Editor Posts footer ads

वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था Notes in Hindi Class 10 Economics Chapter-4 Book 4 vaishvikaran aur bhartiya arthvyavastha Globalisation and the Indian Economy

 

वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था Notes in Hindi Class 10 Economics Chapter-4 Book 4 vaishvikaran aur bhartiya arthvyavastha Globalisation and the Indian Economy

आधुनिक बाजार और उपभोक्ता विकल्प

आज के समय में उपभोक्ताओं के पास वस्तुओं और सेवाओं के अनगिनत विकल्प उपलब्ध हैं। डिजिटल कैमरे, मोबाइल फोन, टेलीविजन और गाड़ियों के नए मॉडल आसानी से मिलते हैं। भारत की सड़कों पर अब एम्बेसडर और फिएट जैसी पुरानी कारों की जगह दुनियाभर की शीर्ष कंपनियों की कारें दिखने लगी हैं। टेलीविजन, कपड़े और फलों के जूस जैसे अन्य उत्पादों में भी ब्रांड्स की संख्या तेजी से बढ़ी है। हालांकि, यह बदलाव नया है। दो दशक पहले तक भारत के बाजारों में इतनी विविधता नहीं थी। हाल के वर्षों में हमारा बाजार पूरी तरह बदल गया है। यह बदलाव क्यों हुआ और इसे क्या चीजें प्रेरित कर रही हैं? यह परिवर्तन लोगों के जीवन को कैसे प्रभावित कर रहा है? इस अध्याय में हम इन सवालों पर विचार करेंगे।


अंतरदेशीय उत्पादन और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ

बीसवीं शताब्दी के मध्य तक, उत्पादन मुख्य रूप से देशों की सीमाओं के अंदर ही होता था। अलग-अलग देशों के बीच केवल कच्चा माल, खाद्य पदार्थ, और तैयार उत्पादों का व्यापार होता था।

1. बहुराष्ट्रीय कंपनियों का उदय: 

  • बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) वे होती हैं जो एक से अधिक देशों में उत्पादन का नियंत्रण रखती हैं। 
  • ये कंपनियाँ ऐसे स्थानों पर कारखाने और कार्यालय स्थापित करती हैं, जहाँ सस्ता श्रम और अन्य संसाधन आसानी से उपलब्ध हों, ताकि उत्पादन लागत को कम किया जा सके और अधिक लाभ कमाया जा सके।

2. वैश्विक स्तर पर उत्पादन प्रक्रिया: 

  • बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अब केवल उत्पाद बेचने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे विभिन्न देशों में अपनी उत्पादन प्रक्रिया को बाँटती हैं। 
  • उदाहरण के लिए, चीन सस्ते विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर कर आया है, जबकि मेक्सिको और पूर्वी यूरोप अमेरिका और यूरोप के नजदीक होने के कारण उत्पादन केंद्र बने हैं। 
  • भारत कुशल इंजीनियरों और अंग्रेज़ी बोलने वाले ग्राहक सेवा कर्मचारियों के लिए जाना जाता है।

3. लाभ

  • उत्पादन लागत में 50-60% तक की बचत संभव होने से उत्पादन प्रक्रिया अधिक कुशल और लाभकारी बन जाती है।


विश्व-भर के उत्पादन को एक-दूसरे से जोड़ना

1. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs): 

आमतौर पर उस स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं जहाँ उन्हें निम्नलिखित फायदे मिलते हैं:

  •  बाजार के नजदीक होना।
  • सस्ता और कुशल श्रम उपलब्ध होना।
  • उत्पादन के अन्य आवश्यक कारकों की उपलब्धता।
  • सरकारी नीतियाँ जो उनके हितों का ध्यान रखें।

2. निवेश और विदेशी निवेश

  • जब बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पादन के लिए कारखाने और कार्यालय स्थापित करती हैं, तो इसे निवेश कहा जाता है। 
  • यदि यह निवेश एक देश से दूसरे देश में किया जाता है, तो इसे विदेशी निवेश कहा जाता है। 
  • कंपनियाँ यह निवेश इसलिए करती हैं ताकि उनके द्वारा खरीदी गई भूमि, मशीनों और उपकरणों से लाभ अर्जित किया जा सके।

