संस्कृति तथा समाजीकरण chapter 4 Class 11sociology book 1 sanskrti tatha samaajeekaran
0Team Eklavyaअक्तूबर 19, 2024
परिचय
संस्कृति एक समूह की साझा मान्यताओं, मूल्यों, रीति-रिवाजों और प्रथाओं का संग्रह है, जो उनके व्यवहार, बातचीत को प्रभावित करती है।
इसमें भाषा, परंपराएं, कलाएं और मानदंड शामिल हैं।
संस्कृति में व्यवहार करने के लिए आपको संस्कृति की आवश्यकता होती है
संस्कृति एक सामान्य समझ है जिसको समाज में अन्य व्यक्तियों के साथ सामाजिक अंतः क्रिया के माध्यम से सीखा तथा विकसित किया जाता है।
किसी भी समूह की आपसी सामान्य समझ इसे अन्य से अलग करती है तथा इसे एक पहचान प्रदान करती है।
संस्कृति कभी भी परिष्कृत उत्पाद नहीं होती।
ये सदा परिवर्तनशील तथा विकसित होती रहती है।
इसके तत्त्व लगातार जुड़ते, घटते, विस्तारित, संकुचित तथा पुनः व्यवस्थित होते रहते हैं।
व्यक्तियों की अन्य व्यक्तियों के साथ सामान्य समझ विकसित करने तथा विभिन्न संकेतों से अर्थ ग्रहण करने की क्षमता ही मानव को अन्य प्राणियों से अलग करती है।
हम परिवार के सदस्यों, मित्रों तथा साथियों के साथ विभिन्न सामाजिक परिवेशों में अंतःक्रिया द्वारा विभिन्न साधनों तथा तकनीकों के साथ-साथ अभौतिक चिह्नों तथा संकेतों का प्रयोग करना सीखते हैं।
अधिकांश ज्ञान की जानकारी हमें मौखिक रूप से या किताबों के माध्यम से प्राप्त होती है
विविध परिवेश विभिन्न संस्कृतियाँ
मनुष्य विभिन्न प्राकृतिक परिवेशों जैसे पहाड़ों तथा मैदानों, जंगलों तथा स्वच्छ स्थलों, रेगिस्तानों तथा नदी घाटियों, द्वीपों में रहते हैं।
वह विभिन्न स्थानों जैसे कि गाँवों, कस्बों तथा शहरों में भी रहते हैं।
इससे जीवन जीनें के विभिन्न तरीकों या संस्कृतियों का विकास होता है।
उदाहरण :
तमिलनाडु केरल और अंडमान तथा निकोबार दीप समूह पर सुनामी आई थी
इस आपदा में सुरक्षा की तकनीकों में विषमतायें देखने को मिलती है ।
आधुनिक संस्कृति
ये लोग सुनामी के प्रति सचेत नही थे
बहुत से लोगों की जाने गयी
प्राचीन संस्कृति
ये लोग नवीन तकनीकों से परिचित नही थे
फिर भी इन्होने अपनी पुरानी तकनीकों के माध्यमों से आपदा का पूर्वानुमान लगा लिया और विध्वंस से बच गये
आधुनिक विज्ञान तथा तकनीक तक पहुँच होने से आधुनिक संस्कृति द्वीपों में रहने वाली जनजातियों की संस्कृति से बेहतर नहीं हो जाती।
संस्कृति की परिभाषा
संस्कृति' शब्द का प्रयोग शास्त्रीय संगीत, नृत्य तथा चित्रकला में परिष्कृत रुचि का ज्ञान प्राप्त करने के संदर्भ में किया जाता है।
यह परिष्कृत रुचि लोगों को 'असांस्कृतिक' आम व्यक्तियों से अलग करने के लिए रखी गई थी।
समाजशास्त्री संस्कृति को व्यक्तियों में विभेद करने वाला साधन नहीं मानते, परंतु जीवन जीने का एक तरीका मानतें हैं जिसमें समाज के सभी सदस्य भाग लेते हैं।
प्रत्येक सामाजिक संस्था अपनी स्वयं की संस्कृति का विकास करती है।
एडवर्ड टायलर के अनुसार
संस्कृति अपने व्यापक अर्थ में एक जटिल समग्र है जिसमें ज्ञान, आस्था, कला, नैतिकता, कानून, प्रथा तथा मनुष्य के समाज के सदस्य के रूप में होने के फलस्वरूप प्राप्त अन्य क्षमताएँ तथा आदतें शामिल हैं
ब्रोनिलसा मेलिनोवास्की के अनुसार
संस्कृति में उत्तराधिकार में प्राप्त कलाकृतियाँ, वस्तुएँ, तकनीकी प्रक्रिया, विचार, आदतें तथा मूल्य शामिल हैं
क्लिफोर्ड ग्रीटज
मानव एक प्राणी है जो अपने स्वयं के बुने हुए महत्त्वाकांक्षाओं के जाल में फँसा हुआ है।
मैं संस्कृति को यही जाल मानता हूँ...'
