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कार्य, आजीविका तथा जीविका Notes in Hindi Class 12 Home Science Chapter-1 Book 1

कार्य, आजीविका तथा जीविका Notes in Hindi Class 12 Home Science Chapter-1 Book 1




कार्य

कार्य उन सभी आवश्यक गतिविधियों का समूह है, जो किसी उद्देश्य या आवश्यकता की पूर्ति के लिए की जाती हैं। यह वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है और समाज में अपनी पहचान बनाता है।

उदाहरण :-

  • एक विद्यार्थी का कार्य पढ़ाई करना है, ताकि वह परीक्षा में सफल हो सके।
  • एक किसान का कार्य फसल उगाना है, ताकि वह अन्न का उत्पादन कर सके।
  • एक डॉक्टर का कार्य मरीजों का इलाज करना है, ताकि लोग स्वस्थ रहें।

कार्य  के उद्देश्य

1. रोजगार का साधन: कार्य आजीविका का स्रोत है। जैसे, शिक्षक वेतन पाकर परिवार का भरण-पोषण करता है।

2. पहचान और स्वाभिमान: कार्य से सामाजिक पहचान और सम्मान मिलता है। जैसे, डॉक्टर की प्रतिष्ठा।

3. आनंद और संतुष्टि: कार्य में रुचि से मानसिक संतोष मिलता है। जैसे, बागवानी प्रेमी पौधों की देखभाल कर खुश होता है।

4. पद, शक्ति और नियंत्रण: कार्य से पद और जिम्मेदारी मिलती है। जैसे, पुलिस अधिकारी का कानून का पालन कराना।

5. स्व-विकास और सृजन: कार्य से कौशल और रचनात्मकता में निखार आता है। जैसे, डेवलपर नई तकनीकों पर काम करता है।

6. आध्यात्मिक आचरण और कर्तव्य: कार्य धर्म और कर्तव्य की पूर्ति करता है। जैसे, पुजारी पूजा-पाठ कर धार्मिक आचरण निभाता है।

7. आर्थिक लाभ: कार्य से आर्थिक संपन्नता मिलती है। जैसे, व्यवसायी मुनाफा कमाता है।

8. प्रतिभा और रचनात्मकता: कार्य से कला और कौशल का प्रदर्शन होता है। जैसे, डांसर स्टेज पर नृत्य करता है।

कार्य को प्रभावित करने वाले कारक 

1. शिक्षा: उच्च शिक्षा से बेहतर कार्य और वेतन मिलता है। जैसे, सॉफ्टवेयर इंजीनियर की उच्च आय।

2. स्वास्थ्य: अच्छा स्वास्थ्य कार्य क्षमता बढ़ाता है। जैसे, स्वस्थ खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करता है।

3. आयु व लिंग: आयु और लिंग से कार्य का प्रकार बदलता है। जैसे, युवा शारीरिक कार्य में सक्षम होते हैं।

4. अवसर की सुलभता: महानगरों में अधिक करियर अवसर, छोटे कस्बों में सीमित विकल्प।

5. भौगोलिक स्थिति: क्षेत्र विशेष के आधार पर कार्य बदलता है। जैसे, पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यटन आधारित कार्य।

6. वित्तीय लाभ: उच्च वेतन वाली नौकरियाँ आकर्षक होती हैं। जैसे, कॉर्पोरेट जॉब में अधिक वेतन।

7. पारिवारिक पृष्ठभूमि: परिवार का समर्थन कार्य चयन को प्रभावित करता है। जैसे, व्यापारिक परिवार में व्यवसाय की ओर झुकाव।


अर्थपूर्ण कार्य 

  • अर्थपूर्ण कार्य वह है जो समाज और लोगों के लिए उपयोगी हो, जिम्मेदारी से किया जाए और आनंददायक हो।
  • यह आत्मविश्वास बढ़ाता है, व्यक्तिगत विकास में सहायक होता है और समाज में सकारात्मक बदलाव लाता है। उदाहरण : पर्यावरण संरक्षण, सेवा कार्य, शिक्षा का प्रसार, सामाजिक नेतृत्व, समुदाय विकास, रोजगार सृजन।