3. बहुराष्ट्रीय कंपनियों का उत्पादन पर प्रभाव

बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) विभिन्न तरीकों से अपने उत्पादन का विस्तार करती हैं और स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी या प्रतिस्पर्धा के माध्यम से अपना प्रभाव बढ़ाती हैं।

  • संयुक्त उत्पादन : बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं, जिससे स्थानीय कंपनियों को दो महत्वपूर्ण फायदे मिलते हैं: पहला, अतिरिक्त निवेश, जो मशीनों और अन्य संसाधनों के लिए धन उपलब्ध कराता है, और दूसरा, नई प्रौद्योगिकी, क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उन्नत तकनीक लेकर आती हैं।
  • स्थानीय कंपनियों की खरीद: MNCs अक्सर स्थानीय कंपनियों को खरीदकर उत्पादन का विस्तार करती हैं। उदाहरण के तौर पर, कारगिल फूड्स ने भारत की परख फूड्स को खरीदा और अब यह भारत में खाद्य तेलों की सबसे बड़ी निर्माता बन गई है।
  • छोटे उत्पादकों को आदेश देना: बड़ी कंपनियाँ छोटे उत्पादकों को वस्त्र, जूते-चप्पल, और खेल के सामान जैसे उत्पाद बनाने के आदेश देती हैं। ये कंपनियाँ मूल्य, गुणवत्ता, और श्रम शर्तों को नियंत्रित करती हैं, और फिर इन उत्पादों को अपने ब्रांड नाम से बेचती हैं।
  • दूरस्थ उत्पादन पर नियंत्रण: MNCs स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी करती हैं, प्रतिस्पर्धा में उन्हें हराती हैं या खरीद लेती हैं। इस प्रक्रिया में उत्पादन के विभिन्न हिस्से दूर-दूर तक फैले होते हैं, लेकिन MNCs इन्हें एकसाथ जोड़कर प्रभावी ढंग से नियंत्रित करती हैं।


विदेश व्यापार और बाज़ारों का एकीकरण

विदेश व्यापार लंबे समय से देशों को आपस में जोड़ने का एक मुख्य माध्यम रहा है। यह उत्पादकों और उपभोक्ताओं को नए अवसर और विकल्प प्रदान करता है।

1. विदेश व्यापार का महत्व

  • घरेलू बाजार से बाहर पहुंच: उत्पादक अपने उत्पाद केवल अपने देश में ही नहीं, बल्कि अन्य देशों के बाजारों में भी बेच सकते हैं।
  • आयात के विकल्प: दूसरे देशों से वस्तुओं के आयात से उपभोक्ताओं को घरेलू उत्पादों के अलावा अन्य विकल्प मिलते हैं।

2. व्यापार का प्रभाव

  • व्यापार के खुलने से वस्तुओं का आवागमन एक बाजार से दूसरे बाजार में आसान हो जाता है। 
  • जब दो बाजार आपस में जुड़ते हैं, तो एक ही वस्तु का मूल्य दोनों जगह लगभग समान हो जाता है, जिससे मूल्य स्थिरता बनती है। 
  • इसके अलावा, अब दो देशों के उत्पादक, भले ही दूर-दूर हों, एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जो वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है।

3. विदेश व्यापार और बाज़ारों का जुड़ाव

  • विदेश व्यापार के माध्यम से अलग-अलग देशों के बाजार आपस में जुड़ते हैं। इससे बाजारों का एकीकरण होता है, जहाँ उत्पादक और उपभोक्ता दोनों को अधिक अवसर और लाभ मिलता है।


वैश्वीकरण क्या है?

वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से विभिन्न देशों के बाजार और उत्पादन एक-दूसरे से जुड़ने लगे हैं। यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों और विदेशी व्यापार के बढ़ने से संभव हुआ है।

