परिचय
- उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में चीन का पूर्वी एशिया पर प्रभुत्व था, और चीन में छिंग राजवंश का शासन था, जो काफी मजबूत था। इस समय जापान एक छोटे से द्वीप के रूप में अलग-थलग पड़ा हुआ था।
- कुछ दशकों में चीन में अशांति आ गई, और वह औपनिवेशिक शक्तियों का मुकाबला नहीं कर पाया। छिंग राजवंश का नियंत्रण कमजोर पड़ने लगा, और चीन गृहयुद्ध से जूझने लगा।
- दूसरी ओर, जापान ने अपनी ताकत बढ़ाने की दिशा में काम किया। जापान ने औद्योगिक अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, और ताइवान (1895) और कोरिया (1910) को अपने नियंत्रण में लिया। इसके बाद, जापान ने 1894 में चीन और 1905 में रूस को भी हराया।
- जापान उन्नत औद्योगिक राष्ट्र बन गया, लेकिन उसकी साम्राज्यवादी आकांक्षाओं ने उसे युद्ध में धकेल दिया। 1945 में, जापान को आंग्ल-अमेरिकी सैन्य शक्तियों से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 1970 के दशक तक उसने अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत किया और एक प्रमुख आर्थिक शक्ति बन गया।
- जापान का आधुनिकीकरण पूंजीवाद पर आधारित था और यह एक ऐसी दुनिया में हुआ, जहां पश्चिमी उपनिवेशवाद का प्रभुत्व था।
- चीन और जापान में इतिहास लेखन की लंबी परंपरा रही है, क्योंकि यहां के शासक मानते थे कि इतिहास उनके लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शक होता है। इसलिए, शासकों ने अभिलेखों को संजोने और राजवंशों का इतिहास लिखने के लिए सरकारी विभागों की स्थापना की।
- सिमा छियन (Sima Qian) को प्राचीन चीन का महान इतिहासकार माना जाता है। जापान में भी चीन के सांस्कृतिक प्रभाव के कारण इतिहास लेखन को महत्व दिया गया।
- मेजी सरकार ने 1869 में एक ब्यूरो की स्थापना की, जिसका काम था अभिलेखों को एकत्र करना और मेजी पुनर्स्थापना के बारे में लेखन करना। लिखित शब्द को बहुत सम्मान दिया जाता था, और साहित्यिक कौशल को बहुत मूल्यवान माना जाता था। इसका परिणाम यह हुआ कि विभिन्न प्रकार के लिखित स्रोत उपलब्ध हुए, जैसे सरकारी इतिहास, विद्वत्तापूर्ण लेखन, लोकप्रिय साहित्य और धार्मिक परचे।
चीन और जापान के भौतिक भूगोल में काफी अंतर है।
चीन विशालकाय महाद्वीपीय देश है जिसमें कई तरह की जलवायु वाले क्षेत्र हैं मुख्य क्षेत्र में 3 प्रमुख नदियाँ हैं:
1. पीली नदी (हुआंग हे)
2. यांग्त्सी नदी (छांग जिआंग- दुनिया की तीसरी सबसे लंबी नदी)
3. पर्ल नदी।
चीन का बहुत सा हिस्सा पहाड़ी है। हान सबसे प्रमुख जातीय समूह है और प्रमुख भाषा है चीनी
जापान एक द्वीप श्रृंखला है जिसमें चार सबसे बड़े द्वीप हैं
1. होशू (Honshu)
2. क्यूशू (Kyushu)
3. शिकोकू (Shikoku)
4. होकाइदो (Hokkaido)
- मुख्य द्वीपों को 50 प्रतिशत से अधिक जमीन पहाड़ी है।
- जापान बहुत ही सक्रिय भूकम्प क्षेत्र में है।
- जापान में पशुपालन की परंपरा नहीं है।
- चावल बुनियादी फसल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है
जापान की राजनीतिक व्यवस्था
- जापान में क्योतो में रहने वाले सम्राट का शासन था, लेकिन बारहवीं सदी के अंत तक असली सत्ता शोगुनों के हाथ में आ गई, जो राजा के नाम पर शासन करते थे। 1603 से 1867 तक तोकुगावा परिवार शोगुनपद पर काबिज था। इस समय देश को 250 हिस्सों में बांट दिया गया था, और इन हिस्सों का शासन दैम्यो (क्षेत्रीय शासक) करते थे। शोगुन दैम्यो पर नियंत्रण रखते थे, और दैम्यो को राजधानी एदो (आधुनिक तोक्यो) में रहने का आदेश दिया जाता था, ताकि वे शोगुन के लिए खतरा न बनें।
- शोगुन प्रमुख शहरों और खदानों पर भी नियंत्रण रखते थे। सामुराई (योद्धा वर्ग) शोगुन और दैम्यो की सेवा में थे और शासन करने वाले कुलीन वर्ग के सदस्य थे।
- 16वीं शताबदी के अंत में तीन प्रमुख परिवर्तनों ने जापान के भविष्य के विकास की नींव रखी:
1. किसानों से हथियार छीनने से केवल सामुराई को तलवार रखने का अधिकार मिला, जिससे शांति और व्यवस्था बनी रही और युद्धों में कमी आई।
2. दैम्यो को उनके क्षेत्रीय राजधानी में रहने का आदेश दिया गया और उन्हें स्वायत्तता दी गई।
3. जमीन का सर्वेक्षण किया गया और उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया गया, जिससे राजस्व की स्थायी व्यवस्था की जा सके।
- इन परिवर्तनों के कारण, 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान के सबसे बड़े शहर एदो में दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या थी। इसके अलावा, ओसाका और क्योतो भी बड़े शहर बन गए, जिससे वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला और वित्तीय प्रणालियाँ स्थापित हुईं।
