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स्थानीय सरकार Notes in Hindi Class 11 Chapter 8 Political Science book1 sthaniy sarakar Local government

 


 स्थानीय शासन का अर्थ 

गाँव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं। स्थानीय शासन आम आदमी के सबसे नजदीक का शासन होता है। यह लोगो के रोजमर्रा के काम करवाते है जैसे -

  • गलियाँ और मोहल्लो में बुनियादी काम करवाना
  • प्राथमिक चिकित्सा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध करवाना
  • स्ट्रीट लाइट लगवाना
  • प्राथमिक स्तर के विद्यालय उपलब्ध करवाना
  • नालियां की देख रेख और मरमत
  • सड़क और साफ सफाई की व्यवस्था करवाना


स्थानीय शासन के विषय है 

  • आम आदमी की समस्याएँ और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े होते है। स्थानीय शासन यह मानता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फ़ैसला लेने के अनिवार्य घटक हैं।
  • एक बेहतर शासन और जन-हितकारी प्रशासन के लिए भी स्थानीय समस्याओं का ज्ञान जरूरी है।
  • स्थानीय शासन का फायदा यह है कि यह लोगों के सबसे नजदीक होता है और इस कारण उनकी समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्चे में हो जाता है।


भारत में स्थानीय शासन दो तरह से काम करता है 

1. ग्रामीण स्तर पर ( पंचायत )

  • जिला परिषद् 
  • ग्राम पंचायत 
  • ग्राम सभा 


2. नगरिया स्तर पर  (नगर पालिका)

  • नगर निगम 
  • नगर पालिका 
  • नगर परिषद्   



 हमें स्थानीय शासन की आवश्यकता क्यों हैं ? 

  • एक मजबूत लोकतान्त्रिक व्यवस्था कायम करने के लिये स्थानीय शासन की आवश्यकता होती है ।
  • स्थानीय स्तर की राजनीतिक, आर्थिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय शासन की आवश्यकता होती है
  • सामान्य नागरिकों की प्रतिनिधियों तक पहुंच के लिये स्थानीय शासन कीआवश्यकता होती है ।
  • कार्य को सफल व तीव्र गति से करने हेतु (जन कल्याणकारी कार्य)
  • आपसी सामंजस्य व सफल प्रशासन हेतु।



भारत में स्थानीय शासन का विकास 

  • ऐसा माना जाता है कि अपना शासन खुद चलाने वाले ग्राम समुदाय प्राचीन भारत में 'सभा' के रूप में मौजूद थे। समय बीतने के साथ गाँव की इन सभाओं ने पंचायत का रूप ले लिया। समय बदलने के साथ-साथ पंचायतों की भूमिका और काम भी बदलते रहे।
  • आधुनिक समय में, स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय सन् 1882 के बाद अस्तित्व में आए। उस वक्त लार्ड रिपन (Lord Rippon) जो भारत का वायसराय था ने इन निकायों को बनाने की शुरुआत की। उस वक्त इसे मुकामी बोर्ड (Local Board) कहा जाता था।
  • इस दिशा में प्रगति बड़ी धीमी गति से हो रही थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सरकार से माँग की कि सभी स्थानीय बोर्ड को ज्यादा कारगर बनाने के लिए वह जरूरी कदम उठाए।
  • गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 के बनने पर अनेक प्रांतों में ग्राम पंचायत बने। सन् 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के बाद भी यह प्रवृत्ति जारी रही।
  • महात्मा गांधी ने जोर देकर कहा था कि आर्थिक और राजनीतिक सत्ता का विकेंद्रीकरण होना चाहिए। उनका मानना था कि ग्राम पंचायतों को मजबूत बनाना सत्ता के विकेंद्रीकरण का कारगर साधन है। विकास के हर कार्य में स्थानीय लोगों की भागीदारी होनी चाहिए


स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन

  • संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के बाद स्थानीय-शासन को मजबूत आधार मिला।
  • इससे पहले भी स्थानीय शासन के निकाय बनाने के लिए कुछ प्रयास किये गए थे। सन 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम (Community Development Programme) लाया गया ।
  • इस कार्यक्रम का यह उद्देश्य था कि स्थानीय विकास की विभिन्न गतिविधियों में जनता की भागीदारी हो।
  • इसी पृष्ठभूमि में ग्रामीण इलाकों के लिए एक त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की गई।
  • कुछ प्रदेश (गुजरात, महाराष्ट्र) ने सन् 1960 में निर्वाचन द्वारा बने स्थानीय निकायों की प्रणाली अपनायी लेकिन अनेक प्रदेशों में इन स्थानीय निकायों की शक्ति इतनी नहीं थी कि वे स्थानीय विकास की देखभाल कर सकें। ये निकाय वित्तीय मदद के लिए प्रदेश तथा केंद्रीय सरकार पर बहुत ज्यादा निर्भर थे।
  • कई प्रदेशों ने तो यह तक नहीं माना कि निर्वाचन द्वारा स्थानीय निकाय स्थापित करने की जरूरत भी है।ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहाँ स्थानीय निकायों को भंग करके स्थानीय शासन का जिम्मा सरकारी अधिकारी को सौंप दिया गया।
  • कई प्रदेशों में अधिकांश स्थानीय निकायों के चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से हुए। अनेक प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव समय-समय पर स्थगित होते रहे।
  • सन् 1987 के बाद स्थानीय शासन की संस्थाओं के गहन पुनरावलोकन की शुरुआत हुई।
  • सन् 1989 में पी. के. थुगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफ़ारिश की।
  • समिति की सिफ़ारिश थी कि स्थानीय शासन की संस्थाओं के चुनाव समय-समय पर कराने, उनके समुचित कार्यों की सूची तय करने तथा ऐसी संस्थाओं को धन प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन किया जाये।
  • समिति की सिफ़ारिश थी कि स्थानीय शासन की संस्थाओं के चुनाव समय-समय पर कराने, उनके समुचित कार्यों की सूची तय करने तथा ऐसी संस्थाओं को धन प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन किया जाये।


