परिवहन तथा संचार Notes in Hindi Class 12 Geography Chapter-7 Book 2 Transport and Communication parivahan tatha sanchaar
0Team Eklavyaनवंबर 12, 2024
परिवहन
परिवहन व्यक्तियों और वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की सेवा या सुविधा को कहते हैं
परिवहन के साधन
1. स्थल
सड़क
रेलवे
पाइपलाइन
2. जल
अन्त: स्थलीय
सागरीय महासागरीय
3. वायु
राष्ट्रीय
अंतरराष्ट्रीय
स्थल परिवहन
भारत में मार्गों एवं कच्ची सड़कों का उपयोग परिवहन के लिए प्राचीन काल से किया जाता रहा है।
आर्थिक तथा प्रौद्योगिक विकास के साथ भारी मात्रा में सामानों तथा लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए पक्की सड़कों तथा रेलमार्गों का विकास किया गया है।
रज्जुमार्गों, केबिल मार्गों तथा पाइप लाइनों जैसे साधनों का विकास विशिष्ट सामग्रियों को विशिष्ट परिस्थितियों में परिवहन की माँग को पूरा करने के लिए किया गया।
सड़क परिवहन
भारत का सड़क जाल दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सड़क-जाल है। इसकी कुल लंबाई लगभग 62.16 लाख कि.मी. यहाँ प्रतिवर्ष सड़कों द्वारा लगभग 85 प्रतिशत यात्री तथा 70 प्रतिशत भार यातायात का परिवहन किया जाता है। छोटी दूरियों की यात्रा के लिए सड़क परिवहन सबसे बेहतर होता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में सड़कों की दशा सुधारने के लिए एक बीस वर्षीय सड़क योजना (1961) आरंभ की गई। लेकिन सड़कों का संकेंद्रण केवल नगरों और उनके आसपास के क्षेत्रों में ही रहा।
गाँव एवं सुदूर क्षेत्रों से सड़कों द्वारा संपर्क लगभग नहीं के बराबर था।
निर्माण एवं रख-रखाव के उद्देश्य से सड़कों का वर्गीकरण –
1. राष्ट्रीय महामार्ग (NH),
2. राज्य महामार्ग (SH),
3. प्रमुख जिला सड़क
4. ग्रामीण सड़क
राष्ट्रीय महामार्ग
राष्ट्रीय महामार्ग ऐसी सड़कों को कहा जाता है जिनका निर्माण एवं रखरखाव केंद्र सरकार के द्वारा किया जाता है
इन सड़कों का उपयोग अंतर्राज्यीय परिवहन तथा सामरिक क्षेत्रों तक रक्षा सामग्री एवं सेना के आवागमन के लिए होता है।
ये महामार्ग राज्यों की राजधानियों, प्रमुख नगरों, महत्वपूर्ण पत्तनों तथा रेलवे जंक्शनों को भी जोड़ते हैं।
राष्ट्रीय महामार्गों की लंबाई पूरे देश की कुल सड़कों की लंबाई की केवल 2 % है लेकिन ये सड़क यातायात के 40 % भाग का वहन करते हैं।
भारतीय राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण (एन.एच.ए.आई.) का प्रचालन 1995 में हुआ था।
इसके साथ ही यह राष्ट्रीय महामार्गों के रूप में निर्दिष्ट सड़कों की गुणवत्ता सुधार के लिए एक शीर्ष संस्था है।
राष्ट्रीय महामार्ग विकास परियोजना
स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden Quadri- lateral) परियोजना : इसके अंतर्गत 5,846 कि.मी. लंबी 4/6 लेन वाले उच्च सघनता के यातायात गलियारे शामिल हैं जो देश के चार विशाल महानगरों-दिल्ली-मुंबई-चेन्नई - कोलकाता को जोड़ते हैं। स्वर्णिम चतुर्भुज के निर्माण के साथ भारत के इन महानगरों के बीच समय-दूरी तथा यातायात की लागत महत्वपूर्ण रूप से कम होगी।
उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम गलियारा (North-South Corridor) :