संस्कृति के आयाम
संज्ञानात्मक पक्ष
मानकीय पक्ष
भौतिक पक्ष
संज्ञानात्मक पक्ष
संस्कृति के संज्ञानात्मक आयाम में साझा मानसिक ढाँचे, विश्वास, मूल्य और ज्ञान प्रणालियाँ शामिल हैं जो लोगों के दुनिया को देखने, व्याख्या करने और प्रतिक्रिया करने के तरीके को आकार देती हैं और उनके निर्णय लेने का मार्गदर्शन करती हैं।
मानकीय पक्ष
संस्कृति का मानक आयाम साझा नियमों, मानदंडों और अपेक्षाओं को शामिल करता है जो एक समूह के भीतर स्वीकार्य व्यवहार को निर्देशित करते हैं, यह मार्गदर्शन करते हैं कि व्यक्ति कैसे बातचीत करते हैं और सामाजिक मानकों और भूमिकाओं का पालन करते हैं
भौतिक पक्ष
संस्कृति के भौतिक आयाम में मूर्त वस्तुएं, कलाकृतियां और समाज द्वारा निर्मित और उपयोग की जाने वाली भौतिक वस्तुएं शामिल हैं, जैसे उपकरण, कपड़े, वास्तुकला और प्रौद्योगिकी, जो सांस्कृतिक मूल्यों और प्रथाओं को दर्शाती हैं।।
संस्कृति तथा पहचान
पहचान विरासत में नहीं मिलती अपितु यह व्यक्ति तथा समाज को इनके दूसरे व्यक्तियों के साथ संबंधों से प्राप्त होती है।
व्यक्ति को उसके द्वारा अदा की गई सामाजिक भूमिका ही पहचान प्रदान करती है।
आधुनिक समाज में प्रत्येक व्यक्ति बहुविध भूमिकाएँ अदा करता है।
उदाहरणार्थ; परिवार में व्यक्ति माता-पिता या एक बच्चा हो सकता है
उपसांस्कृतिक समूह
किसी भी संस्कृति की अनेक उपसंस्कृतियाँ हो सकती हैं उपसंस्कृतियों की पहचान शैली तथा रुचि से होती है।
किसी विशेष उपसंस्कृति की पहचान उनकी भाषा, कपड़ों, संगीत के विशेष प्रकार के प्रति प्राथमिकता या उनके समूह के अन्य सदस्यों के साथ उनकी अंतः क्रियाओं से की जा सकती है।
समूह के सदस्य समूह के उद्देश्यों से वचनबद्ध होते हैं तथा इकट्ठे होकर इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करते हैं।
नृजातिकेंद्रवाद और विश्वबंधुत्व
नृजातिकेंद्रवाद
अपने सांस्कृतिक मूल्यों का अन्य संस्कृतियों के लोगों के व्यवहार तथा आस्थाओं का मूल्यांकन करने के लिए प्रयोग करने से है।
जिन सांस्कृतिक मूल्यों को मानदंड या मानक के रूप में प्रदर्शित किया गया था उन्हें अन्य संस्कृतियों की आस्थाओं तथा मूल्यों से श्रेष्ठ माना जाता है।
विश्वबंधुत्व
व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के मूल्यों तथा आस्थाओं का मूल्यांकन अपने मूल्यों तथा आस्थाओं के अनुसार नहीं करता।
यह विभिन्न सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को मानता तथा इन्हें अपने अंदर समायोजित करता है तथा एक दूसरे की संस्कृति को समृद्ध बनाने के लिए सांस्कृतिक विनिमय तथा लेन-देन को बढ़ावा देता है।
सांस्कृतिक परिवर्तन
सांस्कृतिक परिवर्तन वह तरीका है जिसके द्वारा समाज अपनी संस्कृति के प्रतिमानों को बदलता है।
परिवर्तन के लिए प्रेरणा आंतरिक या बाहरी हो सकती है।
आंतरिक कारक
कृषि या खेती करने की नयी पद्धतियाँ, कृषि उत्पादन को बढ़ा सकती हैं जिससे खाद्य उपभोग की प्रकृति तथा कृषक समुदाय की जीवन शैली में परिवर्तन आ सकता है।
बाहरी कारक
जीत या उपनिवेशीकरण के रूप में हो सकते हैं जिससे एक समाज के सांस्कृतिक आचरण तथा व्यवहार में गहरे परिवर्तन हो सकते हैं।
प्राकृतिक वातावरण या पारिस्थितिकी में परिवर्तन से लोगों की जीवन शैली में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो सकते हैं।
जब जंगलों में रहने वाले समुदायों को जंगलों तक जाने तथा इसकी उपज से कानूनी प्रतिबंधों के कारण या जंगलों के समाप्त होने के कारण रोका जाएगा तो इसके निवासियों तथा उनकी जीवन शैली पर अनेक विपरीत प्रभाव हो सकते हैं।
विकासात्मक परिवर्तनों के साथ-साथ क्रांतिकारी परिवर्तन भी हो सकते हैं।
समाजीकरण
समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने समाज या सामाजिक समूह के मूल्यों, विश्वासों, मानदंडों और व्यवहारों को सीखते हैं और उन्हें आत्मसात करते हैं।
यह किसी व्यक्ति की सामाजिक पहचान के विकास और उन्हें उनके सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश में एकीकृत करने के लिए महत्वपूर्ण है।
समाजीकरण जीवनपर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है लेकिन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया आरंभिक वर्षों में घटित होती है जिसे प्रारंभिक समाजीकरण कहा जाता है।
द्वितीयक समाजीकरण एक व्यक्ति के जीवनपर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है।