कार्य , जीविका, आजीविका 

  • कार्य : वे गतिविधियाँ जिनका निश्चित परिणाम हो, जैसे नौकरी, व्यवसाय, धार्मिक और सामाजिक कार्य।
  • जीविका : वो साधन जिससे व्यक्ति अपनी जरूरतें पूरी करता है, जैसे नौकरी या व्यवसाय। इसमें नए कौशल सीखना और क्षमता बढ़ाना शामिल है।
  • आजीविका : नौकरी या व्यवसाय से कमाया गया धन, जिससे अपनी और परिवार की बुनियादी जरूरतें पूरी होती हैं।


जीविका और आजीविका में अंतर

1. जीविका (Career):

जीविका का मतलब है केवल नौकरी ही नहीं, बल्कि खुद के विकास और खुशी का भी ध्यान रखना।

  • इसमें व्यक्ति अपने काम में आनंद लेता है।
  • नए कौशल सीखता है और जानकारी बढ़ाता है।
  • अपने क्षेत्र में खुद को बेहतर साबित करने की कोशिश करता है।

2. आजीविका (Job):

आजीविका का मतलब है वह काम (नौकरी या व्यवसाय) जिससे हम पैसा कमाते हैं और अपनी जरूरतें पूरी करते हैं।


जीविका के चुनाव से पहले खुद से पूछे जाने वाले सवाल 

जब भी करियर (जीविका) चुनें, तो खुद से ये सवाल जरूर पूछें:

  • मेरी खासियत क्या है?
  • मेरी प्रतिभाएँ, विशेषताएँ और कमजोरियाँ क्या हैं?
  • क्या यह व्यवसाय मेरे लिए सही है?
  • क्या यह काम मेरे व्यक्तित्व और कौशल के लिए उपयोगी है?
  • क्या यह काम मुझे प्रेरित और उत्साहित करता है?
  • क्या इसमें चुनौतियाँ हैं जो मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं?
  • काम की जगह का माहौल कैसा है?
  • क्या वहां का वातावरण और कार्य संस्कृति मुझे पसंद है?


भारत के पारंपरिक व्यवसाय 

पारंपरिक व्यवसाय वे व्यवसाय हैं जो प्राचीन काल या सदियों से चले आ रहे हैं और जो देश की संस्कृति और कला का परिचय कराते हैं।

1. कृषि कार्य:

  • भारत की 70% जनसंख्या गाँवों में रहती है और कृषि पर निर्भर है।
  • नकदी फसलें (चाय, कॉफी, इलायची, रबर) विदेशी मुद्रा कमाने में सहायक हैं।
  • भारत काजू, नारियल, दूध, अदरक, हल्दी और काली मिर्च के उत्पादन में अग्रणी है।

2. मछली पकड़ना:

  • लंबी तट रेखा के कारण मछली पकड़ना महत्वपूर्ण व्यवसाय है।
  • तटीय इलाकों के लोग आजीविका के लिए इस पर निर्भर हैं।

3. हस्तशिल्प (Handicrafts)

अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के हस्तशिल्प और कलाएँ बहुत लोकप्रिय हैं।

प्रमुख हस्तशिल्प:

  • उड़ीसा: शोलाशिल्प
  • कर्नाटक: चंदन की मूर्तियाँ
  • महाराष्ट्र: वारली चित्रकला
  • राजस्थान: कठपुतली शिल्प
  • केरल: नारियल शिल्प
  • आसाम: बांस शिल्प

4. बुनाई और कशीदाकारी उद्योग 

  • भारत में बुनाई एक महत्वपूर्ण कुटीर उद्योग है।
  • हर राज्य की अपनी विशेष बुनाई और कढ़ाई शैली होती है, जो वहाँ की जलवायु और जीवनशैली के अनुसार होती है।
  • इन कारीगरियों में विशिष्ट वस्त्र और परंपरागत परिधान बनाए जाते हैं।


