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फ़िराक गोरखपुरी रुबाइयाँ व्याख्या Hindi Chapter-8 Class 12 Book-Aroh Chapter Summary

फ़िराक गोरखपुरी रुबाइयाँ व्याख्या Hindi Chapter-8 Class 12 Book-Aroh Chapter Summary

 रुबाइयाँ  

 फ़िराक गोरखपुरी 

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित प्रसिद्ध शायर फ़िराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘रुबाइयाँ’ शीर्षक कविता से लिया गया है ये रुबाइयाँ वात्सल्य रस से युक्त हैं। इनमे नन्हे शिशु  की अठखेलियाँ , माँ-बेटे की कुछ मनमोहक अदाएँ तथा रक्षाबंधन का एक दृश्य प्रस्तुत किया गया है

रुबाई उर्दू और फ़ारसी का एक छंद या लेखन शैली है, जिसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। इसकी पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति में तुक (काफ़िया) मिलाया जाता है तथा तीसरी पंक्ति स्वच्छंद होती है।


आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी 
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है 
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी

इस रुबाई में फ़िराक गोरखपुरी ने एक छोटे बच्चे तथा उसकी माँ का वर्णन किया है | 

व्याख्या 

  • शायर कहता है – एक माँ अपने प्यारे शिशु को गोद में लिए आँगन में खड़ी है
  • कभी वह उसे हाथों पर झुलाने लगती है  कभी उसे हवा में उछाल कर खुश करती है | शिशु माँ के हाथों से झूले खाकर खिलखिला उठता है
  • उस बच्चे की यह खिलखिलाती हंसी पूरे वातावरण में गूँज पड़ती है


नहला के छलके छलके निर्मल जल 
से उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके 
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को 
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े

इस रुबाई में फ़िराक गोरखपुरी ने एक छोटे बच्चे तथा उसकी माँ का वर्णन किया है

व्याख्या

  • माँ ने पहले अपने शिशु को साफ़-स्वच्छ पानी में अपने हाथों से पानी छलका-छलका कर नहलाया
  • फिर उसने शिशु के उलझे बालों में कंघी की
  • जब वह अपने घुटनों मे लेकर बच्चे को कपड़े पहनती है , तो बच्चा बड़े प्यार से माँ के मुख की ओर निहारता है 
  • ये दृश्य सबसे रोचक है 


दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए

इस रुबाई में शायर ने दीवाली के शाम का सुन्दर वर्णन किया है 

व्याख्या

  • दीवाली की शाम है  घर पूरी तरह रंग-रोगन से पुता हुआ तथा सजा हुआ है
  • माँ अपने नन्हे बेटे को प्रसन्न करने के लिए चीनी मिट्टी के जगमगाते खिलौने लेकर आती है
  • उस सुन्दर माँ के मुख पर सौंदर्य की एक मधुर आभा है। वह बच्चों के खिलौनों के बीच एक दिया जलाती है जिससे बच्चा खुश हो उठता है


आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है   

बालक तो हई चाँद पै ललचाया है 

दर्पण उसे दे के कह रही है माँ

देख आईने में चाँद उतर आया है

इस रुबाई में शायर बच्चे की बाल-सुलभ जिद का वर्णन करते हुए माँ द्वारा उसे मनाने बहलाने का चित्रण करता है 

व्याख्या

  • शायर कहता है – देखो , बच्चा अपने आँगन में झूठमूठ रो रहा है और मचल रहा है  वह बालक तो है ही , उसका मन चाँद लेने पर आ गया है 
  • वह माँ से चाँद लाने की जिद पर अड़ गया है |
  • माँ उसके हाथों में दर्पण देकर बहलाती हुई कहती है – देख बेटे ! चाँद इस दर्पण में आ गया है  दर्पण को हाथ में ले ले 
  • अब यह तेरा हो गया है 


रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली 
छायी है घटा गगन की हलकी हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी

इस रुबाई में शायर ने राखी के दिन का सुन्दर वर्णन किया है

व्याख्या 

  • शायर कहता है – आज रक्षाबंधन का दिन है  आकाश में काले बादलों की हलकी घटा छाई हुई है
  • नन्ही बालिका , जो रस की पुतली जैसी मधुर है , उमंग से भरपूर है
  • उसने पांवों में लच्छे पहने हुए हैं जो बिजली की तरह जगमगा रहे हैं और वह ख़ुशी से अपने भाई की कलाई पर राखी बाँध रही है


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