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महासागरों और महाद्वीपों का वितरण geography chapter - 4 class 11 Distribution of oceans and continents mahaasaagaron aur mahaadveepon ka vitaran notes in hindi

 



मुख्य सिद्धांत  

1. महाद्वीपीय प्रवाह CONTINENTAL DRIFT THEORY 

2. संवहन धारा सिद्धांत CONVECTIONAL CURRENT THEORY 

3. सागरीय अधस्तल का विस्तार SEA FLOOR SPREADING THEORY 

4. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत PLATE TECTONIC THEORY 


परिचय 

  • पृथ्वी के 29 प्रतिशत भाग पर महाद्वीप और बाकी पर महासागर फैले हुए हैं। 
  • महाद्वीपों और महासागरों की अवस्थिति में परिवर्तन हुआ है और अभी भी हो रहा है


महाद्वीपीय प्रवाह CONTINENTAL DRIFT

  • महासागर के दोनों तरफ की तटरेखा में आश्चर्यजनक सममिति  है।
  • दक्षिण व उत्तर अमेरिका तथा यूरोप व अफ्रीका के एक साथ जुड़े होने की संभावना को व्यक्त किया।


महाद्वीपीय प्रवाह को सर्वप्रथम....  

  • सन् 1596 में
  • अब्राहम ऑरटेलियस ने सर्वप्रथम इस संभावना को व्यक्त किया था
  • डच मानचित्रवेत्ता


एन्टोनियो पैलेग्रीनी ने... 

  • एक मानचित्र बनाया, जिसमें तीनों महाद्वीपों को इकट्ठा दिखाया गया था।



महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

  • जर्मन मौसमविद अल्फ्रेड वेगनर
  • सन् 1912 में 
  • यह सिद्धांत महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण से   संबंधित था।


अल्फ्रेड वेगनर के अनुसार.. 

  • सभी महाद्वीप एक अकेले भूखंड में जुड़े हुए थे।
  • आज के सभी महाद्वीप इस भूखंड के भाग थे तथा यह एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था।
  • इस बड़े महाद्वीप को पैंजिया (Pangaea) का नाम दिया।
  •  पैंजिया का अर्थ है- संपूर्ण पृथ्वी।

  • अल्फ्रेड वेगनर ने विशाल महासागर को पैंथालासा  का नाम दिया  जिसका अर्थ है- जल ही जल
  • लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले इस बड़े महाद्वीप पैजिया का विभाजन आरंभ हुआ।
  • पैजिया पहले दो बड़े महाद्वीपीय पिंडों लारेशिया  और गोंडवानालैंड  के रूप में विभक्त हुआ।
  • लारेशिया व गोडवानालैंड धीरे-धीरे अनेक छोटे हिस्सों में बँट गए, जो आज के महाद्वीप के रूप हैं।


महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में प्रमाण

1. महाद्वीपों में साम्य

2. महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता

3. टिलाइट

4. प्लेसर निक्षेप

5. जीवाश्मों का वितरण


1. महाद्वीपों में साम्य

  • दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका के आमने-सामने की तटरेखाएँ अद्भुत व त्रुटिरहित साम्य दिखाती हैं। 
  • 1964 ई0 में बुलर्ड  ने एक कंप्यूटर प्रोग्राम की सहायता से अटलांटिक तटों को जोड़ते हुए एक मानचित्र तैयार किया था।


2. महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता

आधुनिक समय में विकसित की गई रेडियोमिट्रिक काल निर्धारण  विधि से महासागरों के पार महाद्वीपों की चट्टानों के निर्माण के समय को सरलता से जाना जा सकता है। 

200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूहों की एक पट्टी ब्राजील तट और पश्चिमी अफ्रीका के तट पर मिलती हैं, जो आपस में मेल खाती है।


3. टिलाइट

  • टिलाइट वे अवसादी चट्टानें हैं, जो हिमानी निक्षेपण से निर्मित होती हैं। 
  • भारत में पाए जाने वाले गोंडवाना श्रेणी के तलछटों के प्रतिरूप दक्षिण गोलार्ध के छः विभिन्न स्थलखंडों में मिलते हैं


4. प्लेसर निक्षेप

  • घाना तट पर सोने के बड़े निक्षेपों की उपस्थिति व उद्‌गम चट्टानों की अनुपस्थिति एक आश्चर्यजनक तथ्य है। 
  • सोनायुक्त शिराएँ ब्राजील में पाई जाती हैं। 
  • घाना में मिलने वाले सोने के निक्षेप ब्राजील पठार से उस समय निकले होंगे, जब ये दोनों महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े थे


