नैदानिक पोषण और आहारिकी
भोजन (Food)
वे सभी तरल या ठोस पदार्थ जिन्हें मनुष्य खाता है और अपनी पाचन क्रिया द्वारा अवशोषित करके विभिन्न शारिरिक कार्यो के लिए प्रयोग करता है भोजन कहलाता है।
पोषण ( NUTRITION )
- पोषण शरीर को स्वस्थ रखने, विकसित करने और बढ़ने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का सेवन और उपयोग करने की प्रक्रिया है।
- भोजन, खाद्य पदार्थ और शरीर के अंदर उनके उपयोग को समझने का विज्ञान ही पोषण है।
- पोषण सिर्फ खाना नहीं है, यह आपके शारीरिक, मानसिक और आर्थिक विकास से जुड़ा होता है।
अच्छा पोषण क्यों जरूरी है?
- अच्छा पोषण हमें बीमार होने से बचाता है।
- पोषण से शरीर में ताकत आती है, जिससे वह कीटाणुओं से लड़ सकता है।
- जब हम बीमार होते हैं, तो अच्छा पोषण जल्दी ठीक करने में मदद करता है।
- पोषण से शरीर को बड़ी बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है।
अपर्याप्त / निम्न पोषण के प्रभाव
- रोगों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है, जिससे स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ सकती हैं।
- शरीर धीरे-धीरे ठीक होता है।
- शरीर दवाओं को पूरी तरह से काम में नहीं ले पाता।
- शरीर के अलग-अलग हिस्से अच्छे से काम नहीं कर पाते, जिससे नई समस्याएं पैदा होती हैं।
आहार, पोषण और स्वस्थ जीवनशैली का महत्व
अच्छा आहार + अच्छा पोषण + स्वस्थ जीवनशैली
लंबी और बीमारी -मुक्त ज़िंदगी
नैदानिक पोषण (Clinical nutrition )
- जब व्यक्ति बीमार होता है, तो शरीर में पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ सकता है यह तब भी हो सकता है जब पहले व्यक्ति की पोषण स्थिति अच्छी रही हो।
- बीमारी के समय पोषण से संबंधित जो विशेष देखभाल की जाती है, उसे ही "नैदानिक पोषण (Clinical Nutrition)" कहा जाता है।
कौन करता है यह प्रबंधन?
- प्रशिक्षित पोषण विशेषज्ञ जो मरीज की बीमारी के अनुसार पोषण योजना बनाते हैं।
- वे एक व्यवस्थित विधि से काम करते हैं, ताकि मरीज को पूरी पोषण देखभाल मिल सके।
आहारिकी (Dietetics)
- यह एक विज्ञान है जो यह समझाता है कि भोजन और पोषण हमारे शरीर और स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते हैं।
- डाइटीशियन पोषण संबंधी समस्याओं का मूल्यांकन करके उनका निदान व उपचार करते हैं। वे व्यक्तिगत डाइट योजना बनाते हैं और रोगियों को सही पोषण के लिए सलाह देते हैं।
नैदानिक पोषण और आहारिकी का महत्व
1. बीमारी की रोकथाम में भूमिका : आहार विशेषज्ञ और नैदानिक पोषण विशेषज्ञ बीमारियों को रोकने और अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद करते हैं।
2. नई और गंभीर बीमारियाँ बढ़ रही हैं : AIDS, हार्ट डिजीज़, मोटापा, स्ट्रेस और डायबिटीज़ जैसी बीमारियाँ बढ़ रही हैं इनके प्रबंधन में पोषण का बड़ा रोल है।
3. जनसंख्या और उम्र में बदलाव : बुज़ुर्गों और बच्चों की संख्या बढ़ने से सही पोषण सलाह और देखभाल की ज़रूरत भी बढ़ गई है।
4. बीमारी के अनुसार आहार प्रबंधन: हर रोगी की स्थिति के अनुसार उचित भोजन और पोषण योजना, नैदानिक पोषण विशेषज्ञ द्वारा बनाई जाती है।
5. नई तकनीक और शोध: नए तरीकों, खाद्य पदार्थों और औषधीय आहार की खोज से पोषण उपचार में नया विकास हुआ है।
