यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय Notes in Hindi Class 10 History Chapter-1 Book-Bharat Aur Samakalin Vishav-2 Europe mein raashtravaad ka uday The rise of nationalism in Europe
0Team Eklavyaनवंबर 25, 2024
1848 में फ्रेड्रिक सॉरयू ने चार चित्रों की श्रृंखला में एक ऐसा संसार चित्रित किया जो 'जनतांत्रिक और सामाजिक गणतंत्रों' पर आधारित था। पहले चित्र में, यूरोप और अमेरिका के लोग स्वतंत्रता की प्रतिमा की वंदना करते हुए दिखाए गए हैं, जो ज्ञान की मशाल और मानव अधिकारों का घोषणापत्र लिए हुए है। चित्र में विभिन्न राष्ट्रों के लोग अपनी पहचान के प्रतीक—कपड़ों और झंडों के साथ—दिखाए गए हैं। यह चित्र राष्ट्रवाद, भाईचारे, और साझी विरासत का प्रतीक है। 19वीं सदी में ऐसे विचारों ने राष्ट्र-राज्यों के उदय को प्रेरित किया।
फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्रवाद का उदय
1789 में हुई फ्रांसीसी क्रांति ने राष्ट्रवाद की नींव रखी। इस क्रांति ने जनता को सत्ता का स्रोत माना और "राजा के लिए राज्य" की जगह "जनता के लिए राष्ट्र" का विचार पेश किया। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं।
1. फ्रांसीसी क्रांति के बदलाव
फ्रांसीसी क्रांति के दौरान "पितृभूमि" (La Patrie) और "नागरिक" (Le Citoyen) जैसे नए विचार पेश किए गए, जो समान अधिकार और राष्ट्रीय एकता पर आधारित थे।
सभी नागरिकों को समान अधिकार देने वाला संविधान बनाया गया।
राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने के लिए नया तिरंगा झंडा अपनाया गया, ईस्टेट जनरल का नाम बदलकर नेशनल असेंबली रखा गया, और राष्ट्र के नाम पर नए गीत लिखे गए, शपथें ली गईं, और शहीदों का सम्मान किया गया।
इसके साथ ही व्यवस्था में सुधार लाते हुए एक समान क़ानून लागू किए गए, क्षेत्रीय बोलियों की जगह पेरिस की फ्रेंच को राष्ट्रीय भाषा बनाया गया, आंतरिक कर समाप्त किए गए, और समान माप-तौल की प्रणाली लागू की गई।
ये सुधार राष्ट्रीय एकता और आधुनिक प्रशासन की नींव बने।
2. क्रांतिकारी विचारों का प्रसार
फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव पूरे यूरोप में महसूस किया गया।
फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने घोषणा की कि उनका उद्देश्य यूरोप को निरंकुश शासकों से मुक्त कराना है।
इसके तहत फ्रांस की सेनाओं ने हॉलैंड, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड और इटली जैसे देशों में प्रवेश कर क्रांति और राष्ट्रवाद के विचारों का प्रचार किया।
इन विचारों को अपनाने और क्रांति को समर्थन देने के लिए विभिन्न देशों में जैकोबिन क्लब बनाए गए, जो फ्रांसीसी क्रांति के सिद्धांतों को फैलाने में सहायक बने।
3. नेपोलियन और उसके सुधार
1804 में लागू हुई नेपोलियन संहिता ने प्रशासनिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रखा।
इस संहिता ने जन्म आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त करते हुए सभी नागरिकों के लिए कानून के समक्ष समानता और संपत्ति के अधिकार को सुनिश्चित किया।
इसका प्रभाव फ्रांस तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि डच गणराज्य, स्विट्जरलैंड, इटली और जर्मनी जैसे क्षेत्रों में भी लागू किया गया। इसने सामंती व्यवस्था को खत्म कर किसानों को स्वतंत्रता प्रदान की।
