चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य यूरोप में बदलाव
- यूरोप के अनेक देशों में नगरों की संख्या बढ़ने लगी और एक विशेष प्रकार की 'नगरीय-संस्कृति’ का विकास हुआ
- नगरों में रहने वाले लोग खुद को गाँव के लोगों से ज्यादा सभ्य समझने लगे थे
- नगर कला और ज्ञान के केन्द्र बन रह थे
- फ़्लोरेंस, वेनिस और रोम -कला और विद्या के केंद्र बन गए
- अमीर और अभिजात वर्ग के लोग कलाकारों और लेखकों के आश्रयदाता बने
- मुद्रण का आविष्कार से दूर-दराज नगरों या देशों में छपी हुई पुस्तकें उपलब्ध होने लगी
- यूरोप में इतिहास की समझ विकसित हुई लोग 'आधुनिक विश्व' की तुलना यूनानी व रोमन 'प्राचीन दुनिया’ से करने लगे थे
- अब प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार धर्म चुन सकते थे
- चर्च पृथ्वी का केंद्र है , इन विश्वाशों को वैज्ञानिकों के गलत साबित कर दिया था
- अब वैज्ञानिक सौर मंडल को समझने लगे थे
चौदहवीं शताब्दी के यूरोपीय इतिहास की जानकारी के स्रोत
- दस्तावेज
- मुद्रित पुस्तकें
- चित्र
- मूर्तियां
- भवन तथा वस्त्र
- यह यूरोप और अमरीका के अभिलेखागारों, कला-चित्रशालाओं और संग्रहालयों में सुरक्षित रखी हुई हैं।
पुनर्जागरण
- उन्नीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने 'रेनेसाँ' (शाब्दिक अर्थ-पुनर्जन्म) शब्द का प्रयोग किया जो उस काल के सांस्कृतिक परिवर्तनों को बताता है।
- 1860 ई. में “बर्कहार्ट” ने “दि सिविलाईजेशन ऑफ दि रेनेसाँ इन इटली” नामक पुस्तक में लोगों का ध्यान साहित्य, वास्तुकला और चित्रकला की ओर आकर्षित किया और बताया कि , इटली के नगरों में किस प्रकार एक 'मानवतावादी' संस्कृति पनप रही थी
- यह संस्कृति नए विश्वास पर आधारित थी , इसके अनुसार व्यक्ति अपने बारे में खुद निर्णय लेने और अपनी दक्षता को आगे बढ़ाने में समर्थ है।
- ऐसा व्यक्ति 'आधुनिक' था जबकि 'मध्यकालीन मानव' पर चर्च का नियंत्रण था।
इटली के नगरों का पुनरुत्थान
- पश्चिम रोम साम्राज्य के पतन के बाद इटली के राजनैतिक और सांस्कृतिक केन्द्रों पतन हुआ
- इटली एक कमजोर देश होना और अनेक टुकड़ों में बंटा हुआ था इन्हीं परिवर्तनों ने इतालवी संस्कृति के पुनरुत्थान में सहायता प्रदान की।
- बाइजेंटाइन साम्राज्य और इस्लामी देशों के बीच व्यापार के बढ़ने से इटली के तटवर्ती बंदरगाह पुनर्जीवित हो गए।
- बारहवीं शताब्दी में 'रेशम मार्ग' से व्यापार आरंभ हुआ तो इसके कारण पश्चिमी यूरोपीय देशों के व्यापार को बढ़ावा मिला इसमें इटली के नगरों ने मुख्य भूमिका निभाई।
- अब ये नगर एक शक्तिशाली साम्राज्य के अंग के रूप में ही नहीं बल्कि स्वतंत्र नगर राज्यों का एक समूह थे नगरों में फ़्लोरेंस और वेनिस, गणराज्य थे और कई अन्य दरबारी नगर थे जिनका शासन राजकुमार चलाते थे।
- इनमें सर्वाधिक जीवंत शहरों में पहला वेनिस और दूसरा जिनेवा था।
- नगर के धनी व्यापारी और महाजन, नगर के शासन में सक्रिय रूप से भाग लेते थे जिससे नागरिकता की भावना पनपने लगी।
विश्वविद्यालय और मानवतावाद
- यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय इटली के शहरों में स्थापित हुए।
- ग्यारहवीं शताब्दी से पादुआ और बोलोनिया (Bologna) विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केंद्र रहे।
- नगरों के प्रमुख क्रियाकलाप व्यापार और वाणिज्य से सम्बंधित थे इसलिए वकीलों और नोटरी की बहुत अधिक आवश्यकता होती थी
- ये नियमों को लिखते, उनकी व्याख्या करते और समझौते तैयार करते थे इसलिए कानून का अध्ययन एक प्रिय विषय बन गया।
मानवतावाद
- बहुत कुछ जानना बाकी है और यह सब हम केवल धार्मिक शिक्षण से नहीं सीखते इसी नयी संस्कृति को उन्नीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने 'मानवतावाद' नाम दिया।
- पंद्रहवीं शताब्दी के शुरू के दशकों में 'मानवतावादी' शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास और नीतिदर्शन विषय पढ़ाते थे।
रेनेसाँ व्यक्ति
- 'रेनेसाँ व्यक्ति' शब्द का प्रयोग प्रायः उस मनुष्य के लिए किया जाता है जिसकी अनेक रुचियाँ हो और अनेक हुनर में उसे महारत प्राप्त हो।
- पुनर्जागरण काल में अनेक महान लोग हुए जो अनेक रुचियाँ रखते थे और कई कलाओं में कुशल थे।
- उदाहरण के लिए, एक ही व्यक्ति विद्वान, कूटनीतिज्ञ, धर्मशास्त्रज्ञ और कलाकार हो सकता था।
फ़्लोरेंस विश्वविद्यालय
- पंद्रहवीं शताब्दी में फ़्लोरेंस की प्रसिद्धि में दो लोगों का बड़ा हाथ था।
- दाँते अलिगहियरी (Dante Alighieri, 1265-1321) जो किसी धार्मिक संप्रदाय विशेष से संबंधित नहीं थे पर उन्होंने अपनी कलम धार्मिक विषयों पर चलायी थी।
- जोटो (Glotto, 1267-1337) जिन्होंने जीते-जागते रूपचित्र(Portrait) बनाए। उनके बनाए रूपचित्र पहले के कलाकारों की तरह बेजान नहीं थे।
- इसके बाद धीरे-धीरे फ़्लोरेंस, इटली के सबसे जीवंत बौद्धिक नगर के रूप में जाना जाने लगा और कलात्मक कृतियों के सृजन का केन्द्र बन गया।
इतिहास का मानवतावादी दृष्टिकोण
- मानवतावादी समझते थे कि रोमन साम्राज्य के टूटने के बाद 'अंधकारयुग' शुरू हुआ जिसे बाद में उन्होंने पुनः स्थापित किया
- मानवतावादियों ने 'आधुनिक' शब्द का प्रयोग पंद्रहवीं शताब्दी से शुरू होने वाले काल के लिए किया।
- मानवतावादियों और बाद के विद्वानों द्वारा प्रयुक्त कालक्रम
1. 5-14 शताब्दी मध्य युग
2. 5-9 शताब्दी अंधकार युग
3. 9-11 शताब्दी आरंभिक मध्य युग
4. 11-14 शताब्दी उत्तर मध्य युग
5. 15 शताब्दी से आधुनिक युग
- हाल में अनेक इतिहासकारों ने इस काल विभाजन पर सवाल उठाया है , सांस्कृतिक समृद्धि अथवा असमृद्धि को आधार मानकर किसी भी काल को 'अंधकार युग' की संज्ञा देना अनुचित है
विज्ञान और दर्शन-अरबीयों का योगदान
- चौदहवीं शताब्दी में अनेक विद्वानों ने प्लेटो और अरस्तू के ग्रंथों से अनुवादों को पढ़ना शुरू किया जिसमें अरब के अनुवादकों ने अनुवाद किया था
- यूरोप के विद्वान यूनानी ग्रंथों के अरबी अनुवादों का अध्ययन कर रहे थे दूसरी ओर यूनानी विद्वान अरबी और फ़ारसी विद्वानों की कृतियों का अनुवाद कर रहे थे।
- ये ग्रंथ प्राकृतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान (astronomy), औषधि विज्ञान और रसायन विज्ञान से संबंधित थे।
- मुसलमान लेखकों, जिन्हें इतालवी दुनिया में ज्ञानी माना जाता था
- अरबी के हकीम और मध्य एशिया के बुखारा के दार्शनिक इब्न-सिना
- आयुर्विज्ञान विश्वकोश के लेखक अल-राज्जी (रेजेस)
- स्पेन के अरबी दर्शानिक इब्न रूश्द ने दार्शनिक ज्ञान और धार्मिक विश्वासों के बीच रहे तनावों को सुलझाने की चेष्टा की।
- विश्वविद्यालयों में पाठ्यचर्या में भी मानवतावादी विषय धीरे-धीरे स्कूलों में पढ़ाया जाने लगा।
कलाकार और यथार्थवाद
- लोगों के विचार को आकार देने में मानवतावादियों की औपचारिक शिक्षा ने ही नहीं कला, वास्तुकला और ग्रंथों ने प्रभावी भूमिका निभाई ,पहले के कलाकारों द्वारा बनाए गए चित्रों के अध्ययन से नए कलाकारों को प्रेरणा मिली
- 1416 में दोनातल्लो (Donatello, 1386-1466) ने सजीव मूर्तियाँ बनाकर नयी परंपरा कायम की।
- नर कंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकर आयुर्विज्ञान कॉलेजों की प्रयोगशालाओं में गए
- बेल्जियम मूल के आन्द्रीयस वेसेलियस पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान के प्राध्यापक थे ये पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की
- रेखागणित के ज्ञान से चित्रकार अपने परिदृश्य को ठीक तरह से समझ सकता है तथा प्रकाश के बदलते गुणों का अध्ययन करने से उनके चित्रों में त्रि-आयामी रूप दिया
- लेप चित्र के लिए तेल के एक माध्यम के रूप में प्रयोग ने चित्रों को पूर्व की तुलना में अधिक रंगीन और चटख बनाया।
- इस तरह शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी और सौंदर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप दिया जिसे बाद में 'यथार्थवाद' (realism) कहा गया।
वास्तुकला
- पंद्रहवीं शताब्दी में रोम नगर भव्य रूप से पुनर्जीवित हो उठा।
- पुरातत्त्वविदों द्वारा रोम के अवशेषों का सावधानी से उत्खनन किया गया वास्तुकला की एक 'नयी शैली' को प्रोत्साहित किया जो वास्तव में रोम साम्राज्य कालीन शैली का पुनरूद्धार थी जिसे अब 'शास्त्रीय' शैली कहा गया।
- पोप, धनी व्यापारियों और अभिजात वर्ग के लोगों ने उन वास्तुविदों (architect) को अपने भवनों को बनाने के लिए नियुक्त किया जो शास्त्रीय वास्तुकला से परिचित थे।
- चित्रकारों और शिल्पकारों ने भवनों को लेपचित्रों, मूर्तियों और उभरे चित्रों से भी सुसज्जित किया।
- माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती हैं जिन्होंने पोप के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत में लेपचित्र, 'दि पाइटा' नामक प्रतिमा, और सेंट पीटर गिरजे के गुम्बद का डिज़ाइन बनाया और इनकी वजह से माईकल ऐंजेलो अमर हो गए।
- वास्तुकार फिलिप्पो ब्रूनेलेशी जिन्होंने फ़्लोरेंस के भव्य गुम्बद (Duomo) का परिरूप प्रस्तुत किया था, ने अपना पेशा एक मूर्तिकार के रूप में शुरू किया।
प्रथम मुद्रित पुस्तकें
- इटली में जो भी लिखा गया वो विदेशों तक पहुँचा, ये सब सोलहवीं शताब्दी की क्रांतिकारी मुद्रण प्रौद्योगिकी की वजह से हुआ।
- इसका श्रय यूरोपीय लोग चीनियों तथा मंगोल शासकों को दे सकते है क्योंकि यूरोप के व्यापारी और राजनयिक मंगोल शासकों के राज दरबार में अपनी यात्राओं के दौरान इस तकनीक से परिचित हुए थे।
- सन् 1455 में जर्मन मूल के जोहानेस गुटेनबर्ग जिन्होंने पहले छापेखाने का निर्माण किया, उनकी कार्यशाला में बाईबल की 150 प्रतियाँ छपीं।
- इससे पहले इतने ही समय में एक धर्मभिक्षु बाईबल की केवल एक ही प्रति लिख पाता था।
मुद्रित पुस्तकों का प्रभाव –
- छात्रों को केवल अध्यापकों के व्याख्यानों से बने नोट पर निर्भर नहीं रहना पड़ा।
- अब विचार, मत और जानकारी पहले की अपेक्षा तेज़ी से प्रसारित हुए।
- ये विचारों को बढ़ावा देने वाली एक मुद्रित पुस्तक कई सौ पाठकों के पास बहुत जल्दी पहुँच सकती थी।
- इससे लोगों में पढ़ने की आदत का विकास हुआ।
- पंद्रहवी शताब्दी के अंत से इटली की मानवतावादी संस्कृति का आल्प्स (Alps) पर्वत के पार बहुत तेज़ी से फैलने का मुख्य कारण वहाँ पर छपी हुई पुस्तकों का वितरण था।
मनुष्य की एक नयी संकल्पना -
- मानवतावादी संस्कृति की विशेषताओं में से एक था मानव जीवन पर धर्म का नियंत्रण कमजोर होना।
- इटली के निवासी भौतिक संपत्ति, शक्ति और गौरव से बहुत ज़्यादा आकृष्ट थे।
- वेनिस के मानवतावादी फ्रेन्चेस्को ने अपनी एक पुस्तिका में संपत्ति अधिग्रहण करने को एक विशेष गुण कहकर उसकी तरफ़दारी की।
- लोरेन्ज़ो वल्ला विश्वास करते थे कि इतिहास का अध्ययन मुनष्य को पूर्णतया जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करता है, उन्होंने अपनी पुस्तक ऑनप्लेज़र में भोग-विलास पर लगाई गई ईसाई धर्म की निषेधाज्ञा की आलोचना की।
- इस समय लोगों में अच्छे व्यवहारों के प्रति दिलचस्पी थी- व्यक्ति को किस तरह विनम्रता से बोलना चाहिए; कैसे कपड़े पहनने चाहिए और एक सभ्य व्यक्ति को किसमें दक्षता हासिल करनी चाहिए।
- मानवतावाद का मतलब यह भी था कि व्यक्ति विशेष सत्ता और दौलत की होड़ को छोड़कर अन्य कई माध्यमों से अपने जीवन को रूप दे सकता था।
महिलाओं की आकांक्षाएँ
- वैयक्तिकता और नागरिकता के नए विचारों से महिलाओं को दूर रखा गया
- पुरुष प्रधान समाज था लड़कों को ही शिक्षा देते थे जिससे उनके बाद वे उनके खानदानी पेशे या जीवन की आम ज़िम्मेदारियों को उठा सकें
- सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी बहुत सीमित थी और उन्हें घर-परिवार को चलाने वाले के रूप में देखा जाता था।
- दहेज़ का प्रबंध नहीं हो पाता था तो शादीशुदा लड़कियों को ईसाई मठों में भिक्षुणी (Nun) का जीवन बिताने के लिए भेज दिया जाता था।
- विवाह में प्राप्त महिलाओं के दहेज़ को पुरुष अपने पारिवारिक कारोबारों में लगा देते थे लेकिन महिलाओं को यह हक़ नहीं था की पति को कारोबार चलाने के बारे में कोई राय दें
- कारोबारी मैत्री को सुदृढ़ करने के लिए दो परिवारों में आपस में विवाह संबंध होते थे।
- व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति कुछ भिन्न थी दुकानों को चलाने में प्रायः उनकी सहायता करती थीं।
- व्यापारी परिवारों में यदि व्यापारी की कम आयु में मृत्यु हो जाती थी तो उसकी पत्नी सार्वजनिक जीवन में बड़ी भूमिका निभाने के लिए बाध्य होती थी।
प्रमुख महिलाएँ
1. उस काल की कुछ महिलाएँ बौद्धिक रूप से बहुत रचनात्मक थीं वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले फेदेले ने लिखा, "यद्यपि महिलाओं को शिक्षा न तो पुरस्कार देती है न किसी सम्मान का आश्वासन, तथापि प्रत्येक महिला को सभी प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने की इच्छा रखनी चाहिए और उसे ग्रहण करना चाहिए।“ फेदेले का नाम यूनानी और लातिनी भाषा के विद्वानों के रूप में विख्यात था। उन्हें पादुआ विश्वविद्यालय में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था।
2. मंटुआ की मार्चिसा ईसाबेला दि इस्ते इन्होंने अपने पति की अनुपस्थिति में अपने राज्य पर शासन किया यद्यपि मंटुआ, एक छोटा राज्य था तथापि उसका राजदरबार अपनी बौद्धिक प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध था।महिलाओं की रचनाओं से उनके इस दृढ़ विश्वास का पता चलता है कि उन्हें पुरुष प्रधान समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए अधिक आर्थिक स्वायत्तता, संपत्ति और शिक्षा मिलनी चाहिए।
ईसाई धर्म के अंतर्गत वाद-विवाद
- व्यापार और सरकार, सैनिक विजय और कूटनीतिक संपर्कों के कारण इटली के नगरों और राजदरबारों के दूर-दूर के देशों से संपर्क स्थापित हुए।
- पंद्रहवीं और आरंभिक सोलहवीं शताब्दियों में उत्तरी यूरोप के विश्वविद्यालयों के अनेक विद्वान मानवतावादी विचारों की ओर आकर्षित हुए।
- यूरोप में मानवतावाद ने ईसाई चर्च के अनेक सदस्यों को आकर्षित किया। उन्होंने ईसाइयों को अपने पुराने धर्मग्रथों में बताए गए तरीकों से धर्म का पालन करने का आह्वान किया।
- उन्होंने अनावश्यक कर्मकांडों को त्यागने की बात की और उनकी यह कहकर निंदा की कि उन्हें एक सरल धर्म में बाद में जोड़ा गया है।
- वे एक दूरवर्ती ईश्वर में विश्वास रखते थे और मानते थे कि उसने मनुष्य बनाया है लेकिन उसे अपना जीवन मुक्त रूप से चलाने की पूरी आज़ादी भी दी है।
- वे यह भी मानते थे कि मनुष्य को अपनी खुशी इसी विश्व में वर्तमान में ही ढूँढ़नी चाहिए।
ईसाई धर्म के नजरियो में बदलाव
- ईसाई मानवतावादी, इंग्लैंड के टॉमस मोर और होलैंड के इरेस्मस का यह मानना था की चर्च एक लालची और साधारण लोगों से बात-बात पर लूट-खसोट करने वाली संस्था बन गई है और लोगों से धन ठगने का सबसे सरल तरीका 'पाप-स्वीकारोक्ति’ नामक दस्तावेज़ था
- यूरोप के लगभग प्रत्येक भाग में राजाओ ने राज-काज में चर्च की दखलअंदाजी किसानों ने चर्च द्वारा करों का विरोध किया
