जनपोषण तथा स्वास्थ्य Notes in Hindi Class 12 Home Science Chapter-3 Book 1
0Team Eklavyaदिसंबर 24, 2024
प्रस्तावना
"जन" का मतलब सभी लोगों से है, और जन स्वास्थ्य का मतलब है सभी के स्वास्थ्य की रक्षा और उसे बेहतर बनाने के लिए सामूहिक प्रयास। आपने अल्पपोषण और अतिपोषण के बारे में भी जाना होगा। जन स्वास्थ्य पोषण का मुख्य उद्देश्य इन समस्याओं को रोकना और सभी के लिए बेहतर पोषण सुनिश्चित करना है।
महत्व
कुपोषण: भारत की बड़ी समस्या और समाधान की जरूरत
कुपोषण भारत में एक गंभीर समस्या है, जो बच्चों और वयस्कों दोनों के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है। यहाँ पाँच वर्ष से कम उम्र के 50% बच्चों की मौत का कारण कुपोषण होता है।
कुपोषण के गंभीर आँकड़े
भारत में हर पाँच में से एक बच्चा जन्म के समय 2.5 किलो से कम वजन का होता है, जिससे उनके विकास पर बुरा असर पड़ता है। गरीब परिवारों के बच्चे अक्सर वृद्धि-मंदन (स्टंटिंग) का शिकार होते हैं, और करीब आधे बच्चे मध्यम या गंभीर अल्पपोषण से पीड़ित हैं। इसके अलावा, आयरन, जिंक, विटामिन A, D और आयोडीन जैसे ज़रूरी पोषक तत्वों की कमी भी एक बड़ी समस्या है, जो लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
कुपोषण का असर
कुपोषण बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करता है। इससे बच्चों का कद छोटा रह जाता है और मस्तिष्क व संज्ञानात्मक क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। इसके साथ ही, विशेषज्ञों का कहना है कि कुपोषण के कारण देश की GDP में 2-3% तक की गिरावट हो सकती है, जिससे देश को बड़ा नुकसान होता है।
बदलती जीवनशैली और पोषण
पिछले कुछ वर्षों में भारत में भोजन और जीवनशैली में बड़े बदलाव हुए हैं। लोग अब तले हुए, संसाधित और शक्कर से भरपूर खाद्य पदार्थ ज्यादा खाने लगे हैं। साथ ही, शारीरिक गतिविधि कम हो गई है, और बच्चों का बाहर खेलना भी घट गया है। इसका नतीजा है कि मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं।
दोहरी समस्या: अल्पपोषण और अतिपोषण
भारत में कुपोषण का दोहरा असर दिखता है। एक ओर, गरीब बच्चों और वयस्कों में अल्पपोषण आम है, तो दूसरी ओर, मोटापा और उससे जुड़ी बीमारियाँ भी तेजी से बढ़ रही हैं।
क्या किया जाए?
संतुलित आहार के लिए साबुत अनाज, दालें, सब्जियाँ और फल ज्यादा खाने चाहिए। स्वस्थ जीवनशैली के लिए नियमित व्यायाम और शारीरिक गतिविधियाँ बढ़ानी चाहिए। सरकार को पोषण योजनाओं को और मजबूत बनाना चाहिए, और डॉक्टर, आहार विशेषज्ञ व जन स्वास्थ्य पेशेवरों को मिलकर इस समस्या का समाधान निकालने में योगदान देना चाहिए।
मूलभूत संकल्पनाएँ
जन स्वास्थ्य पोषण: एक परिचय
जन स्वास्थ्य पोषण (Public Health Nutrition) का उद्देश्य बड़े पैमाने पर लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना और पोषण संबंधी समस्याओं का समाधान करना है। यह क्षेत्र सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से समुदाय की पोषण समस्याओं पर काम करता है।
जन स्वास्थ्य पोषण क्या है?