- शहरों में एक जीवंत संस्कृति का विकास हुआ, जहां व्यापारी वर्ग ने नाटक और कलाओं को प्रोत्साहित किया। लोग पढ़ने के शौकीन थे, और कई लेखक केवल अपनी लेखनी से अपना जीवनयापन कर सकते थे। एदो में लोग नूडल्स की कटोरी की कीमत पर किताबें किराए पर ले सकते थे, जिससे यह पता चलता है कि छपाई की प्रक्रिया और पढ़ाई का स्तर कितना बढ़ चुका था।
- जापान को एक समृद्ध देश माना जाता था, क्योंकि वह चीन से रेशम और भारत से कपड़ा जैसी विलासी वस्तुएं आयात करता था। हालांकि, इन आयातों के लिए चाँदी और सोने का निर्यात करना जापान की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ा। इस कारण, तोकुगावा शासकों ने कीमती धातुओं के निर्यात पर रोक लगाई और क्योतो के निशिजिन में रेशम उद्योग को बढ़ावा दिया, जिससे जापान में रेशम का आयात कम किया जा सके। निशिजिन का रेशम दुनिया भर में बेहतरीन माना जाने लगा।
मेजी पुनर्स्थापना
1. मेजी पुनर्स्थापना और जापान का पश्चिमीकरण
- 1867-68 में मेजी वंश ने तोकुगावा वंश का शासन समाप्त किया, जिससे जापान में एक नए युग की शुरुआत हुई।
- इसके पीछे कई कारण थे, जैसे देश में असंतोष और बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और कूटनीतिक संबंधों की मांग।
- 1853 में अमरीका ने जापानी सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए कॉमोडोर मैथ्यू पेरी को भेजा।
- यह समझौता जापान को अमरीका के साथ राजनयिक और व्यापारिक संबंध स्थापित करने के लिए बाध्य करता था।
- इसके बाद, 1854 में जापान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे जापान के लिए अंतर्राष्ट्रीय दुनिया से जुड़ने का रास्ता खुला।
2. सम्राट मेजी का शासन और जापान का पश्चिमीकरण
- 1868 में एक आंदोलन ने शोगुन को सत्ता से हटा दिया और सम्राट मेजी को एदो (अब तोक्यो) ले आया गया।
- एदो को जापान की नई राजधानी बना दिया गया और इसका नाम तोक्यो (पूर्वी राजधानी) रखा गया।
- जापान में इस समय यूरोपीय देशों द्वारा उपनिवेशीकरण का खतरा था, जिससे डरकर जापान ने पश्चिमी देशों के विचारों को अपनाने का निर्णय लिया।
- "फुकोंकु क्योर्ड" (समृद्ध देश, मजबूत सेना) का नारा दिया गया, जिसका उद्देश्य जापान की अर्थव्यवस्था और सेना को मजबूत करना था, ताकि वह उपनिवेशीकरण से बच सके।
3. शिक्षा और प्रशासनिक सुधार
- मेजी सरकार ने शिक्षा और प्रशासनिक सुधारों की दिशा में कई कदम उठाए।
- 1890 में शिक्षा संबंधी राजाज्ञा लागू की गई, जिसके तहत सभी बच्चों को शिक्षा देने की प्रक्रिया शुरू की गई।
- इसके अलावा, नई विद्यालय-व्यवस्था की शुरुआत हुई, जिसमें लड़के और लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य किया गया।
- प्रशासनिक संरचना में भी बदलाव किए गए, और पुराने गांवों और क्षेत्रीय सीमाओं को बदलकर नया प्रशासनिक ढांचा तैयार किया गया।
- सेना में 20 साल से अधिक उम्र के युवाओं के लिए सेवा अनिवार्य कर दी गई, और एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया।
4. विदेश नीति और युद्धों में विजय
- मेजी सरकार ने विदेश नीति को भी मजबूत किया, जिसके तहत जापान ने चीन और रूस के साथ युद्ध लड़ा।
- इन युद्धों में जापान ने विजय प्राप्त की, जिससे उसकी अंतर्राष्ट्रीय स्थिति और भी मजबूत हुई।
- हालांकि, इस दौरान लोकतंत्र की प्रक्रिया में कई दबाव और चुनौतियाँ आईं, लेकिन आर्थिक और राजनीतिक रूप से जापान ने महत्वपूर्ण विकास किया।
अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण
- मेजी सुधारों में एक महत्वपूर्ण हिस्सा अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण था। कृषि पर कर लगाकर धन इकट्ठा किया गया।
- 1870-72 के बीच, जापान ने अपनी पहली रेल लाइन तोक्यो और योकोहामा बंदरगाह के बीच बिछाई। यूरोप से वस्त्र उद्योग के लिए मशीनें आयात की गईं और मजदूरों को प्रशिक्षण देने के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया गया।
- इसके साथ ही, उन्हें जापानी विश्वविद्यालयों और स्कूलों में पढ़ाने के लिए भेजा गया, और जापानी विद्यार्थियों को शिक्षा के लिए विदेश भी भेजा गया।
- 1872 में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं की शुरुआत की गई। मित्सुबिशी (Mitsubishi) और सुमितोमो (Sumitomo) जैसी कंपनियों को सब्सिडी और करों में फायदे के ज़रिये प्रमुख जहाज निर्माता बनने में मदद मिली, और इससे जापानी व्यापार जापानी जहाज़ों के माध्यम से होने लगा।