उत्तर-दक्षिण गलियारे का उद्देश्य जम्मू व कश्मीर के श्रीनगर से तमिलनाडु के कन्याकुमारी (कोच्चि-सेलम पर्वत स्कंध सहित) को 4,016 कि.मी. लंबे मार्ग द्वारा जोड़ना है। पूर्व एवं पश्चिम गलियारे का उद्देश्य असम में सिलचर से गुजरात में पोरबंदर को 3,640 कि.मी. लंबे मार्ग द्वारा जोड़ना है।
1. राज्य महामार्ग
राज्य महामार्ग ऐसी सड़कों को कहा जाता है जिनका निर्माण एवं रखरखाव राज्य सरकार के द्वारा किया जाता है
यह सड़कें राज्य की राजधानी से जिला मुख्यालयों और मुख्य शहरों को जोड़ती है
यह महामार्ग राष्ट्रीय महामार्ग से जुड़े होते हैं
2. जिला सड़कें
यह सड़कें जिला मुख्यालय तथा जिले के अन्य महत्वपूर्ण स्थल को जोड़ती हैं
3. ग्रामीण सड़कें
यह सड़कें ग्रामीण क्षेत्रों को आपस में जोड़ती हैं देश की कुल सड़कों की लंबाई का 80 % हिस्सा ग्रामीण सड़कों का है
रेल परिवहन
भारतीय रेल नेटवर्क दुनिया के सर्वाधिक लंबे रेल नेटवर्क में से एक है।
भारतीय रेल माल और यात्री परिवहन को सुगम बनाने के साथ-साथ आर्थिक वृद्धि में भी योगदान देता है।
भारतीय रेल की स्थापना 1853 में हुई मुंबई (बंबई) से थाणे के बीच 34 कि.मी. लंबी रेल लाइन निर्मित की गई।
भारतीय रेल जाल की कुल लंबाई 67956 कि.मी. है
भारतीय रेल को 17 मंडलों में विभाजित किया गया है।
भारतीय रेल ने मीटर तथा नैरो गेज रेलमार्गों को ब्रॉड गेज में बदलने के लिए व्यापक कार्यक्रम शुरू किया है।
इसके अलावा वाष्प चालित इंजनों के स्थान पर डीजल और विद्युत इंजनों को लाया गया है।
इस कदम से रेलों की गति बढ़ने के साथ-साथ उनकी ढुलाई क्षमता भी बढ़ गई है।
कोयले द्वारा चालित वाष्प इंजनों के प्रतिस्थापन से रेलवे स्टेशनों के पर्यावरण में भी सुधार हुआ है।
अंग्रेज भारत में रेल इसलिए लाये थे ताकि भारत के संसाधन का शोषण हो सके आजादी के बाद इन रेलमार्गों का विस्तार अन्य क्षेत्रों में भी किया गया।
इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण कोंकण रेलवे का विकास है जो भारत के पश्चिमी समुद्री तट के साथ मुंबई और मंगलूरु के बीच सीधा संपर्क उपलब्ध कराता है।
कोंकण रेलवे
1998 में कोंकण रेलवे का निर्माण भारतीय रेल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
यह 760 कि.मी. लंबा रेलमार्ग महाराष्ट्र में रोहा को कर्नाटक के मंगलौर से जोड़ता है।
इसे अभियांत्रिकी का एक अनूठा चमत्कार माना जाता है।
यह रेलमार्ग 146 नदियों व धाराओं तथा 2000 पुलों एवं 91 सुरंगों को पार करता है।
इस मार्ग पर एशिया की सबसे लंबी 6.5 कि.मी. की सुरंग भी है।
इस उद्यम में कर्नाटक, गोवा तथा महाराष्ट्र राज्य भागीदार हैं
मेट्रो रेल
मेट्रो रेल ने भारत में नगरीय परिवहन व्यवस्था में क्रांति ला दी है।
मेट्रो रेल के चलने से नगरीय क्षेत्र के वायु प्रदूषण को नियंत्रण करने में मदद मिली है
जल परिवहन
भारत में जलमार्ग यात्री तथा माल वहन, दोनों के लिए परिवहन की एक महत्वपूर्ण विधा है।
यह परिवहन का सबसे सस्ता साधन है तथा भारी एवं स्थूल सामग्री के परिवहन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
यह ईंधन दक्ष तथा पारिस्थितिकी अनुकूल परिवहन प्रणाली है।
जल परिवहन दो प्रकार का होता है- (क) अन्तः स्थलीय जलमार्ग और (ख) महासागरीय जलमार्ग।
जल परिवहन
1. अन्तः स्थलीय जलमार्ग