- मानवतावादियों ने समाज को सूचित किया कि न्यायिक और वित्तीय शक्तियों पर पादरियों का दावा जो 'कॉन्स्टेनटाइन के अनुदान' नामक एक दस्तावेज़ से उत्पन्न होता है असली नहीं बल्कि परिवर्ती काल में जालसाजी से तैयार किया गया था।
प्रोटेस्टेंट सुधार
- 1517 में एक जर्मन युवा भिक्षु मार्टिन लूथर ने कैथलिक चर्च के विरुद्ध अभियान छेड़ा और इसके लिए उसने दलील पेश की कि मनुष्य को ईश्वर से संपर्क साधने के लिए पादरी की आवश्यकता नहीं है।
- लूथर ने अपने अनुयायियों को आदेश दिया कि वे ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखें क्योंकि केवल उनका विश्वास ही उन्हें एक सम्यक् जीवन की ओर ले जा सकता है और उन्हें स्वर्ग में प्रवेश दिला सकता है।
- इस आंदोलन को प्रोटेस्टेंट सुधारवाद नाम दिया गया
- जर्मनी और स्विटजरलैंड के चर्च ने पोप तथा कैथलिक चर्च से अपने संबंध समाप्त कर दिए
- व्यापारियों से समर्थन से सुधारकों की लोकप्रियता शहरों में अधिक थी, जबकि ग्रामीण इलाकों में कैथलिक चर्च का
- यूरोप के अनेक क्षेत्रों की तरह फ्रांस में भी कैथलिक चर्च ने प्रोटैस्टेंट लोगों को अपनी पसंद के अनुसार उपासना करने की छूट दी।
- इंग्लैंड के शासकों ने भी पोप से अपने संबंध तोड़ दिए और चर्च के प्रमुख बन गए।
कैथलिक सुधार
- चर्च ने स्वयं में सुधार करने प्रारंभ किये स्पेन और इटली में पादरियों ने सादा जीवन और निर्धनों की सेवा पर जोर दिया।
- स्पेन में, प्रोटैस्टेंट लोगों से संघर्ष करने के लिए इग्नेशियस लोयोला ने 1540 में 'सोसाइटी ऑफ जीसस' नामक संस्था की स्थापना की उनके अनुयायी जेसुइट कहलाते थे
- उनका ध्येय निर्धनों की सेवा करना और दूसरी संस्कृतियों के बारे में अपने ज्ञान को ज्यादा व्यापक बनाना था।
कोपरनिकसीय क्रांति
1. ईसाइयों की प्राचीन धारणा थी की ईसाइयों का यह विश्वास था कि पृथ्वी पापों से भरी हुई है और पापों की अधिकता के कारण वह स्थिर है। पृथ्वी, ब्रह्मांड (universe) के बीच में स्थिर है जिसके चारों और खगोलीय गृह घूम रहे हैं।
2. वैज्ञानिकों द्वारा प्राचीन धारणा में परिवर्त आया कोपरनिकस ने यह घोषणा की कि पृथ्वी समेत सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं इसे उसने अपनी पाण्डुलिपि दि रिवल्यूशनिबस में बतायाखगोलशास्त्री जोहानेस कैप्लर तथा गैलिलियो गैलिली ने अपने लेखों द्वारा 'स्वर्ग' और 'पृथ्वी' के अंतर को समाप्त कर दिया।
3. कैप्लर ने अपने ग्रंथ कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री (खगोलीय रहस्य) में कोपरनिकस के सूर्य-केंद्रित सौरमंडलीय सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया जिससे यह सिद्ध हुआ कि सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार रूप में नहीं बल्कि दीर्घ वृत्ताकार मार्ग पर परिक्रमा करते हैं।
4. गैलिलियो ने अपने ग्रंथ दि मोशन (गति) में गतिशील विश्व के सिद्धांतों की पुष्टि की। विज्ञान के जगत में इस क्रांति ने न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के साथ अपनी पराकाष्ठा की ऊँचाई को छू लिया।
ब्रह्मांड का अध्ययन