औद्योगिक मजदूर
- 1870 में औद्योगिक मजदूरों की संख्या 2 लाख से बढ़कर 1913 में 40 लाख तक पहुँच गई।
- अधिकतर मजदूर छोटे इकाइयों में काम करते थे, जिनमें 5 से कम लोग होते थे और मशीनों और बिजली का इस्तेमाल नहीं किया जाता था।
- आधुनिक कारखानों में काम करने वाली मजदूरों में आधे से ज्यादा महिलाएं थीं।
- 1900 के बाद कारखानों में पुरुषों की संख्या बढ़ने लगी और 1930 तक पुरुषों की संख्या अधिक हो गई। कारखानों में मजदूरों की संख्या भी बढ़ने लगी, 1920 में 2000 से अधिक मजदूर थे, और 1930 तक यह संख्या 4000 से ज्यादा हो गई।
- औद्योगिकीकरण के तेज विकास से लकड़ी जैसे संसाधनों की भारी मांग होने लगी, जिसके कारण पर्यावरण का विनाश भी शुरू हुआ। 1897 में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ पहला आंदोलन हुआ।
आक्रामक राष्ट्रवाद
- मेजी संविधान सीमित मताधिकार पर आधारित था और उसने जापान की संसद, डायट, बनाई, जिसके अधिकार सीमित थे। 1918 और 1931 के बीच जनमत से चुने गए प्रधानमंत्रियों ने मंत्रिपरिषद् बनाए। इसके बाद, राष्ट्रीय एकता मंत्रिपरिषदों ने पार्टियों का भेद भुलाकर अपनी सत्ता खो दी।
- सम्राट को सैन्यबलों का कमांडर माना जाता था, और 1890 में यह माना जाने लगा कि थलसेना और नौसेना का नियंत्रण स्वतंत्र रूप से होता है। 1899 में प्रधानमंत्री ने आदेश दिए कि केवल सेवारत जनरल और एडमिरल ही मंत्री बन सकते हैं।
- सैन्यबलों को मजबूत करने और जापान के उपनिवेशों के विस्तार की मुहिम इस डर से जुड़ी हुई थी कि जापान पश्चिमी शक्तियों पर निर्भर हो सकता है। इस डर का इस्तेमाल सैन्य विस्तार और सैन्य बलों को अधिक धन देने के लिए वसूले जाने वाले उच्चतर करों के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने में किया गया।
पश्चिमीकरण और परंपरा
- जापान के अन्य देशों के साथ संबंधों पर जापानी बुद्धिजीवियों की आनुक्रमिक पीढ़ियों के विचार अलग-अलग थे। कुछ बुद्धिजीवियों के लिए, अमरीका और पश्चिमी यूरोपीय देश सभ्यता की ऊँचाइयों पर थे, और जापान उनकी तरह बनने की आकांक्षा रखता था।
- फुकुज़ावा यूकिची का मानना था कि जापान को 'अपने में से एशिया को निकाल फेंकना' चाहिए, यानी जापान को अपने एशियाई लक्षण छोड़कर पश्चिम का हिस्सा बन जाना चाहिए। अगली पीढ़ी ने पश्चिमी विचारों को पूरी तरह से अपनाने पर सवाल उठाए और कहा कि राष्ट्रीय गर्व को देसी मूल्यों पर आधारित होना चाहिए।
- कई बुद्धिजीवी पश्चिमी उदारवाद की तरफ आकर्षित थे और वे चाहते थे कि जापान अपनी सेना की बजाय लोकतंत्र को अपना आधार बनाए।
- संवैधानिक सरकार की मांग करने वाले जनवादी अधिकारों के आंदोलन के नेता उएकी एमोरी (Ueki Emori, 1857-1892) फ्रांसीसी क्रांति में मानवों के प्राकृतिक अधिकार और जन प्रभुसत्ता के सिद्धांतों के प्रशंसक थे। वे उदारवादी शिक्षा के पक्ष में थे, जो प्रत्येक व्यक्ति को विकसित करने का अवसर प्रदान कर सके। कुछ अन्य बुद्धिजीवियों ने महिलाओं के मताधिकार की सिफारिश भी की। इस दबाव के कारण सरकार को संविधान की घोषणा करने पर मजबूर होना पड़ा।
रोजमर्रा की जिन्दगी
- जापान का एक आधुनिक समाज में रूपांतरण रोज़ाना की ज़िंदगी में आए बदलावों में भी देखा जा सकता है। पारंपरिक पैतृक परिवार व्यवस्था में कई पीढ़ियाँ परिवार के मुखिया के नियंत्रण में रहती थीं। लेकिन जैसे-जैसे लोग समृद्ध हुए, परिवार के बारे में नए विचार फैलने लगे।
- नए विचारों के तहत, नया घर (जिसे जापानी अंग्रेज़ी शब्द "होमु" कहते हैं) का संबंध मूल परिवार से था, जहाँ पति-पत्नी साथ मिलकर काम करते थे और अपने घर की व्यवस्था करते थे। इस नयी समझ ने पारिवारिक जीवन में बदलाव की शुरुआत की, जिसके कारण नए तरह के घरेलू उत्पादों, नए प्रकार के पारिवारिक मनोरंजन और नए किस्म के घरों की मांग बढ़ी।
आधुनिकता पर विजय
- सत्ता केंद्रित राष्ट्रवाद को 1930-40 के दौरान बढ़ावा मिला, जब जापान ने चीन और एशिया में अपने उपनिवेश बढ़ाने के लिए लड़ाइयाँ छेड़ी। यह संघर्ष बाद में दूसरे विश्व युद्ध का रूप ले लिया, जब जापान ने अमरीका के पर्ल हार्बर पर हमला किया।
- इस दौर में असहमति प्रकट करने वालों पर जुल्म ढाए गए और उन्हें जेल भेजा गया। देशभक्तों की ऐसी संस्थाएँ बनीं जो युद्ध का समर्थन करती थीं, इनमें कई महिला संगठन भी शामिल थे।
- 1943 में एक संगोष्ठी आयोजित हुई, जिसका नाम था "आधुनिकता पर विजय"। इस संगोष्ठी में जापान के सामने जो दुविधा थी, उस पर चर्चा की गई—आधुनिक रहते हुए पश्चिमी शक्तियों पर कैसे विजय प्राप्त की जाए।
