स्वतंत्रता Notes in Hindi Class 11 Political Science Chapter-2 Book 2 svatantrata liberty
0Team Eklavyaनवंबर 14, 2024
हमें मानव इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जब अधिक शक्तिशाली समूहों ने कुछ लोगों या समुदायों को गुलाम बनाया और उनका शोषण किया । लेकिन इतिहास हमें इन शक्तिशाली समूहों के खिलाफ शानदार संघर्षों के प्रेरणादायी उदाहरण भी देता है। इन सभी ने यह संघर्ष स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए किया था।
यह स्वतंत्रता क्या है ?
स्वतंत्रता लिए लोग अपना जीवन तक देने के लिए तैयार रहे हैं ? स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए लोगों के द्वारा किया गया संघर्ष इस आकांक्षा को दिखाता है कि वे अपने जीवन का नियंत्रण स्वयं करें तथा वह अपनी इच्छाओं और गतिविधियों को आजादी से व्यक्त करने का अवसर चाहते थे न केवल व्यक्ति बल्कि समाज भी अपनी स्वतंत्रता को महत्व देता है और यह भी चाहते कि उनकी संस्कृति और भविष्य की रक्षा हो।
लोगों के विविध हितों और आकांक्षाओं को देखते हुए किसी भी सामाजिक जीवन को कुछ नियमों और कानूनों की जरूरत होती है। यह भी हो सकता है कि इन नियमों के लिए जरूरी हो कि व्यक्ति की स्वतंत्रता की कुछ सीमाएँ तय की जाए, लेकिन यह माना जाता है कि ये सीमाएँ हमें असुरक्षा से मुक्त करती हैं और ऐसी स्थितियाँ प्रदान करती हैं जिनमें हम अपना विकास कर सकें।
स्वतंत्रता का आदर्श
नेल्सन मंडेला
नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका से थे।
इन्होने रंग भेद के खिलाफ संघर्ष किया था।
'लाँग वाक टू फ्रीडम' (स्वतंत्रता के लिए लंबी यात्रा) इनकी आत्मकथा है।
अपनी आत्मकथा में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के रंगभेदी शासन के खिलाफ अपने व्यक्तिगत संघर्ष के बारे में लिखा है।
गोरे लोगों के शासन की अलगाववादी नीतियों के खिलाफ लोगों के प्रतिरोध दक्षिण अफ्रीका के काले लोगों का अपमान और पुलिस अत्याचार के बारे में बातें की हैं।
इसी स्वतंत्रता के लिए मंडेला ने अपने जीवन के 28 वर्ष जेल की कोठरियों के अंधेरे में बिताए।
आंग सान सू की
आंग सान सू की म्यांमार से हैं
' फ्रीडम फॉर फीयर ‘ (भय से मुक्ति ) इनकी पुस्तक है
आंग सान सू की को म्यांमार में उनके घर में नजरबन्द कर दिया गया
म्यांमार में सैनिक शासन था उनके पति कैंसर से जूझ रहे थे लेकिन उन्हें उनके पति से मिलने नहीं दिया गया ।
आंग सान सू की अपनी आजादी को अपने देश के लोगों की आजादी से जोड़ कर देखती थी
भय से मुक्त हुए बिना आप गरिमापूर्ण मानवीय जीवन नहीं जी सकते।
स्वतंत्रता क्या है ?
व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबंधों का अभाव ही स्वतंत्रता है।
यदि किसी व्यक्ति पर बाहरी नियंत्रण या दबाव न हो और वह बिना किसी पर निर्भर हुए अपने निर्णय ले सके तो वह व्यक्ति स्वतंत्र माना जा सकता है।
स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्ति की आत्म-अभिव्यक्ति की योग्यता का विस्तार करना और उसके अंदर की संभावनाओं को विकसित करना भी है।
इस अर्थ में स्वतंत्रता वह स्थिति है, जिसमें लोग अपनी रचनात्मकता और क्षमताओं का विकास कर सकें।
कुछ न्यायोचित सामाजिक प्रतिबंध ?
समाज में रहने वाला कोई भी व्यक्ति हर किस्म की सीमा और प्रतिबंधों की पूर्ण अनुपस्थिति की उम्मीद नहीं कर सकता।
ऐसे में यह तय करना जरूरी हो जाता है कि कौन-से सामाजिक प्रतिबंध न्यायोचित हैं और कौन-से नहीं,किस को स्वीकार किया जा सकता है और किस को हटाया जाना चाहिए।
अभी तक हमने स्वतंत्रता को प्रतिबंधों के अभाव के रूप में परिभाषित किया है स्वतंत्र होने का अर्थ उन सामाजिक प्रतिबंधों को कम से कमतर करना है जो हमारी स्वतंत्रता पूर्वक चयन करने की क्षमता पर रोकटोक लगाए।
दूसरे शब्दों में स्वतंत्रता का एक सकारात्मक पहलू भी है।
स्वतंत्रता होने के लिए समाज को उन बातों को विस्तार देना चाहिए जिससे व्यक्ति, समूह, समुदाय या राष्ट्र अपने भाग्य, दिशा और स्वरूप का निर्धारण करने में समर्थ हो सकें।
इस अर्थ में स्वतंत्रता व्यक्ति की रचनाशीलता, संवेदनशीलता और क्षमताओं के भरपूर विकास को बढ़ावा देती है।
यह विकास खेल, विज्ञान, कला, संगीत या अन्वेषण जैसे किसी भी क्षेत्र में हो सकता है।
स्वतंत्र समाज वह होता है, जिसमें व्यक्ति अपने हित संवर्धन न्यूनतम प्रतिबंधों के बीच करने में समर्थ हो।
स्वतंत्रता को इसलिए बहुमूल्य माना जाता है, क्योंकि इससे हम निर्णय और चयन कर पाते हैं।
स्वतंत्रता के कारण ही व्यक्ति अपने विवेक और निर्णय की शक्ति का प्रयोग कर पाते हैं।
हमें प्रतिबंध की आवश्यकता क्यों हैं ?