यातायात और संचार में सुधार से औद्योगिक और व्यापारिक वर्ग को विशेष रूप से लाभ हुआ। एकसमान कानून, माप-तौल और मुद्रा ने व्यापार को सरल और पूँजी के आवागमन को सुगम बना दिया, जिससे औद्योगिक वर्ग को व्यापक आर्थिक लाभ हुआ।
4. स्थानीय प्रतिक्रियाएँ
फ्रांसीसी सेनाओं का हॉलैंड, स्विट्जरलैंड और अन्य शहरों में शुरुआत में "स्वतंत्रता के दूत" के रूप में स्वागत हुआ, क्योंकि वे सामंती शासकों से मुक्ति और प्रशासनिक सुधारों का संदेश लेकर आए थे।
हालांकि, जल्द ही लोगों में असंतोष बढ़ने लगा क्योंकि राजनीतिक स्वतंत्रता का अभाव, बढ़े हुए कर, सेंसरशिप और फ्रांसीसी सेना में जबरन भर्ती जैसी समस्याएँ उभरने लगीं।
इन परिस्थितियों ने प्रशासनिक सुधारों के फायदों को कम प्रभावशाली बना दिया, और लोगों की उम्मीदें धीरे-धीरे निराशा में बदल गईं।
यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण
18वीं सदी के मध्य में यूरोप आधुनिक 'राष्ट्र-राज्यों' में बंटा नहीं था। इस समय यूरोप राजशाही, डचियों और साम्राज्यों में बंटा था। विभिन्न क्षेत्रों में लोग अलग भाषाएँ बोलते थे और उनकी सांस्कृतिक पहचान भी भिन्न थी।
1. राष्ट्रवाद का उदय
फ्रांसीसी क्रांति और औद्योगिक क्रांति के दौरान समाज और राजनीति पर कुलीन वर्ग का प्रभुत्व कायम था।
समाज का सबसे बड़ा हिस्सा किसान वर्ग था, जबकि औद्योगिक क्रांति के बाद वाणिज्यिक वर्ग और मजदूर वर्ग के साथ एक नए मध्यवर्ग का उदय हो रहा था।
इस दौर में उदारवादी राष्ट्रवाद का विचार उभरा, जिसमें "उदारवाद" का अर्थ स्वतंत्रता, क़ानून के समक्ष समानता, सरकार की सहमति, संविधान और निजी संपत्ति के अधिकार का समर्थन करना था।
हालांकि, इस उदारवाद में मताधिकार सीमित था, और केवल संपत्ति वाले पुरुषों को ही वोट देने का अधिकार प्राप्त था, जिससे बड़े पैमाने पर लोगों को राजनीतिक प्रक्रियाओं से बाहर रखा गया।
2 आर्थिक और राजनीतिक बदलाव
नेपोलियन के शासनकाल में आर्थिक सुधारों के तहत फ्रांस और उसके अधीन क्षेत्रों में सामंती व्यवस्था समाप्त की गई, जिससे किसानों और व्यापारिक वर्ग को स्वतंत्रता मिली।
1834 में जर्मनी में ज़ॉलवेराइन (शुल्क संघ) का गठन हुआ, जिसने व्यापार को आसान बनाने के लिए एकसमान कानून, मुद्रा, और नाप-तौल प्रणाली लागू की।
वहीं, राजनीतिक बदलावों के तहत 1815 की वियना कांग्रेस ने पुराने राजतंत्रों को बहाल किया, फ्रांस की सीमाओं को नियंत्रित किया, और यूरोप में एक नई रूढ़िवादी व्यवस्था स्थापित की, जिससे क्रांतिकारी विचारों को दबाने की कोशिश की गई।
3. क्रांतिकारी आंदोलन
राष्ट्रवादी आंदोलनों पर दमन के चलते कई नेता भूमिगत हो गए और गुप्त संगठनों का निर्माण किया।
ज्युसेपी मेत्सिनी जैसे क्रांतिकारी नेताओं ने 'यंग इटली' और 'यंग यूरोप' जैसे संगठनों की स्थापना की, जिनका लक्ष्य गणतांत्रिक राष्ट्र-राज्य बनाना था।
दूसरी ओर, रूढ़िवादी नेता जैसे मैटरनिख ने इन आंदोलनों को दबाने के लिए सेंसरशिप और दमन की नीति अपनाई।
हालांकि, इन कठिनाइयों के बावजूद स्वतंत्रता और मुक्ति की भावना धीरे-धीरे बढ़ती रही, जिससे राष्ट्रवाद का विस्तार हुआ।
4. राष्ट्रवाद और आर्थिक विकास
