Editor Posts footer ads

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार Notes in Hindi Class 12 Geography Chapter 8 Book 2 International Trades Antarrashtriya Vyapar

 
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार Notes in Hindi Class 12 Geography Chapter 8 Book 2 International Trades Antarrashtriya Vyapar

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से अभिप्राय है 
  • विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी अथवा प्रौद्योगिकी का लेनदेन इसमें विभिन्न देशों के बीच आयात और निर्यात शामिल होता है
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सभी देशों के लिए लाभदायक होता है क्योंकि कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं है
  • विश्व के व्यापार में भारत की भागीदारी मात्र एक  प्रतिशत है  


भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का बदलता प्रारूप 

  • 1951-52 में भारत का विदेश व्यापार 1214 करोड़  रुपये का था जो की बढ़कर 2021-22 में 77,19,796 करोड़  रुपये का हो गया है  


व्यापार में बढ़ोतरी के कारण  

  • विनिर्माण के क्षेत्र में विकास 
  • सरकार की उदार नीतियां 
  • बाजारों तक पहुँच 
  • व्यापार का बढ़ता महत्त्व ( वैश्वीकरण )



भारत के आयात-संघटन के बदलते प्रारूप

  • भारत ने 1950 एवं 1960 के दशक में खाद्यान्नों की गंभीर कमी का अनुभव किया है। 
  • उस समय आयात की प्रमुख वस्तुएँ खाद्यान्न, पूँजीगत माल, मशीनरी एवं उपस्कर आदि थे। 
  • उस समय भुगतान संतुलन बिल्कुल विपरीत था; चूँकि आयात प्रतिस्थापन के सभी प्रयासों के बावजूद आयात निर्यातों से अधिक थे। 
  • हरित क्रांति में सफलता मिलने पर खाद्यान्नों का आयात रोक दिया गया। 
  • लेकिन 1973 में आए ऊर्जा संकट से पेट्रोलियम (पदार्थों) के मूल्य में उछाल आया जिस कारण आयात बजट भी बढ़ गया। 
  • खाद्यान्नों के आयात की जगह उर्वरकों एवं पेट्रोलियम ने ले ली।
  • पेट्रोलियम उत्पादों के आयात में वृद्धि हुई है। 
  • इसका उपयोग न केवल ईंधन के रूप में बल्कि औद्योगिक कच्चे माल के रूप में भी किया जाता है। 
  • यह बढ़ते औद्योगीकरण और बेहतर जीवन स्तर की गति की ओर इशारा करता है, यह भी देखा गया है कि पूंजीगत वस्तुओं के आयात में लगातार गिरावट बनी रही। 
  • खाद्य और संबद्ध उत्पादों के आयात में गिरावट आई। 
  • भारत के आयात की अन्य प्रमुख वस्तुओं में मोती, बहुमूल्य और अल्प मूल्य रत्न, सोना और चांदी, अलौह धातुएँ शामिल हैं।


व्यापार की दिशा 

  • भारत के व्यापारिक संबंध विश्व के अधिकांश देशों एवं प्रमुख व्यापारी गुटों के साथ हैं।
  • भारत का उद्देश्य आगामी पाँच वर्षों के दौरान अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को दुगुना करने का है। 
  • इसने इस दिशा में, पहले से ही आयात उदारीकरण,  आयात करों में कमी, डि-लाइसेंसिंग ,(पेटेंट) में बदलाव आदि अनुकूल उपाय अपनाने शुरू कर दिए हैं।
  • भारत का अधिकतर विदेशी व्यापार समुद्री एवं वायु मार्गों द्वारा संचालित होता है। 
  • विदेशी व्यापार का छोटा सा भाग सड़क मार्ग द्वारा नेपाल, भूटान, बाग्लादेश एवं पाकिस्तान जैसे पड़ोसी राज्यों में सड़क मार्ग द्वारा किया जाता है।



