- समानता क्या है ?
- क्या समानता का अर्थ व्यक्ति से हर स्थिति में एक समान बरताव करना है ?
- हम समानता की ओर कैसे बढ़ सकते हैं और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में असमानता को न्यूनतम कैसे कर सकते हैं ?
- हम समानता के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक आयामों को अलग-अलग कैसे समझ सकते हैं ?
- समाजवाद, मार्क्सवाद, उदारवाद और नारीवाद विचारधारा
- असमानता की प्रकृति
समानता महत्त्वपूर्ण क्यों है ?
साधारण शब्दों में कह सकते हैं कि समानता एक ऐसा नैतिक और राजनीतिक आदर्श है जो समाज में न्याय, गरिमा, और सम्मान को बढ़ावा देता है।
समानता की अवधारणा के अनुसार समाज के सभी व्यक्ति, चाहे उनकी जाति, लिंग, धर्म, आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, समान अधिकार और अवसर प्राप्त करें।
समानता का महत्व
- मानव गरिमा का सम्मान
- सामाजिक न्याय
- लोकतंत्र की नींव
- ऐतिहासिक प्रेरणा
- समान अवसर और सशक्तिकरण
मानव गरिमा का सम्मान
हर व्यक्ति का समान मानवीय महत्त्व होता है। समानता यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव या पक्षपात न हो और सभी को समाज में समान गरिमा मिले।
सामाजिक न्याय
समानता सामाज में फ़ैली असमानताओं को समाप्त करने और न्यायसंगत समाज बनाने की दिशा में काम करती है।
यह समाज में वंचित और हाशिए पर खड़े समूहों को समान अवसर प्रदान करने में सहायक है।
लोकतंत्र की नींव
लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार समानता है। यह सभी नागरिकों को समान राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अधिकार सुनिश्चित करती है।
ऐतिहासिक प्रेरणा
फ्रांस की क्रांति से "स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा" जैसे नारे और उपनिवेश विरोधी आंदोलनों में समानता की माँग ने सामाजिक और राजनीतिक बदलावों को प्रेरित किया है।
समान अवसर और सशक्तिकरण
समानता यह सुनिश्चित करती है कि हर व्यक्ति को अपनी प्रतिभा और क्षमताओं को विकसित करने का अवसर मिले।
यह हाशिए पर खड़े समुदायों, जैसे महिलाओं और दलितों, को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
विकास और शांति का आधार
समानता से समाज में शांति और सद्भावना बनी रहती है।
जब सभी को समान अवसर मिलते हैं, तो सामाजिक विकास और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा मिलता है।
आज के सन्दर्भ में समानता
वर्तमान में समानता को एक प्रमुख आदर्श के रूप में स्वीकार किया जाता है लगभग सभी देश के दारा अपने संविधान में समानता को शामिल किया गया है यह देश अपने नागरिकों को समानता का अवसर प्रदान करते हैं लेकिन फिर भी चारों तरफ समानता की बजाय असमानता अधिक नजर आती है
असमानता के उदाहरण -
आलीशान मकानों, झोपड़पट्टियों, आलीशान विद्यालय , सुविधा का आभाव वाला विद्यालय
समानता क्या है ?
समानता की अवधारणा यह कहती है कि साझी मानवता के कारण सभी मनुष्य बराबर सम्मान और परवाह के हकदार हैं।
कोई भी समाज अपने सभी सदस्यों के साथ सभी स्थितियों में एक समान बरताव नहीं करता।
अलग-अलग काम और अलग-अलग लोगों को महत्त्व भी अलग-अलग मिलता है।
कई बार इस बरताव में यह अंतर न केवल स्वीकार्य हो सकता है, बल्कि ज़रूरी भी लग सकता है।
उदाहरण –
प्रधानमंत्री या सेना के जनरल को विशेष सरकारी दर्जा या सम्मान देना हमें तब तक समानता की धारणा के विपरीत नहीं लगता जब तक कि उसका दुरुपयोग न हो। अब सवाल यह उठता है कि कौन-सी विशिष्टताएँ और विभेद स्वीकार किए जाने लायक हैं और कौन-सी नहीं। कई बार लोगों से अलग तरह का बरताव इसलिए किया जाता है कि उनका जन्म किसी खास धर्म, नस्ल, जाति या लिंग में हुआ है। हम असमानता के इन आधारों को अस्वीकार करते हैं।
अवसरों की समानता
