गलता लोहा Chapter-5 Class 11 Book-Aroh Chapter Summary
0Team Eklavyaदिसंबर 19, 2024
गलता लोहा
प्रस्तावना
"गलता लोहा" एक संवेदनशील और मार्मिक कहानी है, जिसमें जातिगत भेदभाव, सामाजिक संरचना, और व्यक्तिगत संघर्ष के माध्यम से भारतीय ग्रामीण समाज की जटिलताओं को दर्शाया गया है। कहानी मोहन और धनराम के बचपन से लेकर उनके वर्तमान जीवन तक की घटनाओं और उनके बीच के संबंधों को लेकर आगे बढ़ती है।
मोहन का संघर्ष
मोहन एक पुरोहित परिवार से आता है, जहाँ उसके पिता वंशीधर तिवारी की इच्छा थी कि वह पढ़-लिखकर परिवार की गरीबी को दूर करे। शुरुआती शिक्षा में कुशाग्र मोहन को शिक्षक त्रिलोक सिंह मास्टर का प्रोत्साहन मिला, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए उसे सामाजिक और आर्थिक बाधाओं का सामना करना पड़ा। शहर जाकर मोहन को रमेश के घर में रहना पड़ा, जहाँ उसे घरेलू नौकर जैसा व्यवहार सहना पड़ा।
धनराम का संघर्ष
धनराम एक लोहार परिवार से आता है और जातिगत हीनता से ग्रस्त है। पढ़ाई में कमजोर होने के कारण उसे अपने पिता गंगाराम की विरासत सँभालनी पड़ी, और वह लोहार का काम करने लगा। जातिगत भेदभाव और शिक्षा की कमी ने धनराम को मोहन जैसा बनने का अवसर नहीं दिया।
और सामाजिक भेदभाव
बचपन में मोहन और धनराम एक ही स्कूल में पढ़ते थे। धनराम मोहन के प्रति आदर और स्नेह रखता था, लेकिन जातिगत भेदभाव ने उनके संबंधों के बीच एक दूरी बनाए रखी।
मोहन और धनराम का पुनर्मिलन
मोहन अपने हँसुवे की धार तेज कराने के लिए धनराम के पास जाता है, जहाँ दोनों बचपन की यादों को साझा करते हैं। वे त्रिलोक सिंह मास्टर की सख्ती और स्कूल की घटनाओं को याद कर खूब हँसते हैं। मोहन लोहार के काम में रुचि लेते हुए धनराम की मदद करता है और लोहे के छल्ले को सुघड़ गोलाई में ढालता है।
जातिगत मान्यताओं का टूटना
सामान्यतः ब्राह्मण टोले के लोग शिल्पकार टोले में बैठकर काम नहीं करते, लेकिन मोहन न केवल वहाँ बैठता है, बल्कि काम में भी हस्तक्षेप करता है। उसका लोहे को गढ़ने में सहज भाग लेना सामाजिक और जातिगत भेदभाव को सीधी चुनौती देता है।
धनराम की प्रतिक्रिया
मोहन की कारीगरी देखकर धनराम अवाक रह जाता है। मोहन के इस अप्रत्याशित व्यवहार से वह असमंजस और संकोच में पड़ जाता है, लेकिन मोहन की आँखों में सृजन की चमक और काम के प्रति उत्साह उसे गहराई से प्रभावित करता है।
निष्कर्ष:
कहानी में मोहन और धनराम के माध्यम से जातिगत भेदभाव और सामाजिक संरचना पर सवाल उठाए गए हैं। मोहन का लोहे को गढ़ना न केवल उसके जीवन संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि यह जातिगत भेदभाव को तोड़ने और सामाजिक समानता की दिशा में उठाया गया एक कदम भी है।