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सुधा अरोड़ा ज्योतिबा फुले Class 11 Chapter-5 Book- Antra Chapter Summary

सुधा अरोड़ा ज्योतिबा फुले Class 11 Chapter-5 Book- Antra Chapter Summary

 ज्योतिबा फुले

 सुधा अरोड़ा ज्योतिबा फुले 


परिचय

महात्मा ज्योतिबा फुले भारतीय समाज सुधार आंदोलन के प्रमुख स्तंभ थे। वे जातिवाद, वर्ण-व्यवस्था और पितृसत्ता के प्रखर विरोधी थे। उच्च वर्गीय वर्चस्व के खिलाफ़ उनके विचार और कार्य उन्हें विशिष्ट बनाते हैं।


सामाजिक शोषण के खिलाफ आंदोलन

ज्योतिबा फुले ने 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना करते हुए ब्राह्मण वर्चस्व, पूँजीवादी मानसिकता, और धार्मिक पाखंड पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने दलितों और स्त्रियों को संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करने की प्रेरणा दी। उनके इस प्रयास ने सामाजिक सुधार और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रखा, जिससे वंचित वर्गों को न्याय और सम्मान प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रमुख कृतियाँ

ज्योतिबा फुले की पुस्तकें, जैसे 'गुलामगिरी,' 'शेतकऱ्यांचा आसूड,' और 'सार्वजनिक सत्यधर्म,' शोषण-व्यवस्था के खिलाफ़ उनके विचारों का सशक्त प्रतिबिंब हैं। इन रचनाओं के माध्यम से उन्होंने सामाजिक असमानता और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई। फुले ने जाति, धर्म, और वर्ग से परे एक आदर्श परिवार की परिकल्पना की, जो समानता, स्वतंत्रता, और मानवता के मूल्यों पर आधारित हो।

शिक्षा के लिए योगदान

14 जनवरी 1848 को ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर भारत की पहली कन्या पाठशाला की स्थापना की। उनके इस प्रयास से शूद्र और शूद्रातिशूद्र लड़कियों के लिए शिक्षा का मार्ग प्रशस्त हुआ, जो उस समय समाज में एक क्रांतिकारी कदम था। उन्होंने सभी के लिए आधुनिक शिक्षा के समान वितरण की मांग की, जिससे शिक्षा को जाति और लिंग के बंधनों से मुक्त किया जा सके।

स्त्री-सशक्तिकरण

ज्योतिबा फुले ने स्त्रियों के अधिकार और स्वतंत्रता के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किए। उन्होंने विवाह-विधि में पुरुष प्रधानता को समाप्त करने और स्त्री-समानता स्थापित करने के उद्देश्य से नए मंत्रों की रचना की। उनके इन प्रयासों ने समाज में महिलाओं के प्रति समानता और सम्मान की भावना को प्रोत्साहित किया और पितृसत्तात्मक व्यवस्था को चुनौती दी।

संघर्ष और सफलता

ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले को अपने सुधारात्मक प्रयासों के कारण समाज के कठोर विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन वे अपने उद्देश्य से पीछे नहीं हटे। उनके प्रयासों ने समाज में कई जातियों के लिए सामाजिक और शैक्षणिक बदलाव को संभव बनाया, जिससे वंचित वर्गों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने और प्रगति का मार्ग अपनाने का अवसर मिला।

दांपत्य जीवन

ज्योतिबा और सावित्रीबाई का जीवन सहयोग और समर्पण का प्रतीक है। दोनों ने मिलकर सामाजिक कुरीतियों और अंध-श्रद्धाओं के खिलाफ काम किया।

महात्मा की उपाधि

1888 में ज्योतिबा फुले को 'महात्मा' की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्होंने इसे समाज के बीच संघर्ष जारी रखने की प्रेरणा के रूप में स्वीकार किया।

निष्कर्ष:

महात्मा ज्योतिबा फुले का जीवन और उनके कार्य दलितों, शोषितों, और स्त्रियों के अधिकारों के लिए प्रेरणा हैं। उनकी शिक्षा, समानता, और सामाजिक न्याय के विचार आज भी प्रासंगिक हैं।







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