5. जीवाश्मों का वितरण

  • पौधों व जंतुओं की समान प्रजातियाँ
  • लैमूर भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं, कुछ वैज्ञानिकों ने इन तीनों स्थलखंडों को जोड़कर एक  स्थलखंड 'लेमूरिया' की उपस्थिति को स्वीकारा।
  • मेसोसारस   छोटे रेंगने वाले जीव केवल उथले खारे पानी में ही रह सकते थे- इनकी अस्थियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका के दक्षिणी केप प्रांत और ब्राजील में इरावर शैल समूह में ही मिलते हैं ।


प्रवाह संबंधी बल

1. पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल

2. ज्वारीय बल


1. पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल

  • ध्रुवीय फ्लीइंग बल पृथ्वी के घूर्णन से संबंधित है। 
  • पृथ्वी की आकृति एक संपूर्ण गोले जैसी नहीं है 
  • यह भूमध्यरेखा पर उभरी हुई है। 
  • यह उभार पृथ्वी के घूर्णन के कारण है।


2. ज्वारीय बल

  • सूर्य व चंद्रमा के आकर्षण से संबद्ध है, जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं। 
  • करोड़ों वर्षों के दौरान ये बल प्रभावशाली होकर विस्थापन के लिए सक्षम हो गए



संवहन-धारा सिद्धांत

👉आर्थर होम्स ने

👉1930 के दशक में

👉मैंटल  भाग में संवहन धाराओं के प्रभाव की संभावना व्यक्त की।

👉ये धाराएँ रेडियोएक्टिव तत्त्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता से मैंटल भाग में उत्पन्न होती हैं। 

👉होम्स ने कहा कि पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धाराओं का तंत्र विद्यमान है।



महासागरीय अधस्तल का मानचित्रण

  • महासागरों में एक विस्तृत मैदान नहीं है बल्कि उनमें उच्चावच पाया जाता है।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अभियान ने महासागरीय उच्चावच संबंधी विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की 
  •  इसके अधस्तली में जलमग्न पर्वतीय कटकें व गहरी खाइयाँ हैं, जो महाद्वीपों के किनारों पर स्थित हैं। 
  • मध्य महासागरीय कटकें ज्वालामुखी उद्‌गार के रूप में सबसे अधिक सक्रिय पायी गई।
  • महासागरों के नितल की चट्टानें महाद्वीपीय भागों में पाई जाने वाली चट्टानों की अपेक्षा नवीन हैं। 



महासागरीय अधस्तल की बनावट 

महासागरीय तल को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है। 

1. महाद्वीपीय सीमा Continental margins

2. गहरे समुद्री बेसिन Abyssal Plains 

3. मध्य-महासागरीय कटक  Mid-oceanic ridges



1. महाद्वीपीय सीमा

  • ये महाद्वीपीय किनारों और गहरे समुद्री बेसिन के बीच का भाग है। 
  • इसमें महाद्वीपीय मग्नतट, महाद्वीपीय ढाल, महाद्वीपीय उभार और गहरी महासागरीय खाइयाँ आदि शामिल हैं।


3 . गहरे समुद्री बेसिन

  • ये विस्तृत मैदान महाद्वीपीय तटों व मध्य महासागरीय कटकों के बीच पाए जाते हैं। 
  • वितलीय मैदान, वह क्षेत्र  हैं, जहाँ महाद्वीपों से बहाकर लाए गए अवसाद इनके तटों से दूर निक्षेपित होते हैं।


3. मध्य महासागरीय कटक

  • मध्य महासागरीय कटक आपस में जुड़े हुए पर्वतों की एक श्रृंखला बनाती है। 
  • महासागरीय जल में डूबी हुई, यह पृथ्वी के धरातल पर पाई जाने वाली संभवतः सबसे लंबी पर्वत श्रृंखला है।


सागरीय अधस्तल का  विस्तार 

  • मध्य महासागरीय कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्‌गार सामान्य क्रिया है और ये उद्‌गार इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में लावा बाहर निकालते हैं।
  • महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पाई जाने वाली चट्टानों के निर्माण का समय, संरचना, संघटन और गुणों में समानता पाई जाती है।
  • महासागरीय पर्पटी की चट्टानें महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों की अपेक्षा अधिक नई हैं।
  • महासागरीय पर्पटी की चट्टानें 20 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी नहीं हैं।
  • गहरी खाइयों में भूकंप के उद्गम अधिक गहराई पर हैं। 
  • जबकि मध्य महासागरीय कटकों के क्षेत्र में भूकंप उद्गम केंद्र कम गहराई पर विद्यमान हैं।


सागरीय अधस्तल विस्तार' (Sea floor spreading)

  • हेस द्वारा  1961 में 
  • महासागरीय कटकों के शीर्ष पर लगातार ज्वालामुखी उद्भदन से महासागरीय पर्पटी में विभेदन हुआ और नया लावा इस दरार को भरकर महासागरीय पर्पटी को दोनों तरफ धकेल रहा है।
  • महासागर में विस्तार से दूसरे महासागर के न सिकुड़ने पर, हेस (Hess) ने महासागरीय पर्पटी के क्षेपण की बात कही। 
  • हेस के अनुसार, यदि ज्वालामुखी पर्पटी से नई पर्पटी का निर्माण होता है, तो दूसरी तरफ महासागरीय पर्पटी का विनाश भी होता है।

प्लेट विवर्तनिकी

  • सन् 1967 में मैक्कैन्जी,पारकर और मोरगन ने स्वतंत्र रूप से उपलब्ध विचारों को समन्वित किया 
  • एक विवर्तनिक प्लेट (लिथोस्फेरिक प्लेट), ठोस चट्टान का विशाल आकार का खंड है, जो महाद्वीपीय व महासागरीय स्थलमंडलों से मिलकर बना है।
  • स्थलमंडल में पर्पटी एवं ऊपरी मैंटल को सम्मिलित किया जाता है, जिसकी मोटाई महासागरों में 5 से 100 कि0मी0 और महाद्वीपीय भागों में लगभग 200 कि0मी0 है।

  • एक प्लेट को महाद्वीपीय या महासागरीय प्लेट भी कहा जा सकता है; जो इस बात पर निर्भर है कि उस प्लेट का अधिकतर भाग महासागर अथवा महाद्वीप से संबद्ध है।
  • ये प्लेटें दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) पर एक दृढ़ इकाई के रूप में क्षैतिज अवस्था में चलायमान हैं।


महत्वपूर्ण बड़ी प्लेट 

1. अंटार्कटिक प्लेट

2. उत्तर अमेरिकी प्लेट

3. दक्षिण अमेरिकी प्लेट

4. प्रशांत महासागरीय प्लेट

5. इंडो-आस्ट्रेलियन न्यूजीलैंड प्लेट।

6. अफ्रीकी प्लेट 

7. यूरेशियाई प्लेट


महत्वपूर्ण छोटी प्लेट 

1. कोकोस 

2. नजका प्लेट

3. अरेबियन प्लेट

4.फिलिपीन प्लेट

5. कैरोलिन प्लेट


प्लेट सीमा 

1. अपसारी सीमा divergent boundary  

  • जब दो प्लेट एक दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं और नई पर्पटी का निर्माण होता है। उन्हें अपसारी प्लेट कहते हैं। 
  • वह स्थान जहाँ से प्लेट एक दूसरे से दूर हटती हैं, इन्हें प्रसारी स्थान (Spreading site) भी कहा जाता है।



2. अभिसारी सीमा convergent boundary 

  • जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धँसती है और जहाँ भूपर्पटी नष्ट होती है, वह अभिसरण सीमा है। 
  • वह स्थान जहाँ प्लेट धँसती हैं, इसे प्रविष्ठन क्षेत्र (Subduction zone) भी कहते हैं। 
  • अभिसरण तीन प्रकार से हो सकता है- 
  • महासागरीय व महाद्वीपीय प्लेट के बीच 
  • दो महासागरीय प्लेटों के बीच 
  • दो महाद्वीपीय प्लेटों के बीच।


3. रूपांतरण सीमा transform boundary 

  • जहाँ न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का विनाश होता है, उन्हें रूपांतर सीमा कहते हैं। 
  • इसका कारण है कि इस सीमा पर प्लेटें एक दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं।


प्लेट प्रवाह दरें

  • प्रवाह की ये दरें बहुत भिन्न हैं। 
  • आर्कटिक कटक की प्रवाह दर सबसे कम है (2.5 सेंटीमीटर प्रति वर्ष से भी कम)। 
  • ईस्टर द्वीप के निकट पूर्वी प्रशांत महासागरीय उभार, जो चिली से 3,400 कि0मी0 पश्चिम की ओर दक्षिण प्रशांत महासागर में है, इसकी प्रवाह दर सर्वाधिक है (जो 5 से०मी० प्रति वर्ष से भी अधिक है)।


भारतीय प्लेट का संचरण 

  • भारतीय प्लेट एक प्रमुख टेक्टोनिक प्लेट है जिसमें दक्षिण एशिया का अधिकांश भाग और हिंद महासागर का एक हिस्सा शामिल है।
  • यह बड़ी इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट का हिस्सा है
  • भारतीय प्लेट प्राचीन महाद्वीप गोंडवाना का हिस्सा थी। 
  • यह गोंडवाना से अलग होना शुरू हुई।
  • भारतीय प्लेट प्रति वर्ष लगभग 15-20 सेमी की गति से उत्तर की ओर बढ़ी।


भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकराई थी। 

  • यह टकराव जारी है और इसके कारण हिमालय, तिब्बती पठार का उत्थान हुआ है
  • भारतीय प्लेट की गति का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण है, जो टकराव के जारी रहने पर लगातार बढ़ती रहती है।




 

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