परिचय
- पृथ्वी के धरातल का विन्यास मुख्यतः भूगर्भ में होने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम है।
- बहिर्जात व अंतर्जात प्रक्रियाएँ लगातार भूदृश्य को आकार देती रहती हैं।
- किसी भी प्रदेश की भूआकृति को समझने के लिए भूगर्भिक क्रियाओं के प्रभाव को जानना आवश्यक है।
- मानव जीवन मुख्यतः अपनी क्षेत्रीय भूआकृति से प्रभावित होता है।
भूगर्भ की जानकारी के साधन
- पृथ्वी की त्रिज्या लगभग 6,370 कि0मी0 है।
- पृथ्वी की आंतरिक परिस्थितियों के कारण यह संभव नहीं है कि कोई पृथ्वी के केंद्र तक पहुँचकर उसका निरीक्षण कर सके या वहाँ के पदार्थ का कुछ नमूना प्राप्त कर सके।
- ऐसी परिस्थितियों में भी वैज्ञानिक हमें यह बताने में सक्षम हुए कि भूगर्म की संरचना कैसी है और इतनी गहराई पर किस प्रकार के पदार्थ पाए जाते हैं?
भूगर्भ की जानकारी के साधन
1. प्रत्यक्ष स्त्रोत
- पृथ्वी से सबसे आसानी से उपलब्ध ठोस पदार्थ धरातलीय चट्टानें हैं, जो हम खनन क्षेत्रों से प्राप्त करते हैं।
- दक्षिणी अफ्रीका की सोने की खानें 3 से 4 कि0मी0 तक गहरी हैं।
- इससे अधिक गहराई में जा पाना असंभव है, क्योंकि उतनी गहराई पर तापमान बहुत अधिक होता है
- वैज्ञानिक दो मुख्य परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं।
- ये हैं गहरे समुद्र में प्रवेधन परियोजना (Deep ocean drilling project) व समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना (Integrated ocean drilling project)।
- आज तक सबसे गहरा प्रवेधन (Drill) आर्कटिक महासागर में कोला (Kola) क्षेत्र में 12 कि0मी0 की गहराई तक किया गया है।
- ज्वालामुखी उद्गार प्रत्यक्ष जानकारी का एक अन्य स्रोत है।
- जब कभी भी ज्वालामुखी उद्गार से लावा पृथ्वी के धरातल पर आता है, यह प्रयोगशाला अन्वेषण के लिए उपलब्ध होता है।
2. अप्रत्यक्ष स्त्रोत
- पदार्थ के गुणधर्म के विश्लेषण से पृथ्वी के आंतरिक भाग की अप्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त होती है।
- गहराई बढ़ने के साथ-साथ पदार्थ का घनत्व भी बढ़ता है।
- तापमान, दबाव व घनत्व में इस परिवर्तन की दर को आँका जा सकता है।
- कभी-कभी उल्काएँ धरती तक पहुँचती हैं।
- उल्काओं से प्राप्त पदार्थ और उनकी संरचना पृथ्वी से मिलती-जुलती है।
भूकम्प
- पृथ्वी का कंपन।
- यह एक प्राकृतिक घटना है।
- ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो सभी दिशाओं में फैलकर भूकंप लाती हैं।
1. उद्गम केन्द्र
- वह स्थान जहाँ से ऊर्जा निकलती है, भूकंप का उद्गम केन्द्र (Focus) कहलाता है।
- इसे अवकेंद्र (Hypocentre) भी कहा जाता है।
2. अधिकेंद्र
- भूतल पर वह बिंदु जो उद्गम केंद्र के समीपतम होता है, अधिकेंद्र (Epicentre) कहलाता है।
- अधिकेंद्र उद्गम केंद्र के ठीक ऊपर (समकोण पर) होता है।
भूकंपीय तरंगें
- सभी प्राकृतिक भूकंप स्थलमंडल (Lithosphere) में ही आते हैं
- पृथ्वी के धरातल से 200 कि०मी० तक की गहराई वाले भाग को स्थलमंडल कहते हैं
I. भूगर्भिक तरंगें
- भूगर्भिक तरंगें उद्गम केंद्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं।
- इन्हें भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है।
1. प्राथमिक तरंगें
- तीव्र गति से चलने वाली तरंगें हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं।
- इन्हें P तरंगें भी कहा जाता है।
- ये गैस, तरल व ठोस पदार्थों से गुजर सकती हैं।
2. द्वितीयक तरंगें
- द्वितीयक तरंगें धरातल पर कुछ समय अंतराल के बाद पहुँचती हैं।
- ये S तरंगें कहलाती हैं।
- ये केवल ठोस पदार्थों के ही माध्यम से चलती हैं। '
II. धरातलीय तरंगें
- भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण नई तरंगें उत्पन्न होती हैं जिन्हें धरातलीय तरंगें कहा जाता है।
भूकंप के प्रकार
1. विवर्तनिक भूकंप
2. ज्वालामुखीजन्य भूकंप