भारतीय पाक प्रणाली (Indian Culinary System)

भारतीय पाक प्रणाली एक विशाल और विविधतापूर्ण व्यवसायिक क्षेत्र है, जिसमें सड़क पर भोजन बेचने से लेकर पाँच सितारा होटलों तक का समावेश है।

रोजगार का साधन:

सड़क किनारे फूड स्टॉल:

  • जैसे, गोलगप्पे, चाट, समोसे बेचने वाले।
  • छोटे निवेश में भी अच्छी आय का साधन।

पाँच सितारा होटल:

  • जैसे, ताज होटल, ओबेरॉय होटल।
  • उच्च गुणवत्तापूर्ण भोजन और सेवा प्रदान करते हैं।

रेस्टोरेंट और ढाबे:

  • जैसे, पंजाबी ढाबे या साउथ इंडियन रेस्टोरेंट।
  • स्वादिष्ट पारंपरिक भोजन के लिए प्रसिद्ध।

अंतरराष्ट्रीय मांग:

मिर्च मसाले:

  • भारत के पारंपरिक मिर्च और मसालों की विदेशों में बड़ी माँग है।
  • जैसे, राजस्थानी लाल मिर्च, कश्मीरी मिर्च।

भारतीय व्यंजन:

  • भारतीय करी, नान, और बिरयानी जैसे व्यंजन विदेशी रेस्तरां में बेहद लोकप्रिय हैं।

पारंपरिक व्यंजन:

  • जैसे, इडली, डोसा, परांठा – जो विदेशों में भी मशहूर हैं।


चित्रण कला (Indian Visual Art)

  • भारतीय चित्रण कला प्राचीन और समृद्ध परंपरा का हिस्सा है। यह कला देश की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती है और विभिन्न कालों में राजाओं और धार्मिक स्थलों द्वारा संरक्षण प्राप्त करती रही है।
  • भारत में कलाकारों और शिल्पकारों को बड़े हिंदू मंदिरों और राजाओं द्वारा संरक्षण प्राप्त था।

उदाहरण :

1. अजन्ता और एलोरा की गुफाएँ:

  • यहाँ भित्ति चित्रों और मूर्तियों का सुंदर संयोजन है।

2. खजुराहो के मंदिर:

  • वास्तुकला और शिल्पकला का अद्भुत नमूना।

चोल राजाओं द्वारा निर्मित तंजावुर मंदिर:

  • नटराज प्रतिमा और कांस्य मूर्तियाँ।


2. धार्मिक और वास्तुकला शैली:

भारत के विभिन्न धार्मिक स्थलों पर वास्तुकला की विभिन्न शैलियाँ देखने को मिलती हैं।

1. रंगों द्वारा चित्रित प्रतिमाएँ:

दक्षिण भारत के मंदिरों में देवी-देवताओं की रंगीन मूर्तियाँ।

2. पत्थरों पर कुशलता से गढ़ी प्रतिमाएँ:

कांचीपुरम और महाबलीपुरम के शिल्प।

3. चाँदी, टेराकोटा और लकड़ी की प्रतिमाएँ:

  • कश्मीरी शिल्प में चाँदी के बर्तन और देव प्रतिमाएँ।
  • पश्चिम बंगाल की टेराकोटा मूर्तियाँ।
  • राजस्थान के लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे।


अन्य परंपरागत व्यवसाय 

भारत में कुछ अन्य परंपरागत व्यवसाय भी हैं, जो लंबे समय से चलते आ रहे हैं:

  • आभूषण बनाना: पारंपरिक गहनों का निर्माण।
  • पुजारी का कार्य: धार्मिक अनुष्ठान और पूजा करना।
  • नमक बनाना: समुद्री नमक और खनिज नमक उत्पादन।
  • खनन कार्य: ईंट और टाइल बनाने का काम।
  • शिकार करना: पक्षी और जानवर पकड़ना (प्राचीन समय में)।

ये परंपरागत व्यवसाय भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक धरोहर का हिस्सा हैं, जो पुराने समय से समुदायों की आजीविका का स्रोत रहे हैं।