यह एक बहुविषयक क्षेत्र है जो जीवन विज्ञान और सामाजिक विज्ञान पर आधारित है। इसका फोकस व्यक्तिगत पोषण के बजाय समुदाय और अतिसंवेदनशील समूहों की समस्याओं को हल करना है।
इसका लक्ष्य:
1. अच्छे पोषण को बढ़ावा देना।
2. पोषण समस्याओं की रोकथाम।
3. सरकारी योजनाओं और नीतियों का क्रियान्वयन।
भारत में पोषण संबंधी समस्याएँ
प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण (PEM) ऊर्जा और प्रोटीन की कमी के कारण होता है, जो बच्चों, बुजुर्गों और गंभीर बीमारियों जैसे टीबी और एड्स से पीड़ित लोगों को प्रभावित करता है। इसके लक्षण कम वजन और कम लंबाई हैं। भारत में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, जिसे "छिपी भूख" भी कहा जाता है, व्यापक है। लौह तत्व की कमी से अरक्तता (एनीमिया) होती है, जिसके लक्षण थकावट, पीलापन और कमजोरी हैं, और यह किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को प्रभावित करती है। विटामिन A की कमी से रतौंधी, अंधता और रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होती है, जो बच्चों की वृद्धि को भी बाधित करती है। आयोडीन की कमी से ग्वाइटर (गलगंड) और मानसिक मंदता होती है, खासकर हिमालयी क्षेत्रों में, जहां मिट्टी में आयोडीन की कमी है, जिससे गर्भ में शिशु का मानसिक विकास प्रभावित होता है।
जन स्वास्थ्य पोषण का महत्व
जन स्वास्थ्य पोषण केवल भोजन पर नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक कारकों पर भी निर्भर करता है। गरीबी पोषण समस्याओं की मुख्य जड़ है। गंदगी और असुरक्षित पानी से होने वाली बीमारियाँ पोषण को प्रभावित करती हैं। साथ ही, सरकार की कृषि और स्वास्थ्य नीतियाँ भी पोषण पर सीधा असर डालती हैं।
समाधान की दिशा में कदम
संतुलित आहार के लिए लोगों को पोषण से भरपूर खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराना जरूरी है। बच्चों और महिलाओं को पोषण के महत्व की जानकारी देने के लिए शिक्षा और जागरूकता बढ़ानी चाहिए। साथ ही, सरकारी पोषण कार्यक्रमों का सही तरीके से क्रियान्वयन करना आवश्यक है।
पोषण समस्याओं का सामना करने के लिए कार्यनीतियाँ / हस्तक्षेप
भारत में कुपोषण एक गंभीर समस्या है, जो बच्चों, गर्भवती महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों को बुरी तरह प्रभावित करती है। इसे हल करने के लिए पोषण अभियान जैसे बड़े प्रयास किए जा रहे हैं।
पोषण अभियान: समग्र पोषण की योजना
मार्च 2018 में राजस्थान के झुंझुनू से शुरू हुआ यह अभियान कुपोषण से जुड़े मुद्दों जैसे स्टंटिंग और एनीमिया को कम करने के लिए चलाया गया। इसका उद्देश्य आँगनवाड़ी सेवाओं की गुणवत्ता और उपयोगिता में सुधार करना और गर्भवती महिलाओं व बच्चों को पर्याप्त पोषण प्रदान करना है। सरकार, आँगनवाड़ी और अन्य योजनाएँ मिलकर 2022 तक कुपोषण मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए काम कर रही हैं।
प्रमुख कार्यनीतियाँ