समुद्री पत्तन

  • समुद्री पत्तन को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का  प्रवेश द्वार कहा जाता है भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है और प्रकृति ने हमें एक लंबी तटरेखा प्रदान की है। 
  • जल सस्ते परिवहन के लिए एक सपाट तल प्रदान करता है। समुद्री यात्राओं की भारत में एक लंबी परंपरा रही है, भारत में समुद्री पत्तनों का एक रोचक तथ्य यह है कि इसके पूर्वी तट की अपेक्षा पश्चिमी तट पर अधिक पत्तन हैं।
  • भारत में 12 प्रमुख पत्तन और 200 छोटे पत्तन  है। प्रमुख पत्तन के सम्बन्ध में केंद्र सरकार नीति बनाती है ,छोटे पत्तन के सम्बन्ध में राज्य सरकार नीति बनाती है , अंग्रेज़ों ने इन पत्तनों का उपयोग संसाधनों के अवशोषण केंद्र के रूप में किया था। 
  • आंतरिक प्रदेशों में रेलवे के विस्तार ने स्थानीय बाज़ारों को क्षेत्रीय बाजारों और क्षेत्रीय बाज़ारों को राष्ट्रीय बाज़ारों तथा राष्ट्रीय बाजारों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों से जोड़ने की सुगमता प्रदान की। 
  • स्वतंत्रता के बाद देश के विभाजन से भारत के दो अति महत्त्वपूर्ण पत्तन अलग हो गए कराची पत्तन पाकिस्तान में चला गया चिटगाँव पत्तन तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश में चला गया। 
  • इस क्षतिपूर्ति के लिए अनेक नए पत्तनों को विकसित किया गया जैसे कि पश्चिम में कांडला पूर्व में हुगली नदी पर कोलकाता के पास डायमंड हार्बर का विकास हुआ।
  • इस बड़ी हानि के बावजूद, देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से भारतीय पत्तन निरंतर वृद्धि कर रहे हैं।
  • आज भारतीय पत्तन विशाल मात्रा में घरेलू के साथ-साथ विदेशी व्यापार का निपटान कर रहे हैं। 
  • अधिकतर पत्तन आधुनिक अवसंरचना से लैस हैं। पहले पत्तनों के विकास एवं आधुनिकीकरण की जिम्मेदारी सरकारी अभिकरणों पर थी, लेकिन काम के बढ़ने और इन पत्तनों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पत्तनों के समकक्ष बनाने की आवश्यकता ने भारत की पत्तनों के आधुनिकीकरण के लिए निजी उद्यमियों को आमंत्रित किया।



विभिन्न  पत्तन 

1. दीनदयाल पतन (कांडला पत्तन) 

  • इस पत्तन को पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी भाग की जरूरतों को पूरा करने तथा मुंबई पत्तन पर दबाव को कम करने  के लिए एक प्रमुख पत्तन के रूप में विकसित किया गया है। 
  • इस पत्तन को विशेष रूप से भारी मात्रा में पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों एवं उर्वरकों को ग्रहण करने के लिए बनाया गया है।


2. मुंबई  पत्तन

  • मुंबई एक प्राकृतिक पत्तन और देश का सबसे बड़ा पत्तन है। 
  • यह पत्तन मध्यपूर्व, भूमध्य सागरीय देशों, उत्तरी अफ्रीका , उत्तर अमेरिका तथा यूरोप के देशों के सामान्य मार्ग के निकट स्थित है 
  • जहाँ से देश के विदेशी व्यापार का अधिकांश भाग संचालित किया जाता है। 
  • यह पत्तन 20 कि.मी. लंबा तथा 6-10 कि.मी. चौड़ा है। 


3. जवाहरलाल नेहरू पत्तन

  • जवाहरलाल नेहरू पत्तन को न्हावा शेवा में मुंबई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए विकसित किया गया था। 
  • यह भारत का विशालतम कंटेनर पत्तन है।


4.मार्मागाओ पत्तन

  • मार्मागाओ पत्तन गोवा का एक प्राकृतिक बंदरगाह है। 
  • जापान को लौह अयस्क के निर्यात का निपटान करने के लिए 1961 में हुए पुनर्प्रतिरूपण के बाद इसका महत्त्व बढ़ा। 
  • कोकण रेलवे ने इस पत्तन के पृष्ठ प्रदेश में महत्त्वपूर्ण विस्तार किया है। 
  • कर्नाटक, गोआ तथा दक्षिणी महाराष्ट्र इसकी पृष्ठभूमि की रचना करते हैं


5.न्यू मंगलौर पत्तन

  • न्यू मंगलौर पत्तन कर्नाटक में स्थित है लौह-अयस्क और लौह-सांद्र के निर्यात की जरूरतों को पूरा करता है। 
  • यह पत्तन भी उर्वरकों, पेट्रोलियम उत्पादों, खाद्य तेलों, कॉफ़ी, चाय, लुगदी, सूत, ग्रेनाइट पत्थर, आदि का निपटान करता है।
  • पृष्ठ कर्नाटक इस पत्तन का प्रमुख पृष्ठप्रदेश है।


6.कोच्चि पत्तन

  • कोच्चि पत्तन भी एक प्राकृतिक पत्तन है। 
  • इस पत्तन को स्वेज कोलंबो मार्ग के पास अवस्थित होने का लाभ प्राप्त है। 
  • यह केरल, दक्षिणी कर्नाटक तथा दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु की आवश्यकताओं को पूरा करता है।
  • यह 'अरब सागर की रानी' (क्वीन ऑफ अरेबियन सी) के नाम से लोकप्रिय है, 