परंपरागत व्यवसायों के लुप्त होने के कारण

भारतीय समाज में परंपरागत व्यवसायों का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। लेकिन आधुनिकता, औद्योगीकरण और सामाजिक बदलाव के कारण ये व्यवसाय धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं। आइए इन कारणों को विस्तार से समझें।

1. निष्क्रियता: परंपरागत व्यवसायों की सुरक्षा के लिए उचित नीतियों और योजनाओं का अभाव।

2. आर्थिक पिछड़ापन: आर्थिक तंगी और वित्तीय सहायता के अभाव में परंपरागत व्यवसाय स्थिर नहीं रह पाते।

3. अपर्याप्त वित्तीय व विपणन सेवाएँ: व्यवसायों को वित्तीय मदद और बाजार में अपनी पहचान बनाने के लिए आवश्यक सहायता न मिलना।

4. वन-आधारित संसाधनों की कमी: वन उत्पादों पर निर्भर व्यवसाय संसाधनों की कमी से प्रभावित।

5. भूमि सुधार में धीमी प्रगति: कारीगरों को परंपरागत भूमि से वंचित होना।

6. पर्यावरणीय निम्नीकरण: कच्चे माल की उपलब्धता में कमी।

7. ललित कलाओं में रुचि की कमी: सस्ती और आधुनिक वस्तुओं के प्रति झुकाव।

परंपरागत व्यवसायों में सुधार की आवश्यकता के कारण

  • कारीगरों को नई तकनीकों और आधुनिक विधियों का प्रशिक्षण दें।
  • उत्पादों को आधुनिक स्वरूप देकर उनकी आकर्षकता बढ़ाएँ।
  • पर्यावरण अनुकूल कच्चे माल का उपयोग करें।
  • सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा प्रोत्साहन नीतियाँ बनें।

परंपरागत व्यवसायों में सुधार के तरीके

  • तकनीकी प्रशिक्षण: कारीगरों को आधुनिक तकनीक और विधियों का प्रशिक्षण दें।
  • आधुनिक स्वरूप: उत्पादों को आधुनिक और आकर्षक बनाकर उनकी बाजार मांग बढ़ाएँ।
  • पर्यावरण अनुकूल कच्चा माल: ऐसे कच्चे माल का उपयोग करें जो पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाए।
  • सरकारी प्रोत्साहन: सरकार और संगठनों द्वारा संरक्षण और प्रोत्साहन नीतियाँ बनें।
  • ब्रांडिंग और पैकेजिंग: उत्पादों को आकर्षक और टिकाऊ पैकेजिंग में प्रस्तुत करें।
  • ज्ञान और कारीगरी का संरक्षण: पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण कर दुरुपयोग से बचाव करें।
  • डिजिटलीकरण: परंपरागत दस्तावेज़ों और कला का डिजिटलीकरण कर संरक्षित करें।


1. कार्य, आयु और जेंडर 

  • कार्यस्थल पर कार्य, आयु और जेंडर का गहरा प्रभाव होता है। काम के प्रकार का चयन करते समय इन कारकों को ध्यान में रखना आवश्यक है ताकि किसी के स्वास्थ्य या सामाजिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
  • कार्यस्थल पर आयु और लिंग का प्रभाव: युवा ऊर्जा लाते हैं, वरिष्ठ अनुभव और महिलाएँ कभी-कभी सीमित भूमिकाओं में देखी जाती हैं।
  • समाज और दृष्टिकोण पर प्रभाव: युवाओं को गतिशील माना जाता है, वरिष्ठों को मार्गदर्शक और महिलाओं को घरेलू भूमिका में सीमित समझा जाता है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: बच्चों, वृद्धों और गर्भवती महिलाओं को भारी श्रम कार्य देना स्वास्थ्य के लिए जोखिमपूर्ण होता है।

कार्य के संबंध में जेंडर मुद्दे

1. लिंग का वर्गीकरण और पहचान:

  • मानव जाति को मुख्यतः पुरुष और महिला में बांटा गया है।
  • भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी है।
  • लिंग का वर्गीकरण जैविक और सामाजिक पहचान पर आधारित होता है।

2. सेक्स और जेंडर का संबंध:

  • सेक्स: जैविक विशेषताएँ (पुरुष/महिला)।
  • जेंडर: समाज द्वारा निर्धारित भूमिकाएँ।

उदाहरण:

पुरुष = बाहरी काम,

महिला = घरेलू जिम्मेदारी।

3. समाज में जेंडर आधारित व्यवहार:

समाज और संस्कृति यह तय करते हैं कि कौन सा जेंडर क्या काम करेगा।

पारंपरिक सोच:

  • पुरुष: कमाने वाला,
  • महिला: घर संभालने वाली।

आधुनिक बदलाव:

  • महिलाएँ कार्यक्षेत्र में भी सक्रिय।

4. धर्म और पारिवारिक व्यवस्था में जेंडर:

  • पारंपरिक दृष्टिकोण में पुरुष परिवार का मुखिया होता है।
  • अब महिलाएँ भी निर्णय प्रक्रिया में भाग ले रही हैं।

5. महिलाओं का आर्थिक योगदान:

  • घरेलू कार्यों को भी आर्थिक दृष्टि से मान्यता देने की आवश्यकता है।
  • गृहिणी का योगदान भी महत्त्वपूर्ण।

6. महिलाओं की दोहरी भूमिका:

  • महिलाएँ अब घर और कार्यस्थल दोनों में सक्रिय।
  • घर और नौकरी के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण।


समाज में स्त्री/पुरुष की अपेक्षित भूमिकाएँ

स्त्री

  • परिवार की देखभाल करने वाली
  • घर चलाने वाली
  • धन अर्जित करने में पुरुष की सहायता
  • बच्चों पालन करने वाली
  • घरेलू निर्णय हेतु पुरुष पर निर्भर

पुरुष

  • घर का मुखिया
  • आर्थिक स्वतंत्रता
  • निर्णायक


महिला सशक्तिकरण के प्रयास

(क) समाज व परिवार द्वारा:

  • शिक्षा से आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास और जागरूकता बढ़ती है, जिससे महिलाएँ अधिकारों के प्रति सजग होती हैं।
  • महिलाओं को परिवार के आर्थिक और सामाजिक निर्णयों में शामिल करना, जिससे आत्म-सम्मान और निर्णय क्षमता में वृद्धि हो।
  • महिलाओं को उच्च पदों पर काम करने के अवसर देकर करियर और आर्थिक स्थिति मजबूत बनाना।
  • घरेलू कार्यों को भी आर्थिक योगदान के रूप में मान्यता देकर महिलाओं के श्रम का सम्मान करना।
  • परिवार के सभी सदस्यों को घरेलू कार्यों में भागीदार बनाकर महिलाओं पर बोझ कम करना।

(ख) सरकार द्वारा:

  • समान रोजगार और वेतन का प्रावधान (अनुच्छेद 16(1)।
  • फैक्ट्री अधिनियम (1948) के तहत महिलाओं की सुरक्षा और सुविधाएँ।
  • राष्ट्रीय प्रगति अधिनियम (NPA) और समान पारिश्रमिक अधिनियम (ERA) के तहत समान वेतन।
  • सुरक्षित और आरामदायक माहौल, यौन उत्पीड़न से सुरक्षा कानून।
  • महिलाओं के श्रम से जुड़ी समस्याओं का समाधान और कौशल विकास।
  • खदान अधिनियम (1952) और कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम (ESI) के तहत सुरक्षा।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के रोजगार में सुधार और भागीदारी सुनिश्चित करना।


कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (K.G.B.V.)  