औद्योगिक वर्ग, जिसमें व्यापारियों और उद्योगपतियों की प्रमुख भूमिका थी, ने एकीकृत बाजार की माँग उठाई, जिससे व्यापार और उद्योग के विकास के लिए समान नियम लागू किए जा सकें।
रेलवे और व्यापारिक नेटवर्क के विस्तार ने न केवल आर्थिक गतिविधियों को सुगम बनाया, बल्कि राष्ट्रीय एकता को भी बढ़ावा दिया।
इस एकीकृत आर्थिक व्यवस्था ने आर्थिक राष्ट्रवाद को जन्म दिया, जिससे साझा आर्थिक हितों ने लोगों को एकजुट किया और राष्ट्रवादी भावनाओं को मजबूत किया।
क्रांतियों का युग: 1830-1848
1830 से 1848 के बीच यूरोप में कई क्रांतियाँ हुईं, जिनका उद्देश्य रूढ़िवादी ताकतों को चुनौती देना और राष्ट्रीयता तथा उदारवाद का प्रसार करना था। इन क्रांतियों का नेतृत्व शिक्षित मध्यवर्ग ने किया। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं।
1. 1830 की क्रांतियाँ
1830 की फ्रांस की जुलाई क्रांति के परिणामस्वरूप बूर्बो राजा को सत्ता से हटा दिया गया और लुई फिलिप के नेतृत्व में एक संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई।
इस क्रांति ने यूरोप पर गहरा प्रभाव डाला। फ्रांस से प्रेरणा लेते हुए ब्रसेल्स में विद्रोह हुआ, जिसके परिणामस्वरूप बेल्जियम ने खुद को यूनाइटेड किंगडम ऑफ नीदरलैंड्स से अलग कर स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।
इसी दौरान, यूनान ने 1821 में ऑटोमन साम्राज्य के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम शुरू किया। पश्चिमी यूरोप में यूनानी संस्कृति के प्रति सहानुभूति ने यूरोपीय जनता और कवियों को यूनान का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया।
अंग्रेज कवि लॉर्ड बायरन ने इस युद्ध में हिस्सा लेकर इसे और भी प्रतिष्ठित किया। अंततः, 1832 की कुस्तुनतुनिया संधि के तहत यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा प्राप्त हुआ।
2. संस्कृति और राष्ट्रीय भावना
रूमानी आंदोलन के तहत कवि और कलाकारों ने राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा देने के लिए कला, कविता, और संगीत का सहारा लिया, जिसमें तर्क और विज्ञान के बजाय भावनाओं और सांस्कृतिक विरासत पर जोर दिया गया।
लोककथाओं, लोकगीतों और लोकनृत्यों को राष्ट्रीय पहचान का आधार मानते हुए जर्मन दार्शनिक योहान गॉटफ्रीड हर्डर ने कहा कि सच्ची राष्ट्रीय भावना इन्हीं परंपराओं में निहित है। इन लोक परंपराओं को संग्रहित और संरक्षित कर राष्ट्रवाद को मजबूत किया गया।
पोलैंड इसका एक प्रमुख उदाहरण था, जहाँ रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया के कब्जे में होने के बावजूद, संगीत और भाषा ने राष्ट्रीय भावना को जीवित रखा।
पोलिश भाषा रूस के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बन गई, और इसी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के माध्यम से पोलैंड ने अपने राष्ट्रवाद को बनाए रखा।
3.भूख, कठिनाइयाँ और जन विद्रोह
1830 का दशक आर्थिक और सामाजिक संकट का समय था, जिसमें बढ़ती जनसंख्या के कारण बेरोजगारी और गरीबी में वृद्धि हुई।
सस्ते मशीन से बने कपड़ों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने स्थानीय कारीगरों की आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
1848 में फसल खराब होने और महंगाई के कारण स्थिति और बिगड़ गई। इस दौरान कई महत्वपूर्ण विद्रोह हुए।
