Editor Posts footer ads

कवित्त घनानंद vyakhya Antra Hindi chapter 9 class 12

 

कवित्त घनानंद vyakhya Antra  Hindi chapter 9 class 12

 घनानंद कवित्त 

परिचय

  • हमारे syllabus मे घनानंद द्वारा रचित 2 कवित्त तथा 2 सवैया दिए गए हैं |
  • पहले कवित्त मे कवि ने अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करके लिखा है की वह उससे मिलने के लिए व्याकुल है, और वह चाहता है की उसकी प्रेमिका एक बार अवश्य उसे दर्शन दे |
  • दूसरे कवित्त मे कवि अपनी प्रेमिका से कहता है की वह उससे मिलने मे आनाकानी करे |

( 1 )

बहुत दिनान को अवधि आसपास परे,

खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को।

कहि कहि आवन छबीले मनभावन को,

गहि गहि राखति ही दै दै सनमान को।।

झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है कै,

अब ना घिरत घन आनंद निदान को।

अधर लगे हैं आनि करि कै पयान प्रान,

चाहत चलन ये सँदेसो लै सुजान को ।।


व्याख्या 

  • कवि बहुत दिनों से अपनी प्रेमिका सुजान के वापस आने के इंतज़ार मे है और कवि को पूरा भरोसा है की उनका सुजान से अवश्य मिलन होगापरंतु वह अभी तक नहीं आईबहुत समय बीत गया है और अब मेरे प्राण भी निकालने वाले हैं |
  • कवि कहता है की मेरी दयनीय दशा का संदेश मेरी सुंदर प्रेमिका तक पहुँचा दिया जाता है वह उन संदेशों को सम्मानपूर्वक अपने पास रख लेती है परंतु उसका जवाब नहीं देती और न ही यह बताती हैं की कब वापस आएगी |
  • कभी घनानंद से उनकी प्रेमिका ने कहा था की वह उनसे मिलने आएगी पर वह नहीं आई तो उनकी झूठी बातों पर विश्वास करके अब घनानंद को बेहद दुख हो रहा है अब तो मेरी दुखी हृदय को खुश करने वाले बादल भी नहीं घिरते |
  •  कवि को अपनी इस प्रेम की बीमारी का कोई इलाज नहीं दिखाई देता, इसलिए उसे ऐसा लगता है की अब तो उसके प्राण निकालने वाले हैं कवि चाहता है की कोई उसके इस संदेश को उसकी प्रेमिका सुजान तक पहुंचा दे |

विशेष-

  • इसमे कवि घनानंद के अपनी प्रेमिका सुजान से दूर होने के दुख का मार्मिक वर्णन किया गया है |
  • इसमे ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है |
  • अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है |
  • यह एक छंद युक्त कविता है |
  • इस छंद मे लयात्मकता और गेयता है |
  • इसमे करुण तथा वियोग रस है |


    ( 2 )

आनाकानी आरसी निहारिबो करौगे कौलौं?

कहा मो चकित दसा त्यों न दीठि डोलिहै?

मौन हू सौं देखिहौं कितेक पन पालिहाँ जू.

कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।

जान घनआनंद यो मोहिं तुम्हें पैज परी,

जानियैगो टेक टरें कौन धौ मलोलिहै ।।

रुई दिए रहोगे कहाँ लौ बहरायबे की ?

कबहू तौ मेरियै पुकार कान खोलिहै।

 व्याख्या 

  • कवि कहते हैं तुम कब तक मिलने में आनाकानी करती रहोगी, और तुम कब तक आरसी में निहारोगी और कवि को अनदेखा कर रही है फिर कवि कहते है तुम्हारे इस बर्ताव से मेरी क्या हालत हो रही है तुम इस पर एक नज़र भी नहीं डाल रही 
  • कवि शांत होकर यह देखना चाह रहे हैं की कबतक सुजान उनकी बात का उत्तर नहीं देने के प्रण का पालन करती रहेगी, कवि कहते मेरा यह मौन ही तुम्हे बोलने पर मजबूर कर देगा और तुम मुझे जवाब दोगी और मुझसे बात भौ करोगी
  • कवि घनानंद यह जानते हैं की तुम्हारे और मेरे बीच यह होड़ लगी है की कौन पहले बोलेगा और तुम्हे इसमें बहुत आनंद रहा है, सुजान तुम्हे भी यह जानना ही होगा की पहले कौन बौलता है
  • तुम कानों में रूई डाल कर यह बहरे बनने का नाटक कब तक करती रहोगी, कॅभी तो मेरी यह दर्दभरी पुकार तुम्हे बोलने को मजबूर कर ही देगी 

 

विशेष-

  • कवि अपनी प्रेमिका से कहता है की वह उससे मिलने मे आनाकानी न करे
  • इसमे कवि घनानंद के अपनी प्रेमिका सुजान से दूर होने के दुख का मार्मिक वर्णन किया गया है 
  • इसमे ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है 
  • अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है 
  • यह एक छंद युक्त कविता है 
  • इस छंद मे लयात्मकता और गेयता है 
  • इसमे करुण तथा वियोग रस है 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!