  • इस योजना की शुरुआत 2004 में "सर्व शिक्षा अभियान" (SSA)/"समग्र शिक्षा" के तहत की गई थी।
  • यह योजना भारत सरकार के "शिक्षा का अधिकार कानून" (RTE) को लागू करने में मदद करती है।
  • के.जी.बी.वी. में नामांकित सभी लड़कियों को प्रवेश स्तर के लिए एक विशेष पाठ्यक्रम (ब्रिज कोर्स) कराया जाता है।
  • के.जी.बी.वी. में प्रवेश की शुरुआत कक्षा 6 से होती है और अब इस योजना को कक्षा 12 तक बढ़ा दिया गया है।

लाभार्थी:

  • अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग की बालिकाएँ।
  • गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की वे बालिकाएँ जो शिक्षा से वंचित रहीं।

उद्देश्य:

  • विषम परिस्थितियों में जीवन यापन करने वाली लड़कियों के लिए सुरक्षित शिक्षा माहौल।
  • BPL परिवार की लड़कियों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना।
  • बालिका शिक्षा दर में वृद्धि करना।
  • आर.टी.ई. (RTE) को सफलतापूर्वक लागू करना।


बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना (BBBP) 

22 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हरियाणा (पानीपत) से शुरू की गई।

तीन मंत्रालयों के सहयोग से कार्यान्वित:

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
  • स्वास्थ्य मंत्रालय और परिवार कल्याण मंत्रालय
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय

उद्देश्य:

  • लिंग अनुपात में सुधार: कन्या भ्रूण हत्या को रोकना।
  • शिक्षा में सुधार: बालिकाओं की शिक्षा को सुगम बनाना।
  • सुरक्षा और सशक्तिकरण: बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा और सशक्तिकरण।
  • समाज में जागरूकता: लिंग भेदभाव और कन्या हत्या के खिलाफ जन-जागरूकता बढ़ाना।
  • बालिकाओं की भागीदारी: जीवन के हर क्षेत्र में बेटियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना।


महिला सशक्तिकरण कुछ और प्रयास 

1. किरण मजूमदार शा 

  • किरण मजूमदार शा (बायोकॉन इंडिया लिमिटेड की अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक) एक प्रभावशाली उद्यमी महिला हैं।
  • उन्होंने बायोकॉन को एक प्रमुख जैव प्रौद्योगिकी कंपनी के रूप में स्थापित किया।
  • 1978 में उद्योग पुरस्कार और 1989 में पद्म श्री से सम्मानित।
  • 2005 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।

2. संगठित प्रयास सेवा (SEWA)

  • 1959 में महिलाओं द्वारा शुरू किया गया संगठन, महिलाओं को स्वरोजगार और रोजगार के अवसर प्रदान करता है।
  • पूरे भारत में हजारों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार।
  • ग्रामीण उद्योग जैसे कढ़ाई, मसाला उद्योग, डिस्ट्रेक्ट्स, चपाती, और अन्य उत्पादों में सक्रिय योगदान।


कार्य के प्रति मनोवृत्तियाँ और दृष्टिकोण 

1. मनोवृत्ति का महत्व:

कार्य के प्रति हमारी सोच ही कार्य के प्रति हमारा दृष्टिकोण तय करती है।

2. संतोष और असंतोष का प्रभाव:

नौकरी से संतोष या असंतोष का अनुभव व्यक्ति की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डालता है।

3. कार्य का दृष्टिकोण:

जब व्यक्ति कार्य (नौकरी) को सीखने और विकास के अवसर के रूप में देखता है, तो संतोष बढ़ता है।

4. जीवन गुणवत्ता पर प्रभाव:

कार्य के प्रति दृष्टिकोण जीवन की गुणवत्ता और संतोष को प्रभावित करता है।

(क) सकारात्मक दृष्टिकोण का प्रभाव:

सकारात्मक सोच → कार्य में संतोष → जीवन की गुणवत्ता में सुधार।

(ख) नकारात्मक दृष्टिकोण का प्रभाव:

नकारात्मक सोच → असंतोष → जीवन की गुणवत्ता में गिरावट।


आजीविका के लिए जीवन कौशल 

  • जीवन कौशल का महत्व: जीवन कौशल वे क्षमताएँ हैं जो व्यक्ति को जीवन की दैनिक आवश्यकताओं और चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम बनाती हैं।
  • उपयोगिता: ये कौशल जीवन पर्यंत काम आते हैं और विपरीत परिस्थितियों से उबरने में मदद करते हैं।
  • स्वास्थ्य और विकास: लोगों के स्वास्थ्य और व्यक्तिगत विकास में प्रोत्साहन देते हैं।, सकारात्मक स्वास्थ्य, व्यवहार और नकारात्मक प्रवृत्तियों की रोकथाम में सहायक।
  • सामाजिक योगदान: समुदाय और समाज के विकास में योगदान देने के लिए आवश्यक हैं।
  • अधिगम: इन कौशलों को अभ्यास और अनुभव से सीखा जा सकता है।
  • व्यावहारिक प्रभाव: ज्ञान, अभिप्रेरणा और मूल्यों का संयोजन जीवन कौशल को सशक्त बनाता है।


विशेषज्ञों द्वारा पहचाने गए दस जीवन कौशल 

  • स्वजागरूकता : अपनी क्षमताओं और कमजोरियों को पहचानना।
  • संप्रेषण : प्रभावी ढंग से विचारों और भावनाओं को व्यक्त करना।
  • निर्णय लेना : सोच-समझकर और तर्कसंगत निर्णय करना।
  • सृजनात्मक चिंतन: नई और अनूठी समस्याओं का समाधान खोजने की क्षमता।
  • मनोभावों से जुड़ना: अपनी और दूसरों की भावनाओं को समझना।
  • परानुभूति: दूसरों की भावनाओं और दृष्टिकोण को महसूस करना।
  • अंतरव्यक्तिगत संबंध : सकारात्मक और सहायक संबंध बनाने की क्षमता।
  • समस्या सुलझाना : समस्याओं का तार्किक और व्यावहारिक समाधान निकालना।
  • आलोचनात्मक चिंतन : स्थिति और जानकारी का गहराई से विश्लेषण करना।
  • तनाव से जूझना : तनावपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता।


कार्य स्थल पर आवश्यक प्रक्रिया कौशल 

  • पर्याप्त ज्ञान, कौशल, अनुभव, जोश और प्रवीणता से कार्य में उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
  • प्रभावी ढंग से सीखने के लिए कार्य क्षेत्र के उपकरणों और नीतियों का ज्ञान, नवीनतम जानकारी का अद्यतन, तथा मेहनत और लगन से आवश्यक कौशल में निपुणता आवश्यक है।
  • विचारों और जानकारियों को प्रभावी ढंग से साझा करना।
  • सहयोग और टीम भावना से कार्य में सफलता।
  • नवीन विचारों का सृजन और आलोचनात्मक मूल्यांकन।
  • कार्य के प्रति पूर्ण ध्यान और सतर्कता बनाए रखना।


सुकार्थिकी / एर्गोनॉमिक्स / श्रम दक्षता शास्त्र

  • एर्गोनॉमिक्स दो ग्रीक शब्दों से बना है : "Ergon" (काम) + "Nomics" (प्राकृतिक नियम)।
  • इसे मानव कारक अभियांत्रिक भी कहा जाता है।

संबंध:

सुकार्थिकी का मुख्य उद्देश्य मानव और मशीन के बीच सामंजस्य स्थापित करना है।

उद्देश्य:

  • कार्यस्थल तथा वहां उपयोग की जाने वाली मशीनों एवं उपकरणों को इस प्रकार डिजाईन किया जाता है की उन्हें प्रयोग करने वाले तनाव और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना न करें |
  • सुकार्यिकी के सिद्धांत के अनुसार  कुर्सी की ऊंचाई और स्टैंड कार्य करने वाले व्यक्ति की ऊंचाई और उसके शरीर के अनुसार हो 
  • कुर्सी की टांगें ऐसी होनी चाहिए ताकि व्यक्ति गिरे नहीं | 