3. नियात भूकंप
4. विस्फोट भूकंप
5. बाँध जनित भूकंप
भूकंपों की माप
- भूकंपीय घटनाओं का मापन भूकंपीय तीव्रता के आधार पर पर किया जाता है।
- भूकंपीय तीव्रता की मापनी 'रिक्टर स्केल' के नाम से जानी जाती है।
- भूकंपीय तीव्रता भूकंप के दौरान ऊर्जा मुक्त होने से संबंधित है।
- भूकंप की तीव्रता 0 से 10 तक होती है।
- आघात की तीव्रता/गहनता (Intensity scale) को इटली के भूकंप वैज्ञानिक मरकैली के नाम पर जाना जाता है
भूकंप के प्रभाव
- धरातलीय विसंगति
- भूमि का हिलना
- भू-स्खलन
- मृदा द्रवण (Soil liquefaction)
- धरातल का एक तरफ झुकना
- हिमस्खलन
- धरातलीय विस्थापन
- बाँघ व तटबंघ के टूटने से बाढ़
- आग लगना
- इमारतों का टूटना तथा ढाँचों का ध्वस्त होना
- वस्तुओं का गिरना
- सुनामी।
भूकंप की आवृत्ति
- भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है।
- तीव्र भूकंप के झटकों से जन व धन की अधिक हानि होती है।
- रिक्टर स्केल पर 8 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप के आने की संभावना बहुत ही कम होती है जो 1-2 वर्षों में एक ही बार आते हैं।
- जबकि हल्के भूकंप लगभग हर मिनट पृथ्वी के किसी न किसी भाग में महसूस किए जाते हैं
पृथ्वी की आंतरिक संरचना
1. भू-पर्पटी
2. मेंटल
3. क्रोड़
1. भू -पर्पटी
- पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है।
- यह बहुत भंगुर भाग है जिसमें जल्दी टूट जाने की प्रवृत्ति पाईं जाती है।
- मोटाई महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग-अलग है।
- महासागरों में मोटाई महाद्वीपों की तुलना में कम है।
- महासागरों में इसकी मोटाई 5 कि० मी० है
- महाद्वीपों के नीचे यह 30 कि0 मी0 तक है।
- मुख्य पर्वतीय श्रृंखलाओं के क्षेत्र में यह मोटाई और भी अधिक है।
- हिमालय पर्वत के नीचे भूपर्पटी की मोटाई लगभग 70 कि0मी0 तक है।
2. मेंटल
- पर्पटी के नीचे का भाग मैंटल कहलाता है।
- मैंटल का ऊपरी भाग दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) कहा जाता है।
- 'एस्थेनो' (Astheno) शब्द का अर्थ दुर्बलता से है।
- इसका विस्तार 400 कि0मी0 तक आँका गया है।
- यह ठोस अवस्था में है।
- ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा धरातल पर पहुँचता है, उसका मुख्य स्त्रोत यही है।
- भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमंडल (Lithosphere) कहलाते हैं।
- इसकी मोटाई 10 से 200 कि० मी० के बीच पाई जाती है।
- निचले मैंटल का विस्तार दुर्बलतामंडल के समाप्त हो जाने के बाद तक है।
3. क्रोड़
- बाह्य क्रोड (Outer core) तरल अवस्था में है जबकि आंतरिक क्रोड (Inner core) ठोस अवस्था में है।
- क्रोड भारी पदार्थों मुख्यतः निकिल (Nickle) व लोहे (Ferrum) का बना है।
- इसे 'निफे' (Nife) परत के नाम से भी जाना जाता है।
ज्वालामुखी
- वह स्थान है जहाँ से निकलकर गैसे, राख और तरल चट्टानी पदार्थ, लावा पृथ्वी के धरातल तक पहुँचता है।
- तरल चट्टानी पदार्थ दुर्बलता मण्डल से निकल कर धरातल पर पहुँचता है।
- जब तक यह पदार्थ मैंटल के ऊपरी भाग में है, यह मैग्मा कहलाता है।
- जब यह भूपटल के ऊपर या ध रातल पर पहुँचता है तो लावा कहा जाता है।
- वह पदार्थ जो धरातल पर पहुँचता है, उसमें लावा प्रवाह, लावा के जमे हुए टुकड़ों का मलवा ज्वालामुखी बम, राख, धूलकण व गैसें जैसे- नाइट्रोजन यौगिक, सल्फर यौगिक और कुछ मात्रा में क्लोरीन, हाइड्रोजन व आर्गन शामिल होते हैं।
ज्वालामुखी के प्रकार
1. शील्ड ज्वालामुखी
2. मिश्रित ज्वालामुखी
3. ज्वालामुखी कुंड
4. बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र
5. मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी
1. शील्ड ज्वालामुखी
- पृथ्वी पर पाए जाने वालें सभी ज्वालामुखियों में शील्ड ज्वालामुखी सबसे विशाल है।
- ये ज्वालामुखी मुख्यतः बेसाल्ट से निर्मित होते हैं जो तरल लावा के ठंडे होने से बनते हैं।
