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बनारस, दिशा, केदारनाथ सिंह Antra Hindi Chapter 4 व्याख्या CLASS 12

बनारस, दिशा, केदारनाथ सिंह Antra Hindi Chapter 4 व्याख्या CLASS 12


  बनारस  

कविता : बनारस

कवि : केदारनाथ सिंह

परिचय

इस कविता मे प्राचीन शहर बनारस (वाराणसी) की संस्कृतिक विशेषताओं का सुंदर वर्णन किया गया है इस कविता मे बनारस मे गंगा , गंगा घाट , मंदिरों और भिखारियों का भी सुंदर वर्णन किया गया है


बनारस

इस शहर में वसंत अचानक आता है

और जब आता है तो मैंने देखा है

लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से 

उठता है धूल का एक बवंडर 

और इस महान पुराने शहर की जीभ 

किरकिराने लगती है



जो है वह सुगबुगाता है

जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ 

आदमी दशाश्वमेध पर जाता है

और पाता है घाट का आखिरी पत्थर 

कुछ और मुलायम हो गया है 

सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आँखों में 

एक अजीब सी नमी है

और एक अजीब सी चमक से भर उठा है

भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन


संदर्भ – कवि : केदारनाथ सिंह

कविता : बनारस

प्रसंग :  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह जी द्वारा रचित कविता बनारस से ली गई हैं

इस कविता मे  प्राचीन शहर बनारस (वाराणसी) की संस्कृतिक विशेषताओं का सुंदर वर्णन किया गया है इस कविता मे बनारस मे गंगा , गंगा घाट , मंदिरों और भिखारियों का भी सुंदर वर्णन किया गया है

व्याख्या -

  • कवि कहता है की बनारस मे वसंत का आगमन अचानक से होता है मैंने देखा है यहाँ जब वसंत आता है तो बनारस के लहरतरा या मडुवाडीह मोहल्ले की ओर से एक धूलभरी आंधी उठती है
  • उस समय इस महान पुराने शहर के हर भाग मे धूल नजर आती है इसी कारण मुहँ मे धूल की किरकिरी होने लगती है इस प्रकार धूल का बवंडर उठने के साथ ही यहाँ वसंत का आगमन हो जाता है
  • जब वसंत आता है तो पेड़ों पर नए पत्ते आ जाते हैं और वसंत के आने पर दशाश्वमेध घाट पर चहल पहल भी बढ़ जाती है
  • यहाँ घाट का आखिरी पत्थर भी मुलायम होने का मतलब है की ऐसे वातावरण मे कठोर हृदय वाला व्यक्ति भी कोमल हृदय वाला हो जाता है
  • कवि कहते है सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आँखों मे डर नहीं है और वे बिना किसी चिंता के वहाँ बैठे हैं और इससे पता चलता है वहाँ के लोगों मे प्यार है और अपनेपन की भावना है ( न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि बंदरों के लिए भी )



तुमने कभी देखा है

खाली कटोरों में वसंत का उतरना

यह शहर इसी तरह खुलता है इसी तरह भरता

और खाली होता है यह शहर


इसी तरह रोज़-रोज़ एक अनंत शव 

ले जाते हैं कंधे 

अँधेरी गली से 

चमकती हुई गंगा की तरफ़

इस शहर में धूल 

धीरे-धीरे उड़ती है 

धीरे-धीरे चलते हैं 

लोग धीरे-धीरे बजते हैं घंटे 

शाम धीरे-धीरे होती है

संदर्भ – कवि  :  केदारनाथ सिंह

 कविता   :  बनारस

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह जी द्वारा रचित कविता बनारस से ली गई हैं | इस कविता मे  प्राचीन शहर बनारस (वाराणसी) की संस्कृतिक विशेषताओं का सुंदर वर्णन किया गया है | इस कविता मे बनारस मे गंगा , गंगा घाट , मंदिरों और भिखारियों का भी सुंदर वर्णन किया गया है

