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पद विद्यापति vyakhya Antra Hindi chapter 8 kavita class 12

 

पद विद्यापति vyakhya Antra Hindi chapter 8 kavita class 12

 पद 

कविता : पद

कवि : विद्यापति


परिचय

  • इसमें विद्यापति द्वारा रचित तीन पद लिए गए हैं। प्रथम पद में कवि ने नायक के वियोग में संतृप्त नायिका का वर्णन किया है |
  • दूसरे पद में कवि ने ऐसी ऐसी नायिका का वर्णन किया है जो जन्म-जन्मान्तर से अपने प्रियतम के रूप का पान करके भी स्वयम को अतृप्त ही अनुभव करती है ।
  • तीसरे पद में कवि ने नायक के वियोग में संतृप्त ऐसी विरहणी का चित्रण किया है जिसे नायक के वियोग में प्रकृति के आनंददायक दृश्य भी कष्टदायक प्रतीत होते हैं ।

 

के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास।
हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास ।।
एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए।
सखि अनकर दुख दारुन रे जग के पतिआए।।
मोर मन हरि हर लए गेल रे अपनो मन गेल।
गोकुल तेजि मधुपुर बस रे कन अपजस लेल।।
विद्यापति कवि गाओल रे धनि धरु मन आस।
आओत तोर मन भावन रे एहि कातिक मास ।।


संदर्भ - कविता : पद

कवि  : विद्यापति

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि विद्यापति द्वारा रचित पद से ली गई हैं |  प्रथम पद में कवि ने नायक के वियोग में संतृप्त नायिका का वर्णन किया है |

व्याख्या-

  • इस पद में नायिका राधा है, और नायक कृष्ण हैं
  • कवि बताना चाहते हैं की वर्षा ऋतु गयी है और नायिका को अपने नायक की याद सताने लगी है और वह अपने नायक को अपना संदेसा भेजना चाहती है
  • नायिका अपनी सखी से पूछती है की मेरा पत्र लेकर मेरे नायक के पास कौन जायगा पहुंचा दें।
  • क्या ऐसा कोई नहीं है जो मेरे इस पत्र को मेरे प्रियतम कृष्ण के पासइस सावन के महीने में विरह वेदना का असहनीय दुःख मेरा यह शरीर अब नहीं झेल पा रहा है |
  • और इस बड़े भवन में मैं अपने प्रियतम के बिना नहीं रह पा रही हूँ।
  • हे सखी मेरे इस कठोर दुःख को संसार में ऐसा कौन मनुष्य है जो समझ " पायेगा अर्थात मेरे इस असहनीय दुःख को इस दुनिया में कोई नहीं समझता |
  • मेरा मन तो श्री कृष्ण अपने साथ ही लेकर चले गए हैं, गोकुल छोड़ अब वे मथुरा जा बसे हैं और एक बार जाने के बाद अब वे लौट कर ही नहीं रहे है, इससे उनकी बदनामी भी होने लगी है।
  • अब कवि विद्यापति कहते हैं की हे, राधा तुम अपने मन में सब धीरज  और आशा रखो और विश्वास रखों की तुम्हारे प्रियतम श्रीकृष्ण कार्तिक के महीने तक जरूर वापस जायंगे तुम्हारे पास

 

विशेष

  • इस पद में नायिका की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है
  • इस पद में मैथली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है |
  • इस पद में वियोग रस विद्यमान है
  • 'मोर मन' में अनुप्रास अलंकर का सुंदर प्रयोग किया गया है
  • यह एक छंद-युक्त पद है।
  • कवि की भाषा लयात्मक काव्यात्मक एवं भावानुरूप है।

 


सखि हे, कि पुछसि अनुभव मोए।
सेह पिरिति अनुराग बखानिअ तिल तिल नूतन होए ।।
जनम अबधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।।
सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल सुति पथ परस न गेल।।
कत मधु-जामिनि रभस गमाओलि न बूझल कइसन केलि।।
लाख लाख जुग हिअ हिअ राखल तइओ हिअ जरनि न गेल।।
कत बिदगध जन रस अनुमोदए अनुभव काहु न पेख।।
विद्यापति कह प्रान जुड़ाइते लाखे न मीलल एक।।


संदर्भ - कविता : पद

कवि  : विद्यापति

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि विद्यापति द्वारा रचित पद से ली गई हैं |  दूसरे पद में कवि ने ऐसी ऐसी नायिका का वर्णन किया है जो जन्म-जन्मान्तर से अपने प्रियतम के रूप का पान करके भी स्वयम को अतृप्त ही अनुभव करती है

