महत्त्व
परिवार समाज की मूल इकाई है, जिसका मुख्य काम अपने सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा करना और उनकी देखभाल करना है। परिवार में माता-पिता, बच्चे, और दादा-दादी या नाना-नानी शामिल हो सकते हैं। हालांकि, परिवार हमेशा अपने सभी सदस्यों की ज़रूरतों को अकेले पूरा नहीं कर पाता।
परिवार और समाज की परस्पर भूमिका
परिवार में छोटे बच्चों को औपचारिक शिक्षा, सभी सदस्यों को स्वास्थ्य सेवाओं, और मनोरंजन व कौशल विकास के लिए बाहरी साधनों की जरूरत होती है। इन जरूरतों को पूरा करने के लिए समाज में स्कूल, अस्पताल, मनोरंजन केंद्र, और प्रशिक्षण केंद्र जैसे संस्थान बनाए जाते हैं। इन सेवाओं तक पहुंचने के लिए परिवार और समाज का सहयोग जरूरी है।
भारत में चुनौतियाँ
कई परिवारों के पास वित्तीय संसाधनों की कमी होती है, जिससे वे समाज की सेवाओं का उपयोग नहीं कर पाते। कुछ बच्चे, युवा, और वृद्ध परिवार से अलग होकर अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करते हैं।
सरकार और समाज की जिम्मेदारी
सरकार कमजोर परिस्थितियों में रहने वाले लोगों के लिए विशेष कार्यक्रम और संस्थान चलाती है, जो बच्चों, युवाओं, और वृद्धजनों की जरूरतों को पूरा करते हैं। इसमें निजी क्षेत्र और गैर-सरकारी संगठनों का भी सहयोग लिया जाता है।
समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता
सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है, जिससे सभी सेवाओं का अधिकतम और सही उपयोग सुनिश्चित हो सके।
मूलभूत संकल्पनाएँ
हम बच्चों, युवाओं, और वृद्धजनों पर अधिक ध्यान देते हैं क्योंकि ये समाज के 'संवेदनशील' समूह हैं। 'संवेदनशील' का मतलब ऐसे व्यक्तियों या समूहों से है जो प्रतिकूल परिस्थितियों से अधिक प्रभावित होते हैं। इन समूहों की जरूरतें पूरी न होने पर वे संवेदनशील बन जाते हैं।
बच्चे संवेदनशील क्यों होते हैं?
बच्चे अत्यंत संवेदनशील होते हैं, क्योंकि बाल्यावस्था उनके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, और भावनात्मक विकास की तीव्र अवधि होती है। एक क्षेत्र में विकास, अन्य सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। इसलिए बच्चों के लिए सही भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल, प्रेम और प्रोत्साहन का समग्र रूप से पूरा होना बहुत जरूरी है।
बच्चों की विशेष संवेदनशीलता
कुछ बच्चे कठिन परिस्थितियों में रहते हैं, जहां उनकी मूलभूत जरूरतें जैसे भोजन, स्वास्थ्य और देखभाल पूरी नहीं हो पातीं, जिससे उनका विकास रुक सकता है और उनके जीवन पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।
कठिन परिस्थितियों में बच्चों की स्थिति
कठिन परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों को विशेष देखभाल और संरक्षण की जरूरत होती है। इनमें परित्यक्त बच्चे, सड़क पर रहने वाले बच्चे, दुर्व्यवहार का शिकार, विकलांग, नशे के शिकार, और प्राकृतिक आपदाओं या विद्रोह से प्रभावित बच्चे शामिल हैं।