2. महासागरीय जलमार्ग
अन्तः स्थलीय जलमार्ग -
जब रेलमार्ग नहीं थे तब जलमार्ग का अधिक इस्तेमाल किया जाता था
जलमार्ग को, रेल व सड़क परिवहन के साथ कठिन प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा।
नदियों के जल को सिंचाई के लिए बाँट देने के कारण इनके मार्गों के अधिकांश भाग नौसंचालन के योग्य नहीं रहे हैं।
वर्तमान में 14,500 कि.मी. लंबा जलमार्ग नौकायन हेतु उपलब्ध है
जो देश के परिवहन में लगभग 1% का योगदान देता है।
देश में राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास, अनुरक्षण तथा नियमन हेतु 1986 में अंतः स्थलीय जलमार्ग प्राधिकरण स्थापित किया गया था।
सरकार द्वारा घोषित किए गए - राष्ट्रीय जलमार्ग
केरल के पश्च जल (कडल) का अंतः स्थलीय जलमार्गों में अपना एक विशिष्ट महत्व है।
ये परिवहन का सस्ता साधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ केरल में भारी संख्या में पर्यटकों को भी आकर्षित करते हैं।
यहाँ की प्रसिद्ध नेहरू ट्रॉफी नौकादौड़ (वल्लामकाली) भी इसी पश्च जल में आयोजित की जाती है।
महासागरीय जलमार्ग -
भारत के पास द्वीपों सहित लगभग 7,517 कि.मी. लंबा व्यापक समुद्री तट है।
12 प्रमुख तथा 200 गौण पत्तन इन मार्गों को संरचनात्मक आधार प्रदान करते हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था के परिवहन सेक्टर में महासागरीय मार्गों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
भारत में भार के अनुसार लगभग 95% तथा मूल्य के अनुसार 70% विदेशी व्यापार महासागरीय मार्गों द्वारा होता है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के साथ-साथ इन मार्गों का उपयोग देश की मुख्य भूमि तथा द्वीपों के बीच परिवहन के लिए भी होता है।
वायु परिवहन
भारत में वायु परिवहन की शुरुआत 1911 में हुई, जब इलाहाबाद से नैनी तक की 10 कि.मी. की दूरी हेतु वायु डाक प्रचालन संपन्न किया गया था।
वायु परिवहन एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने का तीव्रतम साधन है। इसने यात्रा समय को घटाकर दूरियों को कम कर दिया है।
भारत जैसे विस्तृत देश के लिए वायु परिवहन बहुत ही आवश्यक है क्योंकि यहाँ दूरियाँ बहुत लंबी हैं तथा भूभाग एवं जलवायवी दशाएँ अत्यंत विविधतापूर्ण हैं।लेकिन इसका वास्तविक विकास देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हुआ।
वायु परिवहन की एक कमी यह है की यह काफी महंगा होता है
वायु प्राधिकरण (एयर अथॉरिटी ऑफ इंडिया) भारतीय वायुक्षेत्र में सुरक्षित, सक्षम वायु यातायात एवं वैमानिकी संचार सेवाएँ प्रदान करने के लिए उत्तरदायी है।
पवन हंस एक हेलीकॉप्टर सेवा है जो पर्वतीय क्षेत्रों में सेवारत है और उत्तर-पूर्व सेक्टर में व्यापक रूप से पर्यटकों द्वारा उपयोग में लाया जाता है।
तेल एवं गैस पाइपलाइन
पाइप लाइनें गैसों एवं तरल पदार्थों के लंबी दूरी तक परिवहन हेतु अत्यधिक सुविधाजनक एवं सक्षम परिवहन प्रणाली है।
यहाँ तक की इनके द्वारा ठोस पदार्थों को भी घोल या गारा में बदलकर परिवहित किया जा सकता है।
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के प्रशासन के अधीन स्थापित आयल इंडिया लिमिटेड (ओ.आई.एल.) कच्चे तेल एवं प्राकृतिक गैस के अन्वेषण, उत्पादन और परिवहन में संलग्न है।