6. हर मरीज के अनुसार योजना: हर व्यक्ति की ज़रूरत अलग होती है, इसलिए पोषण देखभाल भी वैयक्तिक (individualized) होनी चाहिए।
नैदानिक पोषण (Clinical Nutrition) के क्षेत्र में तरक्की
भारत में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण(FSSAI) ने खास ज़रूरतों के हिसाब से भोजन तैयार करने के लिए कुछ दिशा-निर्देश बनाए हैं।
1. अब ऐसे कई खाद्य पदार्थ बनाए जा रहे हैं:
- जो खास रूप से किसी बीमारी या शारीरिक कमी को दूर करने के लिए होते हैं।
- जैसे – प्रोटीन की कमी, आयरन की कमी या हड्डियों को मज़बूत करने वाले खाद्य पदार्थ।
2. ऐसे खाद्य पदार्थों की विशेषताएँ:
- उनमें कोई एक या एक से ज्यादा पोषक तत्व ज़्यादा मात्रा में डाले जाते हैं। जैसे – आयरन, विटामिन, प्रोटीन आदि।
- इनमें कुछ विशेष पोषक तत्वों को जैविक रूप (Biological Form) में शामिल किया जाता है, ताकि शरीर उसे आसानी से पचा और इस्तेमाल कर सके।
- इनका मूल्य आम खाने से थोड़ा ज़्यादा हो सकता है।
- कुछ खाने के उत्पाद खास मरीजों के लिए बनाए जाते हैं – जिन्हें खाना खुद से नहीं पचता या खास डाइट चाहिए होती है।
3.उत्पादों के उदाहरण:
- डॉक्टर की सलाह पर लिए जाने वाले पाउडर, कैप्सूल, टैबलेट आदि। जैसे – नान पाउडर, जो बच्चों को दिया जाता है।
- कैल्शियम, आयरन, जिंक से भरपूर सप्लीमेंट्स।
4. फार्माको-न्यूट्रिशन (Pharmaconutrition):
- ऐसे पोषक तत्व जिनका शरीर पर असर दवाओं जैसा होता है, और जो बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं।
- जैसे – बीटा-कैरोटीन, कोलीन, क्रोमियम आदि।
मूलभूत संकल्पनाएँ – नैदानिक पोषण और आहारिकी
यह संकल्पनाएँ हमें यह समझने में मदद करती हैं कि स्वस्थ आहार, सही पोषण, और बीमारी से लड़ने के लिए पोषण प्रबंधन कितना जरूरी है।
- नैदानिक पोषण में चिकित्सक की भूमिका
- आहार चिकित्सा
- पोषण देखभाल व मूल्यांकन
- आहार के प्रकार
- भोजन देने के तरीके
- चिकित्सकीय रोगों की रोकथाम
आहार विशेषज्ञ / नैदानिक पोषण चिकित्सक की भूमिका
- मरीज की पोषण ज़रूरत की जाँच और रिपोर्ट देखकर सही डायट तय करना ।
- बीमारी के अनुसार डाइट चार्ट बनाना ।
- डायबिटीज, हार्ट, किडनी आदि के अनुसार भोजन योजना ।
- एथलीट्स, सैनिकों, मज़दूरों के लिए विशेष डायट बनाना ।
- अस्पताल में भर्ती और बाहरी मरीजों के पोषण का ध्यान रखना ।
- बच्चों, बुज़ुर्गों व विशेष संस्थानों के खान-पान की व्यवस्था ।
- पोषण से रोगियों की रिकवरी और जीवन की गुणवत्ता सुधारना ।
डायटीशियन मरीज के लिए आहार बनाते समय किन बातों का ध्यान रखते हैं?
मरीज को दिन में कितनी बार और कैसा खाना देना है — ये उसकी बीमारी और डॉक्टर की सलाह पर निर्भर करता है।
- क्या मरीज खाना चबा या निगल सकता है? उसकी भूख कैसी है? उसे क्या पसंद है?
- मरीज एक्टिव है या नहीं? वह दिनभर लेटा रहता है या चलता-फिरता है? उसकी एनर्जी की ज़रूरतें कैसी हैं?
- मरीज किस धर्म, जाति या संस्कृति से है? क्या उसके खाने-पीने पर कोई सामाजिक या धार्मिक प्रभाव है?
- क्या शरीर में किसी पोषक तत्व की कमी या अधिकता से मरीज को दिक्कत हो रही है?
- मरीज की मानसिक स्थिति कैसी है? क्या वह चिंता या डिप्रेशन में है, जिससे उसका खाना प्रभावित हो सकता है?
- मरीज को बताई गई चीजें आसानी से उपलब्ध हैं या नहीं? क्या वह उन्हें खरीद सकता है?