किशोर न्याय अधिनियम, 2000
किशोर न्याय अधिनियम (2000) भारत में बच्चों के अधिकारों और न्याय का प्राथमिक ढांचा है। यह दो प्रकार के बच्चों के लिए काम करता है: अपराध करने वाले बच्चे और देखभाल व संरक्षण की जरूरत वाले बच्चे। अधिनियम के तहत बाल-अपराध रोकने, पुनर्वास की व्यवस्था, और बाल-अनुकूल दृष्टिकोण अपनाने के साथ देखभाल व उपचार के लिए संस्थान स्थापित किए जाते हैं।
देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे
इस अधिनियम के तहत, देखभाल और संरक्षण की जरूरत वाले बच्चों में अनाथ, बेघर, दुर्व्यवहार या लापरवाही के शिकार, विकलांग, बीमार, विशेष जरूरतों वाले, यौन शोषण, नशा या बाल श्रम के शिकार, और प्राकृतिक आपदाओं या विद्रोह से प्रभावित बच्चे शामिल हैं।
संस्थागत कार्यक्रम और बच्चों के लिए पहल
संवेदनशील बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा कई कार्यक्रम और सेवाएँ शुरू की गई हैं। इनका उद्देश्य बच्चों को स्वस्थ, सुरक्षित, और सशक्त जीवन प्रदान करना है।
1. समेकित बाल विकास सेवाएँ (ICDS)
यह विश्व का सबसे बड़ा प्रारंभिक बाल्यावस्था कार्यक्रम है, जो 6 साल से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, और शिक्षा की जरूरतों को पूरा करता है। आँगनवाड़ी केंद्रों के जरिए पोषण, स्वास्थ्य सेवाएँ, अनौपचारिक शिक्षा, टीकाकरण, और विटामिन ए सप्लीमेंट्स प्रदान किए जाते हैं। इस योजना से 41 करोड़ से अधिक बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।
2. एस.ओ.एस. बाल गाँव
एस.ओ.एस. संगठन अनाथ और परित्यक्त बच्चों को परिवार-आधारित देखभाल देता है, जहाँ हर घर में एक 'माँ' 10-15 बच्चों की देखभाल करती है। इसका लक्ष्य बच्चों को स्थिर माहौल में बड़ा करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। ये गाँव समुदाय से जुड़े रहते हैं और समाज में योगदान देते हैं।
3. सरकारी बाल गृह
सरकार ने बच्चों की देखभाल के लिए तीन प्रकार के गृह बनाए हैं:
(a) प्रेक्षण गृह: अस्थायी रूप से बच्चों को रखा जाता है जब तक उनके माता-पिता का पता न चल जाए।
(b) विशेष गृह: 18 वर्ष से कम उम्र के कानून का उल्लंघन करने वाले किशोरों के लिए हिरासत व्यवस्था।
(c) किशोर/बाल गृह: ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता का पता नहीं चलता या जो परिवार में वापस नहीं जाते।
यहाँ घर, शिक्षा, और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसी सेवाएँ दी जाती हैं। इन गृहों का संचालन सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से होता है।
4. गोद लेना (दत्तक ग्रहण)
भारत में गोद लेने की परंपरा पुरानी है, लेकिन अब इसे कानूनी रूप दिया गया है। केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन संस्था (CARA) गोद लेने की प्रक्रिया के दिशा-निर्देश बनाती है और बच्चों के अधिकार व कल्याण सुनिश्चित करती है। सरकारी और गैर-सरकारी संगठन इस प्रक्रिया को सुगम बनाते हैं।
युवा क्यों संवेदनशील हैं ?
