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नमक का दारोगा Class 11 Chapter-1 Book-Aroh Chapter Summary



नमक का दारोगा


प्रस्तावना

कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई है और यह ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की प्रेरक कथा है। इसमें अंग्रेजों के समय नमक पर कर लगाने और ईमानदारी से अपने दायित्व निभाने की कहानी है।

मुख्य पात्र

1. मुंशी वंशीधर: एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति, जो नमक विभाग में दारोगा नियुक्त होते हैं।

2. पंडित अलोपीदीन: एक प्रभावशाली, धनी और चतुर व्यापारी, जो अवैध रूप से नमक का व्यापार करते हैं।

कहानी का आरंभ

वंशीधर के पिता उन्हें जीवन में सफलता और धन अर्जित करने के लिए यथार्थवादी शिक्षा देते हैं। उन्हें सलाह दी जाती है कि नौकरी में ऊपरी आय पर ध्यान दें, क्योंकि वेतन सीमित होता है। वंशीधर यह बातें सुनकर नौकरी की तलाश में निकलते हैं और नमक विभाग में दारोगा बन जाते हैं।

घटना का विकास

वंशीधर अपनी ईमानदारी और कार्यकुशलता से विभाग में पहचान बनाते हैं। एक रात, वह नमक से भरी गाड़ियों को नदी पार करते हुए रोकते हैं। गाड़ियाँ पंडित अलोपीदीन की होती हैं, जो अवैध रूप से नमक का व्यापार कर रहे होते हैं। वंशीधर उन्हें रोककर हिरासत में लेते हैं, भले ही पंडितजी उन्हें रिश्वत के रूप में लाखों रुपये देने का प्रस्ताव करते हैं।

चरम बिंदु

पंडित अलोपीदीन का मामला अदालत में पहुँचता है। अदालत में उनके प्रभाव और धन के बल पर उन्हें निर्दोष साबित कर दिया जाता है। वंशीधर की ईमानदारी को "नमकहलाली" कहकर निंदा की जाती है, और उन्हें उनकी कठोरता और अनुभवहीनता के लिए दोषी ठहराते हुए नौकरी से निलंबित कर दिया जाता है।

अंतिम घटना

घर लौटने पर वंशीधर को अपने पिता और परिवार से भी तिरस्कार सहना पड़ता है। लेकिन कुछ दिनों बाद पंडित अलोपीदीन स्वयं वंशीधर के घर आते हैं। उनकी ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता से प्रभावित होकर, पंडितजी उन्हें अपनी पूरी संपत्ति का मैनेजर नियुक्त करते हैं। वंशीधर अंततः उनकी पेशकश स्वीकार करते हैं।

शिक्षा:

कहानी हमें यह सिखाती है कि ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का मूल्य देर से ही सही, लेकिन समझा जाता है। कठिनाइयों के बावजूद सत्य और धर्म का पालन करना जीवन की सच्ची जीत है।

यह कहानी ईमानदारी और नैतिकता के महत्व को बड़े प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करती है।

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