 व्याख्या-

  • सखिया राधा से उसके अनुभवों के बारे में पूछने लगती हैं, तो राधा कहती है है सखी मुझसे उन सुंदर पलों का अनुभव क्या पूछती हो मैं तो जितनी बार उन पलों के बारे में बताउंगी उतनी बार वो पैल नए होर्त जायंगे
  • अर्थात प्रेम को सिर्फ महसूस किया जाता है एवं प्रेम अनुभव की वस्तु है प्रेम का वर्णन कभी नहीं किया जा सकता |
  • मैने अपने पूरे जीवन में अपने प्रिय श्रीकृष्ण का रूप निहारा है, उन्हें जीवन भर निहारती रही परन्तु मेरी आँखों की प्यास कभी बुझ सकी अर्थात जो सच्चा प्रेम होता है उसमे व्यक्ति कभी तृप्त नहीं होता हमेशा नवीन रहता है।
  • श्रीकृष्ण की मीठी मीठी मधुर वाणी को सुनने के लिए मेरे कान उत्सुक रहते हैं, श्रीकृष्ण के मुख से निकले मधुर बोल मैं अपने कानो से सुनती रहती हूँ पर मेरे कानों को कभी तृप्ति नहीं मिलती
  • जाने कितनी मिलन की रातें मैंने श्रीकृष्ण के साथ आनंद में व्यतीत कर दी, परन्तु आजतक जान सकी यह सब कैसे हुआ ??
  • लाखो युगों तक मैंने प्रिय को हृदय में बसा कर रखा परन्तु फिर भी हृदय में से प्रेम की अनुभूति की आग नहीं बुझी
  • प्रेम रस को पीने वाले कितने सरे व्यक्ति हैं, जिन्होंने इसका अनुभव किया है परन्तु सच्चा और पूरा अनुभव कोई भी नहीं कर पाया
  • कवि विद्यापति कहते हैं की लाखों व्यक्तियों में एक भी व्यक्ति उन्हें ऐसा नहीं मिला जिसका प्रेम का अनुभव सच्चा हो और वो तृप्त हो

 

विशेष

  • इस पद में नायिका की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है।
  • इस पद में मैथली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है
  • पथ परस' में अनुप्रास अलंकर है; 'स्वनाही सूनल' में अनुप्रास अलंकर है
  • इस पद में वियोग रस विद्यमान है
  • यह एक छंद-युक्त पद है।
  • कवि की भाषा लयात्मक काव्यात्मक एवं भावानुरूप है

 

 

कुसुमित कानन हेरि कमलमुखि, मूदि रहए दु नयान।
कोकिल-कलरव, मधुकर-धुनि सुनि, कर देइ झाँपइ कान।।
माधब, सुन-सुन बचन हमारा।
तुअ गुन सुंदरि अति भेल दूबरि-गुनि-गुनि प्रेम तोहारा ।।
धरनी धरि धनि कत बेरि बइसइ, पुनि तहि उठइ न पारा।
कातर दिठि करि, चौदिस हेरि-हेरि नयन गरए जल-धारा।।
तोहर बिरह दिन छन-छन तनु छिन- चौदसि-चाँद-समान।
भनइ विद्यापति सिबसिंह नर-पति लखिमादेइ-रमान।।


संदर्भ - कविता : पद

कवि  : विद्यापति

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि विद्यापति द्वारा रचित पद से ली गई हैं |  तीसरे पद में कवि ने नायक के वियोग में संतृप्त ऐसी विरहणी का चित्रण किया है जिसे नायक के वियोग में प्रकृति के आनंददायक दृश्य भी कष्टदायक प्रतीत होते हैं

 व्याख्या-

  • राधा की सहेली कृष्ण के सामने राधा की विरह अवस्था का वर्णन कर रही है :कमल के जैसी मुख वाली सुंदर राधा वह जब खिले हुए फूलों को देखती है तो वह अपनी आँखे बंद कर लेती हैं।
  • और कोयल की आवाज़ को सुनकर और भवरे की गूंज को सुनकर राधा अपने कान ढक लेती है
  • अर्थात ये सब जो मिलन के प्रतीक हैं इन सब को देख कर राधा का दुःख और बढ़ जाता है।
  • हे श्रीकृष्ण, तुम हमारी बात सुनो तुम्हारे प्रेम में तुम्हे याद कर कर के राधा की हालत बहुत खराब हो चुकी हैं और राधा बहुत कमजोर हो गयी है और इतनी कमज़ोर हो गई है की यदि वह एक बार धरती पर बैठ जाती है तो उससे उठा भी नहीं जाता
  • और वह अपने दुःख से चारो ओर देखती रहती है की शायद तुम कहीं से जाओ लेकिन जब वह तुम्हे कहीं नहीं पाती तो वह निराश होकर रोने लगती है
  • तुमसे दूर होकर वह हर पल इतनी कमजोर होती जा रही है जैसा की चौदस का चाँद होता है।
  • राजा शिवसिंह विरह के प्रभाव को जानते हैं और वे अपनी पत्नी लखमीदेवी को विरह का कष्ट नहीं देना चाहते तो इसी लिए वे अपनी पत्नी के साथ भ्रमण करते हैं

विशेष

  • इस पद में नायिका की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है।
  • इस पद में मैथली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है
  • 'धरनी धरि धनि' में अनुप्रास अलंकर का सुंदर प्रयोग किया गया है |
  • इस पद में वियोग रस विद्यमान है
  • अनुप्रास अलंकर का सुंदर प्रयोग किया गया है |
  • यह एक छंद-युक्त पद है।
  • कवि की भाषा लयात्मक काव्यात्मक एवं भावानुरूप है

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