हम ऐसी दुनिया में नहीं रह सकते जिसमें कोई प्रतिबंध ही न हो। हमें कुछ प्रतिबंधों की तो जरूरत है, नहीं तो समाज अव्यवस्था फ़ैल जाएगी ।
लोगों के बीच विवाद हो सकते हैं, उनकी महत्वाकांक्षाओं में टकराव हो सकता है, वे सीमित साधनों के लिए प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं।
इसलिए हर समाज को हिंसा पर नियंत्रण और विवाद के निबटारे के लिए कोई न कोई तरीका अपनाना जरूरी होता है।
जब तक हम एक-दूसरे के विचारों का सम्मान करें और दूसरे पर अपने विचार थोपने का प्रयास न करें तब तक हम आजादी के साथ और न्यूनतम प्रतिबंधों के साथ रहने में सक्षम रहेंगे।
ऐसे समाज के निर्माण के लिए भी कुछ प्रतिबंधों की आवश्यकता होती है। कम से कम यह जरूरी होती है कि हम विचार, विश्वास और मत के अंतरों को स्वीकार करने के लिए तैयार रहें।
कभी-कभी हमें लग सकता है कि हमारी प्रबल आस्थाओं के लिए जरूरी है कि हम उन सबका विरोध करें, जो हमारे विचारों को खारिज करते हैं या उनसे अलग राय रखते हैं।
महत्त्वपूर्ण सवाल यह पहचानना है कि स्वतंत्रता पर कौन-सा प्रतिबंध आवश्यक और औचित्यपूर्ण है और कौन-सा नहीं ?
हानि सिद्धांत
"किसी के कार्य करने के स्वतन्त्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का इकलौता लक्ष्य आत्मरक्षा है। सभ्य समाज के किसी सदस्य की इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य किसी अन्य को हानि से बचाना हो सकता है।"
जे. एस. मिल के अनुसार कार्य दो प्रकार के होते हैं
'स्वसंबंध'
'परसंबंध
स्वसंबंध - जिसका प्रभाव केवल कार्य करने वाले व्यक्ति के ऊपर पड़ता है।
परसंबंध - जिसमें करने वाले कार्य का प्रभाव अन्य बाहरी व्यक्तियों के ऊपर भी पड़ता है।
यदि उन कार्यों से दूसरों को कोई बड़ी हानि पहुंच रही हो तो ऐसी परिस्थिति में राज्य उनके ऊपर प्रतिबंध लगा सकता है।
सकारात्मक और नकारात्मक स्वतंत्रता
स्वतंत्रता के दो आयाम हैं –
सकारात्मक स्वतंत्रता और नकारात्मक स्वतंत्रता
नकारात्मक स्वतंत्रता
जहां तक संभव हो प्रतिबंधों का अभाव हो।
क्योंकि प्रतिबंध व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कटौती करते है।
इसलिए इच्छानुसार कार्य करने की छूट हो और व्यक्ति के कार्यों पर किसी प्रकार का प्रतिबंध न हो।
समर्थक है जॉन स्टुअर्ट मिल और एफ.ए. हायक आदि ।
सकारात्मक स्वतंत्रता
नियमों व कानूनों के अंतर्गत ऐसी व्यवस्था जिससे मनुष्य अपना विकास कर सकें।
यदि राज्य सार्वजनिक कल्याण का लक्ष्य प्राप्त करना चाहता है तो प्रतिबन्ध अनिवार्य है।
मानव समाज में रहता है, उसके कार्य अन्य लोगों की स्वतंत्रता को प्रभावित करते है।
इसलिए इसका जीवन बंधनों द्वारा विनियमित होना चाहिए।
तर्कयुक्त बंधनों की उपस्थिति।
समर्थक है टी.एच. ग्रीन व प्रो. ईसाह बर्लिन' की।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा अहस्तक्षेप के लघुत्तम क्षेत्र से जुड़ा है।
जान स्टुअर्ट मिल ने अपनी पुस्तक 'आन लिबर्टी' में तर्क रखते हुए कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें भी होनी चाहिए जिनके विचार आज की स्थितियों में गलत और भ्रामक लग रहे हो
चार तर्क:-
1) कोई भी विचार पूरी से गलत नहीं होता। उसमें सच्चाई का भी कुछ अंश होता है।
2) सत्य स्वंय से उत्पन्न नहीं होता बल्कि विरोधी विचारों के टकराव से पैदा होता है।
3) जब किसी विचार के समक्ष एक विरोधी विचार आता है तभी उस विचार की विश्वसनीयता सिद्ध होती है।
4) आज जो सत्य है, वह हमेशा सत्य नहीं रह सकता। कई बार जो विचार आज स्वीकार्य नहीं है वह आने वाले समय के लिए मूल्यवान हो सकते है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कई बार प्रतिबंध अल्पकालीन रूप में समस्या का समाधान बन जाते है तथा तत्कालीन मांग को पूरा कर देते है लेकिन समाज में स्वतंत्रता के दूरगामी संभावनाओं की दृष्टि से यह बहुत खतरनाक है।