महत्त्व
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education) बच्चों के समग्र विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बच्चे जन्म से ही सीखने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं, और उनके शुरुआती अनुभव उनके मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
शुरुआती विकास
पहले साल में बच्चा अपने परिवार से जुड़ाव बनाता है और 8-12 महीने की उम्र में परिचित और अपरिचित चेहरों को पहचानना सीखता है। माँ या देखभाल करने वाले से अलग होने पर रोना सामान्य है। 1 साल के बाद, बच्चा चलना, दौड़ना और चीजें पकड़ना सीखता है और माँ की अनुपस्थिति में भी सुरक्षित महसूस करने लगता है।
बाल्यावस्था में देखभाल के प्रकार
पारिवारिक देखभाल: पहले बच्चे की देखभाल परिवार के सदस्य, जैसे दादी या अन्य रिश्तेदार, करते थे, लेकिन अब कामकाजी माता-पिता के कारण क्रेच और संस्थागत देखभाल की जरूरत बढ़ गई है। विद्यालय पूर्व शिक्षा: 3 साल की उम्र से बच्चे छोटे समूहों में खेल-खेल में सीखते हैं, जो उन्हें स्कूल के लिए तैयार करने और सामाजिक कौशल सिखाने में मदद करता है।
सीखने का अनुकूल वातावरण
बच्चों को सीखने के लिए एक सुरक्षित, प्यारभरा और मजेदार माहौल चाहिए। खेल, खिलौने, प्राकृतिक चीजें, और माता-पिता, दादा-दादी या शिक्षक जैसे देखभाल करने वाले वयस्क उनके सीखने को प्रोत्साहित करते हैं।
विद्यालय पूर्व अनुभव के लाभ
सामाजिक विकास: बच्चे साथियों के साथ जल्दी सीखते हैं और टीमवर्क में भाग लेते हैं। आत्मनिर्भरता: वे खुद खाना खाने जैसे नए कौशल सीखते हैं। विशेष परिस्थितियों में मदद: कठिन हालात में पलने वाले बच्चों को स्कूल के लिए तैयार किया जाता है। बड़े बच्चों को फायदा: छोटे बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी हटने से बड़े बच्चे स्कूल जा पाते हैं।
प्रारंभिक शिक्षा का उद्देश्य
बच्चे का समग्र विकास मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से होता है। यह उन्हें पढ़ाई और सामाजिक गतिविधियों के लिए तैयार करता है। साथ ही, कामकाजी माता-पिता को सहायक सेवाएँ प्रदान कर उनके लिए मददगार साबित होता है।
मूलभूत संकल्पनाएँ
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) जन्म से लेकर 8 वर्ष की आयु तक बच्चों के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसे दो चरणों में बाँटा जा सकता है:
1. जन्म से 3 वर्ष तक: शैशवावस्था, जब बच्चा पूरी तरह देखभाल करने वाले वयस्कों पर निर्भर होता है।
2. 3 से 8 वर्ष तक: यह अवस्था बच्चे के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास का आधार होती है।
शिशु देखभाल के प्रकार
- शिशु केंद्र (क्रेच): जब माँ घर पर नहीं होती, तो बच्चों की देखभाल घर या किसी केंद्र में की जाती है।
- डे केयर सेंटर: छोटे बच्चों की पूरे दिन देखभाल होती है, जिसमें भोजन, शौचालय, भाषा, और सामाजिक-भावनात्मक जरूरतों का ध्यान रखा जाता है।
- विद्यालय पूर्व शिक्षा: 3 साल की उम्र के बाद बच्चों को खेल-आधारित शिक्षा दी जाती है। मॉन्टेसरी स्कूल और भारत में आँगनवाड़ी केंद्र इस आयु समूह के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पियाजे का सिद्धांत और बच्चों की सीखने की प्रक्रिया
पियाजे के अनुसार, बच्चों का दुनिया को समझने का तरीका वयस्कों से अलग होता है। उन्हें सीखने के लिए ऐसा माहौल चाहिए जो उनकी जिज्ञासा बढ़ाए और उन्हें नए अनुभव प्रदान करे।
ECCE के मार्गदर्शी सिद्धांत (NCF 2005)
बच्चों की शिक्षा खेल आधारित और रचनात्मक होनी चाहिए, जिसमें कला और अनुभवों को प्राथमिकता दी जाए। शिक्षा में स्थानीय और सांस्कृतिक सामग्रियों का उपयोग हो और स्वस्थ आदतों को बढ़ावा दिया जाए। बच्चों की जरूरतों के अनुसार लचीला दृष्टिकोण अपनाते हुए औपचारिक और अनौपचारिक तरीकों को शामिल करना जरूरी है।
ECCE के लाभ
बच्चों के समग्र विकास के लिए उनके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास को प्रोत्साहित करना जरूरी है। साथ ही, उन्हें स्कूल में प्रवेश के लिए तैयार करना और माता-पिता व बड़े बच्चों को सहयोग देना महत्वपूर्ण है।
जीविका के लिए तैयारी करना
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) में शिक्षक और देखभाल कर्ता की भूमिका बच्चों के समग्र विकास में महत्वपूर्ण होती है। इस क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति को बच्चों की विशेष ज़रूरतों और विकासात्मक चरणों को समझना आवश्यक है।
क्यों आवश्यक है प्रशिक्षण?
माता-पिता बिना प्रशिक्षण के बच्चों की देखभाल करते हैं, लेकिन शिक्षकों और देखभालकर्ताओं को बच्चों के साथ काम करने के लिए प्रशिक्षित होना जरूरी है। बच्चों के विकास को सही ढंग से समझने और उचित अपेक्षाएँ रखने के लिए वैज्ञानिक जानकारी आवश्यक है।
प्रारंभिक बाल्यावस्था में शिक्षक से क्या अपेक्षा है?