1845 में सिलेसिया के बुनकरों ने ठेकेदारों द्वारा कम मजदूरी दिए जाने के विरोध में विद्रोह किया, लेकिन सेना ने इस विद्रोह को कुचल दिया, जिसमें 11 बुनकर मारे गए। 1848 में पेरिस में जनता ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया, जिससे लुई फिलिप को सत्ता छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
इसके परिणामस्वरूप एक गणतंत्र की स्थापना हुई और सभी पुरुषों को मताधिकार प्रदान किया गया, जो राजनीतिक और सामाजिक बदलाव का एक महत्वपूर्ण चरण था।
4. 1848: उदारवादियों की क्रांति
1848 की मध्यवर्गीय क्रांति ने संविधानवाद और राष्ट्रीय एकीकरण की माँग को केंद्र में रखा।
जर्मनी में फ्रैंकफर्ट संसद का गठन हुआ, जहाँ जर्मन क्षेत्रों की राष्ट्रीय एकता के लिए संविधान का मसौदा तैयार किया गया।
हालांकि, प्रशा के राजा फ्रेडरिक विल्हेम चतुर्थ ने संसद द्वारा पेश किया गया ताज अस्वीकार कर दिया, और कुलीन वर्ग व सेना के विरोध के कारण संसद कमजोर हो गई।
इस आंदोलन में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, लेकिन उन्हें मताधिकार और राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया, जिससे उनकी भूमिका को सीमित कर दिया गया।
5. क्रांतियों का परिणाम
1848 की क्रांतियों की असफलता के बाद रूढ़िवादी ताकतें सत्ता में वापस आ गईं, लेकिन उन्होंने इस दौरान एक महत्वपूर्ण सबक सीखा। राजाओं ने महसूस किया कि उदारवादियों को कुछ रियायतें देकर क्रांति के चक्र को रोका जा सकता है।
इसके परिणामस्वरूप भूदास प्रथा को समाप्त करने और आर्थिक सुधारों की शुरुआत की गई। इन परिवर्तनों ने रूढ़िवादी शासन को स्थिरता प्रदान करने के साथ-साथ समाज में सुधार की प्रक्रिया को गति दी।
जर्मनी और इटली का निर्माण
19वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रवाद का इस्तेमाल रूढ़िवादी ताकतों ने अपने राजनीतिक प्रभुत्व को बढ़ाने के लिए किया। जर्मनी और इटली का एकीकरण इस प्रक्रिया के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। आइए इसे सरल भाषा में समझें।
1. जर्मनी
1848 की क्रांति के दौरान मध्यवर्गीय जर्मन लोगों ने जर्मन राज्यों को जोड़कर एक निर्वाचित संसद के अधीन राष्ट्र बनाने का प्रयास किया, लेकिन राजशाही और सेना ने इस पहल को कुचल दिया।
इसके बाद प्रशा के प्रधानमंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क ने सेना और नौकरशाही के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण का नेतृत्व किया।
सात वर्षों में ऑस्ट्रिया, डेन्मार्क, और फ्रांस के खिलाफ युद्ध लड़े गए, जिनमें प्रशा ने निर्णायक जीत हासिल की।
जनवरी 1871 में वर्साय के शीशमहल में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को एकीकृत जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
प्रशा ने जर्मनी की मुद्रा, बैंकिंग प्रणाली, और कानूनी व्यवस्था को आधुनिक बनाकर एक सशक्त राष्ट्र की नींव रखी।
2. इटली
इटली 19वीं शताब्दी में सात राज्यों में बँटा हुआ था, जहाँ उत्तर पर ऑस्ट्रिया, मध्य पर पोप और दक्षिण पर स्पेन के बूर्बो राजाओं का शासन था।