  • वैश्वीकरण के प्रमुख पहलू: कई बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अब उन देशों में उत्पादन कर रही हैं, जहाँ श्रम सस्ता होता है। उदाहरण के तौर पर, फोर्ड मोटर्स का भारत में कार संयंत्र न केवल भारत में कारें बनाता है, बल्कि अन्य देशों को भी कारें और पुर्जे निर्यात करता है।
  • विदेश व्यापार और निवेश: विदेश व्यापार और निवेश में वृद्धि के कारण, विभिन्न देशों के बाजार एक-दूसरे से जुड़ रहे हैं, और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इस प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं।
  • वैश्विक संपर्क: अब विभिन्न देशों के बीच समान वस्तुएं, सेवाएँ, निवेश और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक संपर्क में वृद्धि हुई है।
  • लोगों का आवागमन: लोग बेहतर जीवन स्तर, रोजगार और शिक्षा की तलाश में एक देश से दूसरे देश जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों में देशों के बीच लोगों के आवागमन पर कई प्रतिबंधों के कारण इस प्रक्रिया में वृद्धि नहीं हो पाई है।

वैश्वीकरण को संभव बनाने वाले कारक

वैश्वीकरण को बढ़ावा देने में सबसे बड़ा योगदान प्रौद्योगिकी में उन्नति का है। यह प्रौद्योगिकी की प्रगति ही है जिसने दुनिया को जोड़ने में मदद की है।

  • परिवहन प्रौद्योगिकी में सुधार: बीते 50 वर्षों में परिवहन के साधनों में काफी उन्नति हुई है, जिससे लंबी दूरी तक सामान को तेजी से और कम लागत में पहुंचाना आसान हो गया है।
  • सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का विकास: दूरसंचार, जैसे टेलीफोन, मोबाइल और फैक्स, ने दुनियाभर में संपर्क को आसान और तेज बना दिया है। संचार उपग्रहों की मदद से अब दूरस्थ इलाकों से भी संवाद संभव हो गया है।
  •  इंटरनेट और कंप्यूटर का उपयोग: इंटरनेट ने दुनिया भर की सूचनाएँ एक जगह उपलब्ध कराई हैं, जबकि ई-मेल और वॉयस मेल जैसे माध्यमों ने लोगों को बेहद कम लागत पर तुरंत संपर्क करने की सुविधा दी है। साथ ही, कंप्यूटर ने लगभग हर क्षेत्र में क्रांति ला दी है।


विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश नीति का उदारीकरण

उदारीकरण का मतलब है विदेशी व्यापार और निवेश पर लगे प्रतिबंधों को हटाना ताकि व्यापार को आसान और तेज़ बनाया जा सके। भारत में यह प्रक्रिया 1991 से शुरू हुई।

आयात पर प्रतिबंध कैसे काम करता है?

  • अगर सरकार आयातित वस्तुओं पर कर लगाती है, तो आयातित चीज़ें महंगी हो जाती हैं, जिससे घरेलू उत्पादकों को फायदा होता है क्योंकि विदेशी चीज़ों से प्रतियोगिता कम हो जाती है। इसे व्यापार अवरोधक कहा जाता है, जो व्यापार पर कुछ नियम या रोक लगाता है।

भारत में उदारीकरण से पहले की स्थिति

  • आज़ादी के बाद, भारत ने घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए विदेशी व्यापार और निवेश पर प्रतिबंध लगाए। उस समय केवल जरूरी वस्तुएँ, जैसे मशीनरी और पेट्रोलियम, ही आयात की जाती थीं। यह तरीका भारत जैसे विकासशील देशों में सामान्य था, जैसा कि विकसित देशों ने भी अपने शुरुआती विकास के दौरान अपनाया था।

1991 के बाद की स्थिति

  • सरकार ने यह माना कि अब भारतीय उत्पादकों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में शामिल होना चाहिए, क्योंकि प्रतिस्पर्धा से भारतीय उद्योगों की गुणवत्ता और कार्यक्षमता में सुधार होगा। इसी दृष्टिकोण से सरकार ने व्यापार और निवेश पर लगे कई प्रतिबंध हटा दिए और विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश और व्यापार करने की अनुमति दी।

उदारीकरण के फायदे

  • आयात-निर्यात करना अब आसान हो गया है, क्योंकि भारतीय व्यापारियों को यह तय करने की आज़ादी मिली है कि उन्हें क्या आयात या निर्यात करना है। सरकार का नियंत्रण कम होने से व्यापारिक प्रक्रियाएँ तेज और सरल हो गई हैं।


विश्व व्यापार संगठन (WTO)

विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य देशों के बीच मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना और व्यापार से जुड़े नियमों को लागू करना है। इसका मुख्य ध्येय है व्यापार को उदार और सुगम बनाना।