- दर्शनशास्त्री निशितानी केजी ने 'आधुनिकता' को तीन पश्चिमी धाराओं के मिलन और एकता से परिभाषित किया: पुनर्जागरण, प्रोटेस्टेंट सुधार, और प्राकृतिक विज्ञानों का विकास। उन्होंने यह भी कहा कि जापान की 'नैतिक ऊर्जा ने उसे एक उपनिवेश बनने से बचा लिया' और जापान का फर्ज बनता है 'एक नई विश्व पद्धति, एक विशाल पूर्वी एशिया के निर्माण का'।
हार के बाद-एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में वापसी
1. जापान की औपनिवेशिक साम्राज्य और उसका अंत
- जापान की औपनिवेशिक साम्राज्य की कोशिशें संयुक्त बलों के हाथों हारकर समाप्त हो गईं।
- यह माना गया कि युद्ध को जल्दी खत्म करने के लिए हिरोशिमा और नागासाकी पर नाभिकीय बम गिराए गए थे, लेकिन कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर जो विध्वंस और दुख हुआ, वह पूरी तरह से अनावश्यक था।
- जापान का अमरीकी नेतृत्व द्वारा कब्ज़ा (1945-47) होने के बाद, उसे विसैन्यीकरण किया गया और एक नया संविधान लागू किया गया। इसके अनुच्छेद 9 के अनुसार युद्ध को राष्ट्रीय नीति के रूप में इस्तेमाल करना वर्जित कर दिया गया था।
2. सामाजिक और आर्थिक सुधार
- अमेरिकी कब्जे के दौरान, कृषि सुधार, व्यापारिक संगठनों का पुनर्गठन और जापानी अर्थव्यवस्था में बड़ी एकाधिकार कंपनियों की पकड़ को खत्म करने की कोशिश की गई।
- राजनीतिक पार्टियों को पुनर्जीवित किया गया, और 1946 में जापान में पहले चुनाव हुए, जिसमें महिलाओं को भी मतदान का अधिकार प्राप्त हुआ।
3. जापान की आर्थिक पुनर्निर्माण और 'चमत्कार'
- अपनी भयंकर हार के बावजूद, जापानी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण बेहद तेज़ी से हुआ, जिसे बुद्धोत्तर 'चमत्कार' कहा गया। सरकार, नौकरशाही और उद्योग के बीच एक करीबी रिश्ता कायम हुआ।
- 1964 में, तोक्यो ओलंपिक जापान की अर्थव्यवस्था की परिपक्वता का प्रतीक बनकर सामने आया। इसी साल, शिंकांसेन (बुलेट ट्रेन) का जाल भी शुरू हुआ, जो 200 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाली ट्रेनें थीं (अब ये 300 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं)।
- यह जापान की सक्षमता को दर्शाता है, क्योंकि उन्होंने नई प्रौद्योगिकी के माध्यम से बेहतर और सस्ते उत्पादों को बाज़ार में उतारा।
4. नागरिक समाज आंदोलन और पर्यावरणीय मुद्दे
- 1960 के दशक में, नागरिक समाज आंदोलनों का विकास हुआ, जिनका उद्देश्य बढ़ते औद्योगीकरण के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का विरोध करना था।
- इस समय बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरणीय संकट को नजरअंदाज करने के खिलाफ एक जागरूकता फैली और नागरिक समाज ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई।
चीन
1. चीनी बहसों में तीन प्रमुख समूहों के दृष्टिकोण
- चीनी बहसों में तीन प्रमुख समूहों के विचार सामने आते हैं। कांग योवेल (1858-1927) और लिपांत किचाउ (1873-1929) जैसे आरंभिक सुधारक पारंपरिक विचारों को नए तरीके से अपनाकर पश्चिमी चुनौतियों का सामना करने की कोशिश कर रहे थे।
- वहीं, सन यात-सेन जैसे गणतांत्रिक क्रांतिकारी पश्चिमी विचारों से प्रभावित थे और उन्होंने चीन में लोकतांत्रिक सुधारों की आवश्यकता महसूस की, ताकि चीन पश्चिमी साम्राज्यवाद का मुकाबला कर सके।
- दूसरी ओर, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का लक्ष्य लंबे समय से चली आ रही असमानताओं को खत्म करना और विदेशियों को खदेड़ना था।
2. आधुनिक चीन की शुरुआत
- आधुनिक चीन की शुरुआत सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में मानी जा सकती है, जब पश्चिम के साथ पहला संपर्क हुआ।
- ब्रिटेन ने अफ़ीम व्यापार को बढ़ाने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल किया, जिसके परिणामस्वरूप पहला अफ़ीम युद्ध (1839-1842) हुआ।
- चीन को पश्चिमी प्रभुत्व का डर था, और भारत का उदाहरण भी सामने था।
3. चीन के विचारक और पश्चिमी विचारों का प्रभाव
- विचारक लियांग किचाउ ने कहा कि चीन पश्चिम से मुकाबला करने के लिए अपने लोगों में राष्ट्र की जागरूकता पैदा कर सकता है।
- उन्होंने 1903 में लिखा कि भारत को ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बर्बाद किया गया था और ब्रिटेन ने चीन के खिलाफ युद्ध में भारतीय सैनिकों का इस्तेमाल किया था।
4. कन्फ्यूशियसवाद और परंपरागत सोच- इन घटनाओं ने यह महसूस कराया कि परंपरागत सोच को बदलने की आवश्यकता थी।