- युवा 13-35 वर्ष की आयु के व्यक्तियों को कहा जाता है। इन्हें दो उपसमूहों में बाँटा जा सकता है:
- किशोर (13-19 वर्ष)
- युवा वयस्क (20-35 वर्ष)
2016 तक, भारत की जनसंख्या का 40% हिस्सा युवाओं का था। देश की प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि युवाओं को राष्ट्र की वृद्धि और विकास में कैसे शामिल किया जाए।
युवावस्था: एक संवेदनशील दौर
युवावस्था में शारीरिक और मानसिक बदलाव आते हैं, जो सेहत और आत्म-परिचय को प्रभावित करते हैं। यह समय आजीविका, विवाह, और पारिवारिक जीवन की तैयारी का होता है। साथियों का दबाव और प्रतिस्पर्धा तनाव बढ़ा सकते हैं, जो कभी-कभी नशे की लत का कारण बनता है। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ और जानकारी की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।
विशेष रूप से संवेदनशील युवा समूह
- ग्रामीण और जनजातीय युवा
- विद्यालय छोड़ चुके युवा
- किशोर, विशेष रूप से किशोरियाँ
- शारीरिक या मानसिक विकलांगता वाले युवा
- अनाथ और सड़क पर रहने वाले बच्चे
युवाओं की ज़रूरतें
शिक्षा और कौशल विकास, लाभदायक रोजगार, स्वच्छ परिवेश, स्वास्थ्य सेवाएँ, और शोषण से सुरक्षा हर बच्चे के लिए जरूरी हैं। उन्हें सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने और खेल, शारीरिक शिक्षा, व साहसिक गतिविधियों का अवसर मिलना चाहिए।
भारत में युवाओं के लिए कार्यक्रम
भारत में युवा मामलों और खेलकूद मंत्रालय द्वारा युवाओं को प्रोत्साहित करने और उनके विकास के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएँ चलाई जा रही हैं। इनका उद्देश्य युवाओं को सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय विकास में योगदान देने के लिए सशक्त बनाना है।
1. राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS)
इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को समाज सेवा और राष्ट्रीय विकास में शामिल करना है। गतिविधियों में सड़क निर्माण, पर्यावरण संरक्षण, वृक्षारोपण, स्वास्थ्य और सफाई अभियान, और सिलाई-बुनाई जैसे व्यावसायिक प्रशिक्षण शामिल हैं। इससे समाज के कमजोर वर्गों की मदद और राहत कार्यों में योगदान होता है।
2. नेहरू युवक केंद्र
इसका उद्देश्य ग्रामीण युवाओं को सशक्त बनाना और राष्ट्रीय एकता, धर्मनिरपेक्षता, व आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है। इसके तहत युवा क्लबों की स्थापना, व्यावसायिक और नेतृत्व प्रशिक्षण, ग्रामीण खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रम, साक्षरता बढ़ाने और कार्यक्षमता विकसित करने जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
3. साहसिक गतिविधियाँ
पर्वतारोहण, पैदल यात्रा, नौकायन, तैराकी, और साइकिलिंग जैसी गतिविधियों का उद्देश्य युवाओं में साहस, टीमवर्क, सहनशीलता, और जोखिम लेने की क्षमता विकसित करना है। इन गतिविधियों के लिए सरकार और स्वयंसेवी संगठन वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
4. स्काउट और गाइड
इसका उद्देश्य बच्चों और किशोरों में निष्ठा, देशभक्ति, और समाज सेवा की भावना विकसित करना और शारीरिक व मानसिक विकास को बढ़ावा देना है। इसके लिए प्रशिक्षण, रैलियों, और जम्बूरियों का आयोजन किया जाता है।
5. राष्ट्रमंडल युवा कार्यक्रम
इसका उद्देश्य युवाओं को विकास प्रक्रिया में भाग लेने का मंच देना और राष्ट्रमंडल देशों के बीच सहयोग और समझ बढ़ाना है। इसमें एशिया पैसिफिक क्षेत्रीय केंद्र, चंडीगढ़ शामिल है।
6. राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन
इसका उद्देश्य युवाओं को देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ना और राज्यों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है। इसके लिए शिविर, सेमिनार, और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
वृद्धजन क्यों संवेदनशील हैं?
