत कांतिमय काया विहार कर रही हो 
  • यह साँझ धीरे-धीरे आकाश में विहार कर रही है और मुझे अपने जादू में बाँध रही है
  • कवि को डर है की ये रमणीय दृश्य कहीं ओझल न हो जाए
  • इसलिए वह गुहार लगाकर कहता है – कोई तो उसे ज़रा-सा रोककर रखो
  • मैं इस दृश्य को और देर तक देखते रहना चाहता हूँ
  • इस सुन्दर वातावरण के बीच पंख फैलाकर उड़ते बगुलों की पंक्तियाँ मेरी आँखें ही चुरा लेंगी
  • इन्हें रोको  मैं इनके सौन्दर्य में डूबा जा रहा हूँ 


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