- कन्फ्यूशियसवाद, जो चीन की प्रमुख विचारधारा थी, ने अच्छे व्यवहार, व्यावहारिक समझदारी और उचित सामाजिक संबंधों के सिद्धांतों को प्रोत्साहित किया था।
- इसने चीनी समाज और राजनीति की नींव रखी थी, लेकिन समय की जरूरत के अनुसार इसे बदलने की आवश्यकता महसूस की गई।
5. विद्यार्थियों का विदेशों में अध्ययन
- चीन ने अपने विद्यार्थियों को जापान, ब्रिटेन और फ्रांस में भेजा ताकि वे नए विचारों को सीखकर वापस आ सकें।
- 1890 के दशक में बड़ी संख्या में चीनी छात्र जापान गए, और वहां से न केवल नए विचार लेकर आए, बल्कि गणराज्य की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- चूंकि चीनी और जापानी भाषाएँ एक ही चित्रलिपि का उपयोग करती हैं, चीन ने जापान से न्याय, अधिकार और क्रांति के यूरोपीय विचारों के जापानी अनुवाद लिए। यह पारंपरिक संबंधों का उलट जाना था।
गणतंत्र की स्थापना
1. सन यात-सेन और चीन की गणराज्य की स्थापना
1911 में मांचू साम्राज्य का अंत हुआ और सन यात-सेन (1866-1925) के नेतृत्व में चीन में गणराज्य की स्थापना की गई, जिसे आधुनिक चीन का संस्थापक माना जाता है। सन यात-सेन एक गरीब परिवार से थे और उन्होंने मिशनरी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त की, जहां उनका परिचय लोकतंत्र और ईसाई धर्म से हुआ। वे चीन के भविष्य को लेकर चिंतित थे और उनके सिद्धांतों का समूह 'तीन सिद्धांत' (सन मिन चुई) के रूप में प्रसिद्ध हुआ, जो इस प्रकार थे:
- राष्ट्रवाद: मंचू वंश को हटाकर गणतांत्रिक सरकार स्थापित करना, क्योंकि मंचू वंश को विदेशी राजवंश माना जाता था।
- समाजवाद: पूंजी का नियमन करके भूस्वामित्व में समानता लाना।
- लोकतंत्र (आधुनिक विज्ञान): चीन का विकास करना।
2. चीन में प्रदर्शनों और एकता के प्रयास
- चीन में विदेशियों के खिलाफ, गरीबी समाप्त करने, शादी में समानता लाने, और विदेशियों को बाहर करने के लिए प्रदर्शन हुए।
- इसमें कुओमीनतांग (नेशनल पीपुल्स पार्टी) और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने मिलकर देश को एकताबद्ध करने के प्रयास किए।
- सन यात-सेन के विचारों ने कुओमीनतांग के राजनीतिक दर्शन की नींव रखी, जिसमें 'चार बड़ी ज़रूरतों'—कपड़ा, खाना, घर और परिवहन—को प्राथमिकता दी गई।
3. चियांग काइशेक और कुओमीनतांग का संघर्ष
- सन यात-सेन की मृत्यु के बाद, चियांग काइशेक (1887-1975) ने कुओमीनतांग का नेतृत्व संभाला और स्थानीय नेताओं (वारलॉर्ड्स) के खिलाफ सैन्य अभियान चलाया, जिससे उन्होंने उन्हें अपने नियंत्रण में किया और साम्यवादियों को हटा दिया।
- चियांग ने सेक्युलर कन्फ्यूशियसवाद को बढ़ावा दिया और राष्ट्र का सैन्यकरण करने की कोशिश की। उन्होंने महिलाओं के लिए नियम बनाये और कुओमीनतांग का सामाजिक आधार शहरी इलाकों में था।
4. औद्योगिक विकास और सामाजिक बदलाव
- 1919 में शंघाई जैसे शहरों में औद्योगिक मज़दूर वर्ग उभरा, जिसमें 500,000 मजदूर थे। हालांकि, इनमें से बहुत कम प्रतिशत ही आधुनिक उद्योगों में काम कर रहे थे।
- सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव में स्कूलों और विश्वविद्यालयों के विस्तार से मदद मिली।
- पेकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना 1902 में हुई और पत्रकारिता ने नए विचारों को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
5. कुओमीनतांग की असफलता और सामाजिक असमानता
- कुओमीनतांग अपनी संकीर्ण सामाजिक आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टि के कारण असफल हो गया। सन यात-सेन के कार्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा—पूंजी का नियमन और भूमि अधिकारों में समानता—कभी लागू नहीं किया गया, क्योंकि पार्टी ने किसानों और बढ़ती सामाजिक असमानता को अनदेखा किया। इसके बजाय, उन्होंने एक सैन्य शासन लागू करने की कोशिश की, जिससे लोगों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया।
चीनी साम्यवादी दल का उदय
- चीन में जापान का आक्रमण और कुओमीनतांग की स्थिति: 1937 में जापान के द्वारा चीन पर हमले के बाद, कुओमीनतांग (कांग्रस पार्टी) को पीछे हटना पड़ा। यह युद्ध लंबा और थका देने वाला था, जिससे चीन कमजोर हो गया। 1945 से 1949 के बीच, मुद्रास्फीति की दर हर महीने 30 प्रतिशत बढ़ने लगी, जिससे आम आदमी की जिंदगी पूरी तरह से तबाह हो गई।