आहार चिकित्सा (Diet Therapy)
यह चिकित्सा का एक हिस्सा है जिसमें खाना दवा की तरह इस्तेमाल होता है। मकसद यह होता है कि मरीज को उसकी बीमारी के अनुसार सही भोजन दिया जाए, ताकि वह जल्दी ठीक हो सके।
आहार चिकित्सा के उद्देश्य (Goals)
- मरीज की खाने की आदतों को ध्यान में रखकर डाइट बनाना।
- बीमारी को कंट्रोल और सुधार के लिए खाने में बदलाव करना।
- पोषक तत्वों की कमी को दूर करना।
- लंबी या छोटी बीमारी में डाइट से परेशानी कम करना।
- डायबिटीज, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों को भोजन से कंट्रोल करना।
- मरीज को सिखाना कि उसे क्या और कैसे खाना है।
पोषण देखभाल (Nutrition Care Process)
बीमारी के दौरान की जाने वाली पोषण देखभाल, एक संगठित प्रक्रिया होती है जिसमें 4 मुख्य चरण शामिल होते हैं :-
पोषण देखभाल की प्रक्रिया:
- पोषण मूल्यांकन : रोगी की पोषण स्थिति का पता लगाना।
- पोषण निदान : समस्या की पहचान – जैसे कमज़ोरी, कुपोषण, अधिक वज़न आदि।
- पोषण हस्तक्षेप : समस्या को सुधारने के लिए आहार योजना बनाना और लागू करना।
- परिणामों का मूल्यांकन : देखना कि योजना काम कर रही है या नहीं – ज़रूरत हो तो बदलाव करना।
(ख) पोषण मूल्यांकन (Nutrition Assessment – ABCD Model)
रोगी की पोषण स्थिति जानने के लिए ABCD मॉडल अपनाया जाता है :
A – Anthropometric (शारीरिकमापिक):
- वजन, ऊँचाई, बीएमआई, शरीर की माप आदि।
B – Biochemical (रासायनिक परीक्षण):
- खून, मूत्र की जाँच, शरीर में पोषक तत्वों का स्तर जानना।
C – Clinical (नैदानिक मूल्यांकन):
- रोगी का शारीरिक और स्वास्थ्य परीक्षण — जैसे त्वचा, बाल, आंखें, थकान, कमजोरी आदि।
D – Dietary (आहार मूल्यांकन):
- रोगी क्या खा रहा है? आहार की गुणवत्ता, पोषक तत्वों की कमी या ज़्यादा।
आहार के प्रकार
आहार को दो मुख्य श्रेणियों में बाँटा गया है:
- नियमित / सामान्य आहार
- स्वस्थ लोगों के लिए
- संतुलित और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के अनुसार
- सभी आयु और कार्य के अनुसार पोषण
संशोधित / चिकित्सीय आहार :
बीमार व्यक्तियों के लिए, डॉक्टर व डाइटीशियन की सलाह से दिया जाता है जो विशेष पोषण जरूरतों को पूरा करता है ।
इसमें 4 बदलाव हो सकते हैं:
- बनावट में बदलाव – तरल, नरम, अर्द्ध-तरल
- ऊर्जा स्तर में बदलाव – कम या ज्यादा कैलोरी
- पोषक तत्वों में बदलाव – जैसे कम नमक, ज्यादा फाइबर
- भोजन की बारंबारता – दिन में कितनी बार खाना देना है
उद्देश्य:
- बीमारी से जल्दी ठीक करना
- शरीर को ताकत देना
- इलाज में मदद करना
संशोधित आहारों के प्रकार व उदाहरण
1. बनावट (Texture) में परिवर्तन
(i) तरल आहार (Liquid Diet):
- ये कमरे के तापमान पर द्रव अवस्था में होते हैं।
- इन्हें पूर्ण तरल आहार भी कहा जाता है।
- ये रेशा (फाइबर) रहित, आसानी से पचने वाले और पोषणयुक्त होते हैं।
उदाहरण:
नारियल पानी फलों का रस सूप दूध छाछ मिल्क शेक
लाभ:
- पाचन तंत्र गड़बड़ी में मददगार (सर्जरी, बुखार, उल्टी-दस्त)
- चबाने/निगलने में कठिनाई वाले रोगियों के लिए उपयोगी (जैसे बुजुर्ग या जबड़े की सर्जरी के बाद)
(ii) पूर्ण/स्पष्ट तरल आहार (Clear Liquid Diet)
विशेषताएँ:
- यह सामान्य तरल से भी ज्यादा पतला होता है बिना तुगंदी के (बिल्कुल साफ)
उदाहरण: