मुख्यपृष्ठ जनपोषण तथा स्वास्थ्य Notes in Hindi Class 12 Home Science Chapter-3 Book 1
जनपोषण तथा स्वास्थ्य Notes in Hindi Class 12 Home Science Chapter-3 Book 1
Team Eklavya
दिसंबर 24, 2024
जनपोषण और स्वास्थ्य जनपोषण यानी सभी लोगों को पौष्टिक और संतुलित आहार मिलना स्वास्थ्य यानी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ रहना। क्यों ज़रूरी हैं ये दोनों? क्योंकि एक स्वस्थ नागरिक ही देश के विकास में योगदान दे सकता है। "अल्पपोषण और अतिपोषण दोनों पर रोक लगाना, और हर व्यक्ति को उसकी जरूरत के अनुसार पोषण उपलब्ध कराना ही जनपोषण का मुख्य लक्ष्य है।"
कुपोषण जब किसी व्यक्ति को आवश्यक मात्रा में पोषक तत्व (जैसे – प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स आदि) नहीं मिलते, तो उस स्थिति को कुपोषण कहते हैं। कुपोषण के प्रकार: 1. अल्पपोषण : शरीर को ज़रूरत से कम पोषण मिलना वजन कम होना, थकावट, कमज़ोरी, विकास में रुकावट 2. अतिपोषण : ज़रूरत से ज़्यादा कैलोरी और फैट का सेवन मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग कुपोषण से लड़ने के 3 खास पहलू: कम वजन वाले नवजात भारत में हर 5वाँ बच्चा 2.5 किग्रा से कम वजन के साथ जन्म लेता है जिससे उनके शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा आती है। आर्थिक-सामाजिक कमजोरी गरीब और पिछड़े परिवारों के बच्चों में विकास धीमा होता है। बच्चों और किशोरों में अक्सर इन पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है: सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी ज़िंक, आयोडीन, फोलिक एसिड कुपोषण के दुष्प्रभाव दोहरी चुनौती का संकट भारत में एक ही समय पर अल्पपोषण और अतिपोषण दोनों की समस्या मौजूद है। अगर इसे रोका नहीं गया, तो: शारीरिक विकास धीमा हो जाता है। मानसिक क्षमता प्रभावित होती है। संज्ञानात्मक (सोचने-समझने की) शक्ति कमज़ोर हो जाती है। जीवन की गुणवत्ता और उत्पादकता घटती है। समाधान क्या है? अगर हम कुपोषण पर नियंत्रण पा लें, तो यह भारत के संपूर्ण विकास और आर्थिक प्रगति में बड़ा योगदान दे सकता है।
भारत में अतिपोषण के मुख्य कारण आहार और जीवनशैली में बदलाव लोग अब पहले की तुलना में ज़्यादा तला-भुना और फास्ट फूड खाने लगे हैं। शारीरिक मेहनत में कमी लोग कम चलते हैं, कम मेहनत करते हैं। यातायात में सुविधा का असर,हर जगह वाहन से जाना – चलने की आदत खत्म! बच्चों की खेलकूद में रुचि घट रही है बच्चे मैदान में खेलना छोड़कर स्क्रीन पर समय बिता रहे हैं। फास्ट फूड और स्नैक्स की लत बर्गर, पिज्ज़ा, चिप्स जैसे हाई-कैलोरी खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन। स्वस्थ भोजन से दूरी आजकल लोग साबुत अनाज, दालें, सब्ज़ियाँ और फल कम खाने लगे हैं, जिससे शरीर को ज़रूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते। अतिपोषण के दुष्प्रभाव जब शरीर को आवश्यकता से अधिक और असंतुलित पोषण मिलता है, तो ये समस्याएँ पैदा हो सकती हैं:- अवांछनीय वज़न वृद्धि – मोटापा और अनचाहा भार बढ़ना उच्च रक्तचाप (High BP) – हृदय पर दबाव मधुमेह (Diabetes) – ख़ून में शर्करा असंतुलन कैंसर – कुछ प्रकार के कैंसर का ख़तरा बढ़ सकता है गठिया (Arthritis) – जोड़ों में सूजन और दर्द जीवन की गुणवत्ता में गिरावट – ऊर्जा, आत्मविश्वास और सक्रियता कम होना वित्तीय बोझ – इलाज और दवाओं पर खर्च बढ़ना
पोषण की समस्याओं के कारण गरीबी के कारण लोग पौष्टिक भोजन नहीं ले पाते। गंदगी और अस्वच्छता से बीमारियाँ बढ़ती हैं। सरकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन न होने से कुपोषण बना रहता है। स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से समय पर इलाज नहीं हो पाता। नकदी फसलों पर ध्यान देने से पोषक अनाजों की उपेक्षा होती है। बेरोजगारी और कम आय से लोग पोषण पर खर्च नहीं कर पाते। गंदा पानी पीने से जल जनित रोग होते हैं। परंपरागत सोच से महिलाओं और लड़कियों को कम भोजन दिया जाता है। शिक्षा की कमी से लोग संतुलित आहार का महत्व नहीं समझते। पोषण समस्याओं के प्रभाव व कारण 1. परिणाम (Effect): कुपोषण, कमज़ोरी (अशक्ति), और मृत्यु का खतरा। 2. व्यक्तिगत स्तर पर कारण: बार-बार बीमारियाँ होना (जैसे दस्त, बुखार)। 3. घर/परिवार स्तर पर कारण: खाने में पोषक तत्वों की कमी। माँ और बच्चे की देखभाल का अभाव। साफ पानी और स्वच्छता की कमी। स्वास्थ्य सेवाओं तक कठिन पहुँच। महिलाओं और लड़कियों में जानकारी की कमी। 4. मुख्य/गहरे सामाजिक कारण: संसाधनों की कमी या उनका गलत वितरण। जाति, लिंग, गरीबी के आधार पर भेदभाव। शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य में असमानता। सरकारी नीतियों और सेवाओं की कमजोर पहुँच। गरीबों और वंचितों की आवाज़ को अनसुना करना।
भारत में पोषण संबंधी समस्याएँ (a) प्रोटीन–ऊर्जा कुपोषण (PEM) यह समस्या तब होती है जब शरीर को पर्याप्त प्रोटीन और ऊर्जा (calories) नहीं मिलती। यह खासकर बच्चों, वृद्धों और कमजोर लोगों में होता है। इसके कारण शरीर में कमजोरी, वजन कम होना और रोगों से लड़ने की शक्ति घट जाती है। प्रोटीन–ऊर्जा कुपोषण के दो प्रमुख प्रकार :- 1. मरास्मस (Marasmus): यह तब होता है जब शरीर को भोजन में कुल ऊर्जा और प्रोटीन दोनों की बहुत कमी हो। शरीर हड्डियों जैसा दिखने लगता है, मांसपेशियाँ गल जाती हैं। 2. क्वाशियोरकर (Kwashiorkor): यह तब होता है जब शरीर को प्रोटीन की बहुत अधिक कमी होती है। पेट फूल जाता है, त्वचा सूज जाती है, बाल झड़ते हैं। (b) सूक्ष्म पोषकों की कमी: (i) लौह तत्व की कमी से अवसक्ता (Iron Deficiency Anaemia - IDA) यह एक सामान्य पोषण विकार है, खासकर विकासशील देशों में। सबसे अधिक प्रभावित वर्ग : कम उम्र की महिलाएँ (जो मासिक धर्म में आयरन खोती हैं) शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। ऑक्सीजन ठीक से शरीर के हिस्सों तक नहीं पहुँचती। अवसक्ता के लक्षण: नख, होंठ व आंखों की सफेदी पीली पढ़ाई और काम में मन न लगना (ii) विटामिन A की कमी (VAD) विटामिन A के कार्य: स्वस्थ त्वचा बनाए रखता है सामान्य दृष्टि (देखने की क्षमता) को बनाए रखता है शारीरिक वृद्धि में सहायक होता है रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है विटामिन A की कमी के परिणाम: रतौंधी (रात में ठीक से न देख पाना), विशेषकर बच्चों में पूर्ण अंधता (Extreme cases में) संक्रमण से लड़ने की क्षमता घटती है शारीरिक वृद्धि बाधित होती है (iii) आयोडीन हीनता विकार (IDD) सामान्य मानसिक और शारीरिक वृद्धि के लिए आयोडीन ज़रूरी होता है। भारत में प्रभावित राज्य: हिमालय क्षेत्र – जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक आयोडीन की कमी से होने वाली समस्याएँ: आहार से आयोडीन की कमी से थायरॉइड हार्मोन का उत्पादन घटता है। इससे गला फूलने लगता है, जिसे गलगंड (Goitre) कहते हैं। बच्चों में मानसिक मंदता, विकास में बाधा, बोलने-सुनने की परेशानी हो सकती है। गर्भावस्था में कमी होने पर शिशु में जन्मजात विकृति और बौद्धिक दुर्बलता हो सकती है।
पोषण समस्याओं से निपटने के लिए प्रयास पोषण अभियान (Poshan Abhiyaan): शुरुआत: मार्च 2018, स्थान: झुंझुनूं (राजस्थान) से प्रधानमंत्री द्वारा 1. उद्देश्य: कुपोषण, एनीमिया (खून की कमी), कम वजन और कम ऊँचाई की समस्याओं को घटाना महिलाओं और बच्चों का समग्र पोषण सुधारना 2. मंत्रालय: महिला और बाल विकास मंत्रालय (MWCD)3. विधि : टेक्नोलॉजी, जन भागीदारी और बहु-क्षेत्रीय
पोषण अभियान के दो मुख्य घटक (i) अत्यावश्यक हस्तक्षेप (Key Interventions) ICDS (समेकित बाल विकास सेवाएं): 0–6 साल के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और किशोरियों के लिए पोषण, टीकाकरण, और देखभाल सेवाएं FSSAI द्वारा खाद्य पूरककरण (जैसे – आयरन, विटामिन से समृद्ध खाद्य वस्तुएँ) स्थानीय और सस्ते स्रोतों से पोषण आहार उपलब्ध कराना कमज़ोर वर्गों पर ध्यान केंद्रित (बच्चे, महिलाएं, विशेषकर गर्भवती और धात्री) स्वास्थ्य और पोषण शिक्षा (लोगों के व्यवहार में बदलाव लाना) बहु-क्षेत्रीय सहयोग (शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, महिला सशक्तिकरण – सभी को जोड़ना) (ii) लंबी अवधि की योजनाएँ (Long-Term Interventions) 1. भोजन की गुणवत्ता और उपलब्धता बढ़ाना 2. पोषणयुक्त खाद्य पदार्थों का उपयोग बढ़ाना 3. गरीबी में कमी लाना, खासकर: जन वितरण प्रणाली (PDS) से स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और सुधार मीडिया के ज़रिए जागरूकता फैलाना पोषण कार्यक्रमों की बेहतर निगरानी और क्रियान्वयन महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देना सामाजिक सहभागिता से समाधान को सुनिश्चित करना
कार्य नीतियाँ (Work Policies) (i) आहार अथवा भोजन आधारित कार्य नीतियाँ : यह नीति लोगों की खानपान की आदतों और भोजन की गुणवत्ता में सुधार लाकर पोषण को बेहतर बनाने पर केंद्रित होती है। दीर्घकालिक: यह स्थायी समाधान देती है, जल्दी खत्म नहीं होती। कम लागत में प्रभावी : खर्च कम और असरदार होती है। दुष्प्रभाव नहीं होते : अधिक मात्रा लेने पर भी कोई नुकसान नहीं होता। स्थानीय संस्कृति के अनुसार : इसे हर क्षेत्र की खानपान परंपराओं के अनुसार अपनाया जा सकता है। (ii) पोषण आधारित अथवा औषधीय दृष्टिकोण यह नीति संवेदनशील लोगों (जैसे गर्भवती महिलाएँ, बच्चे आदि) को विशेष पोषक पदार्थों की खुराक देने पर केंद्रित होती है। विशेषताएँ: अल्पकालिक समाधान: यह तात्कालिक मदद देती है लेकिन स्थायी समाधान नहीं। महँगा: सप्लीमेंट्स, दवाएं, विशेष खाद्य पदार्थ महँगे होते हैं। टारगेटेड: अलग-अलग पोषक तत्वों के लिए अलग-अलग समूह होते हैं (जैसे आयरन टैबलेट किशोरियों के लिए, विटामिन A बच्चों के लिए आदि)।
अल्पपोषण को कम करने के उपाय (हस्तक्षेप) चिकित्सीय या पोषण-आधारित हस्तक्षेप (यानि डॉक्टर की सलाह से होने वाला इलाज) 1. पोषण पूरक (Supplementation) जैसे - विटामिन की गोली, आयरन सिरप, आदि किनके लिए? : बच्चे, किशोरियाँ, गर्भवती महिलाएँ आदि लंबे समय तक फायदा करता है सभी लोगों को नहीं मिलता, कुछ ही लोगों तक सीमित होता है भोजन आधारित / आहार नीति आधारित हस्तक्षेप (यानि खाने में सुधार लाकर पोषण देना) 1. पुष्टिकरण (Fortification) खाने में पोषक तत्व मिलाना (जैसे नमक में आयोडीन मिलाना) खाद्य उद्योग की मदद जरूरी लोगों को पता भी नहीं चलता कि क्या मिला है हर चीज़ में नहीं मिलाया जा सकता लोग अपनी आदतें नहीं बदलते 2. आहार विविधता (Dietary Diversity) तरह-तरह के खाने को शामिल करना (जैसे – दालें, फल, सब्जियाँ, अनाज) सभी ज़रूरी पोषक तत्व मिलते हैं एक स्थायी (लंबे समय वाला) समाधान है खाने की आदतें बदलना मुश्किल खेती और पैसे पर निर्भर करता है सामाजिक सोच और परंपराओं को बदलना पड़ता है
भारत में पोषण से जुड़ी प्रमुख योजनाएँ व कार्यक्रम (i) एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS) यह कार्यक्रम छोटे बच्चों (0-6 वर्ष), गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पोषण, टीकाकरण, और प्राथमिक शिक्षा जैसी सेवाएँ देता है। (ii) पोषण हीनता नियंत्रण कार्यक्रम:इसका उद्देश्य शरीर में पोषण की कमी को दूर करना है। मुख्य कार्यक्रम: राष्ट्रीय रोग निरोधक कार्यक्रम विटामिन A की कमी से अंधापन रोकने के लिए राष्ट्रीय पोषण एनीमिया रोकथाम कार्यक्रम शरीर में खून की कमी (एनीमिया) को रोकना राष्ट्रीय आयोडीन युक्त नमक कार्यक्रम दिमागी विकास और थायरॉयड की बीमारी रोकने के लिए (iii) भोजन सुरक्षा कार्यक्रम:इसका उद्देश्य गरीबों तक सस्ते दामों पर अनाज पहुँचाना है। मुख्य योजनाएँ: अंत्योदय अन्न योजना – बहुत ही गरीब परिवारों के लिए अन्नपूर्णा योजना – वृद्ध लोगों के लिए कार्य के बदले अन्न योजना – मजदूरी के बदले अनाज (iv) आहार पूरक कार्यक्रम : इसमें स्कूल और आंगनवाड़ी केंद्रों में मध्याह्न भोजन कार्यक्रम (Mid-Day Meal) के तहत बच्चों को मुफ्त पोषणयुक्त खाना दिया जाता है। (v) स्वावलंबन और वैकल्पिक रोजगार योजनाएँ: इन योजनाओं से लोगों को काम करके कमाने का मौका मिलता है, जिससे वे खुद खाने-पीने की चीजें खरीद सकते हैं और अपने परिवार का पोषण सुधार सकते हैं।
भारत में स्वास्थ्य देखभाल के 3 स्तर प्राथमिक स्तर (Primary Level) यह सबसे पहला और बुनियादी स्तर होता है। जब कोई व्यक्ति, परिवार या समुदाय को स्वास्थ्य सेवा की जरूरत होती है, तो वे सबसे पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) या उप-स्वास्थ्य केंद्र जाते हैं। उदाहरण: सर्दी-खांसी, बुखार, टीकाकरण, गर्भावस्था जाँच, आदि। द्वितीयक स्तर (Secondary Level) जब बीमारी थोड़ी ज्यादा गंभीर हो जाती है, तो इलाज के लिए व्यक्ति को जिला अस्पताल या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) भेजा जाता है। उदाहरण: चोट लगना, सर्जरी की जरूरत, डिलीवरी का केस, बड़ी बीमारी की शुरुआती जाँच आदि।तृतीयक स्तर (Tertiary Level) यह सबसे उन्नत और विशेषज्ञ सेवाओं का स्तर होता है। यहाँ इलाज बड़ी और जटिल बीमारियों के लिए होता है। AIIMS, मेडिकल कॉलेज अस्पताल, क्षेत्रीय/विशेष अस्पताल, कैंसर हॉस्पिटल, सुपर-स्पेशलिटी अस्पताल आदि।
पोषण विशेषज्ञ कहाँ-कहाँ काम कर सकता है? अस्पतालों में: बीमारी रोकने, इलाज और पोषण की शिक्षा से जुड़े कार्यक्रमों में हिस्सा ले सकते हैं।बच्चों और महिलाओं के कार्यक्रमों में: पोषण की समझ और योग्यता के आधार पर, वे आँगनवाड़ी / एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) में शामिल हो सकते हैं।नीति निर्धारण में योगदान: सरकार या किसी संस्था में सलाहकार के रूप में काम कर सकते हैं, जहाँ वे पोषण नीति और योजना बनाने में मदद करते हैं।स्वयंसेवी और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ: UNICEF, WHO जैसी संस्थाओं के साथ पोषण संबंधी प्रोजेक्ट पर काम कर सकते हैं।बड़े संस्थानों में: जहाँ किसी खास लक्ष्य (जैसे – स्कूल के बच्चे, गर्भवती महिलाएँ) के लिए विशेष पोषण कार्यक्रम चलाए जाते हैं, वहाँ काम कर सकते हैं।स्कूल या कॉलेज में: विद्यालय स्वास्थ्य कार्यक्रम या पोषण शिक्षा देने वाले कार्यक्रमों में भाग ले सकते हैं।शिक्षा, खेल और उद्योग क्षेत्रों में: वे इन क्षेत्रों में कल्याण योजनाओं (Wellness Programs) में शामिल हो सकते हैं — जैसे खिलाड़ियों के लिए डाइट चार्ट बनाना, कर्मचारियों के लिए स्वास्थ्य योजना आदि।
सामुदायिक पोषण से जुड़ी प्रमुख स्वयंसेवी व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ यूनिसेफ (UNICEF): संयुक्त राष्ट्र की संस्था जो बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और सुरक्षा के लिए काम करती है।आक्सफेम (Oxfam): यह संस्था गरीबी, भूख और सामाजिक असमानता को खत्म करने के लिए दुनियाभर में काम करती है।डी.एफ.आई.डी. (DFID): ब्रिटेन की संस्था जो विकासशील देशों को स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में सहायता देती है।एफ.ए.ओ. (FAO): खाद्य और कृषि संगठन, जो लोगों को संतुलित और पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए काम करता है।डब्ल्यू.एच.ओ. (WHO): विश्व स्वास्थ्य संगठन, जो पूरे विश्व में स्वास्थ्य और पोषण के मानक तय करता है और उनकी निगरानी करता है।यू.एस.ए.आई.डी. (USAID): अमेरिका की संस्था, जो अन्य देशों को स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण परियोजनाओं में सहायता देती है।जी.ए.आई.एन. (GAIN): यह संस्था भोजन में पोषक तत्व मिलाने (पुष्टिकरण) के कार्य में सहयोग करती है।माइक्रोन्यूट्रिएंट इनिशिएटिव: यह संस्था सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (जैसे आयरन, विटामिन A) को दूर करने के लिए काम करती है।आई.एफ.पी.आर.आई. (IFPRI): अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान, जो खाद्य व पोषण नीतियों पर शोध करता है।
जन पोषण पेशेवर क्या करते है? समस्या की पहचान करना: यह समझता है कि क्या समस्या है (जैसे कुपोषण) और कितने लोगों को प्रभावित कर रही है।समस्या की जड़ तक पहुँचना: यह समझने की कोशिश करता है कि ये समस्याएँ कैसे और क्यों पैदा हो रही हैं।प्रभाव का मूल्यांकन: यह देखता है कि इन पोषण समस्याओं का लोगों पर क्या असर पड़ता है, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास आदि पर।नीति और योजना बनाना: समाधान के लिए नीतियाँ और कार्यक्रम तैयार करता है, और उन्हें लागू करने की प्रक्रिया भी तय करता है।