इसे 1959 में एक कंपनी के रूप में निगमित किया गया था।
एशिया की पहली 1157 कि.मी. लंबी देशपारीय पाइपलाइन (असम के नहरकरिटया तेल क्षेत्र से बरौनी के तेल शोधन कारखाने तक) का निर्माण आई.ओ.एल. ने किया था।
इसे 1966 में और आगे कानपुर तक विस्तारित किया गया।
गेल (इंडिया) लिमिटेड की स्थापना 1984 में हुई
यह प्राकृतिक गैस के परिवहन, प्रसंस्करण और उसके आर्थिक उपयोग के लिए उसका विपणन करने के लिए की गयी थी।
संचार जाल
मानव ने प्राचीन काल से ही संचार के विभिन्न माध्यम विकसित किए हैं।
आरंभिक समय में ढोल या पेड़ के खोखले तने को बजाकर, आग या धुएँ के संकेतों द्वारा तीव्र धावकों की सहायता से संदेश पहुँचाए जाते थे।
उस समय घोड़े, ऊँट, कुत्ते, पक्षी तथा अन्य पशुओं को भी संदेश पहुँचाने के लिए प्रयोग किया जाता था।
डाकघर, तार, प्रिंटिंग प्रेस, दूरभाष तथा उपग्रहों की खोज ने संचार को बहुत तीव्र एवं आसान बना दिया
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास ने संचार के क्षेत्र में क्रांति लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संचार
वैयक्तिक
सार्वजनिक
वैयक्तिक
टेलीफोन
टेलीग्राम
फैक्स
ईमेल
इन्टरनेट आदि
सार्वजनिक
रेडियो
टीवी
उपग्रह
समाचार पत्र
पत्रिका
पुस्तकें
वैयक्तिक संचार प्रणाली -
वैयक्तिक संचार तंत्रों में इन्टरनेट सबसे व्यापक और प्रभावी है यह सबसे अधिक आधुनिक भी है
नगरीय क्षेत्र में बड़े स्तर पर ईमेल का इस्तेमाल सन्देश भेजने के लिए किया जाता है
सार्वजनिक संचार प्रणाली ( जनसंचार )
रेडियो
भारत में रेडियो का प्रसारण सन् 1923 में रेडियो क्लव ऑफ बोम्बे द्वारा प्रारंभ किया गया था।
रेडियो ने असीमित लोकप्रियता पाई है और लोगों के सामाजिक संस्कृतिक जीवन में परिवर्तन ला दिया है।
अल्पकाल में ही इसने देश भर में प्रत्येक घर में जगह बना ली है।
सरकार ने 1930 में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के अंतर्गत इस लोकप्रिय संचार माध्यम को अपने नियंत्रण में ले लिया।
1936 में इसे ऑल इंडिया रेडियों और 1957 में आकाशवाणी में बदला दिया गया।
ऑल इंडिया रेडियो सूचना, शिक्षा एवं मनोरंजन से जुड़े विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को प्रसारित करता है।
विशेष समाचार बुलेटिनों को भी प्रसारित किया जाता है।
टेलीविज़न (T.V)
टेलीविजन सूचना के प्रसार और आम लोगों को शिक्षित करने में अत्यधिक प्रभावी साबित हुआ दृश्य-श्रव्य माध्यम के रूप में उभरा है।
प्रारंभिक दौर में टी.वी. सेवाएँ केवल राष्ट्रीय राजधानी तक सीमित थीं
जहाँ इसे 1959 में प्रारंभ किया गया था।
1972 के बाद कई अन्य केंद्र चालू हुए।
सन् 1976 में टी.वी. को ऑल इंडिया रेडियो (ए.आई. आर.) से अलग कर दिया गया और इसे दूरदर्शन (डी.डी.) के रूप में एक अलग पहचान दी गई।
उन्हें देश भर के पिछड़े और सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया।
उपग्रह संचार
उपग्रह, संचार की स्वयं में एक विधा हैं और ये संचार के अन्य साधनों का भी नियमन करते हैं।
उपग्रह से प्राप्त चित्रों का मौसम के पूर्वानुमान, प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी, सीमा क्षेत्रों की चौकसी आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है।