व्याख्या 

  • वसंत के आते ही भिखारियों के कटोरों का खालीपन भी खत्म हो जाता है , क्योंकि जब लोग बनारस आते हैं तो उनके कटोरों मे सिक्के डालते हैं
  • बनारस शहर के साथ एक आस्था जुड़ी है की अगर अस्थियों को गंगा मे बहा दिया जाए तो उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है   (आत्मा को शांति मिलती है )
  • इसलिए इस शहर मे हर रोज अनगिनत शवों को अपने कंधों पर लाद कर लोग बनारस की गलियों से गंगा की तरफ लेकर जाते हैं
  • बनारस एक प्राचीन शहर है और यह शहर भगत दौड़ता शहर नहीं है , यहाँ सब कुछ धीरे धीरे होता है
  • यहाँ के निवासियों का व्यक्तित्व (personality) बहुत ठहराव वाला और पुराने विचारों वाला है


यह धीरे-धीरे होना

धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय 

दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को

इस तरह कि कुछ भी 

गिरता नहीं है

कि हिलता नहीं है कुछ भी

कि जो चीज़ जहाँ थी

वहीं पर रखी है

कि गंगा वहीं है

कि वहीं पर बंधी है नाव

कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ

सैकड़ों बरस से


संदर्भ – कवि  :  केदारनाथ सिंह

कविता   :  बनारस

प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह जी द्वारा रचित कविता बनारस से ली गई हैं | इस कविता मे  प्राचीन शहर बनारस (वाराणसी) की संस्कृतिक विशेषताओं का सुंदर वर्णन किया गया है | इस कविता मे बनारस मे गंगा , गंगा घाट , मंदिरों और भिखारियों का भी सुंदर वर्णन किया गया है 

व्याख्या 

  • धीरे धीरे सभी कार्यों को करने की  उनकी इस विशेषता ने सारे समाज को एकता के सूत्र मे बांधा हुआ है
  • घाट पर बंधी नाव हो या फिर तुलसीदास की चरण पादुकाएँ वे आज भी वहीं की वहीं हैं , सैंकड़ों बरसों से और गंगा भी सैंकड़ों सालों से वहीं है
  • यह सब बातें बताकर कवि इस बात को स्पष्ट करना चाहता है की यहाँ की जो परंपराएँ हैं वे सैंकड़ों वर्षों से वैसी ही है बनारस चाहे कितना भी आधुनिक हुआ हो पर बनारस ने अपनी परंपराओं को नहीं भुलाया


 

कभी सई-साँझ

बिना किसी सूचना के

घुस जाओ इस शहर में

कभी आरती के आलोक में


इसे अचानक देखो

अद्भुत है इसकी बनावट

यह आधा जल में है 

आधा मंत्र में 

आधा फूल में है

आधा शव में

आधा नींद में है 

आधा शंख में 

अगर ध्यान से देखो 

तो यह आधा है 

और आधा नहीं है


संदर्भ – कवि  :  केदारनाथ सिंह

कविता :  बनारस

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह जी द्वारा रचित कविता बनारस से ली गई हैं | इस कविता मे  प्राचीन शहर बनारस (वाराणसी) की संस्कृतिक विशेषताओं का सुंदर वर्णन किया गया है | इस कविता मे बनारस मे गंगा , गंगा घाट , मंदिरों और भिखारियों का भी सुंदर वर्णन किया गया है

व्याख्या -

इन पंक्तियों मे कवि शाम के समय बनारस शहर की सुंदरता का वर्णन किया है कवि कहते हैं अगर शाम के समय ध्यान से बनारस शहर को  देखा जाए मंदिरों और घाटों पर आरती दिखाई देती है , उसकी चमक चारों तरफ फैली दिखाई देती है और बनारास शहर जल , मंत्र और फूल मे भगवान की आरती करते हुए श्रद्धा मे डूबे हुए लगता है


जो है वह खड़ा है 

बिना किसी स्तंभ के 

जो नहीं है उसे थामे है

राख और रोशनी के ऊँचे-ऊँचे स्तंभ 

आग के स्तंभ 

और पानी के स्तंभ

 धुएँ के

 खुशबू के 

आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ


किसी अलक्षित सूर्य को

देता हुआ अर्घ्य 

शताब्दियों से इसी तरह 

गंगा के जल में 

अपनी एक टाँग पर खड़ा है

यह शहर अपनी दूसरी टाँग से

बिलकुल बेखबर !

