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खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी Notes in Hindi Class 12 Home Science Chapter-4 Book 1



प्रस्तावना

खाद्य पदार्थों को संसाधित करने का उद्देश्य उनकी उम्र बढ़ाना, सुपाच्यता और स्वाद सुधारना है। प्राचीन समय से अनाजों को सुखाना, अचार, मुरब्बा और पापड़ जैसे संरक्षित खाद्य बनाने की परंपरा रही है। समय के साथ, औद्योगीकरण और परिवहन में सुधार ने सुविधाजनक, ताज़े, स्वास्थ्यवर्धक और लंबे समय तक सुरक्षित रहने वाले खाद्य पदार्थों की माँग बढ़ा दी। उपभोक्ता ऐसी चीज़ें चाहते हैं जो पोषक हों, खराब न हों, और आसानी से पैक व परिवहन की जा सकें। इसे ध्यान में रखकर वैज्ञानिकों ने नई तकनीकें विकसित की हैं, जिनसे बिस्कुट, ब्रेड, तैयार भोजन और स्नैक्स जैसे खाद्य बड़े पैमाने पर बनाए जाते हैं।


महत्त्व

रत ने कृषि क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है, जिससे अब यह कृषि-आधिक्य वाला देश बन गया है। इसके चलते खाद्य भंडारण और प्रसंस्करण की आवश्यकता बढ़ी है। यही कारण है कि भारत का खाद्य उद्योग अब लगभग 6% GDP में योगदान के साथ दुनिया में पांचवें स्थान पर है।

बढ़ती माँग के कारण

आधुनिक जीवनशैली और यात्रा सुविधाओं ने विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों की माँग बढ़ाई है। वैश्वीकरण के कारण भारतीय खाद्य पदार्थों की माँग भी वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ रही है।

फूड फोर्टिफिकेशन (खाद्य प्रबलीकरण) का महत्व

सामान्य भोजन में पोषक तत्वों की कमी से कुपोषण बढ़ता है, जिसे फूड फोर्टिफिकेशन से हल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, आयोडीन युक्त नमक और विटामिन A व D युक्त तेल और दूध। FSSAI ने नमक, गेहूँ का आटा, दूध और तेल जैसे खाद्य पदार्थों के सुदृढ़ीकरण के लिए मानक बनाए हैं।

स्वस्थ विकल्पों की माँग

हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों के चलते वैज्ञानिक कैलोरी कम करने वाले विकल्प विकसित कर रहे हैं, जैसे कृत्रिम मिठास और उच्च प्रोटीन वाली वसा रहित आइसक्रीम। उपभोक्ताओं की रुचि अब रसायन और पीड़कनाशक मुक्त प्राकृतिक खाद्य पदार्थों में बढ़ रही है, जो स्वादिष्ट होने के साथ अधिक समय तक सुरक्षित रहें।

खाद्य प्रौद्योगिकी: बढ़ती भूमिका

उपभोक्ताओं की बदलती पसंद और पोषण जरूरतों के कारण खाद्य प्रौद्योगिकीविदों की माँग तेजी से बढ़ रही है। इसका उद्देश्य सुरक्षित, पोषक, स्वास्थ्यवर्धक और पर्यावरण के अनुकूल खाद्य पदार्थ विकसित करना है।


मूलभूत संकल्पनाएँ

खाद्य विज्ञान, खाद्य संसाधन और खाद्य प्रौद्योगिकी का क्षेत्र आज के समय में तेजी से विकसित हो रहा है। ये क्षेत्र खाद्य उत्पादन, भंडारण और प्रसंस्करण के हर पहलू को शामिल करते हैं।

खाद्य विज्ञान (Food Science)

यह एक व्यापक क्षेत्र है जो रसायन, भौतिकी, सूक्ष्मजीव विज्ञान और कृषि विज्ञान का उपयोग करता है। इसमें फसल काटने से लेकर भोजन पकाने और खाने तक के सभी तकनीकी पहलू शामिल होते हैं। इसका मुख्य कार्य खाद्य पदार्थों के संघटन और गुणों का अध्ययन करना और भंडारण व प्रसंस्करण के दौरान होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण करना है।