पोषण समस्याओं के समाधान के लिए दो मुख्य दृष्टिकोण अपनाए जाते हैं। पहला, आहार आधारित दृष्टिकोण, जिसमें भोजन के माध्यम से समस्या का हल किया जाता है। यह दीर्घकालिक, किफायती और सांस्कृतिक रूप से अनुकूल होता है। उदाहरण के लिए, आहार में सब्जियाँ, अनाज और प्रोटीन शामिल करना, घरेलू बागवानी से पोषक तत्व बढ़ाना, और आयोडीन युक्त नमक जैसे पुष्टिकृत खाद्य पदार्थ उपयोग करना। दूसरा, पोषण या औषधीय दृष्टिकोण, जिसमें संवेदनशील समूहों, जैसे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को विटामिन A और आयरन जैसी खुराक दी जाती है। यह अल्पकालिक समाधान के लिए उपयोगी है, लेकिन महँगा है और दीर्घकालिक नहीं।
भारत में पोषण सुधार के लिए चल रही योजनाएँ
भारत में पोषण सुधार के लिए कई योजनाएँ चल रही हैं। एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS) 0-6 साल के बच्चों और गर्भवती व स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए हैं। मध्याह्न भोजन कार्यक्रम स्कूली बच्चों को पोषणयुक्त भोजन प्रदान करता है। जन वितरण प्रणाली (PDS) गरीब परिवारों को सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराती है। राष्ट्रीय आयोडीन हीनता विकार नियंत्रण कार्यक्रम आयोडीन युक्त नमक के उपयोग को बढ़ावा देता है। अंत्योदय अन्न योजना गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को सस्ता भोजन उपलब्ध कराती है।
स्वास्थ्य देखभाल की भूमिका
पोषण सुधार में स्वास्थ्य देखभाल की अहम भूमिका है, जो तीन स्तरों पर काम करती है। प्राथमिक स्तर पर गाँव और समुदाय में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) काम करते हैं। द्वितीयक स्तर पर जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र आते हैं। तृतीयक स्तर पर मेडिकल कॉलेज, क्षेत्रीय और विशिष्ट अस्पताल पोषण सुधार में योगदान देते हैं।
कार्यक्षेत्र
जन पोषण विशेषज्ञ, जिन्हें सामुदायिक पोषण विशेषज्ञ भी कहा जाता है, का काम स्वास्थ्य को बेहतर बनाना और बीमारियों को रोकना है। बदलते स्वास्थ्य परिदृश्य के साथ इनकी भूमिका और भी अहम हो गई है।
जन पोषण विशेषज्ञ कहां काम कर सकते हैं?
स्वास्थ्य देखभाल और पोषण सुधार के लिए कई प्रयास किए जाते हैं। इसमें स्वास्थ्य संवर्धन और बीमारी रोकने के कार्यक्रमों में भाग लेना और पोषण से जुड़ी शिक्षा व जागरूकता फैलाना शामिल है। राष्ट्रीय बाल विकास सेवाएँ (ICDS) छोटे बच्चों और महिलाओं के पोषण कार्यक्रमों का हिस्सा हैं। सरकारी योजनाओं में परामर्शदाता या नीति निर्माण में योगदान और विकास कार्यक्रमों का प्रबंधन शामिल है। अंतरराष्ट्रीय और गैर-सरकारी संस्थाएँ जैसे यूनिसेफ, पोषण इंटरनेशनल और यूएसएआईडी बड़े पैमाने पर पोषण कार्यक्रम लागू करती हैं। बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं, वृद्धों और अशक्तजनों के लिए विशेष पोषण योजनाएँ चलाई जाती हैं। स्कूलों में स्वास्थ्य परामर्शदाता के रूप में विद्यालय स्वास्थ्य कार्यक्रम और कमजोर वर्गों के लिए कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (CSR) के तहत खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रोजेक्ट्स पर भी काम किया जाता है।
अन्य अवसर
पोषण के क्षेत्र में शिक्षा और शोध के जरिए पोषण विषय पढ़ाना, शोध करना, और जागरूकता अभियान के लिए संसाधन तैयार करना शामिल है। साथ ही, स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े नए व्यवसाय शुरू करके उद्यमिता के अवसर भी बढ़ाए जा सकते हैं।