समानता की अवधारणा में यह निहित है कि सभी मनुष्य अपनी दक्षता और प्रतिभा को विकसित करने के लिए तथा अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए समान अधिकार और अवसरों के हकदार हैं। इसका आशय यह है कि समाज में लोग अपनी पसंद और प्राथमिकताओं के मामलों में अलग हो सकते हैं। उनकी प्रतिभा और योग्यताओं में भी अंतर हो सकता है और हो सकता है इस कारण से कुछ लोग अपने चुने हुए क्षेत्रों में बाकी लोगों से ज्यादा सफल हो जाएँ। लेकिन केवल इसलिए कि कोई क्रिकेट में पहले पायदान पर पहुँच गया है या कोई बहुत सफल वकील बन गया है, समाज को असमान नहीं माना जा सकता। दूसरे शब्दों में सामाजिक दर्जा, संपत्ति या विशेषाधिकारों में समानता का अभाव होना महत्त्वपूर्ण नहीं है लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षित आवास जैसी बुनियादी चीजों की उपलब्धता में असमानताओं से कोई समाज असमान और अन्यायपूर्ण बनता है।
प्राकृतिक और सामाजिक असमानताए
राजनीतिक सिद्धांत में प्राकृतिक असमानताओं और समाजजनित असमानताओं में अंतर किया जाता है।
प्राकृतिक असमानताएँ - लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, प्रतिभा और उनके अलग-अलग चयन के कारण पैदा होती हैं।
समाजजनित असमानताएँ - जो समाज में अवसरों की असमानता होने या किसी समूह का दूसरे के द्वारा शोषण किए जाने से पैदा होती हैं।
प्राकृतिक और सामाजिक असमानताओं में अंतर
प्राकृतिक असमानताएँ लोगों की जन्मगत विशिष्टताओं और योग्यताओं का परिणाम मानी जाती हैं।
इनमें ऐसा मान लिया जाता है कि प्राकृतिक विभिन्नताओं को बदला नहीं जा सकता।
दूसरी ओर सामाजिक असमानताएँ हैं, जिन्हें समाज ने पैदा किया है।
उदाहरण - कुछ समाज बौद्धिक काम करने वालों को शारीरिक कार्य करने वालों से अधिक महत्त्व देते हैं और उन्हें अलग तरीके से लाभ देते हैं।
वे विभिन्न वंश, रंग या जाति के लोगों के साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार करते हैं।
इस तरह के भेदभाव समाज ने बनाये है इनमें से कुछ हमें निश्चित रूप से अनुचित लग सकते हैं।
जब लोगों के बरताव में कुछ असमानताएँ लंबे काल तक विद्यमान रहती हैं, तो वे हमें मनुष्य की प्राकृतिक विशेषताओं पर आधारित लगने लगती हैं।
ऐसा लगने लगता है जैसे कि वे जन्मगत हों और आसानी से बदल नहीं सकती।
उदाहरण - औरतें अनादि काल से 'अबला ' कही जाती थीं।
अफ्रीका में काले लोग उनके औपनिवेशिक शासकों द्वारा कम बुद्धिवाले और महज शारीरिक श्रम, खेल-कूद और संगीत में बेहतर माने गए।
समानता के आयाम
1. सामजिक समानता
2. राजनीतिक समानता
3. आर्थिक समानता
1. आर्थिक समानता
राजनीतिक समानता का अर्थ है कि लोकतांत्रिक समाज में सभी व्यक्तियों को समान नागरिकता और अधिकार प्राप्त हों। यह विचार लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव है, जहाँ सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक भागीदारी का अधिकार मिलता है। सभी व्यक्तियों को समान नागरिकता प्रदान की जाती है, जिसमें उन्हें कानून के सामने समान समझा जाता है। लोगों को मतदान का अधिकार , अभिव्यक्ति की आजादी , चुनाव लड़ने का अधिकार राजनीतिक दल बनाने का अधिकार
2. सामजिक समानता
सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज में सभी व्यक्तियों को समान अवसर, अधिकार और सम्मान प्राप्त हो, ताकि वे अपनी क्षमताओं का विकास कर सकें और समाज में समान रूप से योगदान दे सकें। सभी व्यक्तियों को समान अवसर मिलना चाहिए, चाहे उनकी जाति, लिंग, धर्म या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सभी को शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, और रोजगार के समान अवसर प्राप्त हों।
स्वास्थ्य सेवाएँ, अच्छी शिक्षा, पोषण आहार, और न्यूनतम वेतन जैसे बुनियादी संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
3. आर्थिक समानता
आर्थिक समानता का तात्पर्य समाज के सभी सदस्यों को आर्थिक संसाधनों, अवसरों, और जीवन स्तर में समानता प्रदान करने से है। यह समाज में मौजूद गहरी आर्थिक असमानताओं को कम करने और सभी को अपनी क्षमताओं और प्रतिभाओं का उपयोग करने के लिए समान अवसर देने की दिशा में काम करती है।