- ग्रामीण संकट:ग्रामीण चीन में दो प्रमुख संकट थे: पहला, पर्यावरणीय संकट, जिसमें बंजर ज़मीन, वनों का नाश और बाढ़ शामिल थे। दूसरा, सामाजिक-आर्थिक संकट था, जो विनाशकारी ज़मीन-प्रथा, ऋण, प्राचीन प्रौद्योगिकी और निम्न स्तरीय संचार की वजह से उत्पन्न हुआ।
- साम्यवादी पार्टी और रूस का प्रभाव: चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना 1921 में हुई, जो रूस की क्रांति के कुछ समय बाद स्थापित हुई। कौमिटर्न और सोवियत संघ ने दुनिया भर में साम्यवादी पार्टियों को समर्थन दिया। साम्यवाद के पारंपरिक मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार, क्रांति शहरी इलाकों के मज़दूर वर्गों के माध्यम से आनी चाहिए थी।
- साम्यवाद का प्रभाव और पतन: शुरुआत में, विभिन्न देशों के लोग साम्यवाद से आकर्षित हुए, लेकिन जल्द ही यह सोवियत यूनियन के स्वार्थों का एक साधन बन गया। 1943 में, साम्यवाद के प्रभाव को समाप्त कर दिया गया, क्योंकि यह अधिकतर सोवियत संघ के हितों के लिए काम करने लगा।
नए जनवाद की स्थापना 1949-65
- पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार 1949 में कायम हुई। यह 'नए लोकतंत्र' के सिद्धांतों पर आधारित थी। 'सर्वहारा की तानाशाही', जिसे कायम करने का दावा सोवियत संघ का था, से भिन्न नया लोकतंत्र सभी सामाजिक वर्गों का गठबंधन था।
- अर्थव्यवस्था के मुख्य क्षेत्र सरकार के नियंत्रण में रखे गए और निजी कारखानों और भूस्वामित्व को धीरे-धीरे खत्म किया गया। यह कार्यक्रम 1953 तक चला जब सरकार ने समाजवादी बदलाव का कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की।
- 1958 में लंबी छलाँगवाले आंदोलन की नीति के ज़रिये देश का तेज़ी से औद्योगीकरण करने की कोशिश की गई। लोगों को अपने घर के पीछे इस्पात की भट्टियाँ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
- ग्रामीण इलाकों में पीपुल्स कम्यून्स जहाँ लोग इकट्ठे ज़मीन के मालिक थे और मिलजुलकर फसल उगाते थे शुरू किये गए। 1958 तक 26.000 ऐसे समुदाय थे जो कि कृषक आबादी का 98 प्रतिशत था।
- माओ पार्टी द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पाने के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करने में सफल रहे। उनकी चिंता 'समाजवादी व्यक्ति' बनाने की थी जिसकी पाँच चीज़ें प्रिय होंगी: पितृभूमि, जनता, काम, विज्ञान और जन सम्पत्ति।
- किसानों, महिलाओं, छात्रों और अन्य गुटों के लिए जन संस्थाएँ बनाई गई। उदाहरण के लिए ऑल चाइना डेमोक्रेटिक वीमेंस फेडरेशन के 760 लाख सदस्य थे, ऑल चाइना स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन के 32 लाख 90 हज़ार सदस्य थे। लेकिन ये लक्ष्य और तरीके पार्टी में सभी लोगों को पसंद नहीं थे।
दर्शनों का टकराव
- समाजवादी व्यक्ति' की रचना के इच्छुक माओवादियों और दक्षता की बजाय विचारधारा पर माओ के बल देने की आलोचना करनेवालों के बीच संघर्ष चला।
- सास्कृतिक क्रांति से खलबली का दौर शुरू हो गया, पार्टी कमज़ोर हो गई और अर्थव्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था में भारी रुकावट आई।
- 1960 के उत्तरार्थ से प्रवाह बदलने लगा। 1975 में एक बार फिर पार्टी ने अधिक सामाजिक अनुशासन और औद्योगिक अर्थव्यवस्था का निर्माण करने पर ज़ोर दिया ताकि चीन शताब्दी के खत्म होने से पहले एक शक्तिशाली देश बन सके।
1978 में शुरू होने वाले सुधार
- 1978 में समाजवादी बाज़ार अर्थव्यवस्था की शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य विज्ञान, उद्योग, कृषि और रक्षा के क्षेत्रों में विकास था। इस प्रक्रिया को चार सूत्री लक्ष्य के रूप में परिभाषित किया गया, जो चीन के आधुनिकीकरण को गति देने के लिए तैयार किए गए थे।
- 1989 में 4 मई के आंदोलन की 70वीं सालगिरह पर, कई बुद्धिजीवियों ने ज़्यादा खुलेपन और कड़े सिद्धांतों (जिन्हें शू-शाओझी कहा गया) को समाप्त करने की माँग की। इस बीच, बीजिंग के तियानमेन चौक पर छात्रों का प्रदर्शन हुआ, जिसे चीनी सरकार ने क्रूरतापूर्वक दबा दिया। इस घटना की दुनिया भर में आलोचना की गई।
- इसके बाद के सुधारात्मक दौर में चीन के विकास पर फिर से बहस शुरू हुई। पार्टी ने अपने प्रधान मत में मज़बूत राजनीतिक नियंत्रण, आर्थिक खुलेपन और विश्व बाज़ार से जुड़ाव को प्रमुख आधार बनाया। हालांकि, आलोचकों का कहना था कि सामाजिक गुटों, क्षेत्रों, पुरुषों और महिलाओं के बीच बढ़ती असमानताएँ और बाज़ार के बढ़ते प्रभाव से सामाजिक तनाव पैदा हो रहा है।
ताइवान का किस्सा