संविधान का 73 वां और 74 वां संसोधन 

  • सन् 1989 में केंद्र सरकार ने दो संविधान संशोधनों की बात आगे बढ़ायी।
  • इन संशोधनों का लक्ष्य था स्थानीय शासन को मजबूत करना और पूरे देश में इसके कामकाज तथा बनावट में एकरूपता लाना।
  • सन् 1992 में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन को संसद ने पारित किया।
  • संविधान का 73वाँ संशोधन गाँव के स्थानीय शासन से जुड़ा है। इसका संबंध पंचायती राज व्यवस्था की संस्थाओं से है।
  • संविधान का 74वाँ संशोधन शहरी स्थानीय शासन (नगरपालिका) से जुड़ा है।
  • सन् 1993 में 73वाँ और 74वाँ संशोधन लागू हुए।


73 वां संसोधन की विशेषताए  

1. त्रि - स्तरीय बनावट 

1. जिला पंचायत / तालुका 

2. ब्लॉक समिति / तालुका 

3. ग्राम पंचायत / ग्राम सभा 


  • अब सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा त्रि-स्तरीय है। सबसे नीचे यानी पहली पायदान पर ग्राम पंचायत आती है।
  • ग्राम पंचायत के दायरे में एक अथवा एक से ज्यादा गाँव होते हैं।
  • मध्यवर्ती स्तर यानी बीच का पायदान मंडल का है जिसे खंड (Block) या तालुका भी कहा जाता है।
  • जो प्रदेश आकार में छोटे हैं वहाँ मंडल या तालुका पंचायत यानी मध्यवर्ती स्तर को बनाने की जरूरत नहीं।
  • सबसे ऊपरले पायदान पर जिला पंचायत का स्थान है। इसके दायरे में जिले का पूरा ग्रामीण इलाका आता है।
  • पंचायती हलके में मतदाता के रूप में दर्ज हर वयस्क व्यक्ति ग्राम सभा का सदस्य होता है। ग्राम सभा की भूमिका और कार्य का फ़ैसला प्रदेश के कानूनों से होता है।

2. चुनाव

  • पंचायती राज के तीनों स्तर के चुनाव सीधा जनता करती है हर पंचायती राज की अवधी 5 वर्ष की होती है।
  • अगर प्रदेश की सरकार द्वारा समय से पहले पंचायत को भंग कर दिया जाता है तो छः महीने में दुबारा चुनाव करने होते है।

3. आरक्षण 

  • महिलाओं के लिए सभी पंचायती संस्थाओं में एक तिहाई सीट आरक्षित है
  • SC / ST के लिए उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का प्रावधान है 
  • अगर प्रदेश की सरकार चाहे तो ओबीसी की सीट भी आरक्षित कर सकती है 


4. विषयों का स्थानांतरण  

  • ऐसे 29 विषय जो पहले राज्य सूची में थे, उन्हें अब संविधान की 11 वीं अनुसूची में दर्ज किया गया हैं। 
  • इन विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित किया जाना है। 
  • इन विषयों का संबंध स्थानीय स्तर पर होने वाले विकास और कल्याण के कामकाज से है।
  • इन कार्यों का वास्तविक हस्तांतरण प्रदेश के कानून पर निर्भर है। 
  • हर प्रदेश यह फैसला करेगा कि इन 29 विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों के हवाले करना है।