- कम विस्फोटक होना ही इनकी विशेषता है।
- इन ज्वालामुखियों से लावा फव्वारे के रूप में बाहर आता है और निकास पर एक शंकु (Cone) बनाता है जो सिंडर शंकु (Cindar Cone) के रूप में विकसित होता है।
2. मिश्रित ज्वालामुखी
- इन ज्वालामुखियों से बेसाल्ट की अपेक्षा अधिक ठंडे व श्यान (गाढ़ा या चिपचिपा) लावा उद्गार होते हैं।
- प्रायः ये ज्वालामुखी भीषण विस्फोटक होते हैं।
- इनसे लावा के साथ भारी मात्रा में ज्वलखण्डाश्मि (Pyroclastic) पदार्थ व राख भी धरातल पर पहुँचती हैं।
- यह पदार्थ निकास नलीं के आस-पास परतों के रूप में जमा हो जाते हैं जिनके जमाव मिश्रित ज्वालामुखी के रूप में दिखते हैं।
3. ज्वालामुखी कुंड
- ये पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी हैं।
- जब इनमें विस्फोट होता है तब वे ऊँचा ढाँचा बनाने के बजाय स्वयं नीचे धँस जाते हैं।
- धँसे हुए विध्वंस गर्त ही ज्वालामुखी कुंड (Caldera) कहलाते हैं।
- इनके द्वारा निर्मित पहाड़ी मिश्रित ज्वालामुखी की तरह प्रतीत होती है।
4. बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र
- ये ज्वालामुखी तरल लावा उगलते हैं जो बहुत दूर तक बह निकलता है।
- संसार के कुछ भाग हजारों वर्ग कि०मी० घने लावा प्रवाह से ढके हैं।
- इनमें कुछ प्रवाह 50 मीटर से भी अधिक मोटे हो जाते हैं।
- कई बार अकेला प्रवाह सैकड़ों कि०मी० दूर तक फैल जाता है।
- भारत का दक्कन ट्रैप, जिस पर वर्तमान महाराष्ट्र पठार का ज्यादातर भाग पाया जाता है, वृहत् बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र है।
5. मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी
- इन ज्वालामुखियों का उद्गार महासागरों में होता है।
- मध्य महासागरीय कटक एक श्रृंखला है जो 70,000 कि0मी0 से अधिक लंबी है और जो सभी महासागरीय बेसिनों में फैली है।
- इस कटक के मध्यवर्ती भाग में लगातार उद्गार होता रहता है।
ज्वालामुखी स्थलाकृतियाँ
- लावा के ठंडा होने के स्थान के आधार पर आग्नेय शैलों का वर्गीकरण किया जाता है:
- ज्वालामुखी शैलों (जब लावा धरातल पर पहुँच कर ठंडा होता है) पातालीय (Plutonic) शैल (जब लावा धरातल के नीचे ही ठंडा होकर जम जाता है)।
- जब लावा भूपटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियाँ बनती हैं।
- ये आकृतियाँ अंतर्वेधी आकृतियाँ (Intrusive forms) कहलाती हैं।
स्थलाकृतियाँ
1. बैथोलिथ
2. लैकोलिथ
3. लैपोलिथ
4. फैकोलिथ
5. सिल
6. डाइक
1. बैथोलिथ
- मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है।
- ये विशाल क्षेत्र में फैले होते हैं और कभी-कभी इनकी गहराई भी कई कि०मी० तक होती है।
2. लैकोलिथ
- ये गुंबदनुमा विशाल अन्तर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व एक पाइपरूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है।
3. लैपोलिथ
- ऊपर उठते लावे का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाए जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है।
- यह तश्तरी (Saucer) के आकार में जम जाए, तो यह लैपोलिथ कहलाता है।
4. फैकोलिथ
- कई बार अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति के ऊपर व अभिनति के तल में लावा का जमाव पाया जाता है।
- ये परतनुमा/लहरदार चट्टानें एक निश्चित वाहक नली से मैग्मा भंडारों से जुड़ी होती हैं।
- यह ही फैकोलिथ कहलाते हैं।
5. सिल
- लावा का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है।
- जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है-कम मोटाई वाले जमाव को शीट व घने मोटाई वाले जमाव सिल कहलाते हैं।
6. डाइक
- जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर यह इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की भाँति संरचना बनाता है। यही संरचना डाइक कहलाती है।