1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने "यंग इटली" गुप्त संगठन बनाकर एकीकृत इटली की योजना बनाई, लेकिन 1831 और 1848 की क्रांतियाँ असफल रहीं।
बाद में, सार्डिनिया-पीडमॉण्ट के राजा विक्टर इमेनुएल द्वितीय और उनके प्रधानमंत्री कावूर ने इटली के एकीकरण का नेतृत्व किया।
1859 में उन्होंने ऑस्ट्रिया को हराने के लिए फ्रांस के साथ कूटनीतिक संधि की। वहीं, ज्युसेपे गैरीबाल्डी ने स्वयंसेवकों की सेना के साथ दक्षिणी इटली और सिसिली को आजाद कराया।
1861 में विक्टर इमेनुएल को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया। हालांकि, इस एकीकरण के बावजूद, इटली के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग "इटालिया" की अवधारणा को नहीं समझते थे।
निरक्षर किसान इसे "ला टालिया" कहकर राजा की पत्नी मान लेते थे, जिससे एकीकृत राष्ट्र की भावना को जमीनी स्तर पर अपनाने में कठिनाई हुई।
3. ब्रिटेन
18वीं सदी में ब्रिटिश द्वीपों पर अंग्रेज, स्कॉट, वेल्श और आयरिश लोग रहते थे, लेकिन 1688 की क्रांति के बाद इंग्लैंड ने संसद के जरिए अपने प्रभुत्व को बढ़ाया।
1707 के ऐक्ट ऑफ यूनियन के तहत इंग्लैंड और स्कॉटलैंड का विलय हुआ, जिससे स्कॉटलैंड की संस्कृति और भाषा को दबा दिया गया।
आयरलैंड, जो कैथलिक और प्रोटेस्टेंटों में विभाजित था, को 1801 में जबरन यूनाइटेड किंगडम में शामिल कर लिया गया। आयरिश विद्रोहों को कुचल दिया गया और अंग्रेजी संस्कृति को बढ़ावा दिया गया।
"ब्रितानी राष्ट्र" का निर्माण यूनियन जैक (राष्ट्रीय झंडा), राष्ट्रीय गान, और आंग्ल संस्कृति के माध्यम से किया गया, जिससे एक एकीकृत राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने का प्रयास हुआ।
5. राष्ट्र की दृश्य-कल्पना: नारी रूपकों का निर्माण
18वीं और 19वीं सदी में राष्ट्रवाद को व्यक्त करने के लिए कलाकारों ने राष्ट्र का मानवीकरण किया। उन्होंने राष्ट्र को नारी के रूप में चित्रित किया, जो असल में किसी महिला का प्रतिनिधित्व नहीं करती थी। यह केवल राष्ट्र के विचार को ठोस रूप देने का प्रयास था।
1. नारी रूपकों का प्रतीकात्मक प्रयोग
फ्रांसीसी क्रांति के दौरान स्वतंत्रता, न्याय, और गणतंत्र जैसे विचारों को नारी के प्रतीक के माध्यम से चित्रित किया गया।
स्वतंत्रता को लाल टोपी और टूटी जंजीर के रूप में दिखाया गया, जबकि इंसाफ का प्रतीक आँखों पर पट्टी और हाथ में तराजू था।
उन्नीसवीं सदी में राष्ट्रों को भी नारी रूप में चित्रित किया जाने लगा, ताकि लोग उनसे भावनात्मक जुड़ाव महसूस कर सकें।
यह प्रतीकात्मक चित्रण राष्ट्रीय एकता और भावना को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया।
2. फ्रांस का "मारीआन"
फ्रांस में मारीआन की छवि जन-राष्ट्र का प्रतीक बनी, जो स्वतंत्रता, गणतंत्र, और राष्ट्रीय एकता का प्रतिनिधित्व करती थी।
मारीआन को लाल टोपी, तिरंगे, और कलगी जैसे चिह्नों के साथ चित्रित किया गया।
उसकी लोकप्रियता को बढ़ाने और राष्ट्रवाद का प्रचार करने के लिए मारीआन की प्रतिमाएँ सार्वजनिक स्थानों पर लगाई गईं, और उसकी छवि सिक्कों तथा डाक टिकटों पर अंकित की गई, जिससे वह फ्रांसीसी राष्ट्रीय पहचान का एक स्थायी प्रतीक बन गई।
3. जर्मनी की "जर्मेनिया"