खाद्य संसाधन (Food Processing)

यह कच्चे माल को तैयार या आधे तैयार उत्पादों में बदलने की प्रक्रिया है, जिसमें पौधों और जंतुओं से प्राप्त सामग्रियों को सुरक्षित और विपणन योग्य खाद्य उत्पादों में बदला जाता है। इसका लक्ष्य खाद्य उत्पादों को आकर्षक और उपयोगी बनाना और उनकी शैल्फ लाइफ (सुरक्षा काल) बढ़ाना है।

खाद्य प्रौद्योगिकी (Food Technology)

यह खाद्य उत्पादन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का व्यावहारिक उपयोग है, जिसमें सुरक्षित, पोषक और सुविधाजनक खाद्य पदार्थों के उत्पादन, संरक्षण और पैकेजिंग पर ध्यान दिया जाता है। इसका उद्देश्य खाद्य पदार्थों को लंबे समय तक सुरक्षित रखना और कानूनी नियमों व मानकों का पालन करते हुए उनका उत्पादन करना है।

खाद्य उत्पादन (Food Production)

यह बड़े पैमाने पर खाद्य उत्पादन है, जो बढ़ती जनसंख्या की विविध माँगों को पूरा करने के लिए खाद्य प्रौद्योगिकी के सिद्धांतों का उपयोग करता है। आज खाद्य उत्पादन दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग बन गया है।


खाद्य संसाधन और प्रौद्योगिकी का विकास

खाद्य प्रौद्योगिकी का क्षेत्र दशकों से विकास कर रहा है, जिससे खाद्य संरक्षण, उत्पादन, और उपभोक्ता आवश्यकताओं को पूरा करने में नई तकनीकों का इस्तेमाल हुआ है।

शुरुआती शोध और खोजें

डिब्बाबंदी की प्रक्रिया 1810 में निकोलस ऐप्पर्ट ने विकसित की, जो खाद्य संरक्षण में मील का पत्थर साबित हुई। 1864 में लुई पाश्चर ने पाश्च्चुरीकरण तकनीक बनाई, जिससे दूध, बीयर और अन्य खाद्य पदार्थ सूक्ष्मजीवों से सुरक्षित रखे जा सके।

खाद्य प्रौद्योगिकी का विस्तार

खाद्य प्रौद्योगिकी की शुरुआत सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए हुई। 20वीं सदी में विश्वयुद्ध और अंतरिक्ष अनुसंधान ने इसमें तेजी से विकास किया। साथ ही, कामकाजी महिलाओं के लिए तुरंत बनने वाले सूप और तैयार भोजन जैसे उत्पाद विकसित किए गए।

उपभोक्ता जरूरतें और प्रौद्योगिकी

लोगों ने अलग-अलग देशों के व्यंजन अपनाए और मौसमी खाद्य पदार्थों की माँग सालभर बढ़ गई। खाद्य प्रौद्योगिकीविदों ने सुरक्षित और ताजा खाद्य उत्पाद उपलब्ध कराने के लिए नई तकनीकों का विकास किया।

21वीं सदी की चुनौतियाँ और उपलब्धियाँ

खाद्य प्रौद्योगिकी की चुनौती उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और बदलती जरूरतों के अनुसार खाद्य पदार्थ तैयार करना है। इसकी उपलब्धियों में सुरक्षित, पोषक और सुविधाजनक खाद्य पदार्थ विकसित करना, विकासशील देशों में खाद्य सुरक्षा सुधारना और रोजगार के नए अवसर पैदा करना शामिल है।


खाद्य-संसाधन और संरक्षण का महत्त्व

खाद्य संसाधन का उद्देश्य कच्चे माल को सुरक्षित, स्वादिष्ट और उपयोगी खाद्य उत्पादों में बदलना है। यह प्रक्रिया न केवल भोजन की गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करती है, बल्कि इसके शैल्फ लाइफ (सुरक्षा काल) को भी बढ़ाती है।

खाद्य संसाधन की आवश्यकता

खाद्य पदार्थ प्राकृतिक रूप से खराब हो सकते हैं, जिससे उनकी गुणवत्ता, पोषण और स्वाद प्रभावित होता है। इसके प्रमुख कारण सूक्ष्मजीव (जैसे जीवाणु, यीस्ट और फफूंदी), पर्यावरणीय कारक (जैसे नमी, तापमान, ऑक्सीजन और प्रकाश) और प्राकृतिक एंजाइम हैं, जो फलों और सब्जियों की ताजगी कम करते हैं।

खाद्य संरक्षण के सिद्धांत

खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिए कई तकनीकें इस्तेमाल की जाती हैं, जैसे पकाना और भूनना (ऊष्मा का उपयोग), सूखाना और निर्जलीकरण (जल हटाना), प्रशीतन और हिमशीतन (तापमान नियंत्रित करना), अचार में सिरका डालना (pH कम करना), और वैक्यूम पैकिंग (ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड नियंत्रण)।

खाद्य संसाधन के प्रकार

खाद्य पदार्थों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। न्यूनतम संसाधित खाद्य में कटे हुए फल, सब्जियाँ और ठंडी स्टोर की गई सामग्री शामिल हैं। संरक्षित खाद्य जैसे हिमशीतित मटर और डिब्बाबंद फल भंडारण के लिए सुरक्षित रखे जाते हैं। विनिर्मित खाद्य में जैम, अचार और शरबत जैसे कच्चे माल से बदले गए उत्पाद आते हैं। फार्मूलाबद्ध खाद्य जैसे बिस्कुट, केक और आइसक्रीम मिश्रित संघटकों से बनाए जाते हैं। खाद्य व्युत्पन्न गन्ने से चीनी और तिलहन से तेल जैसे कच्चे माल से तैयार होते हैं। संश्लेषित खाद्य रासायनिक या सूक्ष्मजीव संश्लेषण से बने एंजाइम और विटामिन होते हैं। कार्यात्मक खाद्य जैसे प्रोबायोटिक दही स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जबकि चिकित्सीय खाद्य जैसे लैक्टोस मुक्त दूध और कम सोडियम नमक विशेष बीमारियों के प्रबंधन में मदद करते हैं।


जीविका के लिए तैयारी करना

खाद्य उद्योग में संसाधन, शोध और विकास से लेकर खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित करने तक कई तरह के कार्यक्षेत्र हैं। यह क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और इसमें कई विशेषताएँ शामिल हैं, जैसे नए उत्पादों का विकास, उपभोक्ता बाजार का शोध, और आधुनिक तकनीकों का उपयोग।

खाद्य उद्योग में विशेषज्ञता के क्षेत्र

  • पेय पदार्थ
  • डेयरी उत्पाद
  • मांस और मुर्गी पालन
  • समुद्री खाद्य
  • तेल और वसा
  • अनाज और योजक पदार्थ
  • परिरक्षक और रंग

आवश्यक ज्ञान और कौशल

खाद्य विज्ञान में खाद्य पदार्थों के संघटन, गुणवत्ता और सुरक्षा का अध्ययन शामिल है। सूक्ष्मजीव विज्ञान और पोषण खाद्य को सुरक्षित और पोषक बनाने पर ध्यान देते हैं। उत्पादन प्रक्रिया और गुणवत्ता नियंत्रण बड़े पैमाने पर खाद्य निर्माण और निगरानी से जुड़ा है। संवेदी मूल्यांकन खाद्य के स्वाद, महक और बनावट का विश्लेषण करता है। पैकेजिंग और लेबलिंग उत्पाद को सुरक्षित और आकर्षक बनाने के लिए जरूरी है, जबकि पाककला और रेसिपी डिजाइन खाद्य को बेहतर और अनुकूलित बनाने पर केंद्रित है।

