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भारतेंदु हरिश्चंद भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है? Class 11 Chapter-8 Book-Antra Chapter Summary

 
भारतेंदु हरिश्चंद  भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है? Class 11 Chapter-8 Book-Antra Chapter Summary

भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है? 

  भारतेंदु हरिश्चंद  


यह निबंध भारत की उन्नति और सुधार के मार्ग पर गहराई से विचार करता है। लेखक ने सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, और शैक्षिक स्तरों पर भारत की कमजोरियों को उजागर करते हुए उन्नति के उपाय सुझाए हैं।

1. मुख्य बिंदु:

भारत की वर्तमान स्थिति

भारत की जनता को आलसी, निष्क्रिय, और आत्मगौरव से दूर माना जाता है। देश में विद्या, नीति, और कौशल का अभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जिसके कारण लोग आत्मनिर्भर होने के बजाय दूसरों पर निर्भर रहते हैं। यह स्थिति ऐसी है, जैसे एक रेलगाड़ी बिना इंजन के नहीं चल सकती। समाज में आत्मगौरव और स्वावलंबन का विकास करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सके।

भारत के पिछड़ने के कारण

भारत में शासकों और प्रभावशाली लोगों की निष्क्रियता के कारण समाज में आलस्य, निकम्मापन और अंधविश्वास का फैलाव हो गया है। देश की जनता में आत्मगौरव और एकजुटता की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, जिसके कारण वे परदेशी वस्तुओं और विचारों पर अत्यधिक निर्भर हो गए हैं। शिक्षा, रोजगार और शिष्टाचार में पिछड़ापन भी इस स्थिति को और गंभीर बना देता है, जिससे देश की प्रगति बाधित होती है। समाज को इन चुनौतियों का समाधान ढूंढ़कर आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है।

सुधार के उपाय

धर्म और नीति का समन्वय: धर्म का वास्तविक उद्देश्य समाज और व्यक्ति का उत्थान है। धर्म में व्याप्त अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों को दूर करना होगा।


शिक्षा और कौशल विकास

बच्चों को ऐसी सही शिक्षा दी जानी चाहिए, जो उन्हें आत्मनिर्भर और समाज के लिए उपयोगी बना सके। लड़कियों की शिक्षा को भी बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है, लेकिन इसे परंपराओं और मर्यादाओं के अनुरूप बनाए रखना चाहिए। इसके साथ ही, रोजगारोन्मुखी शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए, ताकि युवा अपनी क्षमताओं के आधार पर रोजगार प्राप्त कर सकें। जो छात्र उच्च शिक्षा और उन्नत ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें विलायत जाकर अपने कौशल और ज्ञान को और अधिक विकसित करने के अवसर मिलने चाहिए।

सामाजिक सुधार

जातिवाद और मत-मतांतर को समाप्त करना समाज की प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है। सभी जातियों और धर्मों को समान आदर देकर एक समतामूलक समाज की स्थापना की जानी चाहिए। मुसलमान और हिंदू मिलकर आपसी सहयोग और एकजुटता के साथ कार्य करें, ताकि सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा मिले और देश की उन्नति सुनिश्चित की जा सके। ऐसे प्रयासों से ही एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण संभव है।

आर्थिक सुधार

देश के धन को विदेशों में जाने से रोकने के लिए स्वदेशी वस्तुओं का उत्पादन और उपयोग बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए कारीगरी और उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए, ताकि स्थानीय उत्पादों की गुणवत्ता और मात्रा में वृद्धि हो सके। स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता को बल देगा, बल्कि देश के उद्योगों को सशक्त बनाएगा और रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा। यह प्रयास भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और विदेशी निर्भरता को कम करने का प्रभावी उपाय हो सकता है।

स्वदेशी आंदोलन के तहत भारतीय भाषा, वस्त्र, और कारीगरी को अपनाने पर जोर दिया जाना चाहिए, ताकि विदेशी निर्भरता को कम किया जा सके। यह आंदोलन न केवल आर्थिक स्वावलंबन को बढ़ावा देगा, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं को भी सशक्त बनाएगा। स्वदेशी वस्त्रों और कारीगरी के उपयोग से स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और देश की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। यह प्रयास राष्ट्रीय गौरव और आत्मनिर्भरता को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

सामूहिक प्रयास का महत्व

देश की उन्नति के लिए सभी वर्गों, चाहे वे राजा हों, किसान, मजदूर, व्यापारी या स्त्री-पुरुष, को मिलकर काम करना होगा। व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों के माध्यम से हर क्षेत्र में विकास के लिए योगदान देना आवश्यक है। जब समाज के सभी वर्ग एकजुट होकर अपने-अपने दायित्व निभाएंगे, तभी देश उन्नति के मार्ग पर तेज़ी से अग्रसर हो सकेगा। यह एकता और सहयोग ही राष्ट्रीय प्रगति का आधार बनेगा।

अंतिम प्रेरणा

आलस्य, हठधर्मिता, और निकम्मापन को त्यागकर कर्मशीलता और साहस को अपनाने का आह्वान किया जाना चाहिए। यह समय हर व्यक्ति के लिए आत्मसुधार और उन्नति का प्रयास करने का है। जो व्यक्ति इन प्रयासों से पीछे हटता है या उदासीन रहता है, वह अपने ही जीवन और समाज के लिए सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है। अपने और देश के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए सक्रियता और साहसिक कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है।

निष्कर्ष:

यह निबंध एक प्रेरणादायक संदेश देता है कि भारत की उन्नति तभी संभव है जब प्रत्येक व्यक्ति, जाति, और समुदाय अपने कर्तव्यों को समझकर एकजुट प्रयास करे। यह आलस्य, अज्ञानता, और आत्महीनता को त्यागकर शिक्षा, धर्म, कौशल, और स्वदेशी भावना को अपनाने पर जोर देता है। लेखक ने देशवासियों से आग्रह किया है कि वे जागरूक होकर अपने देश को उन्नति के पथ पर अग्रसर करें।




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