सुकार्थिकी (एर्गोनॉमिक्स) के लाभ

  • कार्य प्रक्रिया में सुधार से उत्पादन क्षमता में वृद्धि।
  • सुरक्षित उपकरण और अनुकूल कार्यस्थल से दुर्घटनाओं में कमी।
  • कार्यस्थल को अनुकूल बनाने से मानवीय त्रुटियों में कमी।
  • कार्य को सरल और आरामदायक बनाने से दक्षता में सुधार।
  • कार्यस्थल पर आराम और अनुकूलन से मानसिक और शारीरिक तनाव में कमी।
  • आरामदायक माहौल से मनोबल और कार्य संतुष्टि में वृद्धि।
  • बेहतर कार्य परिस्थितियों से कर्मचारियों में संतुष्टि और जुड़ाव बढ़ता है।

सुकार्थिकी (श्रम दक्षता शास्त्र) के प्रभावी उत्पादकता उपकरण 

सुकार्थिकी एक प्रभावी उत्पादकता उपकरण है

  • कार्यस्थल डिज़ाइन: कार्यस्थल को कर्मचारियों की सुविधा के अनुसार व्यवस्थित करना।
  • कार्य विधि का डिज़ाइन: कार्य को सरल और प्रभावी बनाने के लिए कार्य प्रक्रिया का अनुकूलन।
  • उपकरण डिज़ाइन: उपयोग में आसान और सुरक्षित उपकरणों का चयन।
  • सुविधाएँ: कर्मचारियों के आराम और सुरक्षा के लिए आवश्यक सुविधाओं का प्रावधान।
  • पर्यावरण: कार्यस्थल का वातावरण स्वस्थ, सुरक्षित और उत्पादक बनाना।


उद्यमिता (Entrepreneurship)

उद्यमिता एक नया और नवप्रवर्तक उद्यम, उत्पाद या सेवा स्थापित करने की प्रक्रिया है।

उद्यमी कौन है?

वह व्यक्ति जो नए उत्पाद या सेवा को व्यवसाय के रूप में स्थापित करता है।

1. उद्यमी के गुण: नवप्रवर्तक, रचनात्मक, सुव्यवस्थित और जोखिम उठाने की क्षमता रखने वाला व्यक्ति।

2.संसाधन प्रबंधन: उद्यमी संसाधनों को कुशलता और बुद्धिमानी से जुटाकर आजीविका के लक्ष्य को प्राप्त करता है।

3.संस्थाओं का पुनर्निर्माण: उद्यमी नए संगठनों की शुरुआत या पुराने संगठनों का पुनर्जीवन करता है।

उद्यमियों के लक्षण 

  • कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प।
  • विचारों को कार्य में बदलने की क्षमता।
  • वित्त, सामग्री, व्यक्तियों और समय का कुशल प्रबंधन।
  • अनिश्चितता में भी निर्णय लेने की क्षमता।
  • बहु-कार्यशीलता का गुण।
  • विचारों और योजनाओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना।
  • समस्याओं से निपटने और समाधान खोजने की क्षमता।
  • चुनौतियों और असफलताओं का सामना करने का साहस।
  • वास्तविक परिस्थितियों को स्वीकार करना और उचित समाधान ढूंढना।
  • सफलता और विफलता दोनों में संतुलन बनाए रखना।

प्रमुख उदाहरण:

श्री नारायण मूर्ति, जे. आर. डी. टाटा, किरण मजूमदार शा, धीरू भाई अंबानी।


सामाजिक उद्यमिता  

  • सामाजिक उद्यमिता अच्छे सामाजिक कार्य करने पर केंद्रित होती है।
  • लक्ष्य समूह: कमजोर, अपेक्षित और वंचित समूहों के लिए कार्य करना।
  • उद्देश्य: मूलभूत सामाजिक परिवर्तनों और सुधारों का सृजन।
  • कार्य क्षेत्र: शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, पर्यावरण, कला या कोई अन्य सामाजिक सुधार।
  • सफलता का मापदंड: सामाजिक लाभ और प्रभाव से सफलता का आकलन किया जाता है।


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