करियर के लिए योग्यता

खाद्य प्रौद्योगिकी में करियर के लिए 10+2 में भौतिकी, रसायन और जीवविज्ञान/गणित (पीसीएम या पीसीबी) के साथ 12वीं पास होना चाहिए। इसके बाद डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स किया जा सकता है। स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर खाद्य प्रौद्योगिकी, प्रसंस्करण और प्रबंधन में डिग्री प्राप्त करना शोध और उच्च शिक्षा के लिए उपयोगी है।

प्रमुख संस्थान

सीएफटीआरआई (CFTRI), मैसूर खाद्य प्रौद्योगिकी और शोध के लिए प्रसिद्ध है, जबकि NIFTEM, सोनीपत खाद्य प्रौद्योगिकी और उद्यमिता में विशेषज्ञता प्रदान करता है। भारत और विदेशों के कई विश्वविद्यालय स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम भी उपलब्ध कराते हैं।

रोजगार के अवसर

  • खाद्य परिरक्षण और संसाधन इकाइयाँ।
  • बड़े पैमाने पर खाद्य उद्योग।
  • शोध और विकास।
  • स्वउद्यमिता।


कार्यक्षेत्र

खाद्य उद्योग आज तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्र है, जिसमें संसाधित, पैक किए गए और सुविधाजनक खाद्य पदार्थों की बढ़ती माँग के कारण प्रशिक्षित पेशेवरों की जरूरत है। यह क्षेत्र चुनौतियों, प्रगति और लाभदायक करियर के कई अवसर प्रदान करता है।

खाद्य उद्योग में काम के क्षेत्र

खाद्य उद्योग में डेयरी, पेय पदार्थ, बेकरी, फल और सब्जी प्रसंस्करण, मांस और मछली प्रसंस्करण, साथ ही अनाज, पापड़, अचार और मिठाइयाँ बनाने की इकाइयाँ शामिल हैं। इसमें गुणवत्ता नियंत्रण, प्रबंधन और सुरक्षा आकलन, शोध और विकास, और लेबलिंग व पैकेजिंग जैसे विभाग प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

वैश्वीकरण और विदेशी निवेश

भारत में विदेशी कंपनियों और बहुराष्ट्रीय संस्थानों के आगमन ने खाद्य प्रौद्योगिकीविदों के लिए नए अवसर पैदा किए हैं। ये कंपनियाँ शोध, उत्पादन और निर्यात में निवेश कर रही हैं, जिससे भारतीय उत्पादों का निर्यात बढ़ा है और रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि हुई है।

स्वरोजगार के अवसर

घरेलू और कुटीर उद्योग में पापड़, अचार, मुरब्बा, तले हुए स्नैक्स और मिठाइयाँ जैसे उत्पाद शामिल हैं। कम निवेश वाले व्यवसाय जैसे पैकaged मूँगफली और पानी के पाउच भी लोकप्रिय हैं। सरकार तकनीकी और महिला उद्यमियों को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण, और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करती है। राज्य सरकारें स्वरोजगार के लिए भूमि और अन्य संसाधनों की उपलब्धता में मदद करती हैं।

भारतीय खाद्य उद्योग का महत्व

खाद्य उद्योग भारत की GDP में 6%, निर्यात में 13%, और औद्योगिक निवेश में 6% का योगदान देता है। यह 20% की तेज विकास दर से बढ़ रहा है, जिसमें 25% योगदान संसाधित खाद्य पदार्थों का है। उद्योग के प्रमुख क्षेत्रों में दूध और दूध उत्पाद, बेकरी और स्नैक्स, फल, सब्जियाँ, पेय पदार्थ, मछली और माँस प्रसंस्करण शामिल हैं।

रोजगार और भविष्य

खाद्य उद्योग में प्रशिक्षित पेशेवरों की माँग बढ़ रही है, और निरंतर बढ़ते निर्यात से रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो रही है। सरकारी पहल के तहत ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में 30 खाद्य संसाधन पार्क स्थापित किए गए हैं।


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