जर्मन राष्ट्र का प्रतीक "जर्मेनिया" की छवि थी, जो जर्मन एकता और राष्ट्रीय गौरव का प्रतिनिधित्व करती थी। जर्मेनिया को बलूत के पत्तों का मुकुट पहनाया गया, क्योंकि बलूत का वृक्ष जर्मनी में वीरता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस प्रतीक ने जर्मन जनता के बीच राष्ट्रवाद की भावना को प्रोत्साहित किया।
4. महत्व
नारी रूपकों का उपयोग राष्ट्रवाद को लोगों के दिलों और दिमाग में गहराई से स्थापित करने के लिए किया गया।
ये प्रतीक स्वतंत्रता, न्याय, और गणतंत्र जैसे आदर्शों को मूर्त रूप देने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता और पहचान को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किए गए।
इन नारी रूपकों ने जनता के बीच भावनात्मक जुड़ाव उत्पन्न किया, जिससे राष्ट्रवाद की भावना को व्यापक समर्थन मिला।
राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद
19वीं सदी के अंत तक, राष्ट्रवाद का प्रारंभिक उदारवादी और जनतांत्रिक स्वभाव बदल चुका था। यह अब संकीर्ण और लड़ाकू विचारधारा बन गया, जिसका इस्तेमाल साम्राज्यवाद के लिए किया जाने लगा।
1 . बाल्कन क्षेत्र: राष्ट्रवादी तनाव का केंद्र
बाल्कन क्षेत्र, जिसमें आधुनिक रोमानिया, बुल्गारिया, सर्बिया, यूनान और क्रोएशिया जैसे देश शामिल थे, भौगोलिक और जातीय विविधता का क्षेत्र था।
यहाँ के निवासियों को स्लाव कहा जाता था। 19वीं सदी में ऑटोमन साम्राज्य के कमजोर होने के साथ, बाल्कन के विभिन्न राष्ट्रीय समूह स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने लगे।
इन समूहों ने अपने इतिहास का उपयोग यह दिखाने के लिए किया कि वे पहले स्वतंत्र थे और उनकी स्वतंत्रता छिन ली गई थी।
हालांकि, इन राष्ट्रीय समूहों के बीच संघर्ष भी गहरा गया, क्योंकि बाल्कन राज्य एक-दूसरे से ईर्ष्या करते थे और अपने क्षेत्रों को बढ़ाने का प्रयास करते थे।
इस प्रतिस्पर्धा और टकराव ने क्षेत्र में अस्थिरता और संघर्ष को बढ़ावा दिया।
2. यूरोपीय शक्तियों की प्रतिस्पर्धा
बाल्कन क्षेत्र अपनी भौगोलिक स्थिति और रणनीतिक महत्व के कारण रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, और ऑस्ट्रो-हंगरी जैसी शक्तियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया।
ये ताकतें व्यापार, उपनिवेश, और सैन्य प्रभुत्व स्थापित करने के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा कर रही थीं। उनकी इस प्रतिस्पर्धा ने बाल्कन क्षेत्र को लगातार संघर्षों और अस्थिरता में धकेल दिया।
इन अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय तनावों ने बाल्कन को युद्धों का केंद्र बना दिया और अंततः यह क्षेत्र प्रथम विश्व युद्ध का एक प्रमुख कारण बन गया।
3. साम्राज्यवाद के खिलाफ राष्ट्रवाद
19वीं सदी में यूरोपीय देशों ने एशिया और अफ्रीका के बड़े हिस्सों का औपनिवेशीकरण किया, जिससे इन क्षेत्रों में साम्राज्य विरोधी आंदोलन शुरू हुए।
ये आंदोलन स्वतंत्र राष्ट्र-राज्य बनाने की प्रेरणा से संचालित थे और उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना उभरकर सामने आई।
हालांकि, इन देशों ने अपनी स्थानीय परिस्थितियों और सांस्कृतिक विरासत के अनुसार विशिष्ट राष्ट्रवाद विकसित किया और यूरोपीय राष्ट्रवाद के मॉडल को पूरी तरह नहीं अपनाया।
इस प्रकार, प्रत्येक देश में राष्ट्रवाद का एक अनूठा स्वरूप देखने को मिला।