वरिष्ठ नागरिक वे लोग होते हैं जिनकी उम्र 60 वर्ष या उससे अधिक होती है। भारत में, इस वर्ग की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। जीवन प्रत्याशा जो 1947 में केवल 29 वर्ष थी, अब बढ़कर 63 वर्ष हो गई है। भारत में वृद्धजनों की संख्या चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।
भारत में वृद्धजनों की स्थिति
लगभग 80% वृद्धजन ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जिससे सेवाएँ उपलब्ध कराना चुनौतीपूर्ण होता है। वृद्ध महिलाओं का अनुपात 51% है, और 80 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की संख्या बढ़ रही है। इसके अलावा, करीब 30% वृद्धजन गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं।
वृद्धजनों की चुनौतियाँ
वृद्धजनों को कमजोर शारीरिक शक्ति, रोग प्रतिरोधक क्षमता, दृष्टि और सुनने की समस्याएँ, गठिया, और अपंगता जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भावनात्मक रूप से, वे अकेलापन, पृथक्करण, और दूसरों पर बोझ बनने की भावना से जूझते हैं। छोटे और एकल परिवारों के कारण उनकी देखभाल के लिए समय और संसाधनों की कमी होती है। साथ ही, कई बुजुर्ग आजीविका के लिए अपने बच्चों पर आर्थिक रूप से निर्भर रहते हैं।
वृद्धजनों की सकारात्मक विशेषताएँ
60 वर्ष से अधिक आयु के कई बुजुर्ग अब भी काम करते हैं, खासकर जहाँ सेवानिवृत्ति की उम्र तय नहीं है। कई परिवारों में उनका सम्मान होता है और उनकी राय को महत्व दिया जाता है। उनके अनुभव और ज्ञान को मूल्यवान मानव संसाधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
सरकार की पहल
1999 की राष्ट्रीय नीति बुजुर्गों के लिए स्वस्थ और सार्थक जीवन सुनिश्चित करने के लिए बनी। यह उनकी आर्थिक, स्वास्थ्य, और सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए योजनाएँ और कार्यक्रम प्रदान करती है।
वृद्धजनों के लिए कुछ कार्यक्रम
भारत में सरकार, गैर-सरकारी संगठन, और स्थानीय संस्थाएँ वृद्धजनों की देखभाल और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए कई कार्यक्रम चला रही हैं। इनका उद्देश्य बुजुर्गों को उनकी ज़रूरतों के अनुसार सहायता प्रदान करना है।
प्रमुख कार्यक्रम और सेवाएँ
बुजुर्गों की मूलभूत जरूरतें, जैसे भोजन, आश्रय, और स्वास्थ्य सेवाएँ, विशेष रूप से परित्यक्त बुजुर्गों के लिए पूरी करना जरूरी है। बच्चों और युवाओं के साथ उनके संबंध सुधारने के कार्यक्रम चलाए जाते हैं। उन्हें सक्रिय और उत्पादक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जाता है। वृद्धावस्था सदन, डे-केयर सेंटर, और सहायता केंद्र जैसी सेवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। साथ ही, उनकी जरूरतों और समस्याओं पर जागरूकता और अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जाता है।
विशेष सेवाएँ और सुविधाएँ
बुजुर्गों के लिए वृद्धावस्था सदन में भोजन, आश्रय, और देखभाल की सुविधा दी जाती है, साथ ही गंभीर बीमारियों के लिए विश्राम गृह उपलब्ध हैं। बहु-सेवा केंद्र दिन के समय देखभाल, शिक्षा, मनोरंजन, और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करते हैं। मोबाइल चिकित्सा इकाइयाँ ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाएँ पहुँचाती हैं। अल्जाइमर रोगियों के लिए डे-केयर सेंटर विशेष देखभाल देते हैं। फ़िजियोथैरेपी, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ, और सहायक उपकरण जैसे सुनने के यंत्र उपलब्ध कराए जाते हैं। देखभाल करने वालों को प्रशिक्षण और बच्चों को बुजुर्गों की समस्याओं के प्रति जागरूक बनाने के कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।
राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (NOAPS)
इस योजना का उद्देश्य निराश्रित बुजुर्गों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इसका लाभ 65 वर्ष से अधिक उम्र के उन व्यक्तियों को मिलता है जिनके पास आय का कोई साधन नहीं है। राज्य सरकारें इसमें अतिरिक्त सहायता भी दे सकती हैं।
जीविका के लिए तैयारी करना
अगर आप बच्चों, युवाओं, या वृद्धजनों के लिए काम करना चाहते हैं, तो आप किसी संगठन में प्रबंधक या इंचार्ज बन सकते हैं या अपना संगठन शुरू कर सकते हैं। इसके लिए व्यापक जानकारी और कौशल की जरूरत होती है।