- चियांग काई-शेक 1949 में चीनी साम्यवादी दल से पराजित होकर ताइवान भाग गए, साथ में उन्होंने 30 करोड़ से अधिक अमरीकी डॉलर और बेशकीमती कलाकृतियाँ भी लाईं। ताइवान में उन्होंने चीनी गणराज्य की स्थापना की।
- 1894-95 में जापान के साथ हुई लड़ाई में ताइवान को चीन से खोना पड़ा था और वह जापानी उपनिवेश बन गया। लेकिन कायरो घोषणापत्र (1943) और पोट्सडैम उद्घोषणा (1949) के बाद चीन को अपनी संप्रभुता वापस मिली।
- फरवरी 1947 में हुए ज़बर्दस्त प्रदर्शनों के बाद, कुओमीनतांग ने विरोधियों और नेताओं की एक पीढ़ी की निर्ममतापूर्वक हत्या करवा दी। चियांग काई-शेक के नेतृत्व में कुओमीनतांग ने ताइवान में दमनकारी सरकार की स्थापना की, और राजनीतिक विरोध को पूरी तरह से दबा दिया। उन्होंने स्थानीय आबादी को सत्ता से बाहर कर दिया और भूमि सुधार लागू किया, जिससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप, 1973 में ताइवान का कुल राष्ट्रीय उत्पाद एशिया में जापान के बाद दूसरे स्थान पर पहुँच गया।
- ताइवान की अर्थव्यवस्था, जो मुख्यतः व्यापार पर आधारित थी, लगातार वृद्धि करती गई। ताइवान का लोकतंत्र में रूपांतरण नाटकीय रहा, जहाँ स्वतंत्र मतदान ने स्थानीय ताइवानियों को सत्ता में लाने की प्रक्रिया को शुरू किया।
- राजनयिक स्तर पर, अधिकांश देशों के व्यापार मिशन केवल ताइवान में हैं, लेकिन ताइवान के पास पूर्ण राजनयिक संबंध और दूतावास रखने की अनुमति नहीं है, क्योंकि इसे चीन का हिस्सा माना जाता है।
- मुख्य भूमि चीन के साथ पुनः एकीकरण का मुद्दा अभी भी विवादास्पद है, हालांकि खाड़ी-पार संबंध (चीन और ताइवान के बीच) सुधर रहे हैं। ताइवान में व्यापार और निवेश बढ़ रहा है, और आवागमन भी सरल हो गया है। भविष्य में, यदि ताइवान पूर्ण स्वतंत्रता के लिए कोई कदम नहीं उठाता, तो चीन ताइवान को एक अर्धस्वायत्त क्षेत्र के रूप में स्वीकार करने पर सहमत हो सकता है।
कोरिया की कहानी
आधुनिकीकरण की शुरुआत
- आधुनिकीकरण की शुरुआत: उन्नीसवीं सदी के अंत में, कोरिया के जोसोन वंश (1392-1910) ने आंतरिक और सामाजिक संघर्ष का सामना किया। इसके साथ ही उसे चीन, जापान और पश्चिमी देशों का विदेशी दबाव भी सहना पड़ा। इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद, कोरिया ने अपने देश में आधुनिकता लाने के लिए प्रयास किए।
- जापान का साम्राज्यवादी कब्जा: साम्राज्यवादी जापान ने 1910 में कोरिया को अपनी कॉलोनी बना लिया, जिससे जोसोन वंश का 500 वर्षों से अधिक पुराना शासन समाप्त हो गया। इस कब्जे के दौरान जापानी सरकार ने कोरियाई संस्कृति और नैतिक मूल्यों का दमन शुरू कर दिया, जिससे कोरियाई जनता में गहरा विरोध उत्पन्न हुआ।
- स्वतंत्रता की संघर्ष: कोरियाई लोग जापानी औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लगातार प्रदर्शन करते रहे। उन्होंने एक अस्थायी सरकार की स्थापना की और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कोरियाई स्वतंत्रता की बात रखने के लिए प्रतिनिधि मंडल भेजे। इस दौरान कैरो, याल्टा और पॉट्सडैम सम्मेलनों जैसी अंतर्राष्ट्रीय बैठकों में कोरियाई नेताओं ने विदेशी नेताओं से समर्थन प्राप्त करने की कोशिश की।
- द्वितीय विश्व युद्ध और जापान की हार: अगस्त 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के साथ कोरिया से जापानी औपनिवेशिक शासन समाप्त हो गया। इस हार के बाद कोरिया को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, लेकिन इसके साथ ही कोरिया के भविष्य का रास्ता भी विवादों से भरा हुआ था, जो बाद में देश के विभाजन का कारण बना।
युधोत्तर राष्ट्र
- जून 1950 में कोरियाई युद्ध की शुरुआत हुई, जब दक्षिण कोरिया में अमेरिकी नेतृत्व वाली संयुक्त राष्ट्र सेना और उत्तर कोरिया में कम्युनिस्ट चीन सेना के समर्थन से शीत युद्ध काल का एक छद्म युद्ध शुरू हुआ। तीन साल तक चले इस युद्ध के बाद जुलाई 1953 में युद्धविराम समझौते के तहत संघर्ष समाप्त हुआ, लेकिन कोरिया हमेशा के लिए विभाजित हो गया।
- इस युद्ध ने न केवल बड़े पैमाने पर जीवन और संपत्ति का नुकसान किया, बल्कि मुक्त बाजार आर्थिक विकास और लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया भी धीमी कर दी। युद्ध के दौरान जारी की गई मुद्रा और भारी राष्ट्रीय खर्च के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी, जिससे कीमतों में अचानक वृद्धि हुई। इसके अलावा, औपनिवेशिक काल में बनी औद्योगिक सुविधाओं को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया, और इसके परिणामस्वरूप, दक्षिण कोरिया को अमेरिका से आर्थिक सहायता लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