संदर्भ – कवि :  केदारनाथ सिंह

कविता : बनारस    

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह जी द्वारा रचित कविता बनारस से ली गई हैं | इस कविता मे  प्राचीन शहर बनारस (वाराणसी) की संस्कृतिक विशेषताओं का सुंदर वर्णन किया गया है | इस कविता मे बनारस मे गंगा , गंगा घाट , मंदिरों और भिखारियों का भी सुंदर वर्णन किया गया है

व्याख्या 

  • इन पंक्तियों मे कवि ने बनारस की आस्था और विश्वास का वर्णन किया है

  • बनारस बिना किसी खंबे के सदियों से खड़ा है ,

अर्थात :-

  1. आग के स्तंभ (यज्ञ , पूजा)
  2. पानी के स्तंभ ( गंगा )
  3. धुएं के स्तंभ (आरती )
  4. खुशबू के स्तंभ (अगरबत्ती)
  5. आदमी के उठे हाथों के स्तंभ (भक्त )

  • इनकी वजह से बनारस खड़ा है
  • बनारस के लोग सैंकड़ों सालों से धर्म कर्म मे लगे हुए हैं और सालों से पूजा पाठ करते आ रहे हैं |
  • यह शहर अपने आप मे अद्भुत है |
  • बनारस को न तो आधुनिक जीवन से मोह है और न ही बैर |

विशेष

  • इस कविता मे बनारस शहर का सुंदर वर्णन किया गया है |
  • यह एक छंद मुक्त कविता है |
  • इस कविता मे खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है |
  • इस कविता मे अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया गया है |
  • इस कविता मे तत्सम युक्त शब्दों का प्रयोग किया गया है |



दिशा

 

परिचय 

  • यह कविता बाल मनोविज्ञान पर आधारित है | बालक का उत्तर स्वाभाविक है |
  • हर व्यक्ति का अपना यथार्थ होता है |
  • बच्चे यथार्थ को अपने ढंग से देखते हैं और उसे बताते हैं |


हिमालय किधर है ?

मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर

पतंग उड़ा रहा था

उधर उधर उसने कहा

जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी

मैं स्वीकार करू

मैंने पहली बार जाना

हिमालय किधर है !

 

संदर्भकवि : केदारनाथ सिंह

कविता : दिशा

प्रसंग : प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग  2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह जी द्वारा रचित है तथा इस कविता मे बाल मनोविज्ञान का वर्णन किया गया है |

 व्याख्या -

  • एक बच्चा स्कूल के बाहर पतंग उड़ा रहा था | कवि ने उससे पूछा की हिमालय किधर है ? जिधर बच्चे की पतंग जा रही थी उसने उसी दिशा की ओर इशारा करते हुए कहा की हिमालय उधर है |
  • कवि कहता है की मैं स्वीकार करता हूँ की मैंने पहली बार जाना की हिमालय किधर है | कवि के कहने का तात्पर्य यह है की उस समय उसने पहली बार अनुभव किया की हर व्यक्ति का यथार्थ अपना अपना होता है |
  • बच्चे भी दुनिया की हर चीज को अपने ढंग से देखते और समझते हैं |

 

विशेष-

  • यह कविता बाल मनोविज्ञान पर आधारित है | बालक का उत्तर स्वाभाविक है |
  • हर व्यक्ति का अपना यथार्थ होता है |
  • इस कविता की भाषा सरल , सहज और सरस है |
  • इस कविता मे कवि ने अलंकारों का बहुत सुंदर प्रयोग किया है |

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