7. कोलकाता पत्तन

  • कोलकाता पत्तन हुगली नदी पर अवस्थित है जो बंगाल की खाड़ी से 128 कि.मी. स्थल में अंदर स्थित है। 
  • मुंबई पत्तन की तरह  इसका विकास भी अंग्रेज़ों द्वारा किया गया था। 
  • कोलकाता को ब्रिटिश भारत की राजधानी होने के प्रारंभिक लाभ प्राप्त थे।
  • कोलकाता पत्तन हुगली नदी द्वारा लाई गई गाद की समस्या से भी जूझता रहा है इसके पृष्ठ प्रदेश के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और उत्तर-पूर्वी राज्य आते हैं। 
  • इन सबके अतिरिक्त, यह पत्तन हमारे भूटान और नेपाल जैसे स्थलरुद्ध पड़ोसी देशों को भी सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।


8. हल्दिया  पत्तन

  • हल्दिया पत्तन कोलकाता से 105 कि.मी. अंदर अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) पर स्थित है। 
  • इसका निर्माण कोलकाता पत्तन की संकुलता को घटाने के लिए किया गया है। 
  • यह लौह-अयस्क, कोयला, पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, जूट एवं जूट उत्पाद, कपास तथा सूती धागों आदि का निपटान (handle) करता है।


9. पारादीप  पत्तन

  • पारादीप पत्तन कटक से 100 कि.मी. दूर महानदी डेल्टा पर स्थित है। 
  • इसका पोताश्रय सबसे गहरा है 
  • जो भारी पोतों के निपटान के लिए सर्वाधिक अनुकूल है। 
  • इसे मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर लौह अयस्क के निर्यात के लिए निपटान विकसित किया गया है। इस पत्तन के पृष्ठ प्रदेश के अंतर्गत ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ आते हैं।


10. विशाखापट्नम  पत्तन

  • विशाखापट्नम, आंध्र प्रदेश में एक भू-आबद्ध पत्तन है जिसे ठोस चट्टान एवं बालू को काटकर एक नहर के द्वारा समुद्र से जोड़ा गया है। 
  • एक बाह्य पत्तन का विकास लौह अयस्क, पेट्रोलियम तथा सामान्य नौभार के निपटान हेतु विकसित किया गया है। 
  • इस पत्तन का प्रमुख पृष्ठ प्रदेश आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना है।


11. चेन्नई पत्तन

  • चेन्नई पत्तन-पूर्वी तट पर स्थित यह सबसे पुराने पत्तनों में से एक है। 
  • यह एक कृत्रिम पत्तन है जिसे 1859 में बनाया गया था। 
  • तट के निकट उथले जल के कारण यह पत्तन विशाल पोतों के लिए अनुकूल नहीं है। 
  • तमिलनाडु और पुदुच्चेरी इसके पृष्ठप्रदेश हैं।


12.एन्नोर  पत्तन तथा तूतीकोरन पत्तन 

  • तमिलनाडु में नई विकसित एन्नोर पत्तन और तूतीकोरिन पत्तन का विकास चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए किया गया था। 
  • यह विभिन्न प्रकार के नौभार का निपटान करता है जिसके अंतर्गत कोयला, नमक, खाद्यान्न, खाद्य तेल, 
  • चीनी, रसायन तथा पेट्रोलियम उत्पाद शामिल हैं।


13.हवाई अड्डे

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वायु परिवहन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • इन्हें लंबी दूरी वाले उच्च मूल्य वाले या नाशवान सामानों को कम से कम समय में ले जाने के लिए लाभ प्राप्त होते हैं। 
  • यह भारी और स्थूल वस्तुओं के वहन करने के लिए बहुत महँगा और अनुपयुक्त होता है। 
  • यही कारण अंततः अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महासागरीय मार्गों की तुलना में इस क्षेत्र की भागीदारी को घटा देता है।
  • देश में 25 मुख्य हवाई अड्डे कार्य कर रहे हैं
  • अंतर्राष्ट्रीय हवाई पत्तनों के अंतर्गत अहमदाबाद, बेंगलूरु, चेन्नई, दिल्ली, गोवा, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोच्चि, कोलकाता, मुंबई, थिरुवनंथपुरम, श्रीनगर, जयपुर, कालीकट, नागपुर, कोयम्बटूर, लखनऊ, पुणे, चण्डीगढ़, मंगलूरु, विशाखापट्नम, इंदौर, पटना, भुवनेश्वर और कन्नूर हैं। 
  • 2017 के बाद से उड़ान योजना के तहत 9 हेलीपोर्ट और 2 जल हवाई अड्डों सहित कुल 73 असेवित/अल्पसेवित हवाई अड्डों को चालू किया गया है।





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!