  • WTO की भूमिका: WTO व्यापार से जुड़े नियमों को तय करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सभी देश इन नियमों का पालन करें। साथ ही, यह देशों को विदेशी व्यापार और निवेश पर रोकटोक हटाने के लिए प्रेरित करता है।
  • WTO का प्रभाव: लगभग 160 देशों के सदस्यता वाले WTO का उद्देश्य विकसित और विकासशील देशों के बीच व्यापार को सुगम बनाना है।
  • व्यवहार में समस्याएँ: विकसित देश कई बार अपने व्यापार अवरोधकों को बरकरार रखते हैं, जबकि विकासशील देशों पर अपने व्यापार अवरोध हटाने का दबाव डाला जाता है। इसका उदाहरण कृषि उत्पादों के व्यापार में असमानता पर जारी विवाद है।


भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव

पिछले 20 वर्षों में भारत में वैश्वीकरण ने कई बदलाव लाए हैं। इससे लोगों के जीवन, कंपनियों और श्रमिकों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ा है।

  • उपभोक्ताओं पर प्रभाव: शहरी इलाकों के संपन्न उपभोक्ताओं को बेहतर विकल्प और उत्कृष्ट गुणवत्ता के उत्पाद कम कीमत पर मिलने लगे हैं, जिससे उनका जीवन स्तर पहले से बेहतर हो गया है।
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों का निवेश: बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में सेलफोन, गाड़ियाँ, इलेक्ट्रॉनिक्स और बैंकिंग सेवाओं में निवेश बढ़ाया, जिससे नए रोजगार उत्पन्न हुए और स्थानीय आपूर्तिकर्ता कंपनियाँ भी समृद्ध हुईं।
  • भारतीय कंपनियों का विकास: भारतीय कंपनियों ने नई तकनीक अपनाकर अपने उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार किया, जिससे टाटा मोटर्स, इंफोसिस और रैनबैक्सी जैसी कुछ भारतीय कंपनियाँ वैश्विक स्तर पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में उभर सकी हैं।
  • सेवा क्षेत्र में वृद्धि: सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए अवसर पैदा हुए हैं, जिसमें कॉल सेंटर, डाटा एंट्री, लेखाकरण और इंजीनियरिंग सेवाएँ भारत में सस्ते में उपलब्ध हैं और इन्हें विदेशों को निर्यात किया जाता है।
  • श्रमिकों पर प्रभाव: श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है, जहाँ उन्हें न तो संरक्षण मिलता है और न ही लाभ। यहाँ तक कि संगठित क्षेत्र में भी काम की परिस्थितियाँ धीरे-धीरे असंगठित क्षेत्र जैसी होती जा रही हैं।


न्यायसंगत वैश्वीकरण के लिए संघर्ष

वैश्वीकरण ने कुछ लोगों को बहुत लाभ दिया है, लेकिन सभी को इसका फायदा नहीं हुआ। शिक्षित, कुशल और धनी वर्ग ने अधिक अवसर पाए हैं, जबकि कई लोग इससे वंचित रहे हैं। अब सवाल है कि न्यायसंगत वैश्वीकरण कैसे सुनिश्चित किया जाए, ताकि इसके लाभ सब तक पहुँचें।

1. सरकार की भूमिका

  • सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिए जो सभी वर्गों के हितों की रक्षा करें, न कि केवल धनी और प्रभावशाली लोगों के। 
  • श्रमिकों के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए श्रम कानूनों का सही तरीके से पालन होना चाहिए। 
  • छोटे उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा में सक्षम बनाने के लिए आर्थिक सहायता और प्रशिक्षण जैसी मदद दी जानी चाहिए। 
  • आवश्यकता पड़ने पर सरकार व्यापार और निवेश पर रोक लगा सकती है और न्यायसंगत नियम सुनिश्चित करने के लिए विश्व व्यापार संगठन के साथ समझौते कर सकती है।

2. जनसंगठनों और जन अभियान

  • कुछ जनसंगठनों और जन अभियानों ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के फैसलों को प्रभावित किया है, जो यह दिखाता है कि जनता भी न्यायसंगत वैश्वीकरण के लिए अपनी आवाज़ उठा सकती है।







एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!