पद
कविता : पद
कवि : विद्यापति
परिचय
- इसमें विद्यापति द्वारा रचित तीन
पद लिए गए हैं। प्रथम पद में कवि ने नायक के वियोग में संतृप्त नायिका का वर्णन
किया है |
- दूसरे पद में कवि ने ऐसी ऐसी
नायिका का वर्णन किया है जो जन्म-जन्मान्तर से अपने प्रियतम के रूप का पान करके भी
स्वयम को अतृप्त ही अनुभव करती है ।
- तीसरे पद में कवि ने नायक के
वियोग में संतृप्त ऐसी विरहणी का चित्रण किया है जिसे नायक के वियोग में प्रकृति
के आनंददायक दृश्य भी कष्टदायक प्रतीत होते हैं ।
के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास।
हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास ।।
एकसरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए।
सखि अनकर दुख दारुन रे जग के पतिआए।।
मोर मन हरि हर लए गेल रे अपनो मन गेल।
गोकुल तेजि मधुपुर बस रे कन अपजस लेल।।
विद्यापति कवि गाओल रे धनि धरु मन आस।
आओत तोर मन भावन रे एहि कातिक मास ।।
संदर्भ - कविता : पद
कवि : विद्यापति
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि विद्यापति द्वारा रचित पद से ली गई हैं | प्रथम पद में कवि ने नायक के वियोग में संतृप्त नायिका का वर्णन किया है |
व्याख्या-
- इस पद में नायिका राधा है, और नायक कृष्ण हैं ।
- कवि बताना चाहते हैं की वर्षा ऋतु आ गयी है और नायिका को अपने नायक की याद सताने लगी है और वह अपने नायक को अपना संदेसा भेजना चाहती है ।
- नायिका अपनी सखी से पूछती है की मेरा पत्र लेकर मेरे नायक के पास कौन जायगा पहुंचा दें।
- क्या ऐसा कोई नहीं है जो मेरे इस पत्र को मेरे प्रियतम कृष्ण के पासइस सावन के महीने में विरह वेदना का असहनीय दुःख मेरा यह शरीर अब नहीं झेल पा रहा है |
- और इस बड़े भवन में मैं अपने प्रियतम के बिना नहीं रह पा रही हूँ।
- हे सखी मेरे इस कठोर दुःख को संसार में ऐसा कौन मनुष्य है जो समझ " पायेगा अर्थात मेरे इस असहनीय दुःख को इस दुनिया में कोई नहीं समझता |
- मेरा मन तो श्री कृष्ण अपने साथ ही लेकर चले गए हैं, गोकुल छोड़ अब वे मथुरा जा बसे हैं और एक बार जाने के बाद अब वे लौट कर ही नहीं आ रहे है, इससे उनकी बदनामी भी होने लगी है।
- अब कवि विद्यापति कहते हैं की हे, राधा तुम अपने मन में सब धीरज और आशा रखो और विश्वास रखों की तुम्हारे प्रियतम श्रीकृष्ण कार्तिक के महीने तक जरूर वापस आ जायंगे तुम्हारे पास
विशेष
- इस पद में नायिका की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है ।
- इस पद में मैथली भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है |
- इस पद में वियोग रस विद्यमान है
- 'मोर मन' में अनुप्रास अलंकर का सुंदर प्रयोग किया गया है ।
- यह एक छंद-युक्त पद है।
- कवि की भाषा लयात्मक काव्यात्मक एवं भावानुरूप है।
सखि हे, कि पुछसि अनुभव मोए।
सेह पिरिति अनुराग बखानिअ तिल तिल नूतन होए ।।
जनम अबधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल।।
सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल सुति पथ परस न गेल।।
कत मधु-जामिनि रभस गमाओलि न बूझल कइसन केलि।।
लाख लाख जुग हिअ हिअ राखल तइओ हिअ जरनि न गेल।।
कत बिदगध जन रस अनुमोदए अनुभव काहु न पेख।।
विद्यापति कह प्रान जुड़ाइते लाखे न मीलल एक।।
संदर्भ - कविता : पद
कवि : विद्यापति