समाज में गहरी आर्थिक असमानता है
मार्क्सवाद और आर्थिक समानता
आर्थिक असमानताओं के कारण:
1. मार्क्स के अनुसार, असमानताओं का मूल कारण महत्वपूर्ण संसाधनों (जैसे भूमि, जल, और संपत्ति) का निजी स्वामित्व है।
2. यह निजी स्वामित्व न केवल आर्थिक शक्ति देता है, बल्कि राजनीतिक ताकत भी प्रदान करता है।
समाधान: - मार्क्सवादी और समाजवादी विचारधारा यह मानती है कि समाज में समानता स्थापित करने के लिए:
(i) आर्थिक संसाधनों और संपत्ति पर जनता का नियंत्रण होना चाहिए।
(i) सभी को आवश्यक संसाधनों की समान उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
इस विचारधारा के अनुसार, असमानताओं को दूर किए बिना सामाजिक और राजनीतिक समानता हासिल करना मुश्किल है।
उदारवाद और आर्थिक समानता
प्रतिस्पर्धा का सिद्धांत:
उदारवादी यह मानते हैं कि आर्थिक समानता के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सबसे कारगर उपाय है।
हर व्यक्ति को समान अवसर मिलना चाहिए, लेकिन लाभ और संसाधन उन लोगों को मिलने चाहिए, जो अपनी मेहनत और प्रतिभा से उन्हें अर्जित करते हैं।
न्यूनतम हस्तक्षेप:
राज्य का काम केवल यह सुनिश्चित करना है कि सभी को जीवनयापन के लिए न्यूनतम संसाधन और समान अवसर मिलें।
लेकिन राज्य को हर असमानता को समाप्त करने के प्रयास से बचना चाहिए।
हम समानता को बढ़ावा कैसे दे सकते हैं
औपचारिक समानता की स्थापना
औपचारिक समानता स्थापित करने का अर्थ है समाज में व्याप्त असमानता और विशेषाधिकार की औपचारिक व्यवस्था को समाप्त करना।
यह समानता लाने की दिशा में पहला और आवश्यक कदम है।
दुनिया भर में कई समाज के कुछ वर्गों को अवसरों और लाभों से वंचित रखा जाता था।
उदाहरण :-
1. कई देशों में गरीब लोगों को मताधिकार से वंचित रखा जाता था।
2. महिलाओं को व्यवसाय और अन्य गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी।
3. भारत में जाति-व्यवस्था ने निचली जातियों को शारीरिक श्रम से अलग कुछ भी करने से रोका।
4. कुछ देशों में सर्वोच्च पद केवल विशेष परिवारों तक सीमित थे।
विभेदक बर्ताव द्वारा
समानता का सिद्धांत केवल औपचारिक समानता या कानून के समक्ष समानता तक सीमित नहीं हो सकता। वास्तविक समानता सुनिश्चित करने के लिए, लोगों की विशिष्ट जरूरतों और परिस्थितियों को समझना और उसके अनुसार विशेष उपाय करना आवश्यक है।
इसे विभेदक बरताव द्वारा समानता कहा जा सकता है।
विभेदक बरताव की आवश्यकता –
कुछ स्थितियों में समानता प्राप्त करने के लिए भिन्न-भिन्न वर्गों या व्यक्तियों के साथ अलग ढंग से व्यवहार करना जरूरी हो जाता है।
उदाहरण 1 - विकलांगों के लिए सार्वजनिक स्थानों पर रैंप बनाना। यह उन्हें सार्वजनिक भवनों तक पहुँचने का समान अवसर प्रदान करता है।
उदाहरण 2 - रात में कॉल सेंटर में काम करने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षा उपाय। इससे उन्हें सुरक्षित रूप से काम के समान अधिकार का लाभ मिलता है।
सकारात्मक कार्यवाई
सकारात्मक कार्यवाई का उद्देश्य समाज में व्याप्त गहरी असमानताओं को समाप्त करना है। यह अतीत में हुए भेदभाव और सामाजिक वंचनाओं के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए सकारात्मक और ठोस कदम उठाने पर आधारित है।
सकारात्मक कार्यवाई के उद्देश्य –
सकारात्मक कार्यवाई के रूप
शिक्षा में विशेष प्रावधान:
रोजगार में आरक्षण:
भारत में सकारात्मक कार्यवाई –
भारत में वंचित समूहों को समान अवसर देने के लिए आरक्षण नीति अपनाई गई है।
आरक्षण नीति का आधार:-
सकारात्मक कार्यवाई की आलोचना –
भेदभाव का आरोप:
कुछ आलोचकों का मानना है कि आरक्षण और कोटा खुद एक तरह का भेदभाव है। इससे अन्य समुदायों के साथ असमान व्यवहार होता है।
समानता का उल्लंघन:
समानता का सिद्धांत कहता है कि सभी के साथ एक समान व्यवहार होना चाहिए।