5. आदिवासी जनसंख्या के लिए प्रावधान 

  • भारत के अनेक प्रदेशों के आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों को 73वें संशोधन के प्रावधानों से अलग रखा गया था। ये प्रावधान इन क्षेत्रों पर लागू नहीं होते थे।
  • लेकिन सन् 1996 में अलग से एक अधिनियम बना और पंचायती व्यवस्था के प्रावधानों के दायरे में इन क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया गया।
  • अनेक आदिवासी समुदायों में जंगल और जल-जोहड़ जैसे साझे संसाधनों की देख-रेख के रीति-रिवाज मौजूद हैं।
  • इस कारण, नये अधिनियम में आदिवासी समुदायों के इस अधिकार की रक्षा की गई है। वे अपने रीति-रिवाज के अनुसार संसाधनों की देखभाल कर सकते हैं।
  • इस उद्देश्य से ऐसे इलाकों की ग्राम सभा को अपेक्षाकृत ज्यादा अधिकार दिए गए हैं और निर्वाचित ग्राम पंचायत को कई मायनों में ग्राम सभा की अनुमति लेनी पड़ती है।
  • इस अधिनियम के पीछे मूल विचार स्व-शासन की स्थानीय परंपरा को बचाना और आधुनिक ढंग से निर्वाचित निकायों से ऐसे समुदायों को परिचित कराना है।


6. राज्य चुनाव आयुक्त

  • प्रदेशों के लिए यह आवश्यक है कि वे एक राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करें।
  • इस आयुक्त को जिम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी।
  • पहले यह काम प्रदेश का प्रशासन करता था, जो प्रदेश की सरकार के अधीन होता है।
  • अब भारत के चुनाव आयुक्त के समान प्रदेश का चुनाव आयुक्त भी स्वायत्त (autonomous) है।
  • प्रदेश का चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र अधिकारी है। उसके कार्यालय का संबंध भारत के चुनाव आयोग से नहीं होता।


7. राज्य वित्त आयोग

  • प्रदेशों की सरकार के लिए हर पाँच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनाना जरूरी है। यह आयोग प्रदेश में मौजूद स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति का जायजा लेगा।
  • यह आयोग एक तरफ प्रदेश और स्थानीय शासन की व्यवस्थाओं के बीच तो दूसरी तरफ शहरी और ग्रामीण स्थानीय शासन की संस्थाओं के बीच राजस्व के बँटवारे का पुनरावलोकन करेगा।
  • इस पहल के द्वारा यह सुनिश्चित किया गया है कि ग्रामीण स्थानीय शासन को धन आबंटित करना राजनीतिक मसला न बने।



74 वां संसोधन 

74वें संशोधन का संबंध शहरी स्थानीय शासन से है अर्थात् नगरपालिका से।

शहरी इलाकाः-

1. ऐसे इलाके में कम से कम 5000 की जनसंख्या हो 

2. कामकाजी पुरूषों में कम से कम 75% खेती बाड़ी से अलग काम करते हो 

3. जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो ।


स्थानीय शासन की विशेषताए 

  • अनेक रूपों में 74 वें संविधान संशोधन में 73वे संशोधन का दोहराव है लेकिन यह संशोधन शहरी क्षेत्रों से संबंधित है।
  • 73 वें संशोधन के सभी प्रावधान प्रत्यक्ष चुनाव, आरक्षण विषयों का हस्तांतरण, प्रादेशिक चुनाव आयुक्त और प्रादेशिक वित्त आयोग 74 वें संशोधन में शामिल है तथा नगर पालिकाओं पर लागू होते हैं।
  • 73वें और 74वें संशोधन का क्रियान्वयन अब सभी प्रदेशों ने 73वें संशोधन के प्रावधानों को लागू करने के लिए कानून बना दिए हैं।

वर्तमान में ग्रामीण भारत में लगभग

1. जिला पंचायत – 600

2. प्रखंड स्तर पंचायत – 6000

3. ग्राम पंचायत – 2,40,000 

वर्तमान में शहरी भारत में लगभग 

1. नगर निगम – 100

2. नगर पालिका – 1400

3. नगर  पंचायत – 2000 

  • पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भारी संख्या में मौजूदगी सुनिश्चित हुई है।
  • आरक्षण का प्रावधान अध्यक्ष और सरपंच जैसे पद के लिए भी है। इस कारण निर्वाचित महिला जन-प्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या अध्यक्ष और सरपंच जैसे पदों पर आसीन हुई है।
  • आज कम से कम 200 महिलाएँ जिला पंचायतों की अध्यक्ष हैं। 2,000 महिलाएँ प्रखंड अथवा तालुका पंचायत की अध्यक्ष हैं और ग्राम पंचायतों में महिला सरपंच की संख्या 80,000 से ज्यादा है। नगर निगमों में 30 महिलाएँ मेयर (महापौर) हैं।
  • नगरपालिकाओं में 500 से ज्यादा महिलाएँ अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। लगभग 650 नगर पंचायतों की प्रधानी महिलाओं के हाथ में हैं।


स्थानीय शासन के विषय 

  • पेय जल 
  • गरीबी उन्मूलन 
  • सामाजिक कल्याण 
  • कृषि , सिंचाई , सड़कें , लघु उद्योग 
  • शिक्षा 
  • ग्रामीण विद्युतीकरण 
  • कमजोर तबकों का कल्याण 
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली 
  • महिला बाल विकास 


स्थानीय शासन के समक्ष समस्या 

  • धन का अभाव 
  • आर्थिक  मदद के लिए सरकारों पर निर्भरता
  • आय से अधिक खर्च करना  
  • जनता का जागरूक न होना 



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