तीव्र औद्योगीकरण और मजबूत नेतृत्व
- 1963 में दक्षिण कोरिया में सैन्य नेता पार्क चुंग ही राष्ट्रपति बने। पार्क के प्रशासन ने देश में आर्थिक विकास के लिए एक राज्य-आधारित, निर्यात-उन्मुख नीति अपनाई। इसके तहत सरकार की पाँच वर्षीय आर्थिक योजनाओं ने बड़े कॉरपोरेट फर्मों को समर्थन दिया, रोज़गार के विस्तार पर जोर दिया और कोरिया की अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा दिया।
- 1960 के दशक से कोरिया में अभूतपूर्व आर्थिक विकास की शुरुआत हुई, जब राज्य नीति आयात प्रतिस्थापन औद्योगिकी (आई.एस.आई.) से निर्यात पर केंद्रित हो गई। निर्यात-उन्मुख नीति के तहत, सरकार ने ऐसे उद्योगों को प्रोत्साहित किया जिनसे तुलनात्मक लाभ हो सके।
- 1970 के दशक में, कोरिया ने लघु उद्योगों से उच्च मूल्यवर्धित भारी और रासायनिक उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया। इस्पात, अलौह धातु, मशीनरी, जहाज निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स और रासायनिक उत्पादन जैसे उद्योगों को देश के आर्थिक विकास के प्रमुख क्षेत्र के रूप में चुना गया।
- पार्क प्रशासन के तहत, मजबूत नेताओं, प्रशिक्षित अधिकारियों, उद्योगपतियों और सक्षम श्रम बल का संयोजन ने कोरिया को विश्वभर में आर्थिक वृद्धि का उदाहरण बना दिया। उच्च स्तर की शिक्षा ने भी इस विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि कोरिया के अधिकांश श्रमिक पहले से साक्षर थे और नई प्रौद्योगिकियों और कौशलों को अपनाने के लिए तैयार थे।
- इसके अलावा, कोरिया ने अपनी खुली आर्थिक नीति के तहत विदेशी निवेश को आकर्षित किया और अन्य देशों से उन्नत संस्थानों और तकनीकों को अपनाया। दक्षिण कोरिया के श्रमिकों के प्रेषण और उच्च घरेलू बचत दर ने भी औद्योगिक क्षेत्रों के विकास में योगदान दिया।
- पार्क प्रशासन की दीर्घकालिक शक्ति का मुख्य आधार कोरिया का आर्थिक विकास था, जिसने देश को क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख आर्थिक शक्ति बना दिया।
लोकतंत्रीकरण की मांग और निरंतर आर्थिक विकास
- पार्क चुंग-ही की मृत्यु के बाद लोकतंत्रीकरण की इच्छा: पार्क चुंग-ही की हत्या के बाद दक्षिण कोरिया में लोकतंत्र की बहाली की इच्छा और बढ़ी, लेकिन दिसंबर 1979 में सैन्य नेता चुन डू-हवन ने एक और सैन्य तख्तापलट किया, जिससे सत्ता पर कब्जा कर लिया।
- 1980 का लोकतंत्र आंदोलन और ग्वांगजू हत्याएँ: मई 1980 में चुन डू-हवन के नेतृत्व में सैन्य शासन के खिलाफ लोकतंत्र की माँग करने वाले छात्रों और नागरिकों ने कोरिया के प्रमुख शहरों में विरोध प्रदर्शन किए। सैन्य सरकार ने इन प्रदर्शनों को दबाने के लिए देश भर में मार्शल लॉ लागू किया। हालांकि, ग्वांगजू शहर में छात्र और नागरिक लगातार मार्शल कानून को समाप्त करने की माँग करते रहे, लेकिन चुन के सैन्य शासन ने इन आंदोलनों को क्रूरता से कुचला।
- चुन डू-हवन का राष्ट्रपति बनना: 1980 के अंत में, चुन डू-हवन ने संविधान के तहत अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से राष्ट्रपति का पद संभाला। चुन प्रशासन ने अपने शासन को स्थिर करने के लिए लोकतांत्रिक प्रभावों का कड़ा दमन किया।
- आर्थिक विकास: चुन प्रशासन ने कोरिया की अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण से मजबूत किया और 1980 में 1.7% से बढ़ाकर 1983 में 13.2% तक पहुंचाया। मुद्रास्फीति को भी नियंत्रित किया गया। इस आर्थिक विकास के कारण शहरीकरण, शिक्षा का स्तर, और मीडिया में प्रगति हुई, जिससे नागरिकों में अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी।
- लोकतांत्रिक आंदोलन और संवैधानिक संशोधन: मई 1987 में एक विश्वविद्यालय के छात्र की अत्याचारों से हुई मौत के बाद कोरिया में बड़े पैमाने पर लोकतंत्र के लिए प्रदर्शन हुए। चुन प्रशासन ने इसे दबाने की कोशिश की, लेकिन इस बार आंदोलन में छात्रों के अलावा मध्यवर्गीय नागरिक भी शामिल हुए। इन दबावों के चलते, चुन प्रशासन को संविधान में संशोधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा और नागरिकों को राष्ट्रपति के सीधे चुनाव का अधिकार मिला।
- नए लोकतंत्र की शुरुआत: इस प्रकार, चुन सरकार के खिलाफ लोकतांत्रिक आंदोलन ने कोरियाई लोकतंत्र के एक नए अध्याय की शुरुआत की, जिसमें संविधान में बदलाव के बाद कोरियाई नागरिकों को राष्ट्रपति चुनाव में सीधे मतदान का अधिकार मिला।